इतिहास का वह सबसे महान विदूषक - 14 Prakash Manu द्वारा बाल कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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इतिहास का वह सबसे महान विदूषक - 14

14

पाताल लोक की रहस्यपूर्ण मूर्ति

राजा कृष्णदेव राय साधुओं और विद्वानों का बहुत सम्मान करते थे। इसलिए दूर-दूर से साधु-महात्मा उनसे मिलने आते थे। राजा कृष्णदेव राय उनसे बात करके खुद को धन्य महसूस करते। एक जिज्ञासु की तरह आत्मा, परमात्मा, जीव-जगत और सृष्टि के विविध रूपों के संबंध में तरह-तरह के प्रश्न पूछते और उनका निदान हो जाने पर बड़ी प्रसन्नता महसूस करते थे। इतना ही नहीं, वे विजयनगर की प्रजा को भी साधु-महात्माओं के सत्संग-लाभ के लिए उत्साहित करते। राजा कृष्णदेव राय शाही अतिथिशाला में उनके आतिथ्य की बड़ी सुंदर व्यवस्था करते और उसका प्रबंध स्वयं देखा करते थे। इस तरह वे साधु-संतों का पर्याप्त सम्मान करते थे और सबको प्रसन्न करके भेजते थे।

एक बार की बात, शाम का समय था। राजा कृष्णदेव राय राजदरबार में बैठे, दरबारियों से कुछ अनौपचारिक बातें कर रहे थे। पूरे दिन दरबार में कामकाज की व्यस्तता के कारण काफी थकान हो गई थी। इसलिए दरबारियों से हलकी-फुलकी बातें करते हुए वे मन बहला रहे थे। साथ ही उनके घर-परिवार और विजयनगर की प्रजा के बारे में भी जानकारी हासिल कर रहे थे। इतने में ही एक दरबारी ने उन्हें एक विचित्र तांत्रिक भभूतनाथ के बारे में बताया। बोला, “महाराज, विजयनगर में एक विलक्षण तांत्रिक आया है। सुना है, बड़ा चमत्कारी है।”

“अच्छा...!” राजा कृष्णदेव राय ने उत्सुकता प्रकट की।

“हाँ महाराज, वह तो बड़ा पहुँचा हुआ योगी है, एकदम सिद्धपुरुष।” दूसरे दरबारी ने कहा, “उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं है। सुना है कि वह हवा में चलकर ऊपर आसमान में पहुँच सकता है। बात की बात में चाँद-तारों तक पहुँच जाता है। साथ ही वह जल के ऊपर बड़े आराम से चल सकता है, जैसे बिल्कुल ठोस जमीन पर चल रहा हो। इतना ही नहीं, वह जल पर चलता हुआ एकाएक अदृश्य हो जाता है और पाताल लोक में जा पहुँचता है और फिर वहाँ का हालचाल लेकर आ जाता है। उसकी मायावी शक्तियाँ तो किसी किस्से-कहानी से भी बढ़कर हैं महाराज।”

“क्या सचमुच...? विश्वास नहीं होता!” राजा कृष्णदेव राय ने हैरानी से कहा।

मंत्री बोला, “वह सचमुच ऐसा ही है महाराज। उसके पास पाताल लोक की बोलने वाली एक चमत्कारी मूर्ति भी है, जो भविष्यवाणी भी करती थी। कहते हैं, एक बार इसी तरह पाताल लोक की यात्रा करते हुए उसे मिली और तब से उसके साथ ही है। वह ऐसी मायावी मूर्ति है, जो हर व्यक्ति के भूत, भविष्य और वर्तमान के बारे में सब कुछ सच-सच बता सकती है।”

“अरे, यह तो बड़ी आश्चर्यजनक बात है।” राजा कृष्णदेव राय बोले, “ऐसा सिद्ध योगी...! आप लोगों ने पहले कभी नहीं बताया। हो सकता है, वह सीधे हिमालय से उतरकर हमारे राज्य में आ पहुँचा हो। यह तो हम सबका ही सौभाग्य है। आज के समय में ऐसे महान योगियों के दर्शन तो दुर्लभ हैं। बड़े पुण्यों से उनका दर्शन-लाभ मिलता है।”

सेनापति ने कहा, “हाँ महाराज, वह सचमुच ऐसा ही दिव्य योगी है। नाम है तांत्रिक भभूतनाथ। उसकी भविष्यवाणी एकदम सच निकलती है। राज्य के बहुत-से सम्मानित लोगों ने उसकी चर्चा की है। बहुत-से लागों को तो इस कारण अपने ही घर में छिपा गुप्त खजाना मिल गया।”

राजपुरोहित ने भी हाँ में हाँ मिलाई। बोले, “सुना है महाराज, कि वह थोड़ा अक्खड़ है। किसी से कुछ नहीं लेता, पर सबकी भलाई की बात कहता है। इसलिए तो पूरी राजधानी में उसकी चर्चा है।”

राजा कृष्णदेव राय ने आदेश दिया, “तांत्रिक को कल ही प्रातःकाल महल में बुलवाया जाए।”

मंत्री बोला, “पर महाराज, मैंने तो सुना है कि वह राजमहल में नहीं जाता। अपनी मस्ती में मस्त रहता है। कहता है, हम शाह मस्तराम हैं। कलंदरों के कलंदर। हमारे लिए राजा और रंक एक बराबर हैं।...तो महाराज, क्यों न कल हम वहीं चलें?”

