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स्पर्श का सुख

अचानक किसी ने जोर से दरवाजा खटखटाया! आराध्या अनमने मन से उठ कर दरवाज़े तक गई। ये समय उसके पसंदीदा सीरियल अहिल्या का होता है और किसी भी प्रकार की रुकावट उसे खटकती थी। दरवाजे पर अनुपमा आंटी थी। आराध्या के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान खिल उठी। अब वो हैं ही ऐसी! उनके हाथ में एक टिफिन था।

"माफ करना आरु! मुझे पता है तेरे सिरियल का टाइम है और मैं तूझे डिस्टर्ब नहीं करूंगी, आ साथ बैठ कर देखते हैं और ये ले गर्मागरम अरबी के पत्तों के पकौड़े... एक काम कर तू चाय चढ़ा ले।"

अनुपमा आंटी बोलते हुए सोफ़े पर जम गई।

"और सुन ये बेल ठीक करा ले, कभी बजती है कभी नहीं, कोई जरूरी इंसान वापस जाएगा तो... "

" पकौड़े मैं बना लेती आंटी आप बोलते तो, लाती हूँ आपकी पसन्दीदा तुलसी कालीमिर्च वाली चाय! "

आराध्या शाम के समय इस अनचाहे पर मनपसन्द मेहमान के आने की खुशी में किचन की ओर बढ़ गई।

आराध्या के किचन की खिड़की से उनके बेडरूम की खिड़की साफ दिखती थी। अनुपमा आंटी! पूरे सोसाइटी की प्रिय। क्या बच्चे क्या बड़े सबके लिए वो खुशियों की पोटली। उनके होने से जैसे सोसायटी गुलजार रहती। किसी ने उन्हें कभी उदास नहीं देखा था। नवरात्रि मे गरबे की धुन पर थिरकतीं तो सब मंत्र मुग्ध होकर उन्हें देखते। होली पर सारे रंग उनके उत्साह के आगे फीके! वो जब ध्वजारोहण के समय देश भक्ति गीत गाती तो सब प्रफुल्लित हो जाते।

आराधना के लिए ये बहुत सुकून दायक था। आंटी की खिड़की उसकी खिड़की के सामने होना। उनके पौधे जो उनकी ही तरह खुश मिजाज़ हुआ करते आराधना का मूड बूस्टर का काम करते और आंटी की अनमोल सलाह से किचन में खुशबु का गुब्बार भर उठता।

"आरू! समय मिले तो आया करो घर पर।"

आंटी अक्सर प्यार से उसे बुलाया करती थी।

पति बच्चो के अपने ऑफिस स्कूल जाने के बाद आराधना सोचती की ये उसका अपना निजी समय होगा पर कुछ ही घण्टों मे खाली घर काटने दौड़ने लगता था। वह सोचती थी कि अनुपमा आंटी यूँ अकेले कैसे रहती होंगी? आंटी के बेटे विदेश रहते थे वो भी अलग अलग देश में। जिस घर में अंकल के साथ उनके जीवन के अंतिम पल बिताए, वह घर छोड़कर आंटी कहीं नहीं गई। किसी ने ज़बर्दस्ती भी नहीं की। किसी के पास इतना समय भी नहीं था। एक बात थी कि आंटी का सब बहुत ख्याल रखते थे। खाने पीने से लेकर हर काम के लिए हेल्पर, नर्स! एक से एक उम्दा मशीने! बड़ा सा टीवी, हाइ एंड इन्टरनेट सब कुछ! दिन मे कई बार सब वीडियो कॉल करते ताकि आंटी को अकेलापन महसूस ना हो।

आंटी तो सोशल मीडिया पर भी सक्रिय रहतीं। अपने डांस के पैशन से बखूबी नाम भी कमा रही थीं, उनकी जिजीविषा के सब कायल। पर ईन दिनों उनकी तबीयत कुछ ठीक नहीं रहती थी। आंटी पूरा दिन बिस्तर पर लेटे टीवी देखकर नहीं बिता सकती थीं तो कुक से जिद करके पकौड़े बनवाए और आराधना के पास चली आई।

"ये लीजिए आपकी चाय!"

