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किलकारी - भाग ७

अभी तक आपने पढ़ा अनाथाश्रम से गोद लेने के काग़ज़ मिलने के बाद पारस बहुत बेचैन था। उस पर राकेश अंकल के हार्ट अटैक से वह बहुत घबरा गया। उसके जाने के बाद मम्मी पापा जी का ख़्याल कौन रखेगा यह सोच कर उसने अमेरिका जाने का इरादा ही त्याग दिया।

पारस की इस तरह की बातें सुनकर विजय ने कहा, "अच्छा होम सिकनेस के शिकार हो रहे हो तुम? जाओ बेटा, धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा।"

"वहाँ तो सब ठीक हो जाएगा पापा जी लेकिन यहाँ? आप और माँ अकेले हो जाओगे। देखो कल रात ही राकेश अंकल . . . "

"अरे बेटा ऐसा सब मत सोचो।"

"क्यों ना सोचूँ पापाजी! जब मैं छोटा था मुझे आप लोगों की ज़रूरत थी। बचपन में आपकी उंगली पकड़ कर चला। जवानी में आपके साये के नीचे रहा। पता नहीं पापाजी मुझे लग रहा है आने वाले समय में आपको भी तो मेरी उंगली की ज़रूरत पड़ेगी और तब मैं अपना हाथ आप तक नहीं ला सकूँगा। इससे ज़्यादा दुःख की बात और क्या हो सकती है। सुख तो उसमें होगा कि आप मेरी तरफ़ हाथ बढ़ायें और मैं आपको बिना इंतज़ार करवाए अपना हाथ आपके हाथों तक पहुँचा दूँ। मुझे नहीं चाहिए इतनी दौलत जो मुझे मेरे परिवार से ही जुदा कर दे। मुझे नहीं चाहिए ऐसी ज़िन्दगी जिसमें आप और माँ ना हों।"

"बेटा तुम भावनाओं में बह रहे हो। कुछ नहीं होगा, दूसरे बच्चे भी तो जाते हैं ना।"

"जाते होंगे पापा जी, जो सुख आपके साथ यहाँ रहकर मुझे मिल सकता है, वह लाखों करोड़ों कमा कर वहाँ मुझे नहीं मिलेगा। मुझे उस सुख से यह सुख ज़्यादा प्यारा है, जिसका सुखद एहसास मुझे हमेशा होता रहेगा।"

"आते जाते रहोगे ना बेटा, क्यों इतने सुंदर भविष्य को छोड़ देना चाहते हो?"

"पापा जी यहाँ क्या कमी है। हमारे पास सब कुछ तो है और फिर छोटी की शादी भी तो करनी है। उसके लिए लड़का मैं ही तो पसंद करुँगा। यदि कल को कभी उसे मेरी ज़रूरत पड़ जाएगी, वह मुझे आवाज़ लगाएगी सात समंदर पार से। उस समय यदि मैं आ ना पाया तो. . .? मेरा यह फ़ैसला अंतिम फ़ैसला है पापाजी और मैं इसे हरगिज़ नहीं बदलूँगा।"

"पारस बेटा क्यों ग़लत ज़िद कर रहे हो," कहते हुए विजय ने अदिति को आवाज़ लगाई, "अदिति देखो ना पारस क्या कह रहा है?"

"मैंने सब सुन लिया है विजय। देखो वह बड़ा हो गया है, उसे जो सही लगता है वो ही करने दो। यह निर्णय उसका ही अंतिम निर्णय होगा। फिर भी बेटा मैं भी यही कहूँगी कि चले जाओ। हमारी वज़ह से तुम्हारे जीवन में ब्रेक लगे, हमें भी तो अच्छा नहीं लगेगा ना?"

"ब्रेक कहाँ लग रहा है माँ, यहाँ भी बहुत अच्छा भविष्य बन सकता है और वह भी अपने पूरे परिवार के साथ। थोड़ा पैसा कम भी हो तो क्या फ़र्क़ पड़ता है।"

अदिति और विजय के लाख समझाने के बाद भी पारस ने अपना फ़ैसला नहीं बदला।

विमला भी पारस के इस फ़ैसले को सुनकर ख़ुश थी। वह अब तक काफ़ी बूढ़ी हो चुकी थी और दीपक उन्हें छोड़कर हमेशा के लिए जा चुके थे।

जब छोटी को यह मालूम पड़ा वह तो ख़ुशी से उछल पड़ी और उसने पारस के गले लग कर कहा, "भैया यह तो बहुत ही अच्छा हुआ। तुम्हारे बिना अकेले रहना? मैं बहुत दुःखी थी, तुम्हें कुछ नहीं कह रही थी। अब जब यह पता चला कि तुम भी नहीं जाना चाहते तभी मैंने अपनी यह बात तुम्हें बताई। अब हम सदा यहीं साथ-साथ रहेंगे।"

"अरे पगली तू तो शादी करके भाग जाएगी मुझे छोड़कर।"

"नहीं मैं ऐसे लड़के के साथ शादी करुँगी जो इसी शहर में रहता हो।"

"ठीक है तो मैं इसी शहर में तेरे लिए तेरा हीरो ढूँढूँगा।"

रात में जब अदिति और विजय अपने कमरे में सोने के लिए गए तब विजय ने कहा, " अदिति आज मुझे वह दिन याद आ रहा है जब छोटे से, नन्हे पारस को हम घर ले आये थे और उसने तुम्हारी सूनी गोदी में लेट कर अपनी किलकारीयों से उसे भर दिया था। तुम्हारे आँचल में हँसता, खेलता, छुपता, छोटा-सा हमारा पारस ऐसे क़दम लेकर आया कि हमारा परिवार जो एक बेटी की कमी महसूस कर रहा था, वह इच्छा भी हमारी पूरी हो गई। हमारा परिवार उसके आने के बाद ही पूरा हुआ।"

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः

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