अंतिम सफर - (अंतिम भाग) Parveen Negi द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

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अंतिम सफर - (अंतिम भाग)

भाग -10


मैं तेजी से घर की तरफ बढ़ रहा था ,मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि ,क्या हो रहा था, पर अब गांव मेरे नजदीक आता जा रहा था ,,,


फिर से मेरी आंखें हैरानी से फैल गई थी, मुझे ऐसा लग रहा था ,जैसे मैं गांव के नजदीक नहीं ,गांव मेरे नजदीक आ रहा हो,,,


जो अभी तक मुझे बहुत दूर नजर आ रहा था, अब बिल्कुल करीब था ,मैंने अपने भीतर खुशी को महसूस किया था,,,,,


और फिर मैं भागते हुए, गांव के अंदर प्रवेश कर गया था, पर मुझे कोई भी गांव वाला दिखाई नहीं दे रहा था, शायद वे सब घर के अंदर थे,,,,


पर अब मुझे खुशी हो रही थी कि, मैं लौट आया हूं, मेरे कदम तेजी से अपने घर की तरफ बढ़ गए थे ,मुझे घर काफी नया लग रहा था ,ऐसा लग रहा था जैसे बहुत दिनों के बाद में, दूर से अपने घर लौटा हूं,,,,


और ऐसा मेरे साथ अक्सर होता था, जब मैं बाहर से कभी अपने घर लौटता था,,,,


मैंने अपनी घड़ी की तरफ देखा था, 12:00 बज रहे थे, मेरे घर की लाइट बंद थी,, मैं धीरे से गेट के पास आ खड़ा हुआ था ,,क्या करूं ,,घर वालों को बुलाऊँ या फिर दीवार कूदकर अंदर आँगन मैं चला जाऊं, यही ज्यादा ठीक रहेगा,


मैंने अगले ही पल दीवार के ऊपर से आंगन में कदम रख दिए थे ,,


और चुपके से छत पर स्थित अपने कमरे की तरफ बढ़ने लगा था,, मैं नहीं चाहता था कि मैं सबको नींद से जगा दूं,, पर तभी एक तरफ बरामदे में बैठा हमारा कुत्ता एकदम से खड़ा हो गया और उसने ऊंची आवाज में भोंकना शुरू कर दिया था ,,उसकी आवाज मुझे तीर की तरह चुभ रही थी,,,,,


मैं तेजी से उसकी तरफ भागा था,, और वह फिर पूछ खिला कर ,,मेरे पैरों पर लौटने लगा था,,,,,


कुत्ते की तेज आवाज की वजह से,, मैं जानता था घर के सदस्य उठ जाएंगे ,,और वहीं हुआ था,, घर की कमरों की लाइटें आन होनी शुरू हो गई थी,,,,,


खिड़की से मेरे घर के सदस्य ने कुत्ते की तरफ देखा था, और थोड़ी ऊंची आवाज में उसे धमकाया था, और शांति से बैठ जाने के लिए कहा था,,,,


""लगता है घर के सब लोग नाराज हैं ,,वाकई में नाराजगी की बात तो ही,, और फिर मैं सीधा अपने कमरे में चला गया था,, मुझे बहुत भूख लग रही थी, पर मैं नहीं चाहता था कि इस वक्त में भोजन के लिए किसी को परेशान करू,,,


अपने कमरे में आकर मुझे अब बेहद खुशी हो रही थी,, और मैं अपनी बाहें फैलाकर ,,उस खुशी का इजहार करने लगा था,,,,,


और फिर मैं अपनी कुर्सी पर बैठ गया था ,,खिड़की खुली हुई थी ,और उसमें से ठंडी हुआ अंदर आ रही थी,, मैं उठकर खिड़की के पास गया था ,,और अनंत अंधकार को देख रहा था,,,,


मुझे फिर वही पहाड़ी नजर आ रही थी ,,और उसमें चमकती रोशनीया मुझे अपनी तरफ खींच रही थी,,,,


""आज फिर में असफल होकर लौट आया ,,पर मुझे तो उस पर चढ़ना है ,,मैं कल अपनी पूरी ताकत लगा दूंगा, और उस पर चढ़कर रहूंगा, मुझे कोई नहीं हरा सकता है,,"


