अंतिम सफर - 2 Parveen Negi द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

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अंतिम सफर - 2

कहानी का भाग 2

मैं अपने दिमाग में एक बेहद गहरी और डरावनी तस्वीर को लेकर घर आ पहुंचा था । और घर के आंगन पर खड़ा होकर उसे पहाड़ की तरफ देखने लगा था ।जहां कुछ देर पहले में चढ़ने की कोशिश कर रहा था ।अपने घर के दरवाजे से दूर वहां देखना सुकून भरा था।

कुछ भी तो नहीं है वहां। फिर क्यों बेवजह में अपने दिमाग में इतनी परेशानी ले रहा हूं।। शायद ऊपर चढ़ते वक्त वाकई में मेरी तबीयत खराब हो गई हो ।और मुझे यह सब कुछ नजर का धोखा महसूस हो रहा हो।

आज जो कुछ हुआ था, मेरे लिए ,अजीब था ,और फिर मैं अपने घर के अंदर चला गया था ,हाथ मुंह धो कर मैंने दिन का खाना खाया और फिर आराम से बिस्तर पर लेट गया था,,

,,पर रह रहकर मुझे उस पहाड़ पर हुई घटना बार-बार आंखों के सामने दिखाई देने लगी थी ,मेरे बदन में सिहरन सी दौड़ने लगी थी ,,मुझे ऐसा लगने लगा था, जैसे वह धुंध अभी भी मुझे जकड़ने के लिए, उस पहाड़ से मेरे ही घर की तरफ बड़ी चली आ रही हो ,,,और बदन में यह अहसास होते ही ,,मैं तेजी से उठकर खिड़की के पास गया था ,,,और वहां से उस ऊंचे पहाड़ की तरफ देखने लगा था,

ध्यान से देखने पर, इस बार जाने क्यों मुझे वहां धुंध तैरती नजर आने लगी थी ,और पहली बार मुझे उस धुंध को देख कर थोड़ा अजीब सा डर सा लगा था,,,

,,पहाड़ों पर इस तरह धुंध का घूमना तो आम बात है ,फिर मैं क्यों धुंध को लेकर इतना टेंशन ले रहा हूं ,,उसे नॉर्मल मानकर मैं क्यों नहीं आराम से ,अपने बिस्तर पर थोड़ी देर सो जाऊं,,,,

मैं वापस अपने बिस्तर पर आ गया था ,और अब आराम से लेट गया जैसे तैसे मैंने अपनी आंखें बंद कर ली थी,, और सोने की कोशिश करने लगा था,,,

दिन का भोजन खाने के बाद, वैसे ही आलस आ जाता है, और फिर मुझे भी धीरे-धीरे नींद आ गई थी,,,

दूर वही पहाड़, मुझे नींद में दिखाई देने लगा था मेरे अवचेतन मन को,,, और वहां इस वक्त बिल्कुल अंधेरा था आकाश में तारे और चांद चमक रहा था ,,वैसे भी पहाड़ों पर चांद कुछ ज्यादा ही बड़ा और चमकदार नजर आता है,,, पर आज वह कुछ ज्यादा ही चमकीला नजर आ रहा था,,,

,मैं अपनी खिड़की पर खड़ा था और दूर अंधेरे को देख रहा था ,,,,तभी मुझे वहां एक बेहद बड़ी आकृति जो अग्नि की भांति चमक रही थी,, वहां घूमती दिखाई देने लगी थी,,,

मैं उस आकृति को देखकर एकदम से अपनी नींद से बाहर आ गया था,,,,,

मैंने अपनी आंखों को दोबारा बंद करके दो-तीन बार खोला था ,,,ताकि महसूस कर सकूँ कि यह दिन का वक्त है ना कि रात का,,,, मैं दिन का भोजन करके आराम से सो रहा हूं ना ,कि रात को सो रहा हूँ,,,,,

,,,यह हो क्या रहा है और क्यों हो रहा है, पहले वह पहाड़ी का दृश्य फिर मेरे साथ अजीब अजीब सी घटनाएं होना,, और अब रात के अंधकार में आकाश में उस विशाल चांद को देखना और पहाड़ पर उस आग के समान आकृति को,,, क्या था,,, यह सब

