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बूढ़े किसान की गन्ने जैसी मीठी बात
एक बार की बात है, राजा कृष्णदेव राय के राजदरबार में गरीब किसानों की समस्याओं की चर्चा हो रही थी। तेनालीराम ने गाँव के गरीब लोगों के दुख और किसानों की मुश्किलों का ऐसा चित्र खींचा कि राजा एकाएक गंभीर हो गए। कुछ देर तक वे चुप रहे। फिर कहा, “ठीक है, मैं अब हर महीने कम से कम एक बार गाँवों में जाकर अपनी प्रजा से मिलूँगा। खुद उनका हालचाल पता करूँगा। इससे जनता का असली सुख-दुख पता चलेगा।”
सुनकर मंत्री और उसके चाटुकार दरबारियों का रंग उड़ गया। पर वे कुछ कहते, इससे पहले ही तेनालीराम ने कहा, “हाँ महाराज, कई बार राज्य के अधिकारी और कारिंदे सही बात नहीं बताते। जनता की बहुत-सी समस्याएँ अनसुनी रह जाती हैं। आप खुद प्रजा के बीच जाएँ, इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता।”
पर मंत्री और चाटुकार दरबारी इस बात से चिंतित थे कि कहीं उनका झूठा प्रपंच और पोल न खुल जाए। कई बार जनता की भलाई के नाम पर खजाने से पैसे निकाले जाते थे और भला किसी और का होता था। तेनालीराम का चौकन्नापन बार-बार इस झूठ को पकड़ लेता था। पर अब तो राजा खुद प्रजा के बीच जा रहे थे। हाय-हाय, अब क्या होगा?
उधर तेनालीराम खुश था, तो प्रजा में भी राजा कृष्णदेव राय की इस नई घोषणा से उम्मीद जाग गई थी। यों भी तेनालीराम तो हर वक्त जनता की बात कहता ही था। उसकी चतुराई, उसकी बुद्धिमत्ता, उसका बाँकपन और हाजिरजवाबी और सबसे बढ़कर अपनी बात कहने का उसका नाटकीय अंदाज, सभी इसके मुरीद थे। बिगड़ी बात में से बात बनाने वाली तेनालीराम की सूझ-बूझ की एक से एक अनोखी कहानियाँ अब तो घर-घर पहुँच गई थीं।
खासकर विजयनगर की प्रजा तो उस पर जान छिड़कती थी। सबको लगता था, राजा कृष्णदेव राय के दरबार में एक तेनालीराम ही है, जो बार-बार उनके दुख-दर्द और समस्याओं की ओर राजा कृष्णदेव राय को ध्यान खींचता है। बाकी दरबारी खाली अपनी उन्नति की बात सोचते थे, पर तेनालीराम राजा किसी न किसी तरह कृष्णदेव राय को राज्य की भलाई के कामों की याद दिलाता रहता था। इसलिए कृष्णदेव राय उसे अपना सच्चा हितैषी मानते थे और विजयनगर की प्रजा तो गर्व से कहती थी, “तेनालीराम राजा कृष्णदेव राय के मुकुट का सबसे कीमती हीरा है।”
यहाँ तक कि दूर देशों से आए शाही मेहमान भी दरबार में आकर बड़ी भेद भरी मुसकराहट के साथ राजा कृष्णदेव राय से कहते थे, “महाराज, आपके दरबार में एक अनोखा दरबारी है तेनालीराम। उसकी सूझबूझ और चतुराई की कहानियाँ हमने बहुत सुनी हैं। कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि उस जैसा चतुर आदमी पूरे संसार में कोई दूसरा नहीं है। आप एक बार हमें तेनालीराम से जरूर मिलवा दीजिए।”
सुनकर राजा कृष्णदेव राय का चेहरा खिल जाता। कहते, “हाँ, विजयनगर का वह सबसे कीमती हीरा है, जिसकी चमक निरंतर बढ़ती ही जाती है!”
राजा कृष्णदेव राय खुद भी तेनालीराम को जी-जान से चाहते थे। अगर किसी दिन वह दरबार में न आए तो उनका मन नहीं लगता था।...पर उनके दरबार में बहुत-से दरबारी तेनालीराम से जलते थे। तेनालीराम को बार-बार पुरस्कार मिलता, तो उनकी छाती पर साँप लोट जाता था। वे बार-बार कहा करते थे, “महाराज, हममें क्या कमी है, जो आप हमारी बजाय उसे इतना महत्त्व दे रहे हैं?”
सुनकर राजा कृष्णदेव राय हँसकर रह जाते। वे जानते थे कि मंत्री और सेनापति ही उन्हें तेनालीराम की निंदा को उकसाते हैं। पर यह बात सीधे-सीधे कैसे कहें? हाँ, मुसकराते हुए वे इतना तो कह ही देते थे कि “तेनालीराम में कुछ खास बात तो जरूर है। वह बात आप अपने में पैदा कर लें, तो आपको भी वैसा ही महत्त्व मिलने लगेगा।”
दरबारी अपने-अपने ढंग से राजा कृष्णदेव राय की बात का मतलब लगाते थे। उनकी निगाहों में उठने की कोशिश भी करते थे। पर कामयाब नहीं हो पाते थे।
एक दिन की बात, तेनालीराम छुट्टी पर था। राजा कृष्णदेव राय मंत्री, सेनापति और कुछ प्रमुख दरबारियों के साथ घूमने निकले। दरबार से निकलने से पहले राजा ने अपना वेश बदल लिया। किसानों जैसी ही मोटी धोती और पुराना-सा कुरता। उनके इशारे पर मंत्री, सेनापति और बाकी दरबारियों ने भी अपना वेश बदलकर, साधारण आदमियों जैसे कपड़े पहन लिए।
मंत्री सोच रहा था, “आज तेनालीराम नहीं है। बस बात बन गई। राजा को लगता है कि तेनालीराम के बिना कोई बिगड़ी बात नहीं सँवार सकता। इसीलिए वह ऊपर उठता जा रहा है। पर क्या दुनिया में सारी अक्ल का ठेका तेनालीराम ने ही ले लिया है? आज हम भी राजा कृष्णदेव राय पर अपनी बुद्धिमत्ता की गहरी छाप छोड़ेंगे। आखिर हम भी तो देखें कि ऐसा क्या है, जो तेनालीराम में ही है और हममें नहीं है?”
उधर राजा कृष्णदेव राय कुछ सोचते-विचारते हुए आगे बढ़ रहे थे। आसपास कोई नई बात या नया दृश्य दिखाई पड़ता तो वे मंत्री और सेनापति से इसकी चर्चा करते। दोनों बड़े जोर-शोर से उनकी हाँ में हाँ मिला देते।
मंत्री उन्हें खुश करने के लिए कहता, “हाँ महाराज, बड़ा आश्चर्य है! आप कितना सोचते हैं अपनी प्रजा के लिए? सच, विजयनगर की प्रजा बड़ी सौभाग्यशाली है कि उसे आप जैसा उदारहृदय राजा मिला।”
सेनापति कहता, “आपने विजयनगर में स्वर्ग को धरती पर उतार दिया। आहा, महाराज, ऐसा तो पहले कभी न हुआ था!”
सुनकर राजा कृष्णदेव राय मंद स्मिति से आगे बढ़ जाते। वे प्रजा की हालत देखकर खुश थे और कभी-कभी धीरे से कह उठते थे, “शायद हमारी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ प्रजा तक पहुँच रहा है। इसीलिए विजयनगर की प्रजा खुशहाल है।”
चलते-चलते वे राजधानी से कुछ दूर एक गाँव में पहुँचे। राजा ने देखा, एक जगह कुछ किसान बैठे आपस में बात कर रहे थे। उन्होंने पास जाकर पूछा, “भाई, हम लोग परदेसी हैं। दूर देश से घूमने आए हैं। हम जानना चाहते हैं, विजयनगर की प्रजा सुख से है या नहीं? आप लोगों को कोई परेशानी तो नहीं है? क्या राजा आप लोगों की ठीक से परवाह करते हैं?”
