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जिहाद

जिहाद



जिहाद एक ऐसा शब्द हैं। जिसे आज आतंकवाद का सकारात्मक पर्यावाची कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। भारत या वो देश जहाँ अभी मुस्लिम आबादी बहुसंख्यक नहीं हुई हैं। वहाँ सार्वजनिक मंचों पर कुछ मुस्लिम स्कॉलर इसका शाब्दिक अर्थ बताते हुए अक्सर आप लोगों को दिख जाएंगे। कि जिहाद का मतलब अपने अंदर के शैतान को मारकर अपनी रूह को अल्लाह के साथ मिला देना, सांसारिकता को त्याग देना, दिन-रात अल्लाह की स्तुति करना सही अर्थ में जिहाद होता हैं। पर दरअशल इस बात को कहने के पीछे सार्वजनिक मजबूरी, कानून का डर, सड़क पर पिटने का डर होता हैं। न कि कोई और कारण क्योंकि असलियत में जिहाद का मतलब सिर्फ; चारों तरफ हिंसा फैलाना होता हैं। और इस बात की तसदीक उन देशों को देखकर आराम से हो सकती हैं। जहाँ मुस्लिम बहुसंख्यक होते हैं। और वहाँ घर, सड़क, होटल, स्कूल, कॉलेज, बस, रेल कहीं भी जिहाद कह सकते हैं।, और इसका असल मतलब तलवार वाला जिहाद ही होता हैं। जो कहने और सुनने वाले दोनों को बड़ी अच्छी तरह से मालूम होता हैं।

जिहाद शब्द अरबी भाषा के जुअहद से बना हैं। जिस(जुअहद) का मतलब हैं। कि अपने लक्ष्य के लिए संघर्ष करना या हर सम्भव कोशिश करना। पैग़म्बर मोहम्मद ने इसी हर सम्भव कोशिश जुअहद शब्द को जिहाद करके कुरान शरीफ़ में एक धार्मिक कर्तव्य के रूप में स्थापित कर दिया और जिहाद करने वाले को मुजाहिद कहा; कुरान के अंदर जिहाद को अल्लाह के मार्ग में रुकावट पैदा करने वालों के लिए पवित्र युद्ध और गैर मुसलमानों से धर्म की रक्षा के संघर्ष के रूप में बड़ा ही मार्मिक ढंग से चित्रण किया गया हैं।

इस्लाम दुनिया को दो भागों में बांटकर देखता हैं।

पहली; इस्लामिक दुनिया

दूसरी; गैर इस्लामिक दुनिया

शुरुआत में जिहाद का मतलब गैर इस्लामिक दुनिया से था कि पूरी दुनिया को इस्लामी कानून के अधीन लाना हैं। लेकिन बाद में चलकर जिहाद को इस्लामिक दुनिया में भी लागू कर दिया गया। क्योंकि जब एक बार मुँह से खून लग जाए तो फिर आदत छूट नहीं सकती। इसलिए तरीका सीधा हैं। पहले गैर इस्लामिक को इस्लामिक बनाओ और फिर उसे इस्लामिक कानून के अनुसार न चलने वाला बताकर उसकी गर्दन कटनी शुरू कर दों।

दरअसल; कुरान, हदीस, और इस्लामी फ़िक़ह( विधि जिसके चार प्रकार हैं। हनीफी, मालिकी, शफ़ी और हमबाली) में जिहाद का मिलता जुलता एक ही मतलब हैं। कि पूरी दुनिया में इस्लाम का प्रचार-प्रसार करना, और अल्लाह के नियम, कानून को लागू करना। लेकिन पैगम्बर मोहम्मद की मौत के बाद जब इस्लाम में विवाद शुरू हुआ और वो कई फ़िरकों(सुन्नी, शिया, अहमदिया, वहाबी) में बंट गया। तो सबने जिहाद की व्याख्या अपने ढंग से करनी शुरू कर दी। लेकिन एक बात समान थी कि किसी ने भी जिहाद को नकारा नहीं था। और आज तक सब इस जिहाद शब्द को पूरी शिद्दत से मानते हुए आये हैं।

