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यासमीन - भाग 1

यासमीन

रमजान के दिनों में बिना कुछ खाये पिये यासमीन घर के सारे काम करती , झाड़ू पोछा बर्तन और खाना बनाकर स्कूल जाने के लिए खुद को तैयार करना । एक मध्यमवर्गीय परिवार से होने के बावजूद यासमीन जिंदादिल लड़की थी ।
आपा ! आपको देर हो जाएगी स्कूल के लिए ! टाइम देखिए 7 बज रहे हैं और आपको अभी कितना सारा काम है ..'' यासमीन के छोटे भाई समर ने कहा !
यासमीन- समर थोड़ा सा काम है तूँ चाहे तो अपनी आपा की मदद कर सकता है ! वहीं समर चुप हो गया और धीरे से बहाना बनाते हुए अपने रूम में चला गया , यासमीन थोड़ी मुस्कुराई और अपने काम मे लग गई ।
वह जानती थी कि समर काम से जी चुराता है। आज तो स्कूल पहुंचते हुए बहुत देर हो गई।
क्लास में मास्टर जी रिमांड ले रहे हैं बाहर 2 लड़के मुर्गा बने खड़े हैं और यासमीन को देखते ही कुकड़ू कू........ बोले और खिलखिलाकर हंसने लगे कि अब ये भी मुर्गी बनेगी।
वहीं यासमीन क्लासरूम से 2 कदम पीछे ही थी कि घबड़ाहट में वहीं रुक गई । इतने में मास्टर जी बाहर आये तो देखते हैं यासमीन खड़ी है । वह कांप रही थी कि मास्टर जी सजा देंगे तो मेरा मजाक बनेगा। कहीं इन लड़को के साथ मुझे भी मुर्गी बना देंगे तो बच्चे रोज चिढाएंगे ! उसके मन मे हलचल और प्रश्न गाड़ी की रफ्तार से चलते ही जा रहे थे कि मास्टर जी तपाक बोले...
" यासमीन....! जी सर्- यास्मीन बोली ।
मास्टर जी - क्या सोच रही हो और इतनी लेट क्यों आई तुम्हे क्लास का टाइम नहीं पता !
यासमीन- सर् वो..... मैं..... वो...
मास्टर जी- क्या वो मैं वो मैं कर रही हो अच्छा चलो एक्सक्यूज़ मत देना क्लास में जाओ ।
अब बारी थी 2 मुर्गों की यानी सुरेश और जाफ़र की बारी। दोनों की चेहरे से हवाएँ उड़ गई यासमीन को बिना पनिशमेंट अंदर जाते देख कर वे सिर झुका लिए। मास्टर जी ने खड़ा किया और उन्हें भी चेतावनी देकर अंदर भेज दिया कि तुम दोनों सुधर जाओ वरना अगली बार से पूरे पीरियड तक मुर्गा बनकर सज़ा भुगतना होगा।
आज का दिन तो अच्छा था या अल्लाह! यासमीन परवरदिगार का शुक्रिया अता करके सभी बच्चो के साथ पढ़ने में व्यस्त हो गई ।
समर आज स्कूल नही आया था तो यासमीन का इंतजार नहीं किया । समर की छुट्टी थोड़ी जल्दी होती थी ।
घर पहुंचकर यासमीन ने जैसे ही स्कूल बैग उतारा उसे अम्मी के रोने की आवाज आई " अब्बू शहर में थे और अम्मी लाचार अपने व्हील चेयर पर बैठे एकटक समर को देखते हुए आंसू बहाती जा रही हैं आज उनकी देखभाल करने वाली आया फ़ातिमा भी छुट्टी पर थी , फ़ातिमा के बच्चो को यासमीन फ्री ट्यूशन देती थी और यासमीन ,समर के स्कूल रहने तक फ़ातिमा यासमीन की माँ की देखभाल करती थी । आज बदनसीबी देखो कि कोई भी घर नहीं था । और समर अल्लाह को प्यारा हो गया ! यह देखकर होनहार यासमीन टूट गई अब्बू को खबर ही नही लगी मुंबई शहर में मज़दूरी करने वाले रस्मन मियाँ के पास कोई फोन भी नहीं था और ना ही कोई जान पहचान । यासमीन अब्बू को याद करते हुए फूट फुटकर रोने लगी 2 महीने से कोई घर खर्च भी नहीं भेजा । और समीर के जाने की खबर उन्हें मालूम चलेगा तो क्या होगा ?? पता नहीं मुंबई शहर में अब्बू कैसे हैं या नहीं भी ?? यासमीन इन बुरे ख्यालो से निकल नहीं पा रही थी । अब वह स्कूल जा पाएगी या नहीं ? घर खर्च कैसे चलेगा ? अम्मी का ख्याल कैसे रखूँ ? अनेको सवालों के बीच घिरी यासमीन अम्मी की तरफ एकटक देखने लगी । मानो वेदना के समंदर में दोनों डूबती जा रही हों और उनके दुख की लहरें भी खामोश होकर अन्तस् में सिमट गई हों।

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