यासमीन - भाग 4 गायत्री शर्मा गुँजन द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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यासमीन - भाग 4

अम्मी अम्मी अब्बू जान कहाँ हैं ? उनकी कोई खबर नहीं ..." पुलिस को शिकायत दर्ज कराए क्या? यासमीन अपनी अम्मी से कहते हुए...!
शबाना बेगम- बेटी मुझे भी उनकी बहुत फिक्र हो रही है तू जाकर खालू जान के साथ रिपोर्ट लिखवा दे । तूँ डरेगी तो नहीं बेटी?
यासमीन - अम्मी आपकी बेटी हूँ अपने हक के लिए हमेशा बेख़ौफ़ देखोगी मुझे !आप परेशान मत होइए ! और अम्मी को सांत्वना देकर खुद के दर्द को अपने भीतर छुपाए नसीम खालू के घर गई!
आंगन में फूलों की महक , बकरियों की आवाजें और मुर्गों की बांग से कुछ देर यासमीन अपना गम भूल गई और उनके पीछे पीछे दौड़ने लगी यह देखकर नीमा ने उसे रोकना नहीं चाहा ...! आज बहुत दिन बाद यासमीन के चेहरे पर हंसी देखकर नीमा की जान में जान आई ।
और अपने शौहर नसीम को धीरे से आवाज लगाया.. ! नसीम बाहर आये और देखा यह तो यासमीन है हमारे यहाँ कितने दिनों बाद आई है ।
बेगम आप उसे अंदर बुलाइये !
नीमा- अरे नहीं नहीं जनाब अभी उसे खेलने दो कुछ देर , खुद ही आ जायेगी । अपनी ही बच्ची समझो !
नसीम- हाँ बेगम..! आप ठीक कहती हैं ! बेटियाँ भी अल्लाह नसीब वालों को देता है।

नीमा- सो तो है सच कह रहे हैं आप !
यासमीन की नजर खेलते खेलते खालू जान पर पड़ी! वह रुक गई तो खालू जान ने कहा बेटी सब ठीक तो है ?
यासमीन - नहीं खालू जान आपको मेरे साथ पुलिस स्टेशन चलना होगा !
नसीम ने कहा " क्या हुआ बेटी किसी ने तेरे साथ बदतमीजी की ? नाम बता उस हरामजादे का मैं अभी ठीक कर देता हूँ ।
नीमा सुन रही थी उसने कहा " हाँ बेटी तू चिंता मत कर तेरे अब्बू यहाँ नही है तो क्या हुआ हम भी तेरे अपने ही हैं बेझिझक खुल कर बता ।
यासमीन- नहीं खालू जान ऐसा नहीं है
आपको मालूम है कि अब्बू का कोई पता नही चल रहा ।अम्मी को टेंशन हो रही थी और उसी फिक्र में वो ठीक से कुछ खाती पीती भी नहीं है कुछ बचा हुआ राशन है वही जोड़ तोड़ कर बना खा लेते हैं । खत्म हो जाएगा तो किसके दर जाएंगे अल्लाह ही जाने !
नसीम और नीमा की आँखे नम हो गई।
आंसू पोंछते हुए नसीम बोले .." चल बेटी देर मत कर हम अभी चलते हैं रिपोर्ट लिखवाने ।
और नसीम यासमीन को लेके चल पड़े ! आकाश में बादल छाए थे , पक्षी यहाँ वहाँ भाग रहे थे , मौसम भी रंग बदलता प्रतीत हो रहा था हवा के झोंको से रास्ता साफ नहीं दिख रहा था । फर्क सिर्फ इतना था यह मौसम की खराबी सिर्फ आंखों को चकमा दे रही थी पर भीतर ही भीतर जो आंधी यासमीन को उड़ा रही थी उसकी कल्पना नहीं की जा सकती थी।
अम्मी और अब्बू का प्यार दुनिया का बेशकीमती तोहफ़ा है यासमीन सोचते हुए एक पल को आंधियों के झोंको में खो सी गई ।
उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि इन मौसमी मार से डरे या खुद के गम से !
अब इसी उधड़बुन में कोतवाली भी आ गया ।आज वाहन ज्यादा नही चल रहे थे कुछ आधा किलोमीटर दूरी पर ही थाना था ।
साधन के अभाव में नसीम पैदल ही चल पड़े थे। यासमीन को भी थकान महसूस नहीं हुआ । जिसने वक्त की मार से खुद को बज्जर बना लिया हो उसे भला ये तकलीफें क्या रुलायेगी !

इतनी मेहनत करके थाना पहुंचे तो कुछ कदम की दूरी से ही ताला लटका हुआ था कोई हकलदार भी आस-पास नहीं दिख रहा था कि उससे पूछे ! तभी यासमीन की नजर एक शख्स पर पड़ी जो हाथ मे डंडा लेकर चौरस्ते के पार खड़ा है और सिर पर टोपी लगाए हुए तोंद निकला हुआ, आती जाती गाड़ियों को घर रहा है !
जैसे ही नसीम और यासमीन रोड के दाएं तरफ मुड़े .......