365 डेज दिस डे - फ़िल्म समीक्षा Jitin Tyagi द्वारा फिल्म समीक्षा में हिंदी पीडीएफ

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365 डेज दिस डे - फ़िल्म समीक्षा

क्या जरूरत थी डायरेक्टर को ये कारनामा दोबारा करने के लिए, जब उसने दो साल पहले इन्हीं दिनों में ये कारनामा अच्छे से कर दिया था। आख़िर उसकी हिम्मत कैसे हुई कैमरे को ऑन करकर ये फाहियाद हरकत करने की अरे भाई तुझे पोर्न देखनी थी। देखता अकेले में, ये सबको दिखाने की क्या जरूरत थी। लेकिन वो ही कि नरक की आग में, मैं ही अकेला क्यों जलूँ। सबको साथ लेकर कुदूँगा।

लेखक के दिमाग मे कहानी के नाम पर केवल एक चीज़ थी की सेक्स कराना हैं।, पटकथा लिखने वाले के दिमाग मे ये था कौन सी लोकेशन पर कराना हैं।, म्यूजिक देने वाले के दिमाग मे ये था कि सेक्स के उतार-चढ़ाव के मुताबिक बीप देनी हैं।, डायलॉग वाले को बस इतना लिखना था कि सेक्स करने से पहले सेक्सी बातें बोलकर माहौल बनाना हैं।, एक्टिंग करने वालों के पास केवल एक काम था। कपड़े उतारने हैं। और चालू हो जाना हैं। अब इसे अगर कोई फ़िल्म कहता हैं। तो ये तय हैं। वो मानसिक दिवालियापन की स्थिति में आ चुका हैं।


कहानी; कहानी वहीं से शुरू होती हैं। जहाँ से पहली वाली में खत्म हुई थी। लड़की को लड़के से प्यार हो जाता हैं। और वे आपस मे शादी करने जा रहे हैं। शुरू के पचास मिनट फ़िल्म में केवल सेक्स हैं। शादी से पहले सेक्स, शादी के बाद सेक्स, पार्टी से पहले सेक्स, पार्टी के बाद सेक्स,

इन पचास मिनट के बाद ऐसा नहीं हैं। कि फ़िल्म कोई बहुत कुछ नया दिखाती हैं। बल्कि अब हीरो एक नई लड़की के साथ सेक्स करता हैं। और हीरोइन उसे करते हुए देख लेती हैं। जिसके कारण हीरोइन नाराज़ हो जाती हैं। और वो एक दूसरे लड़के के साथ चली जाती है। और ये सब काम दो से तीन मिनट के अंदर हो जाते हैं। अब डायरेक्टर का दिमाग खराब की आगे क्या दिखाए। क्योंकि हीरोइन को वो उस दूसरे लड़के के साथ सेक्स कराना चाहता नहीं था। इसलिए उसने नए लड़के के साथ सपने में सेक्स कराया। ऐसे ही करते हुए फ़िल्म का लास्ट आ जाता हैं। और लास्ट में पता चलता हैं। कि जिसे हीरोइन ने जिसे सेक्स करते हुए देखा वो हीरो का जुड़वा भाई था औऱ जिसके साथ हीरोइन भागी थी वो हीरो का दुश्मन था लेकिन उसका ह्दय परिवर्तन हो जाता हैं। और अब उसकी जिंदगी का इकलौता मकसद हीरो-हीरोइन को एक करना हैं। हालांकि बाद में कुछ गोलियां जबर्दस्ती चलती हैं। जिनमें एक गोली हीरोइन को लग जाती हैं। और वहीं पर फ़िल्म खत्म, आखिर तीसरा कारनामा भी तो करना हैं। आगे चलकर;

एक्टिंग; पोर्न फिल्म बनाने में एक्टिंग की जरूरत अगर होती तो फिर वो पोर्न फिल्म नहीं होती, तो एक्टिंग की बात ना करें तो ही अच्छा हैं।

डायलॉग; डायलॉग के नाम पर फ़िल्म में प्रकर्ति द्वारा मानव को दी गयी बोलने की क्षमता का पूरा मज़ाक उड़ाया गया हैं। कुछ चुनिंदा डायलॉग;

मैंने नीचे पैंटी नहीं पहनी

मेरी प्यास बुझा दो

कुछ ऐसा करो मैं मदहोश हो जाऊं

तुम्हारे साथ सपने में सेक्स किया

ऐसे ही भद्दे डायलॉग पूरी फिल्म में चलते रहते हैं।



पूरी बात का सार ये हैं। कि ये एक ऐसे इंसान जो अपने आप को डायरेक्टर मानता हैं। उसके द्वारा करोड़ो के कैमरे से सूट की गई एक अच्छी लोकेशन पर बनी पोर्न हैं। वैसे इसे हार्ड पोर्न कहे तो ज्यादा अच्छा हैं। क्योंकि हीरो नार्मल सेक्स तो करता ही नहीं, वो तो रेप करता हैं। वो भी लड़की की सहमति से, और करने के बाद पूछता हैं। कोई और तरीका हो तो बताना, जिसके जवाब में हीरोइन कहती हैं। बिल्कुल और तुरत वापस अपना रेप करवाने के लिए चालू हो जाती हैं। अब अगर किसी में ठरक कुछ ज्यादा ही सेक्स की तो ये फ़िल्म देखी जा सकती हैं। वरना ऐसी फिल्मों को कोई पैसे लेकर फ्री में भी ना देखे।