इस्लामिक कानून में सच्चा मुसलमान होने के लिए पाँच आधारभूत चीज़ें( अल्लाह, नमाज़, रोज़ा, हज, जकात) बताई गई हैं। लेकिन एक छठी चीज़ भी हैं। जिसे दुनिया भर के इस्लाम मानने वाले लोग इन पाँच चीज़ों से ऊपर रखते हैं। और वो हैं। जिहाद;

अपने प्राम्भिक दौर में जिहाद शब्द आक्रमक और विस्तारवादी था। लेकिन उसके बाद सूफियों ने इसका मतलब आध्यात्मिकता की तरफ मोड़ दिया और अपने अंदर की बुराइयों और इस वजह से समाज में प्रकट होने वाली बुराइयों से लड़ने की व्याख्या की; पर ऐसा ज्यादा समय तक नहीं चल पाया और एक बार फिर जिहाद अपने असली रंग रूप में दुनिया के आगे प्रकट हुआ, पूरी कट्टरता के साथ, तलवार के बल पर, इसका सिर्फ एक ही मकसद था। गैर इस्लामियों का इस्लामीकरण करना, उन्हें अल्लाह के नियमों से अवगत कराना, और सम्पूर्ण पृथ्वी पर इस्लाम की स्थापना।

इतना नरसंहार करने के बाद एक बार फिर कुछ बुद्धिजीवीयों ने बीड़ा उठाया जिहाद की नई व्याख्या करने का और इस बार उन्होंने इसे दो भागों में बांट दिया। जिसे बाँटना कम और जो अब तक जिहाद के नाम पर हुआ हैं। उसे धार्मिक रूप देना ज्यादा था।

पहला; जिहाद अल अकबर (बड़ा जिहाद)

दूसरा; जिहाद अल असग़र (छोटा जिहाद)

बड़े जिहाद का मतलब सूफियों वाला बता दिया और छोटे जिहाद का मतलब हिंसात्मक वाला;

इतनी व्याख्या के बाद भी जब गैर इस्लामिक लोगों ने जिहाद का मतलब खून-खराबा ही समझा; तब वक़्त की धारा के साथ बहने के लिए एक नई कहानी बताई गई जिसमें अबकी बार जिहाद का मतलब तो पुराने वाला ही रहने दिया लेकिन इसके पालन करने के लिए कुछ नियम बताए। जो हैं।

मन,वाणी, कलम, तलवार

पर इसका भी कुछ ज्यादा फायदा हुआ नहीं, क्योंकि व्यवहार में जिहाद का मतलब तलवार ही था और किताबों में मन, वाणी और कलम;

कुछ वामपंथी लोग जिहाद का मतलब परिस्थितियों के हिसाब से निकालते हैं। उनका कहना ये हैं। कि जब इस्लाम की शुरुआत हुई तब मध्य एशिया में काफ़ी ज्यादा लड़ाकू किस्म की जनजातियां रहती थी। जिनका दिन-रात केवल एक ही काम था। एक-दूसरे से लड़ना, वहाँ चारों तरफ केवल अव्यवस्था थी। और इस्लाम को व्यवस्था स्थापित करने के लिए तलवार के दम पर जिहाद करना पड़ा। ताकि सभी जनजाति अल्लाह के अधीन होकर शांति से जीवन व्यतीत करने लगें। और जब वहाँ शांति स्थापित हो गई तो जिहाद ने भी अपना रूप बदल दिया। लेकिन ये वामपंथी लोग ये नहीं बताते कि यहूदियों और ईसाईयों से युद्ध क्यों हुए जब जिहाद शांति स्थापित करने का मार्ग था।

