सचमुच की लघुकथाएं Prabodh Kumar Govil द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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सचमुच की लघुकथाएं

"अंगारे और सितारे"
जब दुनिया अच्छी तरह बन गई तो सब काम सलीके से शुरू हो गए।घर घर रोटी बनने लगी।
जहां घर नहीं थे, वहां भी रोटी बनती। पेड़ के नीचे, सड़क के किनारे,दो ईंट पत्थर जोड़ कर उनके बीच अंगारे दहकाये जाते,और रोटी बनती।
चूल्हे मिट्टी के हों, लोहे के हों या पत्थर के, रोटी बनती।
धुआं हो, लपटें हों,या आंच हो,रोटी बनती।
लकड़ी, कोयला, गैस,तेल,या कुछ भी जलता और उस पर रोटी बनती।
औरतें रोटी बनातीं। लड़कियां रोटी बनातीं, वृद्धाएं रोटी बनातीं।
भूखे बच्चे या उतावले बूढ़े थाली लेकर सामने बैठ जाते और रोटी बनती।
झोंपड़ी हो,घर हो,कोठी हो,बंगला हो,या महल हो,रोटी बनती।
छोटा घर हो तो परिजनों के लिए रोटी बनती, बड़ा घर हो तो परिजनों, नौकर चाकरों, कुत्ते बिल्लियों, भिखारियों के लिए रोटी बनती।
साधारण घर हो तो औरतें चूल्हा फूंकते हुए आंखें लाल करके रोटी बनातीं, ऊंचा घर हो तो होठ लाल रंग के रोटी बनातीं।
बेटी ,बहन,भाभी,बहू, मां, चाची, ताई रोटी बनातीं, दादी या नानी रोटी बनातीं।
स्त्री अपने घर रोटी बनाती, फ़िर पराए घर जाकर रोटी बनाती।
पहले बच्ची टेढ़ी मेढी रोटी बनाती, फ़िर जब रोटी गोल बनने लग जाती तो बच्ची महिला बन जाती।
तब वह पहले पिता के लिए, फ़िर भाई के लिए, फ़िर ससुर के लिए, फ़िर पति के लिए रोटी बनाती।
मां रोटी बनाना सिखाती, सास रोटी न फूलने पर जली कटी सुनाती,पर रोटी बनती।
अगर पति पत्नी दोनों काम करते तो मर्द घर आकर बीड़ी पीता, या टी वी पर मैच देखता,और औरत रोटी बनाती।
आग,औरत,और रोटी का संबंध कभी न टूटता,रोटी हर हाल में बनती।
घर वाले बीमार हों तो रूखी रोटी बनती, स्वस्थ हों तो घी वाली रोटी बनती।
फ़िर इन्कलाब आया।
औरत ने कहा,केवल मैं ही क्यों, आदमी भी तो रोटी बनाए !
आसमान फट पड़ा। तारे ज़मीन पर आ गए। रसोइयों को स्टार मिलने लगे- एक स्टार,दो स्टार, फाइव स्टार...!
बिरयानी, चाउमीन, बर्गर, पिज़्ज़ा आदि आदि बनने लगे। रोटी से लड़ने को कमर कसी गई।
दवा से भूख को रोकने के जतन होने लगे।
मशीन से रोटी बनने लगी, रोटी बनाने वाले रोबोट ढूंढे जाने लगे।
रोटी को महीनों तक खराब न होने देने वाली मशीन बनने लगी।
और इस तरह अंगारों और सितारों में जंग होने लगी।
"दो रुपए का बाट"
घर पास ही था,मधु प्रणव से बोली- चल रिक्शा कर लेते हैं,खड़ा भी है सामने!
- इतनी सी दूर के पंद्रह रुपए? मधु ने उलाहने के स्वर में कहा। - बारह देंगे...कहते कहते उसके जवाब का इंतजार किए बगैर अब दोनों रिक्शा में सवार थे।
लालबत्ती पर भारी ट्रैफिक में फंसा रिक्शा रुका, तो प्रणव ने कहा- हे भगवान, ऐसे तूफानी ट्रैफिक में रिक्शा चलाते ही क्यों हैं लोग?
उसकी बात का जवाब मधु की जगह खुद रिक्शावाले ने दिया, बोला - सरकार ने रोज़गार मुहैया कराने के नाम पर दिया है, आप लोग समझते हैं कि सरकार आरक्षण देकर हमें अफ़सर ही बनाती है...
हरीबत्ती होते ही कान फोड़ू भौंपुओं में उसकी आवाज़ दब कर रह गई।
मधु ने उतरते ही अपना पर्स टटोला और दस का सिक्का पकड़ाते हुए बोली - अब दो रुपया छुट्टा कहां होगा, रख लो यही।
रिक्शा वाला एकाएक गरम हुआ। बोल पड़ा - छुट्टा मैं देता हूं, निकालो क्या है, बीस, पचास, सौ ...?
- बाप रे ! देखे इन लोगों के तेवर? सरकार और मुफ्त बांट - बांट कर इन्हें सिर चढ़ा रही है। देखो कितनी बदतमीजी से बोल रहा है। छह हज़ार की तो साड़ी पहन रखी है मैंने, ज़रा भी लिहाज़ नहीं है...
प्रणव ने मन में कहा छह हज़ार की साड़ी पर उसके दो रुपए का बाट रखा है न, इसलिए लहरा नहीं पाई।
रिक्शा वाला पचास रुपए का छुट्टा गिन कर दे रहा था।
"लोग पत्थर फेंकते हैं "