मैंने आंखें बंद करके खिड़की से आती, ठंडी हवा को अपने भीतर समेटना शुरू किया था ,,और इसी के साथ जाने क्यों मेरी आंखें अब खुलने का नाम ही नहीं ले रही थी ,,,वह इस तरह बंद हो गई थी ,,और मेरे सामने अब जाने कैसे चलचित्र घूमने लगे थे,,,,,,


उन्हें देखकर मैं आंखें खोलने की कोशिश करने लगा था,, पर अब मैं आंखें नहीं खोल पा रहा था , मेरे अंदर बेचैनी बढ़ती जा रही ,,और फिर मैं पीछे की तरफ हटकर कुर्सी पर आ बैठा था,, अपनी आंखों को अपने हाथों से खोलने की कोशिश करने लगा था,,,,


,,,पर नहीं मैं अपनी आंखें नहीं खोल पा रहा था ,,जाने क्यों इस तरह से बंद हो गई थी,,, मैं चिल्लाना चाह रहा था,,, पर कोई मेरी आवाज सुन रहा था या नहीं ,मुझ नहीं पता, क्योंकि कोई भी मेरी आवाज सुनकर नहीं आ रहा था,,,,


अकेले उस कमरे में ,,अकेले उस कुर्सी पर, बैठे मैं दहशत से भर उठा था ,,,,,


मेरा मष्तिक जाने कौन सी दुनिया को देखने लगा था ,,,,जहां एक तरफ आकाश में भयानक काले बादल घूम रहे थे ,,,तो दूसरी तरफ सफेद बादल,, जहां एक तरफ भयानक पक्षी विचरण कर रहे थे,, तो दूसरी तरफ मन को मोह लेने वाले,,,,,


एक तरफ जहां खून से भरी नदी, मेरी तरफ बड़ी चली आ रही थी,, तो दूसरी तरफ कंचन की तरह चमकता जल मुझे शीतलता देने चला रहा था,, एक तरफ जहां सूखी जमीन पर सुखा वन सूखा मरुस्थल नजर आ रहा था,, तो दूसरी तरफ फूलों की घाटियां और हरे-भरे लहराते वृक्ष,,, एक तरफ जहां काली धुंध हवा में तैर रही थी ,,तो दूसरी तरफ सफेद धुंध धूम रही थी,,,,,


मेरे हाथ अब कांपने लगे थे ,,कभी एक तरफ का शोर मुझे अपने में विलीन कर लेना चाहता था,, तो तभी दूसरी तरफ की शांति मुझे अपने में समेट लर सुखी बना देना चाहती थी,,,,,


पर मैं यह कहां भटक रहा हूं ,,मेरा मष्तिक मुझे कहां ले कर जा रहा है ,,,मैं किस द्वंद में उलझ गया हूं ,,जहां से मैं निकलना चाहता हूं ,,,,,पर निकल नहीं पा रहा हूं,,,,


अब मैं खुद को छोटे रूप में महसूस कर रहा था ,,,मैं खुद को एक बच्चे के रूप में देख रहा था ,,,मैं देख रहा था अपने आप को आगे बढ़ते हुवे,,, मैं देख रहा था अपने आप को अपनी अपनी पुरानी जिंदगी में,,,, मुझे नजर आ रहा था वह हर वक्त ,,जो मैंने अपने जीवन में जीया था,,


मुझे दिख रहा था अपने दोस्तों के साथ घूमना, मुझे दिख रहा था पशुओं के साथ खेतों में जाना,, मुझे दिख रहे थे अपने अपने वह खेत खलियान ,जहां मेरा बचपन बीता था,,, मुझे दिख रही थी हर वह जगह ,,जहां मैं गया था,,,


और यह सब इतनी तेजी से हो रहा था कि, मैं खुद को रोक नहीं पा रहा था ,,इतनी खुशी के अवसर मेरे आस-पास घूम रहे थे ,,वह शादियां मुझे दिख रही थी ,जहां मैं हद से ज्यादा नाचा था,, मुझे देख रहे थे वह लोग जो मुझे प्यार से बुलाते थे,,, और मेरी पीठ थपथपाते थे,,


