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संतुलन - भाग ७  

 

राधा अपने माता पिता से विदा होकर ससुराल आने लगी। जब वह अपनी माँ के गले लगी तब मीरा ने कहा, "राधा बेटा यह रिश्ते बड़े ही नाज़ुक होते हैं। हमारी वज़ह से तुम्हारे जीवन में कभी कोई समस्या नहीं आनी चाहिए। हमसे ज़्यादा तुम आकाश के माता-पिता का ध्यान रखना। अब वह घर ही तुम्हारा असली घर है।"

"माँ प्लीज़ ऐसा मत कहो मेरे लिए तो दोनों ही घर असली घर हैं। मैं जितना ख़्याल आप लोगों का रखूँगी, उतना ही उनका भी रखूँगी, मैं संतुलन बनाकर रखूँगी माँ आप चिंता मत करो," कहते हुए राधा रो पड़ी। 

मीरा भी रो रही थी। तभी दूर खड़े राधा को अपने पापा दिखाई दे गए जो अश्कों को आँखों में छुपाए विदाई की तैयारियाँ देख रहे थे। राधा दौड़ कर उनके पास गई और लिपट कर रोने लगी। विनय की आँखें लाल हो रही थीं क्योंकि वह उन्हें बहने नहीं दे रहे थे। आख़िर आँखें भी कब तक स्वयं पर नियंत्रण रखतीं। राधा के कलेजे से लगते ही वह फट पड़ीं और बह निकली। यह दृश्य जो भी देख रहा था उसके आँसू रुक नहीं पा रहे थे। 

राधा ने कहा, " पापा आप कभी दूसरों की तरह यह मत सोचना कि शादी हो गई है तो बेटी पराई हो गई अब उस पर अपना कोई अधिकार नहीं रहा। पापा मैं कल भी आपकी राजकुमारी थी और हमेशा वैसी ही रहूँगी। आप जैसे पहले मुझ पर अपना अधिकार जताते थे वैसा ही रखना पापा, वरना मैं टूट जाऊँगी।"

इसके जवाब में विनय कुछ भी ना कह पाया, केवल उसकी आँखें उसके जज़्बात बयान कर रही थीं। शायद वह आँसू यह कहना चाह रहे थे कि ये कैसी मज़बूरी है कि जिसे पाल पोस कर बड़ा किया उसे इस तरह अपने से दूर भेजना पड़ता है। क्यों भेजना पड़ता है? लेकिन यही जीवन की सच्चाई है और इस सच्चाई को अपनाने के बाद ही बेटी को एक जीवन साथी मिल जाता है जो जीवन भर साथ निभाता है। उसके बाद ही तो बेटी को माँ बनने का सुख मिलता है, उसका अपना परिवार होता है और वह फलती-फुलती है।

राधा विदा होकर अपनी ससुराल पहुँच गई और एक नए परिवार की बहू बन गई। वहाँ के सारे रीति रिवाज बड़ी ही धूमधाम से पूरे हुए। अब वह अपने कंधों पर एक नहीं दो परिवारों की ज़िम्मेदारी महसूस कर रही थी। दोनों परिवारों के बीच सामंजस्य बिठाना उसके लिए चुनौती भरा काम था लेकिन राधा को पूरा विश्वास था कि वह यह काम अवश्य ही कर लेगी। 

दूसरे दिन सुबह उठकर राधा ने सितारा के पास आकर उसके पैर छुए और कहा, " मम्मी जी मुझे आप अपने इस घर के मुताबिक एक बार सब कुछ सिखा देंगी ना?" 

"हाँ-हाँ ज़रूर सिखा दूँगी।"

"मम्मी जी मेरे पापा मम्मी कल विदाई के समय बहुत रो रहे थे। मैं 10-15 मिनट के लिए जाकर उनसे मिल लूँ? एक बार देख लूँगी तो मुझे भी चैन मिल जाएगा।"

वह इतना पूछ ही रही थी, सितारा कुछ जवाब दे तब तक आकाश वहाँ आ गया और यह सुनकर बोला, "अरे राधा नीचे के फ्लोर पर ही तो हैं वह, इसमें पूछना क्या। जाओ जाकर मिल आओ।"

फिर भी राधा ने सितारा से पूछा, " जाऊँ ना मम्मी जी?"

"हाँ-हाँ जाओ।" 

राधा नीचे चली गई, सितारा ने आकाश की तरफ घूर कर देखते हुए कहा, " देख लिया मैं ना कहती थी, अब यही सब होगा, देख लेना।"

"अरे मेरी प्यारी मम्मी कौन सी आफत आ गई। अभी आ जाएगी थोड़ी देर में। चिंता मत करो आप, सब ठीक ही होगा।"

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः

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