इस पर सबने राजा कृष्णदेव राय की खूब प्रशंसा की। कहा, उन जैसे उदार राजा के होते हुए हमें भला क्या परेशानी? फिर राजा ने एक बूढ़े किसान से यही सवाल पूछा। सुनकर वह चुप रहा, कुछ बोला नहीं। फिर एकाएक अपनी जगह से उठा और चला गया। राजा अचंभे में थे। थोड़ी देर में वह बूढ़ा लौटा, तो उसके हाथ में एक गन्ना था। आते ही उसने उस गन्ने को दोनों हाथों से तोड़कर कहा, “भाई, हमारे राजा तो ऐसे हैं!”
राजा कृष्णदेव राय को माजरा कुछ समझ में नहीं आया। उन्होंने मंत्री की ओर देखा, तो उसने कहा, “महाराज, इस गाँव में सभी किसानों ने आपकी तारीफ की। पर यह बूढ़ा बड़ा असभ्य है। यह आपका सरासर अपमान कर रहा है। इसका कहना है कि हमारे राजा इतने कमजोर है कि कोई भी उन्हें आसानी से पछाड़ सकता है।...यह तो अक्षम्य अपराध है, महाराज।”
राजा को बड़ा अजीब लगा। उन्होंने सेनापति से पूछा, तो उसने भी यही बाद दोहरा दी। बोला, “महाराज, हर गाँव में एकाध सनकी आपको ऐसा जरूर मिलेगा। ऐसे लोगों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए, ताकि हमारी प्रजा अनुशासन में ररहना सीख ले।”
सुनकर राजा कृष्णदेव राय क्रोध में आ गए। कुछ सोचते हुए बोले, “हूँ...!”
वे आगे कुछ कहने वाले थे, तभी पीछे से एक पग्गड़धारी आदमी उठा। बोला, “नाराज न होइए, दयानिधान! मैंने आपको पहचान लिया है। आप हमारे महाराज कृष्णदेव राय हैं, जिनका प्यार विजयनगर की सारी प्रजा को मिलता है। सारी दुनिया में आपके न्याय और कृपालुता का डंका बज रहा है। फिर भला हम आपका अपमान कैसे कर सकते हैं?”
राजा चौंके, “यह किसकी आवाज! भला इस धुर गाँव में कौन इतना बुद्धिमान है, जो बड़ी सुंदर भाषा में अपनी बात कह रहा है?”
अभी वे सोच ही रहे थे, कि तभी वह बूढ़ा ग्रामीण आदमी फिर बोला, “असल में महाराज, अभी-अभी जिस बूढ़े ने गन्ना तोड़कर दिखाया था, वह इस गाँव का सबसे खऱा और समझदार आदमी है। उसका तो सिर्फ यही कहना था कि हमारे महाराज गन्ने की तरह ऊपर से सख्त, लेकिन भीतर से मीठे हैं।...महाराज, उसने अपनी बात अपने ठेठ किसानी अंदाज में कही है। इसका सही अर्थ समझें तो वह आपको गन्ने जैसी मीठी ही लगेगी।”
सुनकर राजा की आँखों में चमक आ गई। उन्होंने हैरानी और प्रशंसा भरी नजरों से उस पग्गड़धारी की ओर देखा। पूछा, “आप तो इस गाँव के नहीं लगते। क्या मैं जान सकता हूँ कि आप कौन हैं...?”
“महाराज, आपने भले ही मुझे न पहचाना हो, पर मैं तो आपको देखते ही पहचान गया था। अब शायद आप भी अपने इस सेवक को पहचान लें।” कहते-कहते उस बूढ़े ने अपना भारी पग्गड़ और नकली दाढ़ी उतारी। सामने तेनालीराम खड़ा था।
देखकर राजा कृष्णदेव राय की हँसी छूट गई। उन्होंने तेनालीराम को गले से लगाकर कहा, “इसी लिए तो तुम मुझे इतने प्रिय हो, तेनालीराम। आड़े वक्त में तुमसे सही सलाह मिल जाती है, वरना तो...!”