इस्लामिक कानून में जिहाद करने वालों को क्या-क्या लाभ है। ये भी बताए गए। जो ज्यादा प्रबल तरीके से जिहाद करता हैं। उसे जन्नत में बहत्तर हूरों के साथ रहने को मिलता हैं। इसलिए आज ज्यादा से ज्यादा मुसलमान बच्चें जिहाद करने पर तुले हुए हैं। कि जन्नत में पहले जाकर अपनी जगह ग्रहण करलें।

पुराने जमाने में जिहाद के केवल दो ही मतलब होते थे। एक अच्छा, और दूसरा बुरा; लेकिन आज जिहाद ने भी आधुनिकता की चादर ओढ़ ली हैं। और उसी के अनुसार उसने अपने कई मतलब बना लिए हैं। जो निम्न हैं।

संघटन जिहाद; इस तरह के जिहाद में कुछ पढ़े-लिखे लोग एक संस्था खोल लेते हैं। जैसे- मुस्लिम पर्सनल बोर्ड, जमाते उलेमा जैसी और सार्वजनिक मंचों पर अच्छी-अच्छी बातें करते हैं। एक दो काम समाज के लिए भी कर देते हैं। लेकिन मकसद असल में इस्लाम फैलाना ही होता हैं।

राजनीतिक जिहाद; इसमें पढ़े-लिखे, अनपढ़ सब मिलकर एक राजनीतिक पार्टी बनाते हैं। और फिर अपने विधायक वगैरह जिताकर कानून में फ़ेरबदल की कोशिश करते हैं।

संवैधानिक जिहाद; इसमें पार्टी या संघटन तो नहीं बनाते लेकिन देश के कानून में और संविधान में अपने लिए सड़क पर उतरकर कुछ रियाते ले लेते हैं। और फिर हर जगह खड़े होकर उन कानूनों को दोहरा-दोहराकर अपने दावेदारी जताते रहते हैं।

मस्जिद जिहाद; इसमें मस्जिद के अंदर नमाज़ के बाद गैर इस्लामिक लोगों को परेशान करने के लिए नए-नए तरीकें इज़ात किये जाते हैं।

जनसंख्यात्मक जिहाद; इसके अंदर जिहाद करने की एक पूरी प्रक्रिया होती हैं। दुनिया में ऐसी फ़िलहाल आज एक भी जगह नहीं हैं। जहाँ मुस्लिम आबादी 2% ना हो, आज मुस्लिम आबादी हर जगह हैं। इसकी प्रक्रिया कुछ इस तरह होती हैं।;

पहले ये 2% से आहिस्ता-आहिस्ता 5% होते हैं। जैसे ही 5%होते हैं। ये अपने मोहल्ले बनाने शुरू कर देते हैं। और जानबूझकर उन मोहल्लों को गंदा रखते हैं। ताकि गैर मुसलमान लोग इन मोहल्लों में ना आए, उसके बाद ये अपनी आबादी में रफ़्तार को तेज कर देते हैं। और जैसे 10% से 15% होते हैं। तो ये राजनीतिक लामबन्दी करने लगते हैं। लेकिन इस वक़्त ये अपना खुद का कैंडिडेट खड़ा नहीं करते; ये गैर मुसलमान के प्रति ही अपना समर्पण दिखाते हैं। लेकिन इस बात से इन्हें कोई विशेष लाभ नहीं होता; इसलिए ये अपनी जनसंख्या को लगातार बढ़ाते जाते हैं। और 20% से 25% होने पर ये वहां के बाज़ार, जमीन, पूजास्थल पर अच्छा-खासा कब्ज़ा कर लेते हैं। और छोटे चुनावों जैसे ग्राम पंचायत, वार्ड मेम्बर जैसों में अपना प्रतिनिधित्व जीता लेते हैं। और इसके बाद तो अब जितना बढ़ते हैं। उतना राजनीतिक लामबंद होकर अपने ही समुदाय का कैंडिडेट जीता लेते हैं। और जो गैर मुसलमान कैंडिडेट इनके भरोसे पर अब तक जीतता हुआ आया होता हैं। उसे ठेंगा दिखा देते हैं। वैसे तो इनकी इच्छा वहीँ पर कब्ज़ा करकर रहने की होती हैं। लेकिन जब दाल गलने में समस्या आती हैं। तो तुरंर 'भगते भूत का लंगोटा ही सही' वाली कहावत के अनुसार ये अक्सर खुद के लिए एक अलग देश की मांग भी कर लेते हैं। और सबसे जरूरी इस पूरी प्रक्रिया में गैर मुसलमान को लगातार ये एहसास कराते रहते हैं। कि एक दिन तुम्हें भाग जाना होगा, हमारे जैसा बन जाना होगा या खत्म होना होगा।


