यासमीन - भाग 5 गायत्री शर्मा गुँजन द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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यासमीन - भाग 5

पुलिस चौकी के आस- पास कोई था तो नहीं और सड़क के दूसरी तरफ एक हवलदार दिखाई दिया था । नसीम और यासमीन ने जब पीछे मुड़कर देखा तो एक फकीर वहाँ से गुजर रहे थे हाथों और कंधों पर वाद्य यंत्र लटकाए , हरे रंग का गोल्डन पट्टी लगा हुआ कुर्ता -धोती पहने हुए सिर पर सफेद जालीनुमा छपाई वाली टोपी पहने हुए नंगे पैर चल रहे थे और मुंह से इबादत के सुर में आंधियों को चकमा देते हुए जा रहे थे एकदम मस्त मौला जिसे दुनिया के तूफानों से कोई वास्ता ही ना हो , और बेहद लाजवाब गायन कर रहे थे...."

खुद की छोड़ दे फ़िक्र तू बन्दे अल्लाह पार लगाएगा।
क्या लाया इस दुनिया में तू क्या लेकर के जाएगा
अपने जिस्म का पता नहीं है ख़ाक ख़ाक मिल जाएगा
खुद की छोड़ दे फ़िक्र तू बन्दे .................

इश्क मोहब्बत रब से करना वरना ठोकर पायेगा
जिसके लिए तूँ जीता मरता वही साथ ना जाएगा
खुद की छोड़ दे फ़िक्र तू बन्दे..............

आहा...! कितना बेहतर गा रहे हैं बाबा...! .......यासमीन ने बोला ..." बाबा रुकिए....." अब वह फकीर रुक गए । क्या देखते हैं कि इतने तूफ़ान में ये कौन लोग हैं जो अपनी जान की औरवह किये बिना पुलिस चौकी के पास खड़े हैं और चौकी में ताला लटका है। बाबा ने सोचा परेशान लग रहे हैं शायद कुछ चोरी हो गया होगा ।और बाबा बोले......" बेटा तुम दोनों को देखकर लग रहा है किसी तलाश मे हो ..!
नसीम बोले ...." बाबा आपने सही पहचाना हम यहाँ..... अपनी बात पूरी करने ही वाले थे कि बाबा बोल पड़े....."बेटा.... कुछ नहीं होगा सब ठीक है हो जाएगा अल्लाह पर भरोसा रखो !
नसीम मियां चुप हो गए ।
तकलीफ़ तो यासमीन को भी हो रही थी जो लड़की खेलने कूदने पढ़ने लिखने की उम्र में इतनी भारी मुश्किलातों से रूबरू हो उस नाजुक दिल वाली बच्ची पर क्या गुजरी होगी कौन जाने ।
जैसे तूफ़ान के आने पर एक भरज भरकम पेड़ भी जो जड़ो से मजबूती लिए हुए हो वह टूट जाता है , उखड़ जाता है और यातायात बहाल होते ही जब लोग देखते हैं कि यह पेड़ कितना सेहतमंद था और तूफान इतना खतरनाक होता है कि जड़ो समेत उखाड़ फेंकता है और लोग कुदरत के करिश्मो की दुहाई देते हैं ।
आज यासमीन वही पेड़ है जो मुश्किलों से उखड़कर भी खुद को और अम्मी को सम्भाले हुए है ।
नसीम को ख्यालों में गुमशुदा देख यासमीन ने बाबा से पूछा कि बाबा आप कह रहे हैं सब ठीक हो जायेगे पर मुझे तो .....तपाक बाबा बोले...! बेटी तू घर जा बहुत थकी हुई है तेरे अब्बू घर आ जाएंगे ।
या अल्लाह अपने नेक बन्दों पर रहम कर जो सिर्फ तुझपर ईमान लाते हैं आमीन!! और बाबा बच्ची के सिर पर हाथ फेरते हुए आगे निकल गए !

नसीम मियाँ जिन्हें यासमीन खालू जान कहती थी वह भी ढंग रह गए मानो कोई चिंगारी उनके दिमाग मे ट्रिगर कर गई हो और कोई उनके भीतर घुस गया हो जो उन्हें बार बार पीछे लौटने का इशारा दे रहा हो ।
ऐसा ही कुछ यासमीन को भी महसूस हुआ एक रूहानियत सा कुछ असर था जो उन्हें खामोश कर दिया और एक दूसरे को देखते रहे।
हवाएँ अपना रुख मोड़ चुकी थी बादल छट चुके थे , मौसम फिर से सुहाना हो गया , कुछ सर्दी सा नमी मौसम मे छाया था चारों तरफ नजारे स्पष्ट दिख रहे थे यातायात , परिवहन , मालगाड़ी , ट्रैक्टर, बस, और कारें तो पहले से ही अपनी रफ्तार में चल रही थीं अब बदल था तो कुछ पैदल यात्रियों का आना जाना जो दूभर हो गया था अब लोग आने- जाने लगे। पैदल पारपथ और यात्रीगण सभी सड़को पर बहाल हो गए।
दोनों के दिमाग मे हलचल थी वे घर लौटना चाहते थे लेकिन .........