अभी तक आपने पढ़ा अदिति की अनुमति लेकर अनाथाश्रम से बच्चा गोद लेने का विजय के परिवार ने सामूहिक निर्णय ले लिया और चर्चा इस बात पर शुरू हो गई कि बेटा लें या बेटी।
अंततः इसी निर्णय पर सभी की मुहर लग गई कि बेटा लेकर आएँगे। दूसरे दिन सुबह नहा धोकर तैयार होकर अदिति और विजय अनाथाश्रम पहुँच गए। वहाँ का पूरा मुआयना करने के बाद वह बहुत से बच्चों से मिले जो थोड़े बड़े हो चुके थे।
अदिति ने विजय से कहा, "विजय मुझे ऐसा बच्चा चाहिए जिसे मैं अपनी गोदी में लिटा सकूँ। बोतल से उसे दूध पिला सकूँ।"
छोटे शिशु की तलाश में वह दोनों वहाँ से निकल गए। अपनी कार में बैठते हुए अदिति ने कहा, "विजय मैंने गूगल पर सर्च किया है। कुछ ही दूरी पर एक दूसरा अनाथाश्रम है जिसका नाम 'वारिस' है। चलो ना वहाँ चलते हैं।"
"ठीक है वहाँ भी चल कर देख लेते हैं, हो सकता है वहाँ हमें हमारा वारिस मिल जाए।"
'वारिस अनाथाश्रम' पहुँच कर उन्होंने रिसेप्शन पर अपनी एंट्री करवाई। अनाथाश्रम के नियम कानून बड़े ही सख्त होते हैं। कोई भी बिना इजाज़त के अंदर नहीं जा सकता। आख़िर बच्चों की सलामती का प्रश्न होता है। विजय अपने दस्तखत कर ही रहा था कि एक नवजात शिशु के रोने की आवाज़ उनके कानों में आई। अदिति उस तरफ़ देखने लगी जिस ओर से यह आवाज़ आ रही थी।
उसने पूछा, "मैडम यह आवाज़?"
"हाँ मिसेस अदिति यह हमारे यहाँ कल ही नया बालक आया है। मुश्किल से चार-पाँच दिन का ही होगा। कोई हमारे यहाँ रात को छोड़ गया था।"
"क्या मैं उसे देख सकती हूँ?"
"बिल्कुल देख सकती हैं। रमा जाओ इन्हें अंदर लेकर जाओ और इन्हें बच्चों से मिलवा दो।"
"जी मैडम जी, आइए मैडम आइए सर।"
"हाँ चलो," अदिति ने कहा।
वहाँ पहुँचते से जैसे ही अदिति ने उस बच्चे को देखा, उसके मुँह से अपने आप ही निकल गया, "विजय बस मुझे यही बच्चा चाहिए। मुझे और कुछ नहीं देखना है।"
"ठीक है अदिति जैसी तुम्हारी इच्छा।"
उसके बाद उन्होंने वहाँ की संचालिका से बात की। विजय ने कहा, "मैडम हमें यह बच्चा चाहिए।"
संचालिका ने कहा, "यह बच्चा कल ही आया है। हमें 15-20 दिन लग जाएँगे, इसे आपको देने में।"
"हाँ ठीक है, आप अपनी तरफ़ से पूरी कार्यवाही कर लीजिए। हमें क्या-क्या करना है वह भी बता दीजिए?"
"हाँ-हाँ आप यह फॉर्म भर दीजिए और नीचे आप दोनों को हस्ताक्षर करने होंगे।"
"जी ठीक है"
सभी औपचारिकतायें पूरी होने के बाद अदिति ने पूछा, " क्या मैं हर रोज़ मेरे बच्चे से मिलने आ सकती हूँ?"
"देखिए अदिति जी हमें उससे कोई एतराज नहीं है। बस हम 15 दिन इसलिए कह रहे हैं ताकि कहीं कोई अपना बच्चा कह कर, इसे लेने ना आ जाए। वरना आपको ज़्यादा तकलीफ़ होगी।"
माथे पर आई शिकन को नज़रअंदाज करते हुए अदिति ने कहा, "नहीं-नहीं प्लीज़ आप मुझे अनुमति दे दीजिए।"
"ठीक है आपकी इतनी ज़्यादा इच्छा है तो आप आ सकती हैं। मैं तो सिर्फ़ इसलिए कह रही थी कि कहीं आपको बाद में दुःख ना हो।"
"कुछ नहीं होगा, यदि लेना होता तो कोई उसे इस तरह छोड़ता ही क्यों?"
ख़ैर 20 दिन निकल गए और बच्चा अदिति और विजय को सौंप दिया गया।
अदिति ने प्यार के साथ उस बच्चे को उठाकर अपनी बाँहों में समेट लिया। इस समय उसे ऐसी अनुभूति हो रही थी मानो उसकी झोली में भगवान ने दुनिया भर की सारी ख़ुशियाँ बटोर कर डाल दी हों। प्यार उमड़-उमड़ कर आ रहा था। उसे ऐसा लग रहा था कि वह उस बच्चे को अपने आँचल में छिपा कर दूध से लगा ले। चाहे कोई कितना भी प्यार कर ले किंतु भगवान ने यह वरदान सिर्फ़ जन्म देने वाली माँ को ही दिया है। फिर भी वह बहुत ख़ुश थी । बच्चे के माथे को चूमते हुए उसने कहा, "देखो विजय कितना प्यारा है। इसे गोदी से नीचे उतारने का मन ही नहीं कर रहा।"
"रखो अदिति गोदी में रखो, तुम्हारा ही है ना यह। नाम क्या रखना है इसका?"
"घर चल कर माँ और पापा जी के साथ नाम सोचेंगे।"
"ठीक है"
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः