अय्याश--भाग(२७) Saroj Verma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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अय्याश--भाग(२७)

हाँ !दिखावा था ये ब्याह,अष्टबाहु बोला।।
लेकिन क्यों? मेरा ब्याह तो माधव के संग हुआ था,उसमें सब शामिल थे तो दिखावा कैसें हुआ? मुझे जमींदारन ने कहा था कि वो मेरा ब्याह अपने भाई के साथ करवाना चाहती हैं,मैं जोर से चीखी।।
मैं ही तो हूँ जमींदारन राजलक्ष्मी का भाई,अष्टबाहु बोला।।
तो फिर माधव कौन है? मैनें पूछा।।
माधव...माधव मेरे नौकर का बेटा है,अष्टबाहु बोला।।
तो इसका मतलब है राजलक्ष्मी ने मुझसे झूठ बोला,मैं ने कहा।।
अगर झूठ ना बोलती तो तुम यहाँ कैसे आती ?अष्टबाहु बोला।।
लेकिन क्यों?,मुझसे झूठ क्यों बोला गया?मैं चीखी।।
वो इसलिए कि मुझे इस हवेली का वारिस चाहिए था,क्योंकि मेरी पत्नी माँ नहीं बन सकती! अष्टबाहु बोला।।
तो मैं क्या करूँ?मैं चीखी।।
तुम मुझे इस हवेली का वारिस दोगी,इसलिए तुम्हें यहाँ लाया गया है,अष्टबाहु बोला।।
नहीं! मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूँगी,मेरा पति माधव है ,मेरा ब्याह उसी के साथ हुआ है,तुम मुझे हाथ नहीं लगा सकते,मै ने गुस्से से कहा....
इतना मत चीखो,यहाँ कोई भी तुम्हारी मदद के लिए नहीं आएगा,अष्टबाहु बोला।।
और उस रात अष्टबाहु ने अपनी मनमानी कर ही ली,मैं चीखती रही चिल्लाती रही लेकिन मेरी किसी ने नहीं सुनी,मेरी हालत अब ऐसी थी जैसे कि किसी चिड़िया को सोने के पिंजरे में कैद कर दिया गया हो.....
सुबह हुई और मैं अस्त-ब्यस्त सी यूँ ही अपने बिस्तर पर पड़ी रो रही थी,तभी देवनन्दिनी कमरें में आई और मुझे ऐसे देखकर फौरन ही मुझे अपने सीने से लगाकर बोली.....
चुप हो जाओ....चुप हो जाओ....
ऐसा मेरे साथ क्यों हुआ?,मैनें देवनन्दिनी से पूछा।।
राजलक्ष्मी ने तुम्हारे साथ बड़ा धोखा किया है,उसी ने ही ये तरकीब निकाली थी कि केवल दुनिया को दिखाने के लिए किसी भोली-भाली लड़की का माधव के साथ ब्याह रचा देगें और वो ही इस हवेली का वारिस पैदा करेगी,मैनें तुमसे पहले दिन ही कहा था कि तुम यहाँ क्यों आ गई?इन लोगों के मन में कोई दया और हमदर्दी नहीं है,मैं तो इतने सालों से यहाँ रह रही हूँ,सबको बहुत अच्छी तरह से जानती हूँ,देवनन्दिनी बोली।।
क्या तुम्हारी शादी भी किसी और से करा दी गई थी,मैनें देवनन्दिनी से पूछा।।
नहीं! मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ था,देवनन्दिनी बोली।।
तो क्या हुआ था तुम्हारे साथ? मैनें देवनन्दिनी से पूछा।।
मेरी शादी तो मेरे माँ बाप ने इस हवेली में कराई थी,देवनन्दिनी बोली।।
तुम्हारी शादी यहाँ तुम्हारे माँ बाप ने कराई थी,मगर किसके साथ?, मैनें देवनन्दिनी से पूछा।।
हाँ! मेरे माँ बाप ने करवाई थी,मेरे पति का नाम जानना चाहोगी,देवनन्दिनी बोली।।
हाँ! मैनें कहा।।
अष्टबाहु.....अष्टबाहु ही मेरे पति हैं,देवनन्दिनी बोली।।
क्या कह रही हो तु? मैनें पूछा।।
मैं सच कहती हूँ,देवनन्दिनी बोली।।
वो पापी ही तुम्हारा पति है जिसने रात को मेरे साथ दुष्कर्म किया,मैं बोली।।
हाँ! वो पापी ही मेरा पति है,देवनन्दिनी बोली।।