एक नन्हे से पिल्ले ने,जिसने अभी कुछ महीने पहले ही दुनिया देखी थी,अपनी माँ से जाकर कहा-"लोग पत्थर फेंकते हैं".
कुतिया क्रोध से तमतमा गई. बोली- उन्हें मेरे सामने आने दे, तेज़ दांतों से काट कर पैर चीर कर रख दूँगी. तू वहां मत जा, यहीं खेल. वे होते ही शरारती हैं.
पिल्ला अचम्भे से बोला- ओह माँ, तुम कैसे सोचती हो? मैं तो गली के नुक्कड़ पर घूमने गया था. वहां मजदूर लड़के ट्रक से पत्थर खाली कर रहे हैं. वे पत्थर उठा-उठा कर नीचे सड़क पर फेंकते हैं. मैं तो खड़ा-खड़ा उनका पसीना देख रहा था. अब हमारी सड़क भी पक्की बन जाएगी.
कुतिया ने इधर-उधर देखा और झुक कर पैर से कान खुजाने लगी.
"वास्तविकता"
दो बच्चे एक पेड़ के नीचे पड़े मिट्टी के ढेर में खेल रहे थे। कभी वे कोई घर जैसी इमारत बना लेते तो कभी उसे तोड़कर मिट्टी की गाड़ी बना लेते। जल्दी ही दोनों ऊब गए। पर शाम का धुंधलका अभी हुआ नहीं था,इसलिए इतनी जल्दी वे घर लौटने को भी तैयार नहीं थे दोनों।
तभी उधर से एक बूढ़ा फ़कीर आ निकला। वह बेहद अशक्त और कृशकाय था। उससे ठीक से चला भी न जाता था। बच्चे बहुत ध्यान से उसे देखने लगे। बच्चों को प्यार से देखता हुआ वो उस ओर ही आने लगा।
बच्चे पहले तो कौतूहल से देखते रहे किन्तु कुछ नज़दीक आने पर उन्होंने देखा कि फ़कीर की शक्ल खासी डरावनी है। बच्चे कुछ भयभीत हुए,पर इतने जर्जर बूढ़े से खौफ खाने की कोई वजह नहीं थी।
बूढ़ा लड़खड़ाता हुआ उनके पास ही आ बैठा। उसका दम भी कुछ फूलता सा लगता था। सांस तेज़ी से चल रही थी।
उसे अपनी तुलना में बिल्कुल निरीह पाकर बच्चों का हौसला बढ़ा।एक बच्चा बोला- बाबा, आप बहुत थके से लगते हो,हम आपके लिए कुछ खाने पीने का सामान लाएं?
बाबा ने उत्तर दिया- बेटा मुझे ज़िन्दगी में जो भी खाना पीना था वो मैं खा चुका,अब तो तुम मुझ पर एक उपकार कर दो,जिस मिट्टी के ढेर में तुम खेल रहे हो, उसी में मेरी एक मूरत बना दो।
- क्यों बाबा, उससे क्या होगा? बच्चों ने उत्सुकता से पूछा।
- बेटा जब मैं दुनिया में नहीं रहूंगा तो इधर से गुजरता हुआ कोई टीवी वाला मेरी तस्वीर खींच लेगा,और जब वो फोटो टीवी पर दिखा देगा तो मेरे सभी जानने वालों को कम से कम ये तो पता चलेगा कि मैं अब इस दुनिया में नहीं रहा।
- ठीक है बाबा, कह कर एक बच्चा किसी आज्ञाकारी शिष्य की तरह मिट्टी से बाबा का बुत बनाने में जुट गया।
दूसरा बच्चा भी उसकी नकल करता हुआ मूरत बनाने लगा।
बाबा ने आश्चर्य मिश्रित खुशी से कहा - ओह,तुम भी बना रहे हो, तो मेरे दो दो बुत!
- नहीं बाबा, मैं तो एक खूबसूरत लड़की की मूर्ति बना रहा हूं। दूसरा बच्चा बोला।
- क्यों? बाबा हैरान था।
- इसे आपकी मूर्ति के पास रख देंगे। बच्चा बोला।
- मगर किसलिए? बाबा बोला।
- अरे,तभी तो कोई कैमरे वाला आपकी तरफ़ देखेगा, नहीं तो कौन ध्यान देगा ! बच्चे ने लापरवाही से कहा।
"निष्कर्ष"
एक बड़े नेता ने अपने राज्य में शराब बंदी करवाने से पूर्व लोगों की राय जानने की इच्छा जाहिर की, कि आखिर लोग शराब क्यों पीते हैं।
उन्होंने कुछ शोधकर्ताओं को इस काम के लिए भेजा । वो एक मयखाने में जाकर वहां बैठे लोगों से ये सवाल पूछने लगे कि आप शराब क्यों पीते हैं?
सवाल एक था,पर जवाब अलग अलग मिले-
एक ने कहा,शराब पीकर मैं वही हो जाता हूं जो मैं वास्तव में हूं।
दूसरा बोला- शराब पीकर मुझे लगता है कि मैं बदल गया।
तीसरे ने बताया- शराब मुझे उसकी याद दिलाती है,जो मैंने खो दिया।
चौथे का उत्तर था,शराब उसे भुला देती है जो अब मेरा नहीं है।
पांचवे ने कहा- शराब मेरा नशा उतार देती है।
छठा कहने लगा- शराब से मेरी थकान उतर जाती है।
सातवें ने उत्तर दिया कि शराब पीकर मुझे लगता है,जैसे गालिब, मीर, खैयाम, बच्चन सब मेरी ही बात कर रहे हैं।
जब शोधकर्ताओं ने जाकर नेताजी को सब बताया तो उन्होंने अपने दफ़्तर पहुंच कर दो कागज़ों पर हस्ताक्षर किए - एक राज्य में शराब बंदी लागू करने का आदेश था, दूसरे में उन नए आवेदकों के नाम थे जिन्हें शराब के ठेके दिए गए थे।
"घेराव"
उनकी उम्र अट्ठासी को पार कर रही थी। दैनिक कार्यों के अलावा बिस्तर पर ही रहते। थोड़ी लिखा -पढ़ी और देखभाल के लिए डॉक्टर बेटे ने उनके लिए एक सहायक रख छोड़ा था जो सुबह शाम अा जाता।
वे खाना खाकर लेटे ही थे कि सहायक लड़के ने कहा- बाउजी !
- क्या है ? वे बोले। आवाज़ में अब भी दमखम था।
- फ़ोन आया था... लड़के ने कहा।
- फ़ोन तो दिनभर बजता ही रहता है, उठा के रख दिया कर चोंगा, माथा भिन्ना जाता है। वे बुदबुदाए।
- जी, वो वर्माजी का था। लड़के ने किसी अपराधी की तरह कहा।
- उसे और काम ही क्या है, दिनभर फ़ोन पर ही टंगा रहता है। उन्होंने उपेक्षा से पैर फैलाए।
- जी वो कह रहे थे कि वो आपका सम्मान करेंगे अपने कार्यक्रम में... लड़के ने जैसे डरते हुए कहा।
- क्या !!! मेरा सम्मान? उनके चेहरे पर से जैसे कोई लहर गुज़र गई। वे उठकर अधलेटे से हो गए।
-जी वो शाम को आयेंगे। लड़का अब कुछ संतुष्ट सा बोला।
- पूछ - पूछ, ये भी बेचारा अच्छे कामों में लगा ही रहता है। वो भूल - भाल जाएगा। तू फ़ोन कर उसे। ऐसा कर, उसे खाने पे बुला ले शाम को! वे चहके।
-जी,कह कर लड़का फ़ोन मिलाने लगा।
-सुन, रबड़ी - जलेबी तू बाज़ार से ले आना, पूड़ी - कचौड़ी ये बना लेगी घर में, कहदे उससे जाकर। वे जैसे किसी तैयारी में व्यस्त हो गए।
-जी, कह दूंगा माताजी से...
- अरे अभी कह दे जाकर, वरना वो चार बजे से ही खिचड़ी बना कर बैठ जाएगी टीवी के सामने। उन्होंने अधीर होकर कहा।
लड़का जाने लगा। पीछे से फ़िर उनकी आवाज़ आई- सुन, उसे शॉल तू दिलवा देना, खादी भंडार से, वरना वो कटले से उठा लाएगा सस्ता सा।
लड़के ने मानो उन्हें घूर कर देखा। वे सकपका गए, बोले- अरे वो कंजूस है न थोड़ा !
लड़का जाने लगा। तभी पीछे से वे फ़िर बोले- सुन, फ़ोटो है मेरी !
-क्यों ? लड़का जाते - जाते रुक गया।
-अरे अख़बार में देनी पड़ेगी न, खबर के साथ...
जी, ढूंढ लूंगा, लड़का लापरवाही से बोला।
- देख ले, अब तेरी ज़िम्मेदारी है उसे घेरने की ! उन्होंने मानो बॉल लड़के के पाले में फेंकते हुए कहा।
"पैरों पर खड़े श्रमिक"
एक बार सुदूर गांव के एक दुरूह से खेत पर एक वृद्ध औरत काम कर रही थी।
वह सुबह जब खेत पर आई थी तो उसने भिनसारे ही अपने चौदह साल के लड़के को यह कह कर घर से प्रस्थान किया कि वह जल्दी जा रही है क्योंकि खेत पर बहुत काम है।
लड़के ने उसके चले जाने के बाद नहा- धोकर चूल्हे पर रोटी बनाई और एक कपड़े की पोटली में चार मोटी रोटी अपने लिए तथा दो रोटी अपनी मां के लिए लेकर वह खेत की ओर चल पड़ा।
जब वह खेत पर पहुंचा तो उसने देखा कि उसकी मां ने धूप में पसीना बहाते हुए गोबर के उन सब उपलों के ढेर को उठा कर किनारे के बबूल के पेड़ के नीचे जमा कर दिया है जिन्हें वह कल उसी पेड़ के नीचे से उठा कर खाद के रूप में पूरे खेत में फ़ैला कर गया था। उसे मां पर क्रोध आया जिसने उसकी सारी मेहनत पर पानी फेर दिया था।
वह बाल्टी उठा कर पीने का पानी भर लाने के लिए पास के कुएं पर चला गया।
कुएं की जगत पर उसने कपड़े की एक पोटली टंगी देखी जिसमें सुबह - सुबह सूर्योदय से भी पहले उठ कर मां द्वारा बनाई गई रोटियां थीं।
मां ने उससे पूछा कि क्या वह उन रोटियों को खा आया है,जो मां ने सुबह उसके लिए बना कर रसोई के छींके पर टांग दी थीं?
लड़के के पास किसी गाबदू की तरह मां को देखे जाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था, क्योंकि उसने दोबारा रोटी बना कर मां की सारी मेहनत पर पानी फेर दिया था।
एक दूसरे से नाराज़ होकर शब्दों के मितव्ययी मां - बेटा अब एक साथ बैठ कर प्याज़ और रोटी खा रहे थे।
"हमला"
जंगल में चोरी छिपे लकड़ी काटने गया एक आदमी रास्ता भटक गया। काफ़ी कोशिशें कीं, किन्तु उसे राह नहीं मिली। मजबूरन उसे कुछ दिन जंगल में ही काटने पड़े।

