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संतुलन - भाग ५

आकाश के मुँह से यह सुनकर कि उसे राधा द्वारा अपने माता-पिता का ध्यान रखने की बात से कोई आपत्ति नहीं है, राधा ने कहा, "लेकिन आकाश विवाह के बाद, वक़्त के साथ तुम्हारा यह निर्णय बदल तो नहीं जाएगा ना?"

"राधा में एक प्रश्न पूछ सकता हूँ?"

अपने बालों की लटों को पीछे करते हुए राधा ने कहा, " हाँ ज़रूर पूछिए?"

"क्या तुम एक बेटी की तरह मेरे पापा मम्मी का वैसे ही ख़्याल रख सकोगी, जैसा तुम अपने ख़ुद के माता-पिता का रखती हो।"

"यह कोई पूछने की बात है आकाश, वह तो मेरा पहला कर्त्तव्य होगा, मेरा पहला धर्म भी। मैं दोनों परिवारों के बीच संतुलन बनाकर रखूँगी आकाश।"

"ठीक है राधा तो फिर मुश्किल क्या है, हम साथ रहने का निर्णय ले सकते हैं, चलो हम अपने माता-पिता को यह बता देते हैं कि हम विवाह के लिए तैयार हैं।"

"हाँ आकाश तुम ठीक कह रहे हो।"

उसके बाद वे दोनों घर वापस आ गए। आकाश के पापा विशाल ने कहा, "चलिए फिर अब हम चलते हैं। घर जाकर सलाह मशवरा करके बात आगे बढ़ाएँगे तब तक आप लोग भी सोच लीजिए।"

"जी ठीक है," विनय ने कहा और उन्हें घर के बाहर छोड़ने के लिए वह सब आए। जाते-जाते आकाश ने राधा की तरफ़ देखा, वह ख़ुश था, मुस्कुरा रहा था। राधा ने भी उसकी तरफ देख कर मुस्कुराते हुए अपनी पलकों को नीचे कर लिया। 

इसी बीच राधा ने उसी बिल्डिंग में जहाँ आकाश का परिवार रहता था, विनय और मीरा के लिए एक फ़्लैट बुक कर लिया। उसने यह बात किसी को भी नहीं बताई; ना विनय को और ना ही मीरा को। राधा जानती थी कि यदि यह बात उन्हें  बता देगी तो वह उसे फ़्लैट हरगिज़ नहीं लेने देंगे। इस वक़्त उसने आकाश को भी यह बताना ज़रूरी नहीं समझा क्योंकि अभी ना तो उनकी सगाई हुई थी और ना ही पूरी तरह से बात ही पक्की हुई थी। अलबत्ता राधा जानती थी कि यह रिश्ता तो होने ही वाला है। इसीलिए उसने यह कदम उठाया था ताकि उसके मां-पापा उसके नज़दीक ही रह सकें। फ़्लैट तैयार ही था इसलिए उसने वास्तु पूजा रखी और तभी उसने सबको बताया।

विनय ने नाराज़ी दिखाते हुए कहा, "राधा बेटा तुमने यह क्या किया? अभी शादी का इतना बड़ा ख़र्चा सामने सीना ताने खड़ा है। तुमने पूछा तक नहीं, सलाह मशवरा कुछ भी नहीं?"

"पापा पूछती तो क्या आप हाँ कहते? नहीं ना?  मैं चाहती हूँ पापा, आप लोग भी यहीं रहें ताकि मुझे कोई चिंता ना रहे। यह सबसे ज्यादा ज़रूरी काम था पापा। आप कभी यहाँ कभी वहाँ, क्या पूरा जीवन इस तरह मकान ही बदलते रहोगे और पापा सच कहूँ तो इसमें मेरा भी स्वार्थ छिपा है। मुझे यहाँ से वहाँ ज़्यादा दूर दौड़ना नहीं पड़ेगा। मैं आपका भी ख़्याल रख सकूँगी। आधी रात को भी यदि आप दोनों को ज़रूरत होगी तो मैं एक-दो मिनट में आ जाऊँगी।"

आकाश और उसके परिवार को भी वास्तु पूजा में आने का निमंत्रण मिला था।

आकाश हैरान था, राधा ने बताया तक नहीं, वह सोच रहा था। तभी उसकी मम्मी ने कहा, "आकाश सोच ले लड़की ने अभी से अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है।"

"जाने दो ना माँ, उसके माँ-बाप हैं। उसने तो उसी दिन मुझसे कहा था कि उसे हमेशा अपने माता-पिता का ख़्याल रखना पड़ेगा। क्योंकि वैसे भी वह इकलौती बेटी है।"

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः

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