तुम एक औरत हो और तुमने मेरे साथ ऐसा कैसा होने दिया ? मैनें पूछा।।
मैं मजबूर हूँ बहन ! मेरे पास और कोई रास्ता नहीं था,देवनन्दिनी बोली।।
तुम मुझे बता तो सकती थी कि मेरे साथ ये होने वाला है,मैनें कहा।।
मुझे तुमसे सच्चाई छुपाने के लिए कहा गया था,देवनन्दिनी बोली।।
तो क्या माधव को भी ये सब पता था,?मैनें पूछा।।
हाँ! उसके बाप को इस काम के लिए मोटी रकम दी गई थी,देवनन्दिनी बोली।।
क्या तुम मुझे माधव से एक बार मिलवाने में मेरी मदद कर सकती हो?मैनें पूछा।।
उससे मिलकर क्या करोगी तुम?देवनन्दिनी बोली।
मैं उससे पूछूँगी कि इतना बड़ा धोखा क्यों किया मेरे साथ? मैं बोली।।
ठीक है !कोशिश करूँगी, देवनन्दिनी बोली।।
एक बात पूछूँ,मैनें देवनन्दिनी से कहा।।
हाँ! पूछो! देवनन्दिनी बोली।।
तुम्हारे पति तुम्हें प्यार करते हैं,मैनें पूछा।।
प्यार....ये क्या होता है?और फिर इतना कहकर देवनन्दिनी जोर जोर से हँसने लगी।।
हँसती क्यों हो? मैनें पूछा।।
वो इसलिए कि यहाँ रिश्ते प्यार के दम पर नहीं ,जिस्म के दम पर बनते हैं,ये हवेलियाँ हैं यहाँ कि दीवारों के पीछे ऐसे अनगिनत काम होते हैं जो किसी को भी नहीं पता,देवनन्दिनी बोली।।
ऐसे और क्या काम होते हैं यहाँ? मैनें पूछा।।
तुम्हें पता है मुझसे पहले जमींदार अष्टबाहु की एक और पत्नी थी,देवनन्दिनी बोली।।
तो क्या वो अब इस दुनिया में नहीं है?मैनें पूछा।।
हाँ! बेचारी चन्द्रकला एक के बाद एक उसने चार बेटियों को जन्म दिया और उन चारों बेटियों को उस दरिन्दे ने मरवा दिया,फिर चन्द्रकला पाँचवीं बार माँ बनी तब भी बेटी ही पैदा हुई,तब पूरे परिवार ने मिलकर माँ बेटी को जह़र दे दिया फिर मुझे ब्याह कर लाएं लेकिन मैं तो अपनी कोख में पत्थर लेकर आई थी इसलिए कभी माँ ही नहीं बन सकी,शायद चन्द्रकला और उसकी बेटियों का श्राप लगा होगा इस हवेली को इसलिए अभी तक यहाँ कोई भी वारिस पैदा ना हो सका,जब मैं माँ ना बन सकी तो तुम्हें धोखे से यहाँ ले आएं,देवनन्दिनी बोली।।
और तुम इतना जुल्म सहकर भी यही रह रही हो,मैनें पूछा।।
मेरे पास और कोई सहारा नहीं है,जब शादी के बाद पहली बार मायके गई थी तो अपनी माँ से मैनें सब कुछ बताया था,माँ तो तड़पकर रह गई लेकिन बाप का दिल ना पिघला वें बोले कि जमींदारों की बेटियाँ मायके से डोली में जातीं हैं और ससुराल से ही उनकी अर्थी निकलती है....
मेरे मना करने के बावजूद भी उन्होंने मुझे दोबारा इस घर में भेज दिया,मुझ पर यहाँ कितने जुल्म होते थे मैं तुम्हें नहीं बता सकती,मैं अपने पति की परछाई से भी डरने लगी थी जब वो मेरे करीब आते तो मेरी आत्मा तड़प उठती,वो बिना भावों का शुष्क सा मिलन मुझे भीतर तक तोड़कर रख देता,वो मेरे शरीर को टटोलकर आनन्दित होते रहते और मैं केवल सिसकती रहती,कितना बीभत्स सा वो सब मेरे लिए,वो सब तो रात को तुम भी महसूस कर चुकी होगी,देवनन्दिनी बोली।।
हाँ! बड़े घरानों में ऐसे घिनौने काम होते हैं ये मुझे नहीं पता था,मैं सोचती थी कि अमीर लोंग बहुत अच्छे होते हैं लेकिन यहाँ आकर पता चला कि उनमें इन्सानियत ही नहीं होती,मैनें देवनन्दिनी से कहा....
