Antim Safar - 8 books and stories free download online pdf in Hindi

अंतिम सफर - 8

भाग -8

मैं इस वक्त पहाड़ों की तरफ चढ़ रहा हूं, और तभी मुझे एहसास हुआ था, कोई हवा का झोंका मुझे पहाड़ से नीचे गहरी खाई में धकेलने का प्रयास कर रहा है ,और मैं नीचे बैठ गया , फिर अगले ही क्षण एक गहरे डर ने मेरे दिमाग को अपने कब्जे में ले लिया था, जिसके कारण मेरी आंखें बंद हो गई थी,

पर अगले कुछ ही सेकंड में मैंने आंखों को खोल दिया था और सब कुछ मेरे आगे- पीछे समान नहीं नजर आ रहा था,,

"यह हो क्या रहा हैं, मुझे जो एहसास हुए हैं वह वास्तविक जैसे मुझे क्यों लग रहै है, मैंने अपनी बाजू से अपने माथे के पसीने को साफ किया था ,क्या मुझे अब आगे बढ़ना चाहिए या फिर वापस नीचे की तरफ उतर जाना चाहिए,

पर इसका फायदा क्या होगा ,इतनी ऊंचाई पर आकर में फिर उसी अनजाने डर से डर कर, नीचे की तरफ लौट जाऊं तो,

मैं अपनी जगह से खड़ा हो गया और आगे की तरफ जाने वाली टेडी- मेडी पगडंडी की तरफ देखने लगा था,

"कुछ भी तो नहीं है सब कुछ साफ ही तो है, और मैंने फिर से अपने कदम आगे बढ़ाए और इसी के साथ वह पगडंडी बिल्कुल किसी सांप की तरह लहराती हुईं आगे की तरफ विचरण करने लग गई ,जैसे मेरे आगे के रास्ते को लंबा करती जा रही हो ,और जिस का अंत शायद ही कभी हो,

मैं फिर से रुक गया था और अपनी आंखों को मसल कर सामने पगडंडी को देख रहा था, क्या वाकई में वह भी चल रही थी ,मेरे कदमों के साथ,,, हां वाकई में ,,मैंने उसे देखा, वह चल ही रही थी,

मेरे अंदर अब हिम्मत नहीं हो रही थी कि मैं आगे अपने कदम बढ़ाऊ ,मुझे यही से लौटना होगा ,कुछ तो है जो मुझसे वापस लौट जाने का डर दिखा रहा है, और फिर मेरे कदम वापस पीछे की तरफ मुड़ गए थे,,,,

फिर मैं तेजी से नीचे की तरफ उतरने लगा था ,तभी मुझे एहसास हुआ ,फिर से कोई मेरे पीछे आ गया हैं और मेरी रफ्तार के साथ वह भी मेरे साथ नीचे की तरफ उतरने लगा हैं,,,

"क्या मैं पीछे की तरफ मुड़ कर देख लू कि मेरे पीछे कौन है,, या फिर सीधा चलता रहूं ,,,

और फिर अगले ही क्षण में अपनी जगह पर रुक गया था, मुझे फिर से अपनी पीठ पर दबाव सा महसूस हुआ था, मैं तेजी से मुड़ने ही वाला था की उस हवा के दबाव से या फिर मेरे पीछे जो खड़ा था ,उसने मुझे नीचे गहरी खाई की तरफ धक्का दे दिया था,,,,

मेरा बदन तेजी से लहराया था और इसी के साथ में उस अत्यंत गहरी खाई की तरफ फिसलता चला गया था, मेरी आंखों के सामने से आसपास के दृश्य बहुत तेजी से गुजर रहे थे,, मैं अपने आप को संभालने की कोशिश कर रहा था पर सब व्यर्थ,,,,,

धरती बहुत तेजी से पीछे की तरफ भाग रही थी ,,या कहूं कि मेरी आंखों के आगे आ रही थी ,और फिर मैं इस वक्त हवा में सफर कर रहा था ,,पर यह सफर ऊपर की तरफ नहीं ,,नीचे की तरफ जाने के लिए हो रहा था,,,,