तभी राजा कृष्णदेव राय का ध्यान इस बात पर गया कि भला तेनालीराम आज इस गाँव में कैसे? उन्होंने पूछा तो तेनालीराम बोला, “महाराज, वह बूढ़ा किसान मेरा पुराना परिचित है। बड़ा ही बुद्धिमान और बिना लाग-लपेट के खरी-खरी कहने वाला है। उससे मिलने कभी-कभी आ जाता हूँ। उससे गाँव वालों के साथ-साथ आसपास के गाँवों के समाचार भी जब-तब मिलते रहते हैं। और हमारे मंत्री जी, राज्य अधिकारी और कारिंदे जो कुछ करते हैं या नहीं करते, उसकी असलियत भी पता चल जाती है। इसलिए यहाँ आकर बड़ा अच्छा लगता है। मैं सरकारी आदमी का चश्मा उतारकर जनता का आदमी बन जाता हूँ।”
“तब तो मुझे भी आज जनता का आदमी बनकर सब कुछ देखना और समझ लेना चाहिए।” राजा हँसकर बोले।
उनके आग्रह पर सारे गाँव वालों को बुलाया गया। उन्हें बिना डरे सारी असलियत बताने के लिए कहा गया तो बड़ी-बड़ी सरकारी योजनाओं की पोलें खुलती चली गईं। पता चला, यह इलाका नीचाई पर है, इसलिए हर साल रेवती नदी की बाढ़ से फसलें बरबाद हो जाती हैं। नदी की गाद निकालने के लिए हर साल हजारों रुपए सरकारी खजाने से निकाले जाते हैं, पर गाद निकालने का काम सिर्फ कागजों पर होता है। पीने के पानी के लिए खोदे जाने वाले ज्यादातर कुएँ भी सिर्फ कागजी हैं। गरीबों को राहत के लिए जाड़े में बँटे जाने वाले कंबल भी, गरीब आदमी नहीं, अमीरों की हवेलियों में पहुँच जाते हैं। और भी बहुत कुछ है, जिसे कहना-सुनना मुश्किल है। जहाँ हाथ लगाओ, वहीं पोल...!
राजा ने मंत्री की ओर देखा, तो उसके चेहरे का रंग उड़ गया। बोला, “महाराज, वैसे तो हर तरह से देख-भालकर ही प्रजा की भलाई के सारे काम होते हैं। सरकारी सुविधा हर जगह पहुँचाने की कोशिश होती है। पर शायद कुछ गाँव छूट गए होंगे, मैं स्वयं इसकी जाँच करूँगा...!”
“जाँच जल्दी होनी चाहिए, मंत्री जी!” राजा कृष्णदेव राय कुछ रोष में आकर बोले, “एक सप्ताह में आप असलियत हमें बताएँ। हम आपकी जाँच के लिए मजबूर हों, इससे पहले ही हर तरह के भ्रष्टाचार और हेराफेरी की सही-सही जाँच करके अपराधियों को पकड़िए। ऐसे लोगों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए। राज्य और जनता के धन की बर्बादी हम बर्दाश्त नहीं करेंगे।”
“जी...जी...जी...!” कहते हुए मंत्री डर और घबराहट के मारे हकला रहा था।
राजपुरोहित, सेनापति और चाटुकार दरबारियों के चेहरे लटक गए थे। उन्हें अपनी भूल पता चल गई थी। वे समझ गए कि अनोखी सूझ-बूझ वाले चतुर और बुद्धिमान तेनालीराम को हराना उनके बस की बात नहीं है।
राजा ने देखा, तेनालीराम एक ओर खड़ा मंद-मंद मुसकरा रहा था। दरबार में उसका रुतबा और बढ़ गया था।