आराधना ने अनुपमा आंटी को मुस्कुराते देखा तो सुकून मिला। कई दिनों से उन्हें खिड़की पर भी नहीं देखा था। अकेलापन सबसे बड़ी बीमारी है। आंटी कुछ दिनों से खामोश भी रहने लगी थी, वीडियो काल्स का जवाब भी नहीं देती थी। खामोशी भी अजीब है, कहीं तो एक अजीब सा रिश्ता बन जाती है। लेकिन रिश्तों मे आ जाए तो घुटन बन जाती है। खामोशी एक हत्यारन है।

"मैंने तुम्हारा एपिसोड खराब कर दिया ना?"

आंटी ने खामोशी तोड़ी।

"अरे नहीं आंटी ये क्या आजकल सब नेट पर उपलब्ध है जब चाहे देखो। आप सुनाईये ना कुछ पुरानी बाते, वो मजा सिरियल मे कहाँ!"

आंटी के किस्से आराधना को बहुत पसंद आते थे।

"कोई किस्सा याद नहीं रहता आरू! मुझे अब डर लगने लगा है। मैं ये बात किसी से नहीं कह पा रही। मुझे मेरे घर में डर लगता है। इतनी सारी जिंदा मशीनों के बीच मैं मुर्दे सी... वो मेड भी मशीनों सी काम करके भाग जाती है या कोने में पड़ी मोबाइल चलाती है। मशीनों ने इंसान खत्म कर दिए आरू! क्या मशीने इंसानो की जगह ले सकती है? "

आराधना आंटी की कशमकश कुछ हद तक समझ रही थी पर वह हलका फुल्का जवाब देना चाहती थी।

" हाँ आंटी! सोनू जो मूवी देख रहा था उसमे भविष्य में इंसानो पर मशीनें कब्जा कर लेती हैं! "

आराधना ने आँखे गोल घुमा कर जवाब दिया।

" चल हट! वो फ़िल्में हैं... या हो सकता है क्या भरोसा। हम जो सोचते हैं वैसा कुछ होता कहाँ है? खैर जाने दे! मेरा क्या दो चार दिन की मेहमान ये मशीने मुझपर शासन नहीं कर सकती। बस घबराहट हो रही थी, तड़प किसी इंसानी खुशबु के करीब होने की, सो चली आई तेरे पास। आया कर घर पर आरू, जानती हूं तूझे भी ढेरों काम होता है, फिर भी देखना। "

आंटी चाय खत्म कर चली गई। आराधना रोक भी नहीं पाई। उसे सोनू को फुटबाल क्लास लेकर जाना था।

कभी कभी आराधना सोचती थी कि यूँ दिन रात सोनू के पीछे वो लगी रहती क्या हो अगर आंटी के बच्चो की तरह वो भी उसे अकेला छोड़ देगा?

मनीष डांटने लगते थे। नेगेटिव मत सोचा करो। भविष्य किसने देखा है जो तुम उसकी फिक्र कर रही हो।

सच है कर्तव्य की राह पर इतनी दूर की क्या सोचें!

आराधना कभी-कभार आंटी के घर हो आया करती थी। इस तरह से उनका भी मन लगा रहता था। कभी वह खुद बाहर जाती तो सोनू को उनके घर छोड़ देती थी।

आराधना के मायके शादी थी। वह दस दिन के लिए जा रही थी। आंटी के आँखों में पहली बार किसी ने आंसू देखा था।

"आरु! ऐसा लग रहा है बेटी की विदाई कर रही हूँ, जल्दी आना। तुम बिन ये मशीने खा जाएंगी मुझे!"

"अरे आंटी! मैं आकर फाइट करूंगा उनसे!"

छोटा सोनू जोश में बोला तो वह मुस्कुरा उठीं।

दस दिन कैसे बीते पता ही नहीं चला। अपनों से मिलना कितना सुकून दायक था। भतीजे भतीजी सब लदी हुई थी बुआ पर, भाभीया लाड लुटा रही थी और माँ बस बेटी के साथ गिनती के पलों को जोड़ने मे लगी थी।

" ये मिक्सी ले जा बेटा! नई तकनीक का है, तेरे भईया को ऑफिस से मिला है... घर में बहुत है। तेरी भाभीयां बोली दीदी को दे देंगे।"