चेहरे पर हुए ठंडे स्पर्श ने, इस वक्त मेरी आंखों को खोल दिया था और मैं एकदम से उठ कर बैठ गया था,,,

""अरे मैं तो पहाड़ी से नीचे गिर गया "",और फिर मैं अपने आपको देखने लगा था,,"" सब कुछ ठीक ही तो है, क्या इतनी ऊंचाई से गिरकर भी मुझे कोई चोट नहीं लगी, मैं अपने चेहरे पर मुस्कान लाने ही वाला था कि ,तभी मुझे उस गहरी घाटी के डर ने फिर से अपने आप में समेट लिया था,,,

""इतना गहरा सन्नाटा" ,,,अकाश की तरफ देखने पर सूर्य की रोशनी और नीला आकाश मुझे नजर आ रहा था, पर इस पहाड़ियों के बीच में और इस अंधकार भरे तल पर आकर,, मुझे बेहद अंधकार का अनुभव होने लगा था,,,

चारों तरफ घने पेड़ लहरा रहे थे ,और वह जगह शीतलता जी सारी हदों को पार कर रही थी,,

पर इस सब के बावजूद भी अब मुझे प्यास लगने लगी थी, और फिर उस पतली सी जलधारा जिसके करीब मुझे होश आया था,, उसकी तरफ मेरा ध्यान गया था,

""कितना निर्मल और स्वच्छ पानी नजर आ रहा था, ऐसा लग रहा था जैसे चमकता हुआ कांच मेरे आगे पड़ा हो, छोटे छोटे पत्थर जो बिल्कुल हरी काई से लिपटे पड़े थे उसके अंदर बिल्कुल हरे रंग के चमकदार मणि की तरह लग रहे थे,

मैंने जल्दी से अपनी प्यास बुझाने के लिए अपने दोनों हाथों को उस जलधारा की तरफ बढ़ा दिया था और अपनी हथेलियों में पानी भरकर ,अपने होठों की तरफ ले आया था,,

पर यह क्या,, वह स्वच्छ जल जैसे ही मेरे मुंह के पास आया था, उसका रंग बदल चुका था, वह एकदम लाल नजर आने लगा था,,

मेरे हाथ से पानी एकदम छूट गया था और मैं पीछे की तरफ हट गया था, मेरा डर जो पहले ही मेरे बदन में बैठा हुआ था ,अब और भी बुरी तरह से मुझे डरा गया था,

"यह क्या था, मैंने तो पानी को उठाया था, फिर यह लाल क्या था मेरे हाथों में",

,मैं बड़े ध्यान से अब बहते हुए जल को देख रहा था ,और फिर दोबारा से मैं आगे बढ़ा था, मैंने फिर से जल को अपने हाथों में उठाया था, वह वैसे ही चमक रहा था, फिर जैसे ही मैं उसे अपने होठों के पास लाने को हुवा ,उस का रंग फिर से लाल नजर आने लगा,,,

अब मेरी हिम्मत जवाब दे गई थी, क्योंकि अब नदी का जल भी धीरे-धीरे लाल होता जा रहा था ,मेरी नजर ऊपर से बह कर आ रहे जल पर पड़ने लगी थी ,उसका रंग प्रतिपल लाल और गहरा लाल होता जा रहा था,

मेरी नजर घने पेड़ों के बीच से होती हुई, आपस में मिले उस संकरे पहाड़ के कोने की तरफ बढ़ गई थी ,जहां से उस जलधारा के आने का पता चल रहा था,, पर वहां का दृश्य देखकर मैं अपनी ही जगह पर जढ़ हो कर रह गया था,,

कई धुंध की आकृतिया, वहां पेड़ों से लटकी हुई थी, एक नहीं सैकड़ों के हिसाब से, और उन सब धुएं की तरह नजर आ रही आकृतियो के अंदर से, लाल खून बहकर नदी के जल में मिल रहा था,,,,

मेरी आंखें डर और दहशत से इतनी फैल चुकी थी कि, अब मुझे लगने लगा था, मेरी आंखें निकाल कर बाहर ना आ जाए,,,,,

क्रमश


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