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संतुलन - भाग १

मीरा और विनय के विवाह को लगभग पाँच वर्ष बीत गए थे। पूजा पाठ पर अत्यंत ही भरोसा करने वाले दोनों पति-पत्नी ने मंदिर-मंदिर जाकर भगवान से विनती की पर औलाद के सुख से वंचित ही रहे। दोनों ने अपना चैकअप भी करवा लिया, दोनों में किसी तरह की कोई कमी नहीं थी और दोनों ही माता-पिता बनने में पूर्ण रूप से सक्षम भी थे।

एक दिन मीरा ने विनय से कहा, " भगवान हमारे साथ ऐसा क्यों कर रहे हैं विनय? जब हम दोनों में कोई कमी है ही नहीं तो फिर ऐसा संजोग क्यों नहीं बन पा रहा है?"

"धैर्य रखो मीरा, यदि भगवान चाहेंगे तो सब ठीक हो जाएगा।"

"हाँ शायद तुम ठीक कह रहे हो, वैसे भी हम इंतज़ार के सिवाय और कर भी क्या सकते हैं?"

देखते-देखते एक वर्ष और बीत गया। मीरा का पूजा पाठ और अधिक बढ़ गया था। अब वह डॉक्टर के पास एक बार फिर से गए। डॉक्टर ने उन्हें बहुत कुछ समझाया, कुछ दवाइयाँ भी बताईं। डॉक्टर की सलाह मानकर उन्होंने सारी दवाइयाँ ली और उनकी बताई हर बात का ख़्याल रखा। उसके बाद कुछ ही दिनों में मीरा को ऐसा आभास हुआ कि शायद वह ख़ुशी की घड़ी आ गई है जिसका उन्हें इंतज़ार था।

उसने विनय से कहा, " विनय लगता है भगवान ने आखिरकार हमारी पुकार सुन ही ली।"

विनय ने ख़ुश होते हुए कहा, " ये क्या कह रही हो मीरा?"

"हाँ मैं बिल्कुल सच कह रही हूँ।"

"तो फिर चलो, चल कर डॉक्टर को दिखाते हैं।"

ख़ुश होते हुए मीरा ने कहा, "हाँ चलो, चलते हैं जब तक डॉक्टर के मुँह से ना सुन लें, हमें चैन कहाँ मिलने वाला है।"

वे दोनों तुरंत ही अस्पताल पहुँच गए। डॉक्टर मिश्रा ने जो पिछले कई समय से उन्हें जानती थीं मीरा का चैकअप करके कहा, "बधाई हो आप लोगों की मन्नत पूरी हो गई है, मीरा माँ बनने वाली है।"

यह बात डॉक्टर के मुँह से सुनकर मीरा और विनय की ख़ुशी का ठिकाना ना रहा। छः वर्ष के लंबे इंतज़ार के बाद उन्हें आज यह कर्ण प्रिय शब्द सुनने को मिले जिसके लिए वे तरस रहे थे, बच्चे की चाह लिए मंदिर-मंदिर भटक रहे थे।

नौवां महीना लगते से ही विनय की माँ उनकी मदद करने के लिए उनके पास आ गईं। वह मीरा का बहुत ख़्याल रख रही थीं। नौवां माह पूरा होते ही मीरा ने एक सुंदर सी बेटी को जन्म दिया। बेटी के जन्म की ख़बर सुनते ही विनय और उसकी माँ फूले नहीं समा रहे थे।

मीरा के पास जाकर विनय की माँ ने बच्ची को गोदी में उठाकर चूमते हुए कहा, "बधाई हो मीरा भगवान ने हमें कितनी सुंदर बिटिया दी है। क्या हम इसका नाम राधा रखें? "

मीरा ने तुरंत ही कहा. "हाँ माँ क्यों नहीं, बहुत प्यारा नाम है।"

उसके बाद विनय की माँ ने बिटिया को विनय की गोद में देते हुए पूछा, "क्या कहते हो विनय?"

"हाँ माँ देखो ना वह है भी कितनी खूबसूरत। "

मीरा और विनय ने माँ की बात मानते हुए अपनी बेटी का नाम राधा रखा। उसे देखकर, उसे गोद में उठाकर, उन्हें उस सुख की अनुभूति होती थी, मानो उन्हें धरती पर ही स्वर्ग मिल गया हो। राधा का नन्हें कदमों से चहल कदमी करना, उसका बोलना, शैतानी करना, यह सारे अनुभवों का मीरा और विनय ने भरपूर सुख उठाया। उनके जीवन का हर पल अब केवल राधा का था। इन्हीं सुख भरे लम्हों के साथ उनके जीवन की गाड़ी आगे बढ़ रही थी।

विनय एक सरकारी स्कूल में टीचर था। वह अपनी बेटी को ख़ूब पढ़ाना चाहता था। उसे डॉक्टर बनाना चाहता था। धीरे-धीरे राधा भी बड़ी हो रही थी। उसकी पढ़ाई की चिंता में परेशान विनय ने अब उसके भविष्य की सलामती के लिए ट्यूशन भी चालू कर दिया। विनय का दिमाग तेज था, बच्चे उसका पढ़ाना बहुत पसंद करते थे। इसलिए विनय को ख़ुद के स्कूल के अलावा दूसरे स्कूलों के भी कुछ बच्चे मिल गए थे। इस तरह ख़ुद पर ख़र्च किए बिना वह अपनी बेटी के सुंदर भविष्य के लिए पूंजी एकत्रित करने लगा।

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः

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