“ठीक है, ऐसा ही करते हैं।” राजा कृष्णदेव राय बोले, “ऐसे सिद्ध योगियों से मिलना तो आनंद की बात है। अपने ही आनंद में लीन रहने वाले तांत्रिक भभूतनाथ के पास जाने में मुझे कोई संकोच नहीं है।”

अगले दिन सुबह राजा कृष्णदेव राय अपने प्रमुख सभासदों को लेकर तांत्रिक भभूतनाथ के पास पहुँचे। उन्हें देखकर तांत्रिक ने आँखें बंद करके कुछ सोचा। फिर बोला, “अच्छा है महाराज, आप आ गए। वरना बड़ा अनर्थ हो जाता!”

इसके बाद कुछ देर तक वह ‘हूँ-हूँ...हूँ-हूँ’ करता हुआ जमीन पर आड़ी-तिरछी लकीरें खींचता रहा। फिर एकाएक बड़े जोर से हुंकारते हुए बोला, “लेकिन महाराज, दुर्भाग्य की काली छाया अभी पूरी तरह हटी नहीं है। राज्य के भीतर भीषण विद्रोह पनपने का खतरा है।”

“इससे बचने का कोई उपाय?” राजा कृष्णदेव राय चिंतित हो उठे। उनका चेहरा एकदम मुरझा गया।

तांत्रिक भभूतनाथ ने एक क्षण के लिए फिर से आँखें बंद कीं। खोलीं। फिर बंद कीं। फिर ऊँची आवाज में कहा, “महाराज, आपका एक विश्वासपात्र व्यक्ति ही आपके खिलाफ लोगों को भड़का रहा है। उसे फौरन राज्य से बाहर निकाल दें।”

“कौन सा व्यक्ति? क्या वह यहाँ मौजूद है?” राजा कृष्णदेव राय ने पूछा तो तांत्रिक बोला, “महाराज, इस बारे में तो पाताल से निकली चमत्कारी मूर्ति ही बता सकती है।” फिर दोनों हाथ ऊपर उठाकर चिल्लाया, “बोल मूर्ति!”

तुरंत उस तांत्रिक के सामने रखी मूर्ति में से आवाज आई, “महाराज, आप स्वयं समझ जाएँ। वह बूढ़ा व्यक्ति है। सिर पर पगड़ी बाँधता है, और हमेशा बेढंगे नाटक करता रहता है।”

राजपुरोहित ताताचार्य ने झट से कहा, “अरे, राम-राम...! वह व्यक्ति तो तेनालीराम ही हो सकता है।”

तेनालीराम एक क्षण के लिए अचकचाया। फिर बोला, “महाराज, मूर्ति तो सचमुच चमत्कारी लगती है। एकदम दिव्य, एकदम भव्य। जरूर यह पाताल से ही आई होगी, वरना भला ऐसे कैसे बोलने लग जाती? मैंने तो महाराज, आज तक ऐसी दिव्य और अलौकिक मूर्ति नहीं देखी, जो एक साथ इतनी बातें बता दे। आप कहें तो जरा इसकी परिक्रमा कर लूँ?”

“हाँ-हाँ, क्यों नहीं! क्यों नहीं...?” राजा कृष्णदेव राय ने कहा, तो तांत्रिक को भी कहना पड़ा।

उस रहस्यमय मूर्ति की परिक्रमा करते-करते तेनालीराम एक जगह रुक गया। बोला, “महाराज, लग रहा है, आसपास कोई प्रेत छिपा है। इस मूर्ति पर उसी प्रेत की छाया है। इस कारण मूर्ति बोल तो रही है, पर एकदम सच्ची बात नहीं बता पा रही। कहिए तो ढूँढ़ निकालूँ उसे!”

फिर उसने सेवकों से कहा, “अभी दौड़कर जाओ, दस बाल्टी पानी लाओ। एकदम गरम, उबलता हुआ।...पर हाँ, लाना जरा जल्दी।”

तेनालीराम के कहने पर कई बालटी गरम, उबलता हुआ पानी मँगवाया गया। मूर्ति से कुछ दूर जमीन में एक छेद था। तेनालीराम ने उसमें गरम पानी डालना शुरू किया। कुछ ही देर में जमीन के भीतर से किसी आदमी की चीख सुनाई दी, “अरे बचाओ, बचाओ रे, मरा...मर गया...!”

राजा कृष्णदेव राय चौंके। बोले, “यह क्या तेनालीराम?”

तेनालीराम मुसकराया, “आप देखते रहिए महाराज। मैं प्रेत-बाधा दूर कर रहा हूँ। जो सच इस मूर्ति ने नहीं बताया, वह अब सामने आ जाएगा।”

अगले ही पल तेनालीराम का इशारा होने पर तांत्रिक भभूतनाथ को सैनिकों ने पकड़ लिया। जमीन के अंदर छिपे उसके साथी को भी निकाल लिया गया। पूछने पर उसने सच-सच बता दिया, “महाराज, आपके दरबार के कुछ सभासदों ने ही पैसा देकर मुझे यह नाटक करने के लिए कहा था।...उनमें से एक ने यह भी कहा कि मंत्री और राजपुरोहित ने हमें इसके लिए धन दिया है।”

राजा ने मंत्री और राजपुरोहित को फटकारा। जिन दरबारियों ने भभूतनाथ से मिलकर यह नाटक करने के लिए कहा था, उन्हें भी फटकार पड़ी। दरबार में तेनालीराम का रुतबा और बढ़ गया।

अब विजयनगर की प्रजा हँसकर कहती, “भई, तेनालीराम के पास तो तांत्रिकों से भी बड़ी ताकत है। बड़े-बड़े भभूतनाथ इसके आगे पानी माँग जाते हैं।”