यासमीन - भाग 2 गायत्री शर्मा गुँजन द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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यासमीन - भाग 2

अगली सुबह रस्मन मियाँ के घर कुछ और रिश्तेदार पहुँचे , हालांकि बीती शाम समर का जनाज़ा नहीं उठाया गया कुछ सगे रिश्तेदारों का पहुंचना बाकी था। ऊपर से रस्मन जी की खबर ना लगने पर सब बातें बना रहे थे ।
इंसान इतना लाचार नहीं होता जितना दुनियावाले बिचारा शब्द बोल बोलकर उसे बिचारा बना देते हैं यह शब्द पीछे से सुनाई दिया जब यासमीन ने पीछे मुड़कर देखा तो उसके ही पड़ोस की खाला नीमा थी।
नीमा एक भली औरत है जो सबके सुख दुख में शामिल होती और उसके यह शब्द जब यासमीन ने सुना तो दुख के मंजर में भी हौंसलों को बनाये हुए थी ।
नीमा और यासमीन की नजरें जब एक दूसरे से टकराई तो तुरन्त नीमा फूट फूट कर रोने लगी उससे रस्मन मियाँ के परिवार का दुख सहन नहीं हो रहा था। तभी यासमीन उनके पास जाती है .......
यासमीन- खाला मत रोइये आप ! अल्लाह की यही मर्ज़ी थी । देखिए अम्मी जान बेसुध होकर कैसे टकटकी लगाए समर के जनाजे को देख रही हैं। आप खुद को सम्भालिए और खुदा की इबादत करें दुआ मांगे मेरे अब्बू जहाँ भी हो बस वो सही सलामत हों । यहाँ तो हम सब साथ हैं हर मुश्किल से लड़ लेंगे पर परदेस में मेरे अब्बू जाने किस हाल में होंगे ।
नीमा- बिटिया मुझसे तुम्हारा दर्द देखा ना गया इसलिए आंखे भर आईं ।
तू कितनी पत्थर दिल है रे ...! तेरी आँखों में एक कतरा आंसू नहीं है ।
यासमीन- मुस्कुराते हुए ...." ख़ाला जान वो खुदा है ना हमारा ख्याल रखने वाला । जब मैं नमाज पड़ती हूँ तो क़ुरान की लिखी बातों को अमल में लाने की कोशिश करती हूँ कि इसलिए कहती हूँ हमे किसी भी मुसीबत में सब्र और नमाज़ का सहारा लेना चाहिए । वही कर रही हूँ .....!!

यासमीन की बातों में सच्चाई थी उसने कुरान पाक की बातों को अमल में लाने का जो जिक्र किया यह सुनकर वहाँ खड़े सभी रिश्तेदार, पड़ोसी खुदा का शुक्र अदा करने लगे। एक बुजुर्ग व्यक्ति ने कहा "बच्ची कितनी समझदार है दुःख के थपेड़े खाकर भी अपने ईमान पर कायम है । या ख़ुदा .." कैसे कैसे इम्तिहान लेता है तू अपने बंदों से। रहम कर मेरे मौला .... रहम कर .....!! और वे बुजुर्ग यहाँ वहाँ देखते हुए अपने आँसू पोंछने लगे।
ये लो अब मौलवी साहब भी आ गए ,एक शख्स ने कहा .!
भीड़ चल पड़ी , जनाजा उठाया गया घर मे चींखें गूंजने लगी । कलेजे का टुकड़ा और आंखों की रौशनी आज शबाना बेगम से बिछड़ गया कैसे रहेंगी वो अपने बेटे समीर के बिना !
यह मन्जर बहुत खौफनाक था । औरतें शबाना बेगम को ढांढस बन्धाते हुए......!
शबाना बहन ....' हौंसला रखिये आप यू टूट जाएंगी तो यासमीन बिटिया को कौन सम्भालेगा .... एक औरत बोली !
शबाना भीतर ही भीतर रस्मन मियाँ को याद करने लगी ! काश आज वो साथ होते ! चलो अच्छा है वो अपने बच्चे को देखते तो क्या हाल होता उनका । अच्छा ही है जो वो मुम्बई चले गए। पर वो कैसे होंगे इस चिंता में बेगम को मूर्छा ने घेर लिया ...!!