एक बूंद इश्क - 24 Sujal B. Patel द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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एक बूंद इश्क - 24

२४.अपर्णा का फैसला


रूद्र अपने कमरे में आकर अपना गुस्सा पंचिंग बैग पर निकालने लगा। उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे। साथ ही गुस्से से आंखें बिल्कुल लाल हो चुकी थी। वह जिस तरह पंच मार रहा था। उसी से उसका गुस्सा जाहिर हो रहा था। वह दादाजी से मिलना चाहता था। लेकिन अपर्णा को लिए बिना ही आया था। इसकी वजह से वह दादाजी के पास भी नहीं जा पाया।
रुद्र जब पंच मारके थक गया तब सीधा ही बिस्तर पर जा गिरा। बंद आंखों के कोनों से अभी भी आंसू गिरकर उसकी कनपटी से होते हुए नीचे गिर रहे थे। उतने में किसी ने दरवाजा खटखटाया। रुद्र ने आंखें बंद रखे रखे ही कहा, "मुझे किसी से बात नहीं करनी। प्लीज़ मुझे अकेला छोड़ दो।"
"अरे, ऐसे कैसे अकेला छोड़ दें?" जैसे ही रुद्र के कान में आवाज़ पड़ी। उसने तुरंत आंखें खोली। उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान तैर गई और आंखों में चमक भर आईं। उसने तुरंत खड़े होकर दरवाज़ा खोला।
"अपर्णा तुम? तुम यहां कैसे? तुम तो चली गई थी ना?" रुद्र ने हैरानी से कहा। उसके सामने अपर्णा खड़ी थी। जिसे देखकर उसे यकीन नहीं हो रहा था कि वह सच में वापस आ गई है।
अपर्णा ने रुद्र की आंखों में देखते हुए कहा, "अंदर आकर बात करें?"
रुद्र बिना कुछ कहे ही साइड हो गया। अपर्णा अंदर आ गई। उसने अंदर आकर अपने कान पकड़ लिए। रुद्र ने देखा तो उसके हाथ पकड़कर नीचे करने लगा। उतने में अपर्णा ने रुद्र का हाथ पकड़ लिया तो उसके मुंह से हल्की आह निकल गई। अपर्णा ने सुना तो वह उसका हाथ देखने लगीं। जो पंचिंग बैग पर मुक्के मारने की वजह से लाल हो गए थे। अपर्णा ने देखा तो उसकी आंखें भी भर आईं। उसने रुद्र को बिस्तर पर बिठाया और ड्रॉवर से क्रीम लेकर उसके सामने घुटनों के बल बैठकर, उसका हाथ पकड़कर क्रीम लगाने को हुई। तब ही रुद्र ने अपना हाथ खींचकर गुस्से से कहा, "ये जख्म तुम्हारे ही दिए हुए है। अब क्यूं मरहम लगाने आई हो? अगर वापस आना ही था तो गई ही क्यूं?"
"गलति हो गई। माफ़ कर दिजिए। वापस तो नहीं आना था। लेकिन कोई लेने आया तो आना पड़ा।" अपर्णा ने पहेली बुझाते हुए कहा। रुद्र को लगा अपर्णा उसकी बात कर रही है। इसलिए वह तुरंत मान गया। अपर्णा ने उसके हाथ पर क्रीम लगाई। फिर उसका हाथ पकड़कर उसे नीचे लेकर आ गई। जहां वंदिता जी को देखकर रूद्र वापस गुस्सा हो गया। उसने अपर्णा का हाथ झटक दिया और गुस्से से उसे देखने लगा।
"तो तुम इनकी वजह से वापस आई हो?" रुद्र ने गुस्से से पूछा।
"मुझे अपनी गलति का अहसास हो गया है। मुझे अपर्णा के साथ ऐसा नहीं करना चाहिए था। जब अखिल ने मुझे समझाया तो मुझे सब समझ आ गया।" वंदिता जी ने रुद्र के पास आकर अपने हाथ जोड़कर कहा।