खाने को जंगली फल मिल जाते थे, पीने को झरनों का पानी, काम कोई था नहीं, अतः वह दिन भर इधर उधर भटकता।

एक दिन एक पेड़ के तने से पीठ टिकाए बैठा वह आराम से सामने टीले पर उछल कूद करते चूहों को देख रहा था कि अचानक उसे कुछ सूझा।वह कुछ दूरी पर घास खा रहे खरगोशों के पास पहुंचा और उनसे बोला - तुम्हें पता है वो सामने वाला टीला वर्षों पूर्व तुम्हारे पूर्वजों का था। एक रात चूहों ने उस पर हमला करके धोखे से तुम्हारे पूर्वजों को भगा दिया और उस पर कब्ज़ा कर लिया।

खरगोश सोच में पड़ गए।एक खरगोश ने कहा- क्या फ़र्क पड़ता है,अब हम यहां आ गए।

आदमी बोला- ऐसे ही चलता रहा तो वे तुम्हें यहां से भी खदेड़ देंगे।और तब तुम्हारे पास दर दर भटकने के अलावा और कोई चारा नहीं रहेगा।

- तो हम क्या करें? एक भयभीत खरगोश ने कहा।

- करना क्या है,तुम उनसे ज़्यादा ताकतवर हो, उन्हें वहां से भगा दो और अपनी जगह वापस लो। आदमी ने सलाह दी।

खरगोशों ने उसी रात हमले की योजना बना डाली।

उधर शाम ढले आदमी चूहों के पास गया और बोला- मैंने आज खरगोशों की बातें छिप कर सुनी हैं,वे तुम्हें यहां से मार भगाने की योजना बना रहे हैं।

- मगर क्यों? हमने उनका क्या बिगाड़ा है? एक चूहा बोला।

- मैं क्या जानूं,मगर मैंने तुम्हें सचेत कर दिया है।तुम पहले ही उन पर हमला कर दो,चाहो तो मेरे ठिकाने से थोड़ी आग लेलो, मैं तो खाना पका ही चुका हूं।उनकी बस्ती में घास ही घास है, ज़रा सी आग से लपटें उठने लगेंगी।कह कर आदमी नदी किनारे टहलने चला गया।

रात को चूहों और खरगोशों के चीखने चिल्लाने के बीच जंगल में भयानक आग लगी,जिसकी लपटें दूर दूर तक दिखाई दीं।

संयोग से आग के उजाले में आदमी को अपना रास्ता दिखाई दे गया।वह अपने गांव लौट गया।मगर वहां जाकर उसने देखा कि उसके घरवालों ने उसके गुम हो जाने की रपट लिखा दी थी।अब उसके दिखाई देते ही सैकड़ों कैमरे उसके पीछे लग गए और उसकी तस्वीरें धड़ाधड़ अखबारों में छपने लगीं।वह देखते देखते लोगों के बीच लोकप्रिय हो गया।