मेरा जीवन तेजी से मेरे आगे से गुजरने लगा था,, और मैं अपने जीवन में लगातार, बड़ा होता जा रहा था,, मुझे दिख रहा था ज़मेरे पिता का मुझे समझाना ,जीवन के लक्ष्य को समझाना ,,मुझे दिख रहा था ,वह समय जब मैं सैकड़ों लड़कों को पीछे छोड़कर आगे निकल गया था,,,


मुझे दिख रहा था मेरा पूरा परिवार खुश था ,,मेरे भाई जो पूरे गांव में मिठाई बांट रहै थे,, मुझे दिख रहै थे वह लोग जो मुझे लगातार बधाइयां दे रहे थे,,,,


मैं चिल्ला कर आंखें खोल देना चाहता था,,, मैं नहीं देखना चाहता था इसके आगे का दृश्य ,,,पर मैं मजबूर था,,, मैं चाह कर भी अपनी आंखें नहीं खोल पा रहा था,,, मुझे जबरदस्ती वह दृश्य देखने पड़ रहै थे,,,,


नहीं मुझे कुछ नहीं देखना है,,, मैं चिल्ला पड़ा था ,,और खिड़की के पास आ गया था ,,


और फिर सूर्य की लाल किरणें,, मेरे चेहरे से टकराई थी, और मेरी आंखें एकदम से खुल गई थी,,,,,

मैंने राहत की सांस ली थी ,,मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई थी ,मैंने खुद को राहत देते हुए ,दोनों बाहों को फैला लिया था,,


और अब दूर मुझे फिर वही पहाड़ी नजर आने लगी थी, ""आज मैं तुम्हारे ऊपर चढ़कर दिखाऊंगा ,वादा है मेरा, बस थोड़ी देर सो लूं ,,फिर मैं आ रहा हूं,,,""


मैं तेजी से अपने बिस्तर पर लेट गया था,, और सोने की कोशिश करने लगा ,,मेरी आंख लग गई,, फिर पता नहीं कितना समय गुजर गया,,,,,


नींद में ही ,मेरे शरीर पर जाने कैसा दबाव पड़ने लगा था ,,और बेचैनी की वजह से मुझे उठ जाना पड़ा था,,,,


घर के बाहर बहुत शोर हो रहा था ,,""क्या बात है, लगता है बाहर गांव के लोग आए,, आखिर बात क्या है"",, मैं धीरे से कमरे से बाहर निकल आया ,,,एक तरफ पंडित जी बैठे हुए थे ,,और कर्मकांड में लगे हुए हैं,, मेरे परिवार के लोग वही उन्हीं के पास बैठे हुए थे,,,,,


किसी का भी ध्यान मुझ पर नहीं था,, गांव वाले भी एक तरफ बैठे,, अपनी ही बातों में उलझे हुए थे,,,,


""अच्छा है ,मुझे तो लगा था ,कहीं आज फिर मुझे देर से उठकर आने के लिए,,, पिताजी कहीं ढेर सारी बातें ना सुना दे ,,,,,


""मुझे भूख थी या नहीं मुझे नहीं पता ,,पर फिर भी मुझे भोजन दिया गया था,, और मैंने भी उस भोजन को बड़ी जल्दी ग्रहण कर लिया था,,,,


गांव वाले मेरी बाते करने लगे थे और मेरे कानों में मेरी उमर की भी बात पड़ रही थी कोई बीस तो कोई इकीस बोल रहा था,,,,मेरे चहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई थी,,,,


फिर हमारे घर में बंधी गाय तेजी से बाहर की तरफ भाग गई थी,,गांव के कई लड़के उसे पकड़ने के लिए पीछे गए थे,, मैं भी तेजी से उठकर उसके पीछे भाग पड़ा था ,,पर वह किसी के हाथ ही नहीं आ रही थी,,,,,


और मैं पीछा करते करते अब उसी पहाड़ी के पास आ पहुंचा था ,,,चलो अब यहां तक आ ही गया हूं तो ऊपर भी चढ़ ही जाता हुँ ,,,और आज मैं बिल्कुल नहीं ड़रूंगा चाहे कैसी भी मुसीबत आ जाए,,, मैं नीचे की तरफ नहीं आऊंगा,,, यह मेरा वादा है,,,,""


