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अंतिम सफर - 1


अंतिम सफर,,,,,,,

यह बात तब की है ,जब मैं एक बार ऊंचे पहाड़ों की तरफ घूमने निकल गया था,, मौसम एकदम खुशनुमा था,, धूप खिली हुई थी ,,महीना भी मार्च के शुरुआत का था, पहाड़ों से बहने वाले छोटे झरने बेहद खूबसूरत लग रहे थे ,,
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पर जैसे जैसे मैं आगे बढ़ रहा था ,,मुझे ऐसा लग रहा था,, जैसे कोई धुंध मेरा पीछा कर रही हो ,,और मैं पीछे मुड़कर देखता तो गहरी घाटियों में धुंध तैरती मुझे नजर आ रही थी,,,, पर वह तो मुझसे बहुत दूर थी ,,,फिर चलते ही मुझे ऐसा क्यों आभास हो रहा था ,,,जैसे धुंध मेरे चारों ओर लिपट रही हो,,और मुझे अपने में समेट लेना चाहती हो,,,

चारों तरफ एक अलग ही खामोशी का एहसास मुझे होने लगा था ,,,ऊंचे ऊंचे पेड़ मेरे चारों तरफ खड़े थे,, पर उनकी सरसराहट की आवाज मुझे बिल्कुल सुनाई नहीं दे रही थी ,,इस वक्त तो कई पक्षियों की आवाज भी मुझे सुनाई देनी चाहिए थी ,,,पर सन्नाटा चारों तरफ पसरा हुआ था ,,,नजर उठा कर मैंने आकाश की तरफ देखा तो मुझे आकाश भी कुछ अजीब सा गुलाबी रंग लिए नजर आने लगा,,,,,,

""क्या हो रहा है ,,यह मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था,, क्या मैं वाकई में अपनी ही दुनिया में चल रहा हूं,,, मैं तो पहले भी यहां आया हूं ,,पर तब तो मैंने ऐसा कुछ महसूस नहीं किया,,, यह पगडंडी जो ऊंचाई तक जाती है,, यह वही है जहां से गांव वाले घास और लकड़ियां लेकर आते हैं ,,पर आज यह पगडंडी मुझे कहां ले कर जा रही हैं,,,,

""क्या मैं वापस नीचे की तरफ लौट जाऊं ,,मेरा दिल घबरा रहा था ,मन बेचैन होने लगा था, पैरों में कंपन होने लगी थी ,,,लौट चलना चाहिए,,, दिमाग यही बोल रहा था,,,"

""पर क्यों,, मैं अपने इन पहाड़ों से डर क्यों रहा हूं,, मैं तो रात के वक्त भी नहीं डरता,, तो यह तो खिली हुई धूप है,, ""अरे अभी तक नीचे खिली हुई धूप थी,, पर अब यह धूप कहां गई ,,,आकाश में तो बादल है ही नहीं,,, तो यह सूर्य की रोशनी मुझे नजर क्यों नहीं आ रही ,,,पर चारों तरफ अंधेरा तो है ही नहीं ,,,,फिर यह कैसा उजाला है,,,,,,

"""यह हो क्या रहा है,,, मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा,, सूरज आया हुआ है ,,,पर दिन का उजाला नहीं है,,, रात नजर नहीं आ रही,,, अजीब सा उजाला मुझे डरा रहा है,,,,

,,अपने मन को मजबूत कर,, मैं फिर भी आगे बढ़ता गया,,, आखिर यह मेरे रोज के पहाड़ हैं,,, मुझे कैसा डरना,,,, और मेरे कदम फिर से तेजी से आगे को बढ़ गए थे,,,,, ऊंचाई पर पेड़ मुझे अब हिलने हुए नजर आने लगे थे ,,,उन्हें देखकर मुझे थोड़ी खुशी सी हुई ,,,फिर अगले ही पल मैं आश्चर्य में डूब गया,,, पेड़ों के तो पत्ते और डालियों हिलनी चाहिए थी,,,, मेरे हाथ की गोलाइयों में भी ना समाने वाले पेड़ों के तने,,, कैसे हिल रहै थे,,,,

,,,मुझे चक्कर आ रहै है ,,,शायद इसकी वजह से मुझे ऐसा दिख रहा है,,, मुझे अपने आप को संभालना होगा ,,कहीं मैं अपने घूमते सिर के साथ,,, नीचे गहरी खाई की तरफ ना गिर जाऊं,,,,,

,,मैं वही रास्ते पर पत्थर पर बैठ गया,,, दूर तक फैली घाटियों को मैं अपनी नजरों से देख रहा था ,,,सब कुछ अजीब सा नजर आ रहा था,,,, कोई पंछी नहीं,,, कोई शोर नहीं,,,, कोई उजाला नहीं,,, पर फिर भी सब कुछ मेरे सामने था,,, यह कैसा दृश्य है ,,,मेरी समझ से परे,,,

,,,कौन निकालेगा मुझे इस दृश्य से,,, अपने दिमाग को मैंने शांत किया ,,,,और कुछ लंबी लंबी सांसे ली,,,,,

,,,मुझे वापस चल देना चाहिए,,, मेरी तबीयत ठीक नहीं,, पर यह हुआ कैसे,,,, मैं तो अच्छा भला था,,, और एकदम से मेरी तबीयत कैसे बिगड़ गई,,,, और मैं तेजी से नीचे की तरफ उतरने लगा ,,,,मुझे फिर से धुंध अपने में समेटने लगी थी ,,,,,पर जैसे ही मैं पीछे मुड़ता,,, सब कुछ साफ हो जाता ,,,कुछ भी नजर ना आता,,,,

,,,पर जैसे ही मैं सीधा नीचे की तरफ चलता,,, मुझे अपने शरीर के चारों तरफ एक दबाव सा महसूस होने लगता,, जैसे जैसे मैं नीचे आ रहा था,,, सूर्य का प्रकाश मुझे नजर आने लगा था,,, पेड़ों के पत्ते मुझे हिलते महसूस होने लगे थे ,,, पंछियों की आवाज मुझे सुनाई देने लगी थी,,,,

,,,,अरे यहां तो सब कुछ सामान्य ही है,, और अब मैं भी तो ठीक हूं ,,,मुझे क्या हुआ,,, कुछ भी नहीं ,,फिर ऊपर क्या हुआ था,,, कैसे मेरी तबीयत मिनटों के हिसाब से खराब हो गई थी,,,, मुझे चक्कर आने लगे थे ,,,ऐसा तो कभी नहीं हुवा,,,इन पहाड़ों से तो मेरा रोज का वास्ता है,,,,

,,,क्या करूं ,,,फिर से ऊपर जाऊं या अब घर को निकाल चलू,,, घर ही चल देना चाहिए,,, काफी समय बर्बाद हो चुका है ,,,,और इतना घूम चुका हूं,,, क्या यह कम हैं,, मेरी हिम्मत नहीं हुई थी ,,,अब वापस पहाड़ पर चढ़ने की,,, मैं अपने पहाड़ की तरफ चल दिया था,,,, जहां दूर मेरा घर मुझे नजर आ रहा था,,,,,,

क्रमशः


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