क्या मुझे बेवजह धोखा हो रहा है ,,क्योंकि मैं अपने अंदर एक डर को महसूस कर रहा हूं या फिर वाकई में कुछ है,, जो मुझे डराने की कोशिश कर रहा है,,,

मैं अपने कमरे से बाहर निकल आया था ,,दोपहर के 2:30 बज रहे थे,, परिवार के कुछ सदस्य सो रहे थे ,,तो कुछ अपने दैनिक काम कर रहे थे,,,

मेरी नजर उसी पहाड़ी पर टिकी हुई थी, और घर के आंगन मैं लगे पेड़ के नीचे बैठकर ,मैं उस पहाड़ी को ही देखने लगा था,,,,

,,मुझे ऐसा डर क्यों लग रहा है ,,जैसे वह पहाड़ी मुझे अपनी तरफ अभी खींच कर ले जाएगी,, और दुबारा से उसी धुंध के हाथों में सौंप देगी,, जो मुझे अपने में जकड़ लेना चाहती है,,,,,

,,पर मुझे तो वहां बिल्कुल शांति लग रही हैं,,कुछ भी तो नहीं है वहां इस वक्त ,,,तेज धूप की वजह से वह पहाड़ बिल्कुल साफ नजर आ रहा है,,,, कोई धुंध भी वहां तैर नहीं रही है,,,,,

बैठे-बैठे मैं उस पहाड़ी को एकटक नजरों से देखने लगा और ऐसे देखते ही देखते ,,मुझे जाने किस सम्मोहन ने घेर लिया था,,,,,

मुझे एहसास होने लगा,, उस पहाड़ी की तरफ उड़ने वाली छोटी चिड़िया और परिंदे ,अब एकदम से विशाल होते चले गए ,,और वह मुझे अपने पंजों में दबोचने ,,मेरे ही घर के आंगन की तरफ बढ़ने लगे हैं,,,,,

यह मुझे क्या हो रहा है,, मैं अपनी जगह से उठ जाना चाहता हूं,, पर उठ नहीं पा रहा हूं ,,,मैं अपने बदन को हिला तक नहीं पा रहा हुँ ,,मेरे अंदर घबराहट और बेचैनी बढ़ती जा रही है,,, सामने से आ रही उन विशाल पक्षियों की फौज ,,अब मुझे साफ नजर आने लगी थी ,,,वह बिल्कुल काली रात के काले पक्षी जैसे नजर आने लगे थे ,,,

और तभी मेरे परिवार के एक सदस्य ने मुझे आवाज दी थी,, कोई काम कर डालने के लिए ,,और मेरा ध्यान एकदम से टूट गया था ,,,सब कुछ समाप्त हो गया था ,,मुझे दूर से नजर आने वाले खतरनाक पक्षी अब हवा में ही गायब हो गए थे ,,,,वह पहाड़ी अभी भी धूप में वैसी ही नजर आ रही थी,,, जैसी हमेशा नजर आती है,,,

मेरा चेहरा पसीने से भर उठा था ,,जबकि मौसम अभी ठंडा ही था,, मैंने जल्दी से अपने चेहरे के पसीने को साफ किया था,, वरना कोई उस पसीने को मेरे चेहरे पर इस तरह बहते देख लेता तो ,,जाने कैसा महसूस करता,,,,

आखिर यह मुझे हो क्या रहा है,, मैं क्यों बार-बार इतना डर रहा हूं ,,,और यह तब से हो रहा है ,,,जब कुछ समय पहले मैं उस सामने वाली पहाड़ी की तरफ गया,, आखिर मुझे हुआ क्या है ,,और फिर से मेरे परिवार के सदस्य ने मुझे उसी काम को करने के लिए ,,थोड़ा चिल्ला कर कहा था,,,,,

फिर मैं जल्दी से ,,,मुझे बताए गए काम को करने में लग गया ,,,और फिर उसमें ऐसा व्यस्त हो गया कि समय और उस पहाड़ी को कुछ समय के लिए भूल ही गया,,,,,

क्रमशः