तभी देश में आम चुनाव की घोषणा हो गई और अनुभवी आला कमान ने तय किया कि लोकप्रिय चेहरों को मैदान में उतारा जाएगा।
"एक शहर था"
शहर में दो तालाब थे, एक बीचों बीच स्थित था और दूसरा नगर के एक बाहरी किनारे पर। दोनों ही वर्षा पर अवलंबित थे। कभी लबालब भर जाते, कभी रीते रह जाते।
एक दिन शहर के शासक के पास एक व्यक्ति मिलने पहुंचा। वह शासक से बोला - यदि आप शहर में दो की जगह एक ही सरोवर रहने दें तो सबको लाभ ही लाभ हो जाएगा।
- वो कैसे? शासक ने पूछा।
उस व्यक्ति ने समझाया- दोनों तालाब उथले और कम भरे हुए रहने से जल्दी सूख जाते हैं। आप एक तालाब से मिट्टी लेकर दूसरे को समतल करा दें। गहरा होने पर तालाब में खूब पानी भरेगा। दूसरी जगह समतल होने पर वहां प्लॉट्स बनाइए, लाभ ही लाभ। मिट्टी खोद कर दूसरी जगह ले जाने पर मजदूरों- ठेकेदारों को लाभ। पानी को पाइप लाइन से ले जाने पर इंजीनियर से लेकर लेबर तक को लाभ। रोज़गार के प्रचुर साधन होने से चारों तरफ ख़ुशी की लहर दौड़ गई।
काम आरंभ हो गया। सचमुच शहर में विकास की हलचल और राजकोष में धन की आमद दिखाई देने लगी।
शहर के कवि उन्नति का गान करने लगे, बुद्धिजीवी वाह वाह करने लगे!
लेकिन तभी आकाशवाणी हुई कि कविगण सत्ता को न सराहें,ये पतन और चाटुकारिता की निशानी है।
कवि तत्काल सतर्क हो गए, उन्होंने तुरंत ख़िलाफत का मोर्चा संभाल लिया। वे अब गहरे हुए तालाब के बोझ पर कविता लिखते... समतल हुए तालाब के विलोप पर ग़ज़ल गाते... मिट्टी ढोते श्रमिक के पसीने पर छंद कहते...धनी होते जा रहे इंजीनियर और ठेकेदारों की अमानुषिकता पर गीत रचते...शासक की क्रूरता पर मुक्तक सुनाते... क्रांति से दुनिया बदल डालने का आह्वान करते!
"एक सवाल"
चार बुज़ुर्ग लोग एक बगीचे में टहलते बातें करते,एक दूसरे की कहते सुनते चले जा रहे थे। उनका ध्यान बंटा तब,जब एक किशोर वय के बच्चे ने उन्हें नमस्कार किया।
चारों ने ही जवाब तो दे दिया पर वे उसे पहचाने नहीं थे। सभी ने ये सोचकर उसके अभिवादन का प्रत्युत्तर दे दिया, कि वह उनमें से किसी का परिचित होगा।
लड़का रुका और बोला - मैं आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूं।पर मेरा आग्रह है कि आप सब मुझे एक एक मिनट का समय अलग अलग दें, ताकि मैं आपके मौलिक जवाब अलग अलग ही जान सकूं।
वे सहर्ष तैयार हो गए।
लड़के ने उन्हें बारी बारी से एक ओर ले जा कर सवाल किया, आप इस दुनिया में क्यों अाए हैं?
सभी उम्र दराज थे,पर ऐसा किसी ने भी कभी सोचा न था। साथ ही, बच्चे को कोई सारगर्भित जवाब देने की इच्छा भी थी।
पहले ने कहा - मुझे ईश्वर ने भेजा है।
दूसरा बोला - माता पिता की इच्छा के कारण मेरा जन्म हुआ।
तीसरे का उत्तर था - अपने देश की सेवा करने को मैंने जन्म लिया।
चौथा कहने लगा- मेरे भाग्य में जीवन सुख था।
बच्चे ने सभी को धन्यवाद दिया और जाने लगा।
लेकिन उन चारों ने ही महसूस किया कि बच्चा उनकी बात से ख़ुश नहीं है,क्योंकि वह कुछ परेशान सा दिख रहा था।
वे बोले- बेटा,तुम ये तो बताओ, कि ये गूढ़ प्रश्न तुमने क्यों किया,और अब तुम इतने दुःखी से क्यों हो?
बच्चा बोला- मुझे तो अपने होमवर्क में इस प्रश्न का उत्तर लिखना था,पर पार्क बंद होने का समय हो गया, अब चौकीदार ताला लगा कर चला गया होगा।आप सबको ऊंची दीवार कूद कर वापस जाना होगा।
वे चारों हड़बड़ा कर दरवाज़े की ओर दौड़े। पीछे से बच्चे की आवाज़ आई- अंकल, संभल कर जाना, बाहर मेरा कुत्ता शेरू होगा।
"सत्ता और लोग"
एक बूढ़ा सड़क के किनारे बैठा ज़ोर - ज़ोर से रो रहा था।
आते जाते लोग कौतूहल से उधर देखते थे। कुछ लोग इतने उम्रदराज इंसान को इस तरह रोते देख पिघल भी जाते थे,और रुक कर पूछते - बाबा क्या हुआ?
लोगों की संवेदना देख बूढ़ा बोला - ज़िन्दगी केवल एक बार मिलती है, मुझे भी मिली,पर मैं इस ज़िन्दगी में कुछ भी नहीं कर पाया।
कह कर वह फ़िर दहाड़ें मारने लगा।
लोग हैरान रह गए। एक युवक ने धीरे से उससे पूछा - पर तुम ज़िन्दगी में ऐसा क्या करना चाहते थे जो तुमने नहीं किया?
बूढ़ा आंखें पौंछते हुए बोला - न मैंने कभी ढंग का खाया, न ढंग का पहना, न कहीं घूमा फिरा... कहते कहते उसकी हिचकियां फ़िर बंध गईं।
लोग चले गए।
कुछ देर बाद वहां एक आदमी आया और एक ढकी हुई थाली रखते हुए बोला - लो बाबा, इसमें थोड़ा सा गरम खाना है, खालो।
वह आदमी पलटा ही था कि एक युवक वहां आया और एक पोटली बूढ़े के सामने रखते हुए बोला - देखो, इसमें एक नया कुर्ता पायजामा है,तुम इसे पहन लेना।
बूढ़ा हैरत से अपनी फटी पुरानी लंगोटी को देख ही रहा था कि एक नवयुवक ने साइकिल से उतरते हुए अपनी साइकिल वहां खड़ी की, और बोला - लो बाबा,तुम्हें जहां कहीं भी घूमना फिरना हो, ये साइकिल ले जाना।
बूढ़ा गदगद हो कर देख ही रहा था कि तभी एक वैन तेज़ी से आकर वहां रुकी जिसमें से एक वर्दीधारी गार्ड उतरा।
भीड़ देख कर वह बोला - हटो हटो,एक आदमी भाग कर इस तरफ आ गया है, हम उसे ढूंढने अाए हैं। किसी ने देखा है उसे?
वह पूछते पूछते रुक गया और अचानक बूढ़े को पहचान कर उसे लगभग घसीटते हुए गाड़ी में बैठाने लगा।
लोग हैरानी से देखने लगे।
एक युवक ने आगे बढ़ कर बूढ़े की पूरी राम कहानी गार्ड को सुना डाली और वे तीनों लोग गर्व से सामने आकर खड़े हो गए जिन्होंने बूढ़े की मदद की थी और उसे सामान दिया था।