मेरे कदम फिर तेजी से ऊपर की तरफ बढ़ने लगे थे,और मेरी यह तेजी बढ़ती चली गई ,,जाने कौन सी उमंग और ताकत आज मुझे आगे बढ़ा कर ले जा रही थी ,,पल पल पहाड़ ऊंचा और ऊंचा होता जा रहा था,, पर मैं रुक नहीं रहा था,,मेरी जिद मुझे रुकने नहीं दे रही थी,,,,,,


मौसम बदलने लगा था ,,आकाश का रंग बदलने लगा था,,,ज़ हवाओं की रफ्तार बढ़ गई थी ,,सब कुछ जैसे मेरे खिलाफ हो रहा था ,,,पर जाने क्यों मैं आज इन सबसे बेपरवाह था,,,,,


मेरे कानों में पता नहीं कहां से मंत्रों के शोर सुनाई दे रहे थे,, मेरा जिस्म शीतल होने लगा था,,,


और इस शीतलता ने मेरे जिस्म को और भी रफ्तार में ला दिया था ,,,रफ्तार इतनी तेज हो गई थी कि मुझे लगने लगा था कि ,,क्या मैं वाकई में पहाड़ पर चढ़ रहा है या आकाश में ,,,और फिर एकदम से जाने कहां से ,,मैं सफेद बर्फ के पहाड़ों पर आ पहुंचा था,,,,,


फिर एक दम से मेरे सामने जाने कहां से एक सफेद धुंध प्रकट हुई थी ,,,और उसमें एक द्वार खुल गया था,,, उसके अंदर से एक बडे हाथ ने मुझे अपनी जकड़ में ले लिया था ,,,वह मुझे उस के अंदर खींचने लगा था


पर अब एक डर मेरे ऊपर हावी हो रहा था, मैं अब रुकना चाहता था, वापस भाग चलना चाहता था, पर अब कुछ नहीं हो सकता था,,,मुझे ऐसा लगने लगा था,,,


मैंने उस वक्त अपनी पूरी ताकत लगाकर चिल्लाना शुरू किया था ,,,,शायद मेरी आवाज मैं अपने घर तक पहुंचाना चाहता था,,,, ताकि कोई सुनकर यह जान जाए कि मैं यहां हूं,,,और वे मुझे बचाने आ जाए ,,,,


और इसी के साथ मेरी आंखों के सामने फिर दृश्य घूमने लगे थे,,,,, मेरी आंखें फैल गई थी,,,, इस बार वे बंद नहीं हुई थी ,,,,और मुझे खुली आंखों से अपने पिछले दृश्य दिखाई देने लगे थे,, पर इस वक्त मैं अपनी आंखों को बंद करना चाहता था,, मैं नहीं देखना चाहता था ,यह दृश्य ,पर अब फिर मैं मजबूर था,,,


बॉर्डर पर इस वक्त जबरदस्त गोलियां चल रही थी,, मेरी राइफल से निकली गोलियों ने उन आतंकियों को उड़ा दिया था ,और इसी के साथ बहुत से गर्म लोहे को मैंने अपने अंदर महसूस किया था ,मेरा बदन पीछे को उड़ता हुआ पेड़ से टकराया था ,,मेरी आंखें धीरे-धीरे बंद हो रही थी,,,,,


मैं फिर से चिल्लाने लगा,, मैं बाहर आ जाना चाहता था इस द्वार से,,, मैं निकल भागना चाहता था उस हाथ की पकड़ से ,,,वह हाथ जो मुझे द्वार के अंदर ले जा रहा था,,, मैंने अपनी समस्त ताकत लगा दी थी ,,उसके चंगुल से बाहर निकल आने की,,, पर मुझे लग रहा था ,,मेरी कोशिश व्यर्थ है,,,,


"मुझे मेरी दुनिया को घूमना था,,, हर उस जगह पर जाना था जहां मुझे जाना अच्छा लगता था,,,पर अब ऐसा कुछ नहीं हो सकता था,, मेरे साथ मेरी सब इच्छाएं अब इस द्वार के पीछे छूट जाने वाली थी,,, मैंने अंतिम बार इस दुनिया को निहारा था ,,,और फिर वह हाथ मुझे अंदर खींच ले गया,,, मेरे मुंह से मुझे छोड़ देने के लिये अंतिम चीख निकली थी ,,,और फिर दरवाजा बंद हो गया था ,,,,,,


समाप्त,,, समाप्त,,,