२३.जुदाई
रुद्र परेशान सा बैठा था। उस वक्त उसके फेसबुक पर किसी ने अपर्णा की फोटो पर कॉमेंट कि, जिसमें लिखा था, "अपर्णा इस वक्त एस.के बोले मार्ग, प्रभादेवी, मुंबई, महाराष्ट्र में स्थित सिद्धी विनायक मंदिर में है। मैं भी यहीं हूं आप प्लीज जल्दी यहां आ जाईए।"
कॉमेंट पढ़ते ही रुद्र ने गाड़ी सिद्धी विनायक मंदिर की ओर मोड़ दी। आज़ उसने इतनी तेज गाड़ी चलाई। जितनी उसने अपनी पूरी लाइफ में कभी नहीं चलाई थी। कुछ ही देर में रुद्र सिद्धी विनायक मंदिर पहुंच गया। लेकिन अपर्णा कहा थी? ये उसे नहीं पता था। मंदिर काफी बड़ा था। वह मंदिर के चौगान में आकर चारों तरफ अपर्णा को ढूंढने लगा। उसी वक्त किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा। रूद्र ने पलटकर देखा तो उसके पीछे एक लड़का खड़ा था।
"आप तो वहीं हो ना जिसने मुझे अभी-अभी कहा कि अपर्णा इस मंदिर में है?" रुद्र ने उस लड़के को देखते ही पूछा।
"हां, मैं वहीं हूं। आपकी अपर्णा मंदिर के अंदर है। आइए मैं आपको ले चलता हूं।" लड़के ने कहा और वह रूद्र को लेकर मंदिर के अंदर आ गया। उसने अंदर आकर देखा तो अपर्णा दुपट्टे से सिर ढककर गणपति बप्पा की बड़ी सी मूर्ति के सामने हाथ जोड़कर खड़ी थी। उसे देखते ही रूद्र की आंखें भर आईं।
"आपका बहुत-बहुत शुक्रिया! आप नहीं जानते आपने मेरी कितनी बड़ी मदद की है।" रूद्र ने भरी हुई आंखों से हाथ जोड़कर उस लड़के को कहा जो उसे अपर्णा के पास लेकर आया था।
"दो प्यार करनेवालो को कभी कोई अलग नहीं कर सकता। फिर बप्पा तो सब के दुःख दूर करते है। वो तो खुद सुखकर्ता दुखहर्ता है। वो आप दोनों की प्रोब्लेम भी जरूर दूर कर देगे।" लड़के ने मुस्कुराकर कहा और चला गया।
रुद्र तेज़ कदमों से चलता हुआ अपर्णा के पास आया और उसके बाजु में खड़ा हो गया। उसने हाथ जोड़कर मन ही मन बप्पा का शुक्रिया अदा किया। फिर बप्पा को देखते हुए ही कहा, "बप्पा से क्या मांगने आई हो? यहीं की यहां से मैं बहुत दूर जा रही हूं और आगे का रास्ता आप ही मुझे दिखाना?"
रुद्र की आवाज़ सुनकर अपर्णा ने अपनी आंखें खोली। उसने साइड में देखा तो रुद्र को खड़ा पाया। वह बिना कुछ कहे ही वहां से जाने लगी तो रूद्र ने उसका हाथ पकड़कर उसे रोकते हुए कहा, "मुसीबतों से भागना उसका सॉल्यूशन नहीं होता।"
"मैं भाग नहीं रही। बस सब को सुरक्षित करके जा रही हूं।" अपर्णा ने बिना किसी भाव के कहा।
"लेकिन तुमसे ये कहा किसने की तुम्हारी वजह से किसी को खतरा है?" रुद्र ने अपर्णा को अपनी तरफ खींचकर उसकी आंखों में देखते हुए पूछा।
"सारी बातें कहने के लिए नहीं होती। कुछ बाते अपने आप ही महसूस हो जाती है।" अपर्णा ने नजरें चुराते हुए कहा।
"तो तुम्हें नेगेटिव बातें ही क्यूं महसूस होती है? वो क्यूं महसूस नहीं होता जो मैं तुम्हारे लिए महसूस करता हूं?" रुद्र ने कमजोर पड़ते हुए कहा। उसे पल-पल यहीं डर लग रहा था कि कहीं अपर्णा उससे हमेशा के लिए दूर ना चली जाएं।
रुद्र की बातें अपर्णा की कुछ समझ में नहीं आई। तो वह हैरानी से उसके सामने देखने लगी। फिर कुछ देर बाद उसने कहा, "सब देख रहे है। मेरा हाथ छोड़िए। मुझे जाना है।"
