दानी की कहानी -
----------------
दानी इस बार बहुत दिनों बाद अपने नाती से मिल सकीं थीं | अधिकतर वे यहीं रहतीं थी लेकिन बीच में उनका मन हुआ कि वे कुछ दिन हरिद्वार रहकर आएँ |
उन्होंने हरिद्वार के कनखल स्थान में गंगा के किनारे बने हुए आर्य समाज के आश्रम में एक दो कमरों की कुटिया बनवा ली थी |
उनका मन होता तो वे परिवार में आ जातीं ।मन होता तब अपनी कुटिया में रहने चली जातीं |
सभी बच्चे उनके साथ खेलना ,उनकी बातें सुनना बहुत मिस करते |
दानी को भी परिवार में रहना अच्छा तो लगता ही था | भला कौन बुज़ुर्ग होगा जिसे परिवार में सम्मान मिले और वह सबके साथ रहना पसंद न करे ?
लेकिन दानी को कभी-कभी लगता था कि अब उनकी काफ़ी उम्र हो गई है ,उन्हें अब मोह से कुछ तो छुटकारा पा लेना चाहिए |
सबके मना करने पर भी वे बीच-बीच में अपनी कुटिया में चली ही जातीं |
वहाँ कुछ ऐसी व्यवस्था थी कि जब तक आपको अथवा आपके परिवार के किसी सदस्य को रहना है ,वह रहे किन्तु उनके बाद उस कुटिया को अन्य लोगों के लिए दान कर देना होता |
दानी के बच्चे सोचते कि उन्हें कुटिया बनानी है तो कोई बात नहीं किंतु कभी-कभी जाएँ तो ठीक है |
उस आश्रम में भोर से ही यज्ञ आदि शुरू हो जाते और दानी को उसमें आनंद मिलता |
इस बार तो दानी को कुटिया में गए हुए कई माह हो गए थे | परिवार में सब उनके लौटने की राह देख रहे थे |
जब वे कई माह बाद आईं तो उन्होंने छोटे बच्चों में कुछ परिवर्तन महसूस किया |
जब वे यहाँ रहतीं ,कोई उनके सामने अधिक झगड़ा न करता ,एक दूसरे को कटु शब्द न बोलता |
उनके जाने के बाद कोई बच्चों के पास हर समय तो रह नहीं सकता था अत: बच्चे अपने मन मर्ज़ी की करने लगे |
'यह तो गलत है 'दानी ने सोचा और सब बच्चों को अपने कमरे में एकत्रित किया |
दानी बच्चों व घरवालों के लिए जो कुछ भी लेकर आईं थी ,वह सब तो उन्होंने आते ही दे दिया था |
दानी को सबकी पसंद याद रहती थी ---सभी उनसे खुश रहते |
जब उन्होंने सब बच्चों को अपने कमरे में बुलाया ,बच्चों को थोड़ी हैरानी हुई क्योंकि आने के बाद दानी थोड़े समय आराम करना चाहती थीं |
"आज महाराज पर सब क्यों चिढ़ रहे थे ?" दानी ने सबसे पूछा |
"दानी ! वो आजकल हमारे लिए हमारी पसंद का कुछ नहीं बनाते |" एक ने उनकी शिकायत की |
"कम्मो आँटी भी हमारा कहना नहीं मानतीं ---"दूसरे ने भी जैसे शिकायत सी कर दी |
"हाँ,दानी --बस जो मम्मी-पापा कह जाते हैं ,वो बस वही बनाकर हमारे सामने परोस देते हैं --" छुटकी ने भी अपनी पींपनी बजाई |
"बेटा !मैंने आज आते ही यह बात नोटिस की ---मेरे बाद इतना बदलाव कैसे आया ?"दानी ने बच्चों के सामने अपना प्रश्न परोसा |
"देखा ,किया न आपने भी यह बदलाव महसूस ---?" प्रसून लगभग तेरह वर्ष का हो रहा था |
"मैंने महसूस किया कि आप लोग कितनी कड़वी ज़बान में महाराज से बात कर रहे थे |"
दानी ने यह कहा तो बच्चे एक-दूसरे का चेहरा ताकने लगे |
उन्हें तो लगा था दानी उनके लिए महाराज को डांटेंगी लेकिन यह तो उल्टा पास पड़ा था |
"महाराज कितने वर्षों से यहाँ काम कर रहे हैं ? " दानी ने बच्चों से पूछा |
बच्चों के पास इसका कोई उत्तर नहीं था | वे तो जबसे जन्मे थे तब से ही वे महाराज को और कम्मो आँटी को अपने घर में देख रहे थे |
"तुम किस भाषा में इनसे बात कर रहे थे ?मेरे सामने तो ऐसे नहीं बोलते थे !!" दानी नाराज़ लग रही थीं |
"मैं गई और तुम सब अपना बात करने का सलीका भी भूल गए ?"
"जानते हो न कौआ और कोयल में क्या फ़र्क होता है ? दोनों ही काले हैं लेकिन लोग कोयल को पसंद करते हैं ,कौए को क्यों नहीं ?"
"कौआ कैसे बोलता है ,कौन उसको पसंद करेगा ?" जीनी बोली |
"और कोयल क्यों बोलती हुई अच्छी लगती है ,वो भी तो काली है ?" दानी ने फिर अपनी बात रखी |
"पर मीठा बोलती है न !" प्रसून ने एकदम कहा |
"वही तो ---मीठा बोलकर किसीसे कुछ अपेक्षा करोगे तो तुम्हारी बात मानी जाएगी |बल्कि बड़े प्यार से मानी जाएगी लेकिन अगर कांव -कांव करोगे तो ---"
बच्चों की समझ में तुरंत ही आ गया था | उन्होंने दानी के बिना कहे ही महाराज से व कम्मो आँटी से सॉरी बोला |
"आप यहीं रहिए दानी ,बच्चों को अभी बहुत कुछ सिखाना है आपको --" महाराज ने मुस्कुराते हुए कहा |
परिवार में काम करने वाले दोनों सेवक ही बच्चों के जन्म से पहले घर में काम कर रहे थे | बच्चों का अपने प्रति वयवहार देखकर वे क्षुब्ध हो रहे थे |
दानी ने आकर एक ही बार में बच्चों को उनके गलत व्यवहार के बारे में समझा दिया था |
डॉ. प्रणव भारती