अंतिम सफर - 9 Parveen Negi द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

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अंतिम सफर - 9

भाग -9

मेरे सामने इस वक्त धुंध की आकृतियां ,जिनके अंदर से खून निकल कर उस जलधारा के जल में मिल रहा था ,मेरी सांसे बढ़ने लगी थी और मेरे कदम अब धीरे-धीरे पीछे की तरफ हटने लगे थे, मैं भागने का विचार बना चुका था

पर तभी उन धुंध की आँखे जैसे एकदम से खुल रही हो और उन्होंने मुझे देख लिया हो,पेड़ों के पत्ते बहुत बुरी तरह से हिलने लगे थे और उनकी सरसराहट की आवाज कानों के पर्दो को एकदम से चीरने लगी थी,,,

और तभी वहां से एक विशाल धुंध निकलने लगी थी, जिसका काला रंग इतना अधिक डाला था, भंवरा भी जिसके आगे फीका पड़ जाए,,,

मैं तेजी से पीछे की तरफ पलट गया और भाग निकला था, और इसी के साथ एक शोर मुझे कानों में पड़ने लगा था, और जाने क्यों यह शोर ,मुझे रोज सुनाई देने वाला शोर प्रतीत होने लगा,,,,,

क्या यह इंसानों के शोर मचाने की आवाज है, क्या यह पंछियों की आवाज का शोर है,, क्या यह हवा के तेज चलने का शोर है,, या फिर यह सब आवाजें आपस में इस तरह घुल मिल गई है कि मुझे यह कोलाहल सुनाई दे रहा हैं,,,,,

मैं तेजी से भाग रहा था और शोर मुझसे पीछे छूटता जा रहा था ,मुझे खुशी हो रही थी , मेरे कानों के पर्दों को दर्द करा देने वाली आवाज से ,मैं धीरे-धीरे दूर होता जा रहा हूं,,,, मैंने अभी पीछे मुड़कर नहीं देखा था कि, मेरे पीछे धुंध आ रही है या नही,,,

मैं तेजी से भाग रहा था और मेरी रफ्तार इतनी तेज होती जा रही थी जैसे कि मैं खुद हवा में उड़ते हुए भाग रहा हूं, और यह क्यों हो रहा था, क्या डर की वजह से मैं इतनी तेज भाग रहा हूं, मैं तो कभी इतनी तेज नहीं भागा ,,,पर आज इन उखड़ खाबड़ पत्थरों के ऊपर से भी मैं किसी हवा की भाती कैसे भाग पा रहा हूँ ,,,

उस जलधारा के साथ तेजी से आगे भागते हुए ,मैं काफी दूर निकल आया था और अब अपनी सांसो को नियंत्रित कर रहा था, मैंने पीछे मुड़ कर देखा था कुछ भी तो नहीं था मेरे पीछे,,,

और फिर सामने दूर देखने पर सूरज डूबता हुआ नजर आ रहा था ,वह बिल्कुल लाल हो चुका था और शायद कुछ ही मिनटों में मुझे दिखाई देना बंद हो जाता ,

""अंधेरा होने वाला है इससे पहले मुझे ऊपर सड़क पर चढ़ जाना चाहिए, वरना इस घाटी से ऊपर चढ़ने में मुश्किल आ जाएगी,,,""

"पहाड़ पर चढ़ना मेरे लिए कोई मुश्किल काम नहीं" और मैं बिल्कुल तेजी से उस पहाड़ पर चढ़ने लगा ,

इतना भाग कर आने के बावजूद भी मुझे मेरे अंदर थकावट का अनुभव नहीं हो रहा था और मैं बेहद चपलता के साथ उस पहाड़ पर चढ़ने लगा था,,

सूर्य डूब गया था,, अंधेरा एकदम से बढ़ गया था, और मैंने फिर राहत की सांस ली थी,, मैं ऊपर सड़क पर आ पहुंचा था,,,

तभी सामने से आ रही एक कार की लाइट मेरी आंखों से टकराई थी ,मुझे जाने क्यों एकदम से गुस्सा आ गया था, और मैंने पास पड़े पत्थर को उठाकर उस कार की तरफ फेंक दिया था,, पत्थर सीधा लाइट पर जा लगा था, वह लाइट बड़े जोर की आवाज के साथ फूट गई थी,,,

"अरे यह मैंने क्या किया ,,मैं भी कैसी हरकत कर देता हूं, इससे पहले गाड़ी वाले मुझे पकड़कर पीटना शुरू करें, मुझे भाग निकलना चाहिए ,"",,और फिर मैं तेजी से सड़क पार करके उस पहाड़ पर ऊंचाई की तरफ चढ़ गया था, और एक पत्थर के पीछे छुप गया था,,,,