"अगर मैं कहूं की रुक जाओ तो?" रुद्र ने वापस से अपर्णा की आंखों में देखते हुए पूछा।
"मेरी वजह से सब बर्बाद हो जाएगा। प्लीज़ मुझे जाने दिजिए।" अपर्णा ने अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा।
"मैं नहीं रह पाएगा तुम्हारे बिना।" आखिर में रूद्र ने दर्द से तड़पते हुए कहा। जिससे अपर्णा की आंखें भी भर आईं। लेकिन उसने आंसुओं को आंखों में ही रोक लिया।
"हमारे बीच अभी ऐसा कोई रिश्ता नहीं है। जिससे मेरे जाने पर आप मेरे बगैर रह ना पाएं।" अपर्णा ने थोड़ा कठोर होकर कहा और अपना हाथ छुड़ाकर आगे बढ़ गई।
"तुम आखिर समझती क्यूं नहीं? मैं तुमसे प्यार करने लगा हूं। तुम चली गई तो नहीं रह पाऊंगा मैं तुम्हारे बिना। मुश्किल से कोई सही लड़की मेरी जिंदगी में आई है। प्लीज़ समझने की कोशिश करो।" रुद्र वहीं मंदिर में घुटनों के बल बैठ गया। उसकी आंखें बहने लगी। इतनी उम्र में वो बहुत कम ही बार रोया होगा। लेकिन जब उसका दर्द हद से बढ़ जाता। तब वो खुद को कितना भी कंट्रोल कर लें। आंखों से बहते आंसु रोक नहीं पाता। आज़ भी उसे अपर्णा के दूर जाने का दुःख था। इसीलिए उसकी आंखें बहने लगी। शायद ज़िंदगी में इतना दुःखी वो कभी नहीं हुआ था। रूद्र पहली बार तब रोया था। जब उसके दादाजी आश्रम चले गए थे। लेकिन उनके वापस आने की रूद्र को उम्मीद थी। जब की अपर्णा चली गई। तो उसके आने की कोई उम्मीद नहीं थी। रुद्र ने सही कहा था। रुद्र को बहुत सारी लड़कियां पसंद करती थी। कॉलेज में कितनी ही लड़कियों ने उसे प्रपोज भी किया था। लेकिन उसे कोई लड़की उस नज़र से पसंद नहीं आई थी। जिस नज़र से वह अपर्णा को पसंद करने लगा था। शायद इसीलिए अपर्णा बार-बार जाने का कह रही थी। तब मानो रुद्र के दिल पर बहुत सारे खंजर एक साथ चले रहे हों। उसे उतना दर्द हो रहा था।
रुद्र की बातों ने एक पल के लिए अपर्णा के बढ़ते कदमों को भी रोक दिया। लेकिन उसने पलटकर रुद्र को देखा नहीं। क्यूंकि कही ना कही वो भी जानती थी कि अगर उसने पलटकर रुद्र को देख लिया। तो वह उससे दूर नहीं जा पाएंगी। अपर्णा की आंखों से भी आंसु बहने लगे थे। फिर भी उसने अपने आपको समझाया, आंसु पोंछे और फिर से आगे बढ़ गई।
वह अभी दो ही कदम चली थी कि रुद्र ने फिर से कहा, "तुम चली गई ये पता चलते ही दादाजी को दिल का दोहरा पड़ा था। उन्हें डॉक्टर के पास छोड़कर मैं तुम्हें लेने आया हूं। प्लीज़ मेरे साथ चलो। अगर तुम चलीं गईं और दादाजी को कुछ हो गया तो मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाऊंगा।" रुद्र ने लगभग मरी हुई आवाज में कहा।
"आप दादाजी के पास जाइए। उन्हें कुछ नहीं हुआ। किस्मत ने चाहा तो मैं दोबारा उनसे मिलने आऊंगी।" अपर्णा ने कहा और वह रुद्र को ऐसी हालत में छोड़कर ही चलीं गईं।
रुद्र को लगा शायद अपर्णा दादाजी के बारे में सुनकर मान जाएगी। लेकिन रुद्र गलत साबित हुआ। उसका कोई भी तरीका अपर्णा को नहीं रोक पाया। रुद्र एक हारे हुए योद्धा की तरह घर वापस आया। रुद्र को अकेला ही लौटा देखकर सब के चेहरे उदासी से घिर गए। रुद्र थके कदमों से अपने कमरे में आ गया।
(क्रमशः)
_सुजल पटेल