गार्ड ने कुछ रुक कर सिर खुजाया और सहसा बूढ़े को हाथ पकड़ कर उतारता हुआ उन तीनों से बोला - चलो,आप तीनों इस गाड़ी में बैठो।
कुछ हिचकिचाते हुए तीनों गाड़ी में बैठ गए। ड्राइवर के साथ गार्ड भी बैठ गया और बूढ़े को वहीं छोड़ कर गाड़ी घूम कर चल पड़ी।
उड़ती धूल के बीच से भी बाहर खड़े लोगों की भीड़ ने गाड़ी पर लिखा नाम पढ़ लिया। वो शहर के नामी पागलखाने की गाड़ी थी, जो शहर में घूम घूम कर पागलों को पकड़ कर भर्ती करती थी।
"नया दौर"
द्रोणाचार्य राउंड पर थे। उन्होंने देखा कि उनके कार्यालय से फ़ोन कर- कर के विद्यार्थियों को गुरुकुल में अध्ययन के लिए बुलाया जा रहा है।
उन्होंने निजी सहायक से पूछा - ये सब किसलिए?
उत्तर मिला - सर, विद्यार्थी घर में बैठे ऑनलाइन शिक्षा लेे रहे हैं। हम उन्हें आमंत्रण दे दें ताकि गुरुकुल खुलते ही अच्छे छात्र हमारे यहां प्रवेश लेे लें।
द्रोणाचार्य ने कहा - नहीं, इससे तो ये संदेश जाता है कि हमारे पास विद्यार्थी नहीं हैं। तुम छात्रों से कहो कि सीटें भर जाने के कारण अब प्रवेश बंद हो गए हैं।
- लेकिन इससे तो यहां कोई नहीं आएगा, हमें भारी नुक़सान होगा। सहायक ने कहा।
गुरु प्रवर बोले- तुम नादान हो, इससे हमें दोहरा लाभ होगा। छात्र ये सोचेंगे कि हमारा स्तर इतना उच्च है कि उन जैसे श्रेष्ठ विद्यार्थियों का नम्बर भी नहीं आया। दूसरी ओर एकलव्य की तरह वे स्वयं पढ़ लेंगे और हमें दक्षिणा में अपने अंगूठे भी देंगे।
- किन्तु सर, तब हम यहां क्या करेंगे? सहायक ने जिज्ञासा प्रकट की।
- और भी काम हैं पढ़ाने के सिवा... गुरुदेव मन ही मन सोच रहे थे और सहायक मुंह ताक रहा था।
* * *"अंगारे और सितारे"
जब दुनिया अच्छी तरह बन गई तो सब काम सलीके से शुरू हो गए।घर घर रोटी बनने लगी।
जहां घर नहीं थे, वहां भी रोटी बनती। पेड़ के नीचे, सड़क के किनारे,दो ईंट पत्थर जोड़ कर उनके बीच अंगारे दहकाये जाते,और रोटी बनती।
चूल्हे मिट्टी के हों, लोहे के हों या पत्थर के, रोटी बनती।
धुआं हो, लपटें हों,या आंच हो,रोटी बनती।
लकड़ी, कोयला, गैस,तेल,या कुछ भी जलता और उस पर रोटी बनती।
औरतें रोटी बनातीं। लड़कियां रोटी बनातीं, वृद्धाएं रोटी बनातीं।
भूखे बच्चे या उतावले बूढ़े थाली लेकर सामने बैठ जाते और रोटी बनती।
झोंपड़ी हो,घर हो,कोठी हो,बंगला हो,या महल हो,रोटी बनती।
छोटा घर हो तो परिजनों के लिए रोटी बनती, बड़ा घर हो तो परिजनों, नौकर चाकरों, कुत्ते बिल्लियों, भिखारियों के लिए रोटी बनती।
साधारण घर हो तो औरतें चूल्हा फूंकते हुए आंखें लाल करके रोटी बनातीं, ऊंचा घर हो तो होठ लाल रंग के रोटी बनातीं।
बेटी ,बहन,भाभी,बहू, मां, चाची, ताई रोटी बनातीं, दादी या नानी रोटी बनातीं।
स्त्री अपने घर रोटी बनाती, फ़िर पराए घर जाकर रोटी बनाती।
पहले बच्ची टेढ़ी मेढी रोटी बनाती, फ़िर जब रोटी गोल बनने लग जाती तो बच्ची महिला बन जाती।
तब वह पहले पिता के लिए, फ़िर भाई के लिए, फ़िर ससुर के लिए, फ़िर पति के लिए रोटी बनाती।
मां रोटी बनाना सिखाती, सास रोटी न फूलने पर जली कटी सुनाती,पर रोटी बनती।
अगर पति पत्नी दोनों काम करते तो मर्द घर आकर बीड़ी पीता, या टी वी पर मैच देखता,और औरत रोटी बनाती।
आग,औरत,और रोटी का संबंध कभी न टूटता,रोटी हर हाल में बनती।
घर वाले बीमार हों तो रूखी रोटी बनती, स्वस्थ हों तो घी वाली रोटी बनती।
फ़िर इन्कलाब आया।
औरत ने कहा,केवल मैं ही क्यों, आदमी भी तो रोटी बनाए !
आसमान फट पड़ा। तारे ज़मीन पर आ गए। रसोइयों को स्टार मिलने लगे- एक स्टार,दो स्टार, फाइव स्टार...!
बिरयानी, चाउमीन, बर्गर, पिज़्ज़ा आदि आदि बनने लगे। रोटी से लड़ने को कमर कसी गई।
दवा से भूख को रोकने के जतन होने लगे।
मशीन से रोटी बनने लगी, रोटी बनाने वाले रोबोट ढूंढे जाने लगे।
रोटी को महीनों तक खराब न होने देने वाली मशीन बनने लगी।
और इस तरह अंगारों और सितारों में जंग होने लगी।
"दो रुपए का बाट"
घर पास ही था,मधु प्रणव से बोली- चल रिक्शा कर लेते हैं,खड़ा भी है सामने!
- इतनी सी दूर के पंद्रह रुपए? मधु ने उलाहने के स्वर में कहा। - बारह देंगे...कहते कहते उसके जवाब का इंतजार किए बगैर अब दोनों रिक्शा में सवार थे।
लालबत्ती पर भारी ट्रैफिक में फंसा रिक्शा रुका, तो प्रणव ने कहा- हे भगवान, ऐसे तूफानी ट्रैफिक में रिक्शा चलाते ही क्यों हैं लोग?
उसकी बात का जवाब मधु की जगह खुद रिक्शावाले ने दिया, बोला - सरकार ने रोज़गार मुहैया कराने के नाम पर दिया है, आप लोग समझते हैं कि सरकार आरक्षण देकर हमें अफ़सर ही बनाती है...
हरीबत्ती होते ही कान फोड़ू भौंपुओं में उसकी आवाज़ दब कर रह गई।
मधु ने उतरते ही अपना पर्स टटोला और दस का सिक्का पकड़ाते हुए बोली - अब दो रुपया छुट्टा कहां होगा, रख लो यही।
रिक्शा वाला एकाएक गरम हुआ। बोल पड़ा - छुट्टा मैं देता हूं, निकालो क्या है, बीस, पचास, सौ ...?
- बाप रे ! देखे इन लोगों के तेवर? सरकार और मुफ्त बांट - बांट कर इन्हें सिर चढ़ा रही है। देखो कितनी बदतमीजी से बोल रहा है। छह हज़ार की तो साड़ी पहन रखी है मैंने, ज़रा भी लिहाज़ नहीं है...
प्रणव ने मन में कहा छह हज़ार की साड़ी पर उसके दो रुपए का बाट रखा है न, इसलिए लहरा नहीं पाई।
रिक्शा वाला पचास रुपए का छुट्टा गिन कर दे रहा था।
"लोग पत्थर फेंकते हैं "