"मुझे आपकी कोई बात नहीं सुननी है। मुझे अपर्णा से जानना है कि क्या वह आपकी वजह से वापस लौटी है?" रुद्र अपर्णा की ओर देखने लगा तो उसने अपनी नजरें झुका ली। रुद्र को उसके सवाल का जवाब मिल गया। वह गुस्सा होकर वापस अपने कमरे में जाने लगा तो अपर्णा ने उसका हाथ पकड़कर उसे रोक लिया।
"तुम्हारे जाने के बाद पापा मम्मी को लेकर एयरपोर्ट आएं थें। मम्मी ने सब के सामने मुझसे माफ़ी मांगी। पापा ने भी मुझे कहा कि मैं मम्मी को माफ़ कर दूं। अब उनको अपनी गलति का अहसास हो गया है तो हम उन्हें सजा देनेवाले कौन है? इसलिए मैंने उन्हें माफ कर दिया। फिर मैं सिर्फ उनकी वजह से नहीं दादाजी के लिए भी आई हूं। तुमने दादाजी के बारे में बताया तभी तुमने मेरा मन टटोल दिया था। लेकिन उस वक्त मैं तुम्हारे साथ नहीं आ पाई।" अपर्णा ने शांति से रूद्र को समझाते हुए कहा।
रूद्र ने उसकी बात पर कुछ नहीं कहा। वो सिर्फ अपर्णा का हाथ पकड़कर उसे दादाजी के कमरें में ले आया। बाकी सब भी वहीं आ गए। दादाजी ने रुद्र और अपर्णा को साथ देखा तो उनके चेहरे पर मुस्कराहट आ गई। उन्होंने अपर्णा को अपने पास बुलाया। अपर्णा उनके पास बैठकर पूछने लगी, "आप ठीक तो है ना दादाजी?"
"तुम्हें देख लिया। अब बिल्कुल ठीक हूं। अब तो तू हमें छोड़कर कहीं नहीं जाओगी ना?" दादाजी ने अपर्णा का हाथ पकड़कर कहा।
"अब ये कहीं क्यूं जाएगी? अब तो नौकरी के साथ इसका एक और परिवार भी यहां है।" रणजीत जी ने कहा तो सब के चेहरे पर मुस्कान तैर गई।
दादाजी ने अपर्णा का हाथ पकड़कर उससे पूछा, "बेटा! अगर आज़ मैं कुछ मांगू तो तुम मुझे दोगी?"
"क्या दादाजी?" अपर्णा ने पूछा।
"मैंने और तेरे दादाजी ने तय किया था कि तुम हमारे घर की बहू बनोगी। तो क्या तुम रुद्र से शादी करोगी? तुम्हारे दादाजी की भी यहीं इच्छा थी।" दादाजी ने कहा।
दादाजी की बात सुनकर अपर्णा का चेहरा उतर गया। उसने जिस हाथ से दादाजी का हाथ पकड़ रखा था‌। उसकी पकड़ भी ढीली हो गई। उसने दादाजी से नजरें चुराते हुए कहा, "माफ़ किजिएगा दादाजी! लेकिन ये मुझसे नहीं होगा। रुद्र को मुझसे भी अच्छी लड़की मिल जाएगी।"
"देखा आप सब ने? मैंने पहले ही कहा था। ये मेरे लिए यहां नहीं आई है। इसे कोई फर्क नहीं पड़ता, मैं इसके साथ रहूं ना रहूं।" रुद्र ने गुस्से से कहा और चला गया।
रुद्र के जाते ही अपर्णा की आंखें भर आईं। वह भी अपने कमरे में चली गई। जहां वह बनारस से आकर रुकी हुई थी। सच्चाई तो यही थी कि अपर्णा को भी रूद्र से दूर जाकर फर्क पड़ता था। लेकिन वह किसी से कह नहीं पा रही थी। वह काफी देर तक तकिए में अपना मुंह छिपाए रोती रही।
अपर्णा के फैसले से सारा परिवार हताश था। सब को यही लगा था कि अपर्णा रुद्र के साथ शादी के लिए हां कह देगी। सब की तरह रणजीत जी को भी रुद्र के लिए अपर्णा सही लड़की लगती थी। इसलिए अपर्णा की ना से वो ही सब से ज़्यादा दुःखी हुए थे। दादाजी को भी बहुत तकलीफ़ हुई थी। बड़ी मुश्किल से रुद्र को कोई लड़की पसंद आई थी‌। दादाजी ने अपर्णा की आंखों में भी रुद्र के लिए प्यार देखा था। लेकिन उसने आखिर क्यूं मना कर दिया? ये किसी की समझ में नहीं आ रहा था।


(क्रमशः)

_सुजल पटेल