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संतुलन - भाग ८

शादी के दो दिनों के बाद जब राधा और आकाश अपने हनीमून के लिए जाने लगे; तब राधा ने सितारा से कहा, "मम्मी जी प्लीज़ मेरे माँ पापा का ख़्याल रखना।"

सितारा ने बात को टालते हुए कहा, " तुम लोग अपना ख़्याल रखना।"

उसके बाद वे दोनों कश्मीर जाने के लिए एयरपोर्ट पहुँच गए। शाम को सितारा ने सोचा जाऊँ जाकर एक बार उसकी माँ से मिल आती हूँ। राधा कहकर गई है ना कि मेरे पापा माँ का ख़्याल रखना सोचते हुए सितारा सीढ़ियों से नीचे उतरने लगी।

तभी आधे रास्ते में ही उसे मीरा मिल गई। उसने कहा, "अरे जीजी आप? मैं तो आपसे ही मिलने आ रही थी। राधा आपकी चिंता कर रही थी और जाते वक़्त मुझसे कहा था कि आपका ख़्याल रखूँ। "

यह सुनकर सितारा को काफी अच्छा लगा। देखते ही देखते पूरा हफ़्ता निकल गया। आकाश और राधा हनीमून से वापस आ गए। राधा ने सितारा और मीरा दोनों के लिए उपहार लिए थे। 

उसने आते ही सितारा को उपहार देते हुए पूछा, "मम्मी जी आपको पसंद आया?" 

"हाँ-हाँ बहुत अच्छा है।"

कुछ देर तक सितारा के पास बैठकर राधा ने कहा, "मम्मी जी मैं माँ पापा से मिलने जाऊँ?" 

सितारा कुछ कहे उससे पहले ही आकाश ने आज फिर जल्दी से कहा, "अरे राधा यहीं तो हैं वे नीचे, जाओ मिल आओ। इसमें पूछने की क्या बात है?"  शायद आकाश डरता था कि कहीं उसकी मम्मी राधा को मना ना कर दे। 

फिर भी राधा ने सितारा से पूछा, "जाऊँ ना मम्मी जी?" 

"हाँ-हाँ चली जाओ।"

राधा ख़ुश होकर मीरा के लिए लाया उपहार हाथों में लेकर नीचे गई।

सितारा ने कहा, "देखा आकाश आते ही चली गई, चैन नहीं है उसको, अब छुट्टी दो-चार घंटे की।"

"अरे आ जाएगी माँ, एक हफ़्ते के बाद आई है ।"

"बिगाड़ रहा है तू उसे . . . "

"पर वह पहले यहीं आई ना मम्मी, आपके पास कुछ देर बैठकर फिर गई है। अपने दिल को थोड़ा बड़ा करो। आपको नहीं लगता कि आप ग़लत कर रही हो। हम राधा से ऐसा कभी नहीं कह सकते कि वह अपने माँ बाप को भूल जाए, उन्हें उनके हाल पर छोड़ दे।"

"कोई अपने माँ-बाप को नहीं छोड़ता आकाश पर यह जो कर रही है वह हद से ज़्यादा है। ऐसा ही था तो फिर शादी ही नहीं करती।" 

"अरे मम्मी राधा के पापा ने सरकारी स्कूल में टीचर होते हुए कड़ी मेहनत से उसे डॉक्टर बनाया है। केवल और केवल उसी के लिए जिए हैं उसके माँ-पापा। पल- पल अपनी ख़्वाहिशों को मारा है उन दोनों ने। इसके पीछे उनका कितना त्याग, कितनी तपस्या थी, इन सात दिनों में राधा ने मुझे सब कुछ बताया है। अब उसका समय है अपना फर्ज़ निभाने का। उसे इस काम के लिए मना करके हम कितना नीचे गिर जाएँगे। जिस दिन वह आपका ध्यान नहीं रखे या हमारे परिवार के प्रति जिम्मेदारी ना निभाए, उस दिन आप जो कहोगी मैं करूँगा।"

राधा समझ रही थी कि सितारा को यह सब पसंद नहीं आ रहा है इसलिए उसने सितारा का और भी ज्यादा ख़्याल रखना शुरू कर दिया। सितारा को समय पर दवाइयाँ देना, गरम-गरम फुलके उतार कर देना, उनके पास बैठकर समय देना, मीठी-मीठी बातें करना। वह जानती थी कि सितारा ग़लत नहीं है। किसी भी सास के लिए यह आसान नहीं कि वह अपनी बहू को इस तरह मायके की हद से ज्यादा परवाह करने पर ख़ुश हो सके। सितारा भी आख़िर इंसान ही तो है। वह ये भी जानती थी कि यदि चैन, सुकून, शांति और प्यार से रहना है तो सबसे पहले उसे सितारा का हृदय परिवर्तन करना होगा। उनके मन में चल रहे द्वंद को शांत करना होगा और वह यह करके ही रहेगी।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः

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