एक नन्हे से पिल्ले ने,जिसने अभी कुछ महीने पहले ही दुनिया देखी थी,अपनी माँ से जाकर कहा-"लोग पत्थर फेंकते हैं".
कुतिया क्रोध से तमतमा गई. बोली- उन्हें मेरे सामने आने दे, तेज़ दांतों से काट कर पैर चीर कर रख दूँगी. तू वहां मत जा, यहीं खेल. वे होते ही शरारती हैं.
पिल्ला अचम्भे से बोला- ओह माँ, तुम कैसे सोचती हो? मैं तो गली के नुक्कड़ पर घूमने गया था. वहां मजदूर लड़के ट्रक से पत्थर खाली कर रहे हैं. वे पत्थर उठा-उठा कर नीचे सड़क पर फेंकते हैं. मैं तो खड़ा-खड़ा उनका पसीना देख रहा था. अब हमारी सड़क भी पक्की बन जाएगी.
कुतिया ने इधर-उधर देखा और झुक कर पैर से कान खुजाने लगी.
"वास्तविकता"
दो बच्चे एक पेड़ के नीचे पड़े मिट्टी के ढेर में खेल रहे थे। कभी वे कोई घर जैसी इमारत बना लेते तो कभी उसे तोड़कर मिट्टी की गाड़ी बना लेते। जल्दी ही दोनों ऊब गए। पर शाम का धुंधलका अभी हुआ नहीं था,इसलिए इतनी जल्दी वे घर लौटने को भी तैयार नहीं थे दोनों।
तभी उधर से एक बूढ़ा फ़कीर आ निकला। वह बेहद अशक्त और कृशकाय था। उससे ठीक से चला भी न जाता था। बच्चे बहुत ध्यान से उसे देखने लगे। बच्चों को प्यार से देखता हुआ वो उस ओर ही आने लगा।
बच्चे पहले तो कौतूहल से देखते रहे किन्तु कुछ नज़दीक आने पर उन्होंने देखा कि फ़कीर की शक्ल खासी डरावनी है। बच्चे कुछ भयभीत हुए,पर इतने जर्जर बूढ़े से खौफ खाने की कोई वजह नहीं थी।
बूढ़ा लड़खड़ाता हुआ उनके पास ही आ बैठा। उसका दम भी कुछ फूलता सा लगता था। सांस तेज़ी से चल रही थी।
उसे अपनी तुलना में बिल्कुल निरीह पाकर बच्चों का हौसला बढ़ा।एक बच्चा बोला- बाबा, आप बहुत थके से लगते हो,हम आपके लिए कुछ खाने पीने का सामान लाएं?
बाबा ने उत्तर दिया- बेटा मुझे ज़िन्दगी में जो भी खाना पीना था वो मैं खा चुका,अब तो तुम मुझ पर एक उपकार कर दो,जिस मिट्टी के ढेर में तुम खेल रहे हो, उसी में मेरी एक मूरत बना दो।
- क्यों बाबा, उससे क्या होगा? बच्चों ने उत्सुकता से पूछा।
- बेटा जब मैं दुनिया में नहीं रहूंगा तो इधर से गुजरता हुआ कोई टीवी वाला मेरी तस्वीर खींच लेगा,और जब वो फोटो टीवी पर दिखा देगा तो मेरे सभी जानने वालों को कम से कम ये तो पता चलेगा कि मैं अब इस दुनिया में नहीं रहा।
- ठीक है बाबा, कह कर एक बच्चा किसी आज्ञाकारी शिष्य की तरह मिट्टी से बाबा का बुत बनाने में जुट गया।
दूसरा बच्चा भी उसकी नकल करता हुआ मूरत बनाने लगा।
बाबा ने आश्चर्य मिश्रित खुशी से कहा - ओह,तुम भी बना रहे हो, तो मेरे दो दो बुत!
- नहीं बाबा, मैं तो एक खूबसूरत लड़की की मूर्ति बना रहा हूं। दूसरा बच्चा बोला।
- क्यों? बाबा हैरान था।
- इसे आपकी मूर्ति के पास रख देंगे। बच्चा बोला।
- मगर किसलिए? बाबा बोला।
- अरे,तभी तो कोई कैमरे वाला आपकी तरफ़ देखेगा, नहीं तो कौन ध्यान देगा ! बच्चे ने लापरवाही से कहा।
"निष्कर्ष"
एक बड़े नेता ने अपने राज्य में शराब बंदी करवाने से पूर्व लोगों की राय जानने की इच्छा जाहिर की, कि आखिर लोग शराब क्यों पीते हैं।
उन्होंने कुछ शोधकर्ताओं को इस काम के लिए भेजा । वो एक मयखाने में जाकर वहां बैठे लोगों से ये सवाल पूछने लगे कि आप शराब क्यों पीते हैं?
सवाल एक था,पर जवाब अलग अलग मिले-
एक ने कहा,शराब पीकर मैं वही हो जाता हूं जो मैं वास्तव में हूं।
दूसरा बोला- शराब पीकर मुझे लगता है कि मैं बदल गया।
तीसरे ने बताया- शराब मुझे उसकी याद दिलाती है,जो मैंने खो दिया।
चौथे का उत्तर था,शराब उसे भुला देती है जो अब मेरा नहीं है।
पांचवे ने कहा- शराब मेरा नशा उतार देती है।
छठा कहने लगा- शराब से मेरी थकान उतर जाती है।
सातवें ने उत्तर दिया कि शराब पीकर मुझे लगता है,जैसे गालिब, मीर, खैयाम, बच्चन सब मेरी ही बात कर रहे हैं।
जब शोधकर्ताओं ने जाकर नेताजी को सब बताया तो उन्होंने अपने दफ़्तर पहुंच कर दो कागज़ों पर हस्ताक्षर किए - एक राज्य में शराब बंदी लागू करने का आदेश था, दूसरे में उन नए आवेदकों के नाम थे जिन्हें शराब के ठेके दिए गए थे।
"घेराव"
उनकी उम्र अट्ठासी को पार कर रही थी। दैनिक कार्यों के अलावा बिस्तर पर ही रहते। थोड़ी लिखा -पढ़ी और देखभाल के लिए डॉक्टर बेटे ने उनके लिए एक सहायक रख छोड़ा था जो सुबह शाम अा जाता।
वे खाना खाकर लेटे ही थे कि सहायक लड़के ने कहा- बाउजी !
- क्या है ? वे बोले। आवाज़ में अब भी दमखम था।
- फ़ोन आया था... लड़के ने कहा।
- फ़ोन तो दिनभर बजता ही रहता है, उठा के रख दिया कर चोंगा, माथा भिन्ना जाता है। वे बुदबुदाए।
- जी, वो वर्माजी का था। लड़के ने किसी अपराधी की तरह कहा।
- उसे और काम ही क्या है, दिनभर फ़ोन पर ही टंगा रहता है। उन्होंने उपेक्षा से पैर फैलाए।
- जी वो कह रहे थे कि वो आपका सम्मान करेंगे अपने कार्यक्रम में... लड़के ने जैसे डरते हुए कहा।
- क्या !!! मेरा सम्मान? उनके चेहरे पर से जैसे कोई लहर गुज़र गई। वे उठकर अधलेटे से हो गए।
-जी वो शाम को आयेंगे। लड़का अब कुछ संतुष्ट सा बोला।
- पूछ - पूछ, ये भी बेचारा अच्छे कामों में लगा ही रहता है। वो भूल - भाल जाएगा। तू फ़ोन कर उसे। ऐसा कर, उसे खाने पे बुला ले शाम को! वे चहके।
-जी,कह कर लड़का फ़ोन मिलाने लगा।
-सुन, रबड़ी - जलेबी तू बाज़ार से ले आना, पूड़ी - कचौड़ी ये बना लेगी घर में, कहदे उससे जाकर। वे जैसे किसी तैयारी में व्यस्त हो गए।
-जी, कह दूंगा माताजी से...
- अरे अभी कह दे जाकर, वरना वो चार बजे से ही खिचड़ी बना कर बैठ जाएगी टीवी के सामने। उन्होंने अधीर होकर कहा।
लड़का जाने लगा। पीछे से फ़िर उनकी आवाज़ आई- सुन, उसे शॉल तू दिलवा देना, खादी भंडार से, वरना वो कटले से उठा लाएगा सस्ता सा।
लड़के ने मानो उन्हें घूर कर देखा। वे सकपका गए, बोले- अरे वो कंजूस है न थोड़ा !
लड़का जाने लगा। तभी पीछे से वे फ़िर बोले- सुन, फ़ोटो है मेरी !
-क्यों ? लड़का जाते - जाते रुक गया।
-अरे अख़बार में देनी पड़ेगी न, खबर के साथ...
जी, ढूंढ लूंगा, लड़का लापरवाही से बोला।
- देख ले, अब तेरी ज़िम्मेदारी है उसे घेरने की ! उन्होंने मानो बॉल लड़के के पाले में फेंकते हुए कहा।
"पैरों पर खड़े श्रमिक"
एक बार सुदूर गांव के एक दुरूह से खेत पर एक वृद्ध औरत काम कर रही थी।
वह सुबह जब खेत पर आई थी तो उसने भिनसारे ही अपने चौदह साल के लड़के को यह कह कर घर से प्रस्थान किया कि वह जल्दी जा रही है क्योंकि खेत पर बहुत काम है।
लड़के ने उसके चले जाने के बाद नहा- धोकर चूल्हे पर रोटी बनाई और एक कपड़े की पोटली में चार मोटी रोटी अपने लिए तथा दो रोटी अपनी मां के लिए लेकर वह खेत की ओर चल पड़ा।
जब वह खेत पर पहुंचा तो उसने देखा कि उसकी मां ने धूप में पसीना बहाते हुए गोबर के उन सब उपलों के ढेर को उठा कर किनारे के बबूल के पेड़ के नीचे जमा कर दिया है जिन्हें वह कल उसी पेड़ के नीचे से उठा कर खाद के रूप में पूरे खेत में फ़ैला कर गया था। उसे मां पर क्रोध आया जिसने उसकी सारी मेहनत पर पानी फेर दिया था।
वह बाल्टी उठा कर पीने का पानी भर लाने के लिए पास के कुएं पर चला गया।
कुएं की जगत पर उसने कपड़े की एक पोटली टंगी देखी जिसमें सुबह - सुबह सूर्योदय से भी पहले उठ कर मां द्वारा बनाई गई रोटियां थीं।
मां ने उससे पूछा कि क्या वह उन रोटियों को खा आया है,जो मां ने सुबह उसके लिए बना कर रसोई के छींके पर टांग दी थीं?
लड़के के पास किसी गाबदू की तरह मां को देखे जाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था, क्योंकि उसने दोबारा रोटी बना कर मां की सारी मेहनत पर पानी फेर दिया था।
एक दूसरे से नाराज़ होकर शब्दों के मितव्ययी मां - बेटा अब एक साथ बैठ कर प्याज़ और रोटी खा रहे थे।
"हमला"
जंगल में चोरी छिपे लकड़ी काटने गया एक आदमी रास्ता भटक गया। काफ़ी कोशिशें कीं, किन्तु उसे राह नहीं मिली। मजबूरन उसे कुछ दिन जंगल में ही काटने पड़े।