मदरसा जिहाद; इसमें छोटे-छोटे बच्चों को विज्ञान की जगह उल्टी-सीधी बातें बताते हैं। और उन्हें मानसिक तौर पर एक एटमी खिलौने के रूप में तैयार कर देते हैं। ताकि वक़्त आने पर फोड़ा जा सकें।

हिमायती जिहाद; इसके अंदर जिहाद करने वाले मुस्लिम नहीं होते बल्कि गैर मुस्लिम होते हैं। ये लोग अपने फ़ायदे के लिए इस्लामिक कट्टरपन्थ को जबरदस्ती बढ़ावा देते हैं। ताकि इनका उल्लू सीधा होता रहें।

खिलाफत जिहाद; इसके अंदर दुनिया के किसी भी जगह कोई मुसलमान मर जाये। चाहे वो आतंकवादी, हत्यारा, बलात्कारी कोई भी हो, उसके लिए ये कलमा अपने घर में पढ़ने लगते हैं। और सड़क पर जगह-जगह खड़े होकर चर्चा करते हैं। कि अभी क्या उम्र थी, इतनी जल्दी इस दुनिया से रूस्वत हो गया, पर अल्ल्लाह जन्नत नसीब करेगा। हमारे भाई को

लव जिहाद; इसमें बहला फुसलाकर गैर मूस्लिम लड़कियों से शादी करना और उनका धर्म परिवर्तन कराना शामिल होता हैं।


इतने सारे जिहाद तो वो हैं। जो फ़िलहाल साफ तौर पर देखे और व्यायखित किये जा सकते हैं। लेकिन जाने कितने और जिहाद चलन में हैं। जिन्हें समझना और उन्हें व्यायखित करना जरूरी हैं। जैसे; हलाला जिहाद, बहिष्कार जिहाद, नुक्कड़ जिहाद, पारदर्शी जिहाद, और भी जाने कितने हैं।

अब ये जितने भी जिहाद हैं। उनकी व्याख्या भले ही अलग-अलग तरीक़े से हो लेकिन इनके मूल में एक ही चीज़ हैं। पृथ्वी के हर छोर का इस्लामीकरण करना, और शरिया कानूनों को लागू करना; अब चाहे इसके लिए जो तरीकें इतेमाल होते हो मन, वाणी,कलम, तलवार

वैसे जिहाद करने वाले लोगों में एक बात सामान्य तौर पर पाई जाती हैं। और वो हैं। ये आँखे चाहे खुली व बंद हो केवल एक ही सपना देखते हैं। पूरी दुनिया का इस्लामीकरण, और इस बात को बड़े अच्छे ढंग से म्यूनिख फ़िल्म में स्टीवन स्पाईलबर्ग ने एक संवाद के माध्यम से दिखाया हैं। कि एक दिन हमारा वापस से पूरे इज़राइल पर कब्ज़ा होगा। और पैगम्बर मोहम्मद ने कहा भी हैं। कि जो इज़राइल पर राज करेगा वो पूरी दुनिया पर राज करेगा। तो इस इसी सपने को पूरा करने के लिए ये जिहादी इस दुनिया में जी रहे हैं।

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