एक और मशीन! आराधना को अचानक आंटी की याद हो आई। सबकी यादो को समेट वह घर लौटी तो सोसाइटी के गेट पर थोड़ी भीड़ थी और मरघट सा सन्नाटा। किसी अनहोनी आराधना का कलेजा मुँह को आ रहा था। वही हुआ जिसका डर था। आंटी बहुत बीमार हो गई थी और उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ रहा था। एम्बुलेंस आई थी। आराधना ने उन्हें देखा, वो होश में नहीं थी। लोगों ने बताया वो घर से बाहर आई ही नहीं दस दिन। खामोशी और अकेलेपन ने उन्हें जैसे निगल लिया था। उनके सिरहाने एक चिट्ठी आराधना के नाम की मिली ये जानकर सब आश्चर्य चकित थे। आंटी के बेटों को खबर दे दी गई थी उन्होंने वही से बड़े अस्पताल में बुकिंग कर दी थी और जल्द आने का आश्वासन दिया था।

आराधना ने खुद को संयत रखते हुए चिट्ठी खोली।

"प्रिय आरू!

दिल किया था तुम्हें रोक लूँ, पर किस हक से? जिनपर हक था उन्हें रोका ही नहीं। तुम गई तो लगा एक बेटी का होना कितना जरूरी था। जाने क्यूँ दिल बैठा जा रहा है। अपने पोते से अभी वीडियो कॉल पर बात की मैंने, उससे पूछा कि क्या तुम ईन मशीनों से युद्ध करोगे? वो हँस रहा था, अंग्रेजी में बोला दादी मशीने हमारी दोस्त है और वह मूवी एक फिक्शन है। एक मशीन ने ही आपको हमको जोड़ कर रखा है। बच्चा कितना समझदार हो गया है आरू! बिलकुल अपने बड़ों की तरह। सोनू की याद आई, वह बच्चा है उसे खूब प्यार दिया करो और हाँ उसे बाहर खुद से दूर मत जाने देना। तुम्हारे जीवन में सुविधा के लिए कम मशीने रहेंगी, काम चला लेना पर इंसान दूर मत करना। मैं तुमसे कुछ कहना चाहती हूँ। मुझे लगता है अगर मुझे कुछ हो गया तो शायद बच्चे मशीनों की सहायता से मुझे विदाई देकर अपने अपने देश में ही बैठे रहेंगे। तुम उन्हें ज़बरदस्ती यहाँ बुलाना। मेरा वास्ता देना। कहना उनकी माँ उनके स्पर्श को तरसी थी। एक अंतिम स्पर्श की हकदार है वो। मेरे जाने के इस घर की सारी मशीने हटवा देना। पता नहीं क्या क्या लिख रही हूँ मैं? पर आरु मुझे डर लग रहा है। "

-अनुपमा

आराधना की आँखों से अनवरत आंसू बहे जा रहे थे। स्पर्श के सुख को तरसती वो मुस्कुराती हुई जिंदादिल आंटी अगर कभी खिड़की पर नहीं दिखेंगी यह सोच कर उसका हृद्य चित्कार मार रहा था।

" मम्मा आप क्यों रो रहे हो? "

सोनू के पूछने पर आराधना ने बस उसे कस कर सीने से लगा लिया।

जल्दी से अस्पताल पहुंच कर आराधना ने उनकी पूरी देखरेख की। मशीनों के बीच जिंदगी से लड़ती आंटी को देख आराधना को बहुत बुरा लग रहा था। डॉक्टरो की कोशिश रंग लाई और आंटी जल्द ही होश मे थी।

" आपने फोन क्यों नहीं किया?"

आराधना हक से शिकायत कर रही थी।

"फोन करने से कोई कहाँ आता है आरु!"

उनकी आवाज बुझी हुई थी।

"अब आप मेरे साथ ही रहेंगी, बेटी कहा है ना आपने तो मैं एक नहीं सुनूंगी आपकी। और हाँ देखिए ईन मशीनों ने आपको नया जीवन दिया है तो इनसे दुश्मनी खत्म! "

आंटी धीरे से मुस्कुरा दी।

आराधना ने उनका हाथ अपने हाथ में लिया, स्नेह की गर्माहट से उनके अंदर नई ऊर्जा का संचार हो उठा था। वह फिर से जीना चाहती थी, अब उन्हें डर नहीं लग रहा था।

-सुषमा तिवारी

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