खाने को जंगली फल मिल जाते थे, पीने को झरनों का पानी, काम कोई था नहीं, अतः वह दिन भर इधर उधर भटकता।

एक दिन एक पेड़ के तने से पीठ टिकाए बैठा वह आराम से सामने टीले पर उछल कूद करते चूहों को देख रहा था कि अचानक उसे कुछ सूझा।वह कुछ दूरी पर घास खा रहे खरगोशों के पास पहुंचा और उनसे बोला - तुम्हें पता है वो सामने वाला टीला वर्षों पूर्व तुम्हारे पूर्वजों का था। एक रात चूहों ने उस पर हमला करके धोखे से तुम्हारे पूर्वजों को भगा दिया और उस पर कब्ज़ा कर लिया।

खरगोश सोच में पड़ गए।एक खरगोश ने कहा- क्या फ़र्क पड़ता है,अब हम यहां आ गए।

आदमी बोला- ऐसे ही चलता रहा तो वे तुम्हें यहां से भी खदेड़ देंगे।और तब तुम्हारे पास दर दर भटकने के अलावा और कोई चारा नहीं रहेगा।

- तो हम क्या करें? एक भयभीत खरगोश ने कहा।

- करना क्या है,तुम उनसे ज़्यादा ताकतवर हो, उन्हें वहां से भगा दो और अपनी जगह वापस लो। आदमी ने सलाह दी।

खरगोशों ने उसी रात हमले की योजना बना डाली।

उधर शाम ढले आदमी चूहों के पास गया और बोला- मैंने आज खरगोशों की बातें छिप कर सुनी हैं,वे तुम्हें यहां से मार भगाने की योजना बना रहे हैं।

- मगर क्यों? हमने उनका क्या बिगाड़ा है? एक चूहा बोला।

- मैं क्या जानूं,मगर मैंने तुम्हें सचेत कर दिया है।तुम पहले ही उन पर हमला कर दो,चाहो तो मेरे ठिकाने से थोड़ी आग लेलो, मैं तो खाना पका ही चुका हूं।उनकी बस्ती में घास ही घास है, ज़रा सी आग से लपटें उठने लगेंगी।कह कर आदमी नदी किनारे टहलने चला गया।

रात को चूहों और खरगोशों के चीखने चिल्लाने के बीच जंगल में भयानक आग लगी,जिसकी लपटें दूर दूर तक दिखाई दीं।

संयोग से आग के उजाले में आदमी को अपना रास्ता दिखाई दे गया।वह अपने गांव लौट गया।मगर वहां जाकर उसने देखा कि उसके घरवालों ने उसके गुम हो जाने की रपट लिखा दी थी।अब उसके दिखाई देते ही सैकड़ों कैमरे उसके पीछे लग गए और उसकी तस्वीरें धड़ाधड़ अखबारों में छपने लगीं।वह देखते देखते लोगों के बीच लोकप्रिय हो गया।