सही कहा तुमने,देवनन्दिनी बोली।।
लेकिन मैं एक बार माधव से मिलकर ये पूछना चाहती हूँ कि उसने मुझे धोखा क्यों दिया?मैनें देवनन्दिनी से कहा...
अगर तुम माधव से मिलना चाहती हूँ तो मैं तुम्हें उससे मिलवा सकती हूँ,देवनन्दिनी बोली।।
लेकिन कब?मैनें उससे पूछा...
कल शनिवार है और इस दिन जमींदार साहब शहर जाते हैं,वहाँ कोई रेशमी नाम की तवायफ़ है उसके पास और वें दूसरे दिन दोपहर तक ही लौटते हैं,शनिवार की रात को जब वें शहर जाऐगें और हवेली के सारे लोंग सोए रहेगें तो मैं तुम्हें उससे मिलवा दूँगी,देवनन्दिनी बोली।।
ठीक है यही सही रहेगा,मैं बोली.....
और फिर दूसरी रात भी अष्टबाहु ने मुझे गिरफ्त में ले लिया,मैं खुद को छुड़ाने के लिए मिन्नते करती रही लेकिन वो अपने मन की करता रहा.....
फिर दूसरे दिन शनिवार था और रात को अष्टबाहु शहर जाने वाला था और मैं इन्तजार कर रही थी माधव से मिलने का,आखिरकार वो वक्त आ ही पहुँचा और देवनन्दिनी अपने संग माधव को लेकर मेरे कमरें में आ गई,माधव को उसने कमरें में छोड़ा और बोली.....
अच्छा! मैं जाती हूँ,दो घण्टे में वापस आ जाऊँगीं माधव को लेने।।
मैनें कहा ,ठीक है जीजी! तुम जाओ।।
देवनन्दिनी चली गई और मैं माधव के पास जाकर बोली.....
शरम नहीं आई मेरी जिन्दगी के साथ खिलवाड़ करते।।
मुझे माँफ कर दो,ये बात मुझे भी नहीं पता थी,मुझसे तो केवल ये कहा गया कि तुम्हारा ब्याह है लेकिन मुझे ये नहीं पता था कि मेरी घरवाली को जमींदार के पास भेजा जाएगा,इसलिए मैनें खुशी खुशी ब्याह कर लिया,मुझे भी धोखें में रखा गया था रामप्यारी,माधव बोला।।
मैं कैसे भरोसा करूँ तेरी बात पर? मैनें माधव से कहा....
भरोसा करो या ना करों लेकिन मेरा ईश्वर जाने हैं कि मैं सही हूँ या गलत,माधव बोला।।
पता है माधव! मेरी चूनर जब उस दिन उड़कर तुम्हारे पास पहुँची थी तो तभी तुम मुझे भा गए थे और मन ही मन मैं तुम्हें चाहने लगी थी,मैं झरोखें में केवल इसलिए जाती थी कि तुम्हारी सूरत दिखाई दे जाएं,तुम दिख जाते थे तो ऐसा लगता था कि मुझे दुनिया जहान की दौलत मिल गई और जब मैनें तुम्हें शादी के समय मण्डप में देखा तो मैं खुशी के मारे फूली नहीं समाई लेकिन जब रात में जमींदार मेरे करीब आएं तो उन्होंने मुझे सारी सच्चाई बताई ,मैनें माधव से कहा...
रामप्यारी ! तुम्हें क्या लगता है कि मुझे खुशी नहीं हो रही थी तुमसे ब्याह करके,लेकिन मुझे नहीं पता था कि मेरे बापू मेरा सौदा कर चुके हैं,माधव बोला।।
लेकिन अब तो मेरी जिन्दगी बर्बाद हो गई ,जमीदार ने मुझे मैला कर दिया,मैं अब तुम्हारे काबिल नहीं रही,मैनें माधव से कहा....
दो प्रेमियों को ये दुनिया कभी अलग नहीं कर सकती,तुम चिन्ता मत करो,मैं तुम्हें यहाँ से कहीं दूर ले चलूँगा,माधव बोला।।
सच! मैनें कहा।।
हाँ! सच!माधव बोला।।
और फिर उस रात हमने ढ़ेर सारीं बातें की और फिर कुछ ही देर में देवनन्दिनी माधव को लेने मेरे कमरें में आ पहुँची....

क्रमशः.....
सरोज वर्मा.....