तलाकशुदा बहू पूर्णिमा राज द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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तलाकशुदा बहू

" अरे भइया सोहन , इहाँ गाँव मे सब कहाँ है कौउनो नजर नहीं आय रहा है। "

" उ का बतई भई गाँव मा पंचायत लगी है। अपने बड़के काका के बेटवा ने शादी कर ली है। "

" अरे भइया ई तो खुशी की बात है। "

" नाही शादी एेसी वैसी लड़की से ना , उ रमेशवा की छोड़ी हुई लुगाई से की है। "

" का बात करत हो भइया , तब तो पंचायत मे बड़ा मजा अाई देखैे मे चलो जल्दी ।"

" देखिए बड़का भाई आपके बेटे ने ये अच्छा नहीं किया है , इस तलाकशुदा लड़की से इसे शादी नही करनी चाहिए थी। हमारे गाँव की इज्जत का तो ख्याल करना था। हमारी बहू बेटियाें के बारे मे तो सोचते । " मुखिया जी ने कहा ।

" मुखिया काका मैने कोई गलत काम तो नहीँ किया , सुनीता अच्छी लड़की है , गलती उसके पति की थी , उसने उसे धोखा दिया था. . . ." शेखर बोल ही रहा की अचानक उसके पिता उसके गाल पर चपत गलाते हुए बोले -" तू तो चुप कर नालायक , एेसा पाप करके हमारे मुँह पर कालिख तो पोत ही दी है। भला कौन एक तलाकशुदा को अपने घर की बहू बनाता है। हम तो कही मुँह दिखाने के लायक नही रहे। "

" देखा बड़का भाई आपका बेटा कैसे इस छोड़ी हुई के गुण गा रहा है , मेरी मानो तो इस लड़की को इसके परिवार के साथ इस गाँव से बेदखल कर देते है। "

पंचायत मुखिया काका के फैसले को सही मानती है अौर सुनीता ओैर उसके परिवार को तुरंत गाँव छोड़ने का अादेश देती है। गाँव वाले भी इसका समर्थन करते है। तभी शेखर बोलता है -" ठीक है पंचायत की जैसी इच्छा लेकिन मै भी अपनी पत्नी के साथ यह गाँव छोड़ कर चला जाऊँगा । "

" ये कैसी बहकी बहकी बाते कर रहा है इस पापिन के कारण तू हमे ओैर अपने गाँव को छोड़ कर चला जायेगा ।"

"हाँ बाबूजी , क्योंकि सुनीता अब मेरी पत्नी है और इसका साथ देना मेरा फर्ज़ है । दूसरी बात सुनीता कोई पापिन नही है , बल्कि पापी तो रमेश था , जो सुनीता पर रोज जुल्म ढाता था। इसे मारता पीटता था , यह तो देवी है जिसने इतने अत्याचार सहे लेकिन कुछ नही कहा ।

अब उस रमेश ने इसे तलाक देकर दूसरी शादी कर ली है , तो उसे क्यों अापने गाँव से नही निकाला , सुनीता को सभी ने गाँव से बेदखल कर दिया क्योंकि वह औरत है इसीलिए , सारे बंधन औरत के सिर ही आते हैं , मर्दों को सभी तरह की छूट होती है ।
कुछ ठहर कर ..
अगर आपका यही फैसला है तो ठीक है , मैंने भी अब फैसला कर लिया है , मै भी अपने नये परिवार के साथ अपनी नई दुनिया बसाँऊगा और यहां से बहुत दूर चला जाऊंगा । "

यह कहकर शेखर सुनीता आैर उसके माँ बाप को लेकर गाँव से चला जाता है। अौर गाँव मे सन्नाटा पसर जाता है।

copyright@ पूर्णिमा'राज'
(स्वरचित )