तभी देश में आम चुनाव की घोषणा हो गई और अनुभवी आला कमान ने तय किया कि लोकप्रिय चेहरों को मैदान में उतारा जाएगा।
"एक शहर था"
शहर में दो तालाब थे, एक बीचों बीच स्थित था और दूसरा नगर के एक बाहरी किनारे पर। दोनों ही वर्षा पर अवलंबित थे। कभी लबालब भर जाते, कभी रीते रह जाते।
एक दिन शहर के शासक के पास एक व्यक्ति मिलने पहुंचा। वह शासक से बोला - यदि आप शहर में दो की जगह एक ही सरोवर रहने दें तो सबको लाभ ही लाभ हो जाएगा।
- वो कैसे? शासक ने पूछा।
उस व्यक्ति ने समझाया- दोनों तालाब उथले और कम भरे हुए रहने से जल्दी सूख जाते हैं। आप एक तालाब से मिट्टी लेकर दूसरे को समतल करा दें। गहरा होने पर तालाब में खूब पानी भरेगा। दूसरी जगह समतल होने पर वहां प्लॉट्स बनाइए, लाभ ही लाभ। मिट्टी खोद कर दूसरी जगह ले जाने पर मजदूरों- ठेकेदारों को लाभ। पानी को पाइप लाइन से ले जाने पर इंजीनियर से लेकर लेबर तक को लाभ। रोज़गार के प्रचुर साधन होने से चारों तरफ ख़ुशी की लहर दौड़ गई।
काम आरंभ हो गया। सचमुच शहर में विकास की हलचल और राजकोष में धन की आमद दिखाई देने लगी।
शहर के कवि उन्नति का गान करने लगे, बुद्धिजीवी वाह वाह करने लगे!
लेकिन तभी आकाशवाणी हुई कि कविगण सत्ता को न सराहें,ये पतन और चाटुकारिता की निशानी है।
कवि तत्काल सतर्क हो गए, उन्होंने तुरंत ख़िलाफत का मोर्चा संभाल लिया। वे अब गहरे हुए तालाब के बोझ पर कविता लिखते... समतल हुए तालाब के विलोप पर ग़ज़ल गाते... मिट्टी ढोते श्रमिक के पसीने पर छंद कहते...धनी होते जा रहे इंजीनियर और ठेकेदारों की अमानुषिकता पर गीत रचते...शासक की क्रूरता पर मुक्तक सुनाते... क्रांति से दुनिया बदल डालने का आह्वान करते!
"एक सवाल"
चार बुज़ुर्ग लोग एक बगीचे में टहलते बातें करते,एक दूसरे की कहते सुनते चले जा रहे थे। उनका ध्यान बंटा तब,जब एक किशोर वय के बच्चे ने उन्हें नमस्कार किया।
चारों ने ही जवाब तो दे दिया पर वे उसे पहचाने नहीं थे। सभी ने ये सोचकर उसके अभिवादन का प्रत्युत्तर दे दिया, कि वह उनमें से किसी का परिचित होगा।
लड़का रुका और बोला - मैं आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूं।पर मेरा आग्रह है कि आप सब मुझे एक एक मिनट का समय अलग अलग दें, ताकि मैं आपके मौलिक जवाब अलग अलग ही जान सकूं।
वे सहर्ष तैयार हो गए।
लड़के ने उन्हें बारी बारी से एक ओर ले जा कर सवाल किया, आप इस दुनिया में क्यों अाए हैं?
सभी उम्र दराज थे,पर ऐसा किसी ने भी कभी सोचा न था। साथ ही, बच्चे को कोई सारगर्भित जवाब देने की इच्छा भी थी।
पहले ने कहा - मुझे ईश्वर ने भेजा है।
दूसरा बोला - माता पिता की इच्छा के कारण मेरा जन्म हुआ।
तीसरे का उत्तर था - अपने देश की सेवा करने को मैंने जन्म लिया।
चौथा कहने लगा- मेरे भाग्य में जीवन सुख था।
बच्चे ने सभी को धन्यवाद दिया और जाने लगा।
लेकिन उन चारों ने ही महसूस किया कि बच्चा उनकी बात से ख़ुश नहीं है,क्योंकि वह कुछ परेशान सा दिख रहा था।
वे बोले- बेटा,तुम ये तो बताओ, कि ये गूढ़ प्रश्न तुमने क्यों किया,और अब तुम इतने दुःखी से क्यों हो?
बच्चा बोला- मुझे तो अपने होमवर्क में इस प्रश्न का उत्तर लिखना था,पर पार्क बंद होने का समय हो गया, अब चौकीदार ताला लगा कर चला गया होगा।आप सबको ऊंची दीवार कूद कर वापस जाना होगा।
वे चारों हड़बड़ा कर दरवाज़े की ओर दौड़े। पीछे से बच्चे की आवाज़ आई- अंकल, संभल कर जाना, बाहर मेरा कुत्ता शेरू होगा।
"सत्ता और लोग"
एक बूढ़ा सड़क के किनारे बैठा ज़ोर - ज़ोर से रो रहा था।
आते जाते लोग कौतूहल से उधर देखते थे। कुछ लोग इतने उम्रदराज इंसान को इस तरह रोते देख पिघल भी जाते थे,और रुक कर पूछते - बाबा क्या हुआ?
लोगों की संवेदना देख बूढ़ा बोला - ज़िन्दगी केवल एक बार मिलती है, मुझे भी मिली,पर मैं इस ज़िन्दगी में कुछ भी नहीं कर पाया।
कह कर वह फ़िर दहाड़ें मारने लगा।
लोग हैरान रह गए। एक युवक ने धीरे से उससे पूछा - पर तुम ज़िन्दगी में ऐसा क्या करना चाहते थे जो तुमने नहीं किया?
बूढ़ा आंखें पौंछते हुए बोला - न मैंने कभी ढंग का खाया, न ढंग का पहना, न कहीं घूमा फिरा... कहते कहते उसकी हिचकियां फ़िर बंध गईं।
लोग चले गए।
कुछ देर बाद वहां एक आदमी आया और एक ढकी हुई थाली रखते हुए बोला - लो बाबा, इसमें थोड़ा सा गरम खाना है, खालो।
वह आदमी पलटा ही था कि एक युवक वहां आया और एक पोटली बूढ़े के सामने रखते हुए बोला - देखो, इसमें एक नया कुर्ता पायजामा है,तुम इसे पहन लेना।
बूढ़ा हैरत से अपनी फटी पुरानी लंगोटी को देख ही रहा था कि एक नवयुवक ने साइकिल से उतरते हुए अपनी साइकिल वहां खड़ी की, और बोला - लो बाबा,तुम्हें जहां कहीं भी घूमना फिरना हो, ये साइकिल ले जाना।
बूढ़ा गदगद हो कर देख ही रहा था कि तभी एक वैन तेज़ी से आकर वहां रुकी जिसमें से एक वर्दीधारी गार्ड उतरा।
भीड़ देख कर वह बोला - हटो हटो,एक आदमी भाग कर इस तरफ आ गया है, हम उसे ढूंढने अाए हैं। किसी ने देखा है उसे?
वह पूछते पूछते रुक गया और अचानक बूढ़े को पहचान कर उसे लगभग घसीटते हुए गाड़ी में बैठाने लगा।
लोग हैरानी से देखने लगे।
एक युवक ने आगे बढ़ कर बूढ़े की पूरी राम कहानी गार्ड को सुना डाली और वे तीनों लोग गर्व से सामने आकर खड़े हो गए जिन्होंने बूढ़े की मदद की थी और उसे सामान दिया था।
गार्ड ने कुछ रुक कर सिर खुजाया और सहसा बूढ़े को हाथ पकड़ कर उतारता हुआ उन तीनों से बोला - चलो,आप तीनों इस गाड़ी में बैठो।
कुछ हिचकिचाते हुए तीनों गाड़ी में बैठ गए। ड्राइवर के साथ गार्ड भी बैठ गया और बूढ़े को वहीं छोड़ कर गाड़ी घूम कर चल पड़ी।
उड़ती धूल के बीच से भी बाहर खड़े लोगों की भीड़ ने गाड़ी पर लिखा नाम पढ़ लिया। वो शहर के नामी पागलखाने की गाड़ी थी, जो शहर में घूम घूम कर पागलों को पकड़ कर भर्ती करती थी।
"नया दौर"
द्रोणाचार्य राउंड पर थे। उन्होंने देखा कि उनके कार्यालय से फ़ोन कर- कर के विद्यार्थियों को गुरुकुल में अध्ययन के लिए बुलाया जा रहा है।
उन्होंने निजी सहायक से पूछा - ये सब किसलिए?
उत्तर मिला - सर, विद्यार्थी घर में बैठे ऑनलाइन शिक्षा लेे रहे हैं। हम उन्हें आमंत्रण दे दें ताकि गुरुकुल खुलते ही अच्छे छात्र हमारे यहां प्रवेश लेे लें।
द्रोणाचार्य ने कहा - नहीं, इससे तो ये संदेश जाता है कि हमारे पास विद्यार्थी नहीं हैं। तुम छात्रों से कहो कि सीटें भर जाने के कारण अब प्रवेश बंद हो गए हैं।
- लेकिन इससे तो यहां कोई नहीं आएगा, हमें भारी नुक़सान होगा। सहायक ने कहा।
गुरु प्रवर बोले- तुम नादान हो, इससे हमें दोहरा लाभ होगा। छात्र ये सोचेंगे कि हमारा स्तर इतना उच्च है कि उन जैसे श्रेष्ठ विद्यार्थियों का नम्बर भी नहीं आया। दूसरी ओर एकलव्य की तरह वे स्वयं पढ़ लेंगे और हमें दक्षिणा में अपने अंगूठे भी देंगे।
- किन्तु सर, तब हम यहां क्या करेंगे? सहायक ने जिज्ञासा प्रकट की।
- और भी काम हैं पढ़ाने के सिवा... गुरुदेव मन ही मन सोच रहे थे और सहायक मुंह ताक रहा था।
* * *