तेजी से आगे आकर कर रुकी थी, उसमें से दो आदमी बाहर उतरे थे, और तेजी से इधर उधर देख रहे थे, उन्होंने फिर पहाड़ के ऊपर की तरफ देखा था,, और फिर जल्दी से कार में बैठकर वहां से निकल गए थे,,,,,

""अच्छा हुआ इनकी नजर मुझ पर नहीं पड़ी, वरना मेरे लिए अच्छा नहीं होता,, पर इन्होंने तो मुझे ढूंढा ही नहीं, शायद इन्हें लगा होगा कि पहाड़ के ऊपर से पत्थर गिरने से लाइट टूट गई हैं ,,,चलो अच्छा हुआ, मेरी तो जान बच गई,,,,

,,पर अब मुझे यहां से अपने घर भी तो जाना है ,अंधेरा हो गया है, और कम से कम 5 किलोमीटर दूर अभी मेरा घर हैं, पर कोई बात नहीं ,,मेरे लिए इस पहाड़ का सफर करना क्या मुश्किल है,,,,

मैं फिर तेजी से आगे बढ़ने लगा था, वातावरण में ठंड अपना असर दिखाने लगी थी ,काश में कुछ पहनने के लिए अच्छी जैकेट ले आता ,,यह ठंड तो शरीर में प्रवेश करती जा रही है,,,,,,

मैं पहाड़ों की टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडी से आगे बढ़ने लगा था, सिर्फ ठंडी हवा के अलावा मुझे किसी की आवाज सुनाई नहीं दे रही थी,,, दूर जगह-जगह घरों की लाइट जलती नजर आ रही थी,,,"" यहां से मेरा गांव कितना खूबसूरत नजर आ रहा है ,,वहां जलती हुई लाइटे बिल्कुल किसी दिए की तरह जलती भी नजर आ रही है,,,,

""कितना सुकून है यहां से अपने गांव को देखना और फिर वहां खड़े होकर मैं सामने दिख रहे पहाड़ पर अपने गांव को देख रहा था ,,आकाश बिल्कुल साफ ,,, जिसके कारण पहाड़ के ऊपर असंख्य सितारे, किसी जुगनू की भांति नजर आ रहे थे,,,,,

""मुझे इतने सुकून का अनुभव क्यों हो रहा है, इतनी शांति क्यों मुझे अपने अंदर महसूस हो रही हैं ,,क्यों मेरी आंखें इस दृश्य को देखने के लिए आतुर हो रही है,,, क्यों मैं हर दृश्य को अपने अंदर समेट लेने की भावना से भरा जा रहा हूं,,"""

""मुझे घर चलना चाहिए ,वरना मैं यहीं बैठा रह जाऊंगा, और वैसे भी आज घर में मुझे काफी बातें सुनने को मिलेंगी ,,,

,,, उस वक्त उजाला था जब मैं घर से निकला था और अभी तक घर नहीं पहुंचा ,,क्या सोच रहे होंगे घर के सभी लोग,, मुझे ढूंढ रहे होंगे,,,

शायद घर पहुंचकर परिवार के गुस्से की कल्पना मेरे मन में अजीब सा दर्द भर गई थी,,, पता नहीं मुझे यह दर्द अपने अंदर किस जगह महसूस हुआ था,, मैं इसकी कल्पना नहीं कर पाया था,,,,

अब मैं तेजी से आगे बढ़ गया था ,मेरे कदम तेजी से घर की तरफ दौड़ने लगे थे ,,मैं नहीं चाहता था कि अब मैं देर करूँ,,,,,

रात बढ़ती जा रही थी, मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी ,मैं जल्दी से घर पहुंचना चाहता था, पर जाने क्यों वह गाव मुझसे दूर होता जा रहा था,, मैं पहाड़ी पर अपनी रफ्तार से कभी ऊपर चढ़ रहा था ,तो कभी नीचे उतर रहा था ,पर फिर भी जाने क्यों मेरा घर मेरे से दूर ही था,,,,

""मैं बहुत ज्यादा देर कर रहा हूं ,शायद अब तो मेरे परिवार वालों की बेचैनी बढ़ गई होगी,, वह मुझे आवाज दे रहे होंगे ,,इन पहाड़ों पर उनकी आवाज गूंजना शुरू हो जाएगी ,,शायद उनके साथ गांव के और लोग भी मुझे आवाज देना शुरू कर दे ,,इससे पहले मुझे घर पहुंच जाना चाहिए,,,""

मैं फिर से तेजी से आगे बढ़ गया था,,,,

क्रमशः