एक बूंद इश्क - 11 Sujal B. Patel द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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एक बूंद इश्क - 11

११.शरारते


रुद्र अपर्णा को बारिश में भीगती हुई देख रहा था। उसी वक्त उसके फ़ोन पर एक मैसेज आया। तो वह तुरंत घर जाने के लिए निकल गया। दरअसल आज़ भी सब घर पर उसका खाने के लिए इंतजार कर रहे थे। इसलिए विक्रम ने मैसेज भेजा था। क्यूंकि आज़ भी रुद्र लेट हो गया था। रुद्र ने गाड़ी को बहुत तेज़ भगाया। फिर भी घर आते हुए उसे साढ़े नौ बज गए।
"आईए जनाब! आपको ना गिनिस बूक में लेट होने के लिए अपना नाम दर्ज करवा लेना चाहिए।" रुद्र का पैर घर में पड़ते ही रणजीत जी ने ताना कसा।
"बड़े पापा! आज़ गलति रुद्र की नहीं है। ऑफिस की एक लड़की को उसके घर छोड़ने जाना पड़ा। इसलिए इसे लेट हो गया।" विक्रम ने कहा।
"तो अब इसने ये नया शौक भी पाल लिया। सुधर जाओ बेटा! वर्ना एक दिन हमारी नाक कटवा दोगे।" रणजीत जी ने फिर ताना कसा।
"तो आप एक काम करिए अपनी नाक को सेफ्टी लॉक लगवा दो। ताकि कोई काट ही ना सके।" रुद्र ने कहा।
"तो अब तू अपनें बाप को उल्टा जवाब देगा। सावित्री! आज़ इसे खाना मत देना।" रणजीत जी ने अपनी पत्नी की ओर देखकर गुस्से से उबलते हुए कहा।
"खाना खाना भी किस को है? आपके तानों से ही पेट भर जाता है।" रुद्र ने कहा और अपने कमरे की ओर बढ़ गया। उसने कमरें में जाकर दरवाज़ा इतनी जोर से बंद किया की नीचे बैठे सारे लोगों को सुनाई दिया। रुद्र बिना खाएं चला गया तो सावित्री की आंखें भर आईं। लेकिन रणजीत जी के सामने रो भी तो नहीं सकतीं थी।
रुद्र का गुस्सा भी अपर्णा से कुछ कम नहीं था। बचपन से वह शरारती भी बहुत था। सावित्री बड़ी थी फिर भी किसी कारणवश उनकी गोद देर से भरी थी। इसलिए विक्रम रूद्र से बड़ा था। उसी ने रुद्र की सारी शरारतों में उसका साथ दिया था। जिसकी वज़ह से उसका गुस्सा भी विक्रम ही शांत कर सकता था।
आज़ सब ने भारी मन से रुद्र के बिना ही खाना खाया। जब रणजीत जी अपने कमरें में चलें गए। तो विक्रम रुद्र की थाली तैयार करके ऊपर उसके कमरें की तरफ़ चला आया। दरवाज़ा बंद था तो विक्रम ने दरवाजा खटखटाते हुए कहा, "रुद्र! दरवाज़ा खोल। मैं तेरे लिए खाना लेकर आया हूं।"
"नहीं खाना मुझे। आपने ही मुझे अपर्णा को छोड़ने जाने के लिए कहा था और आपने नीचे सच्ची वज़ह भी नहीं बताई। इसी चक्कर में ये सब हो गया।" रुद्र ने गुस्से से कहा।
"सॉरी यार! मैं मानता हूं कि मेरी गलति है। लेकिन मैं बड़े पापा को कुछ कहता उससे पहले ही आप दोनों शुरू हो गए। ऐसे में मैं क्या करता?" विक्रम ने मासूमियत से कहा।
"तो अब जाईए। मुझे किसी से कोई बात नहीं करनी।" रुद्र ने दरवाज़े पर कुशन मारते हुए कहा।
"मैं सोरी तो कह रहा हूं। प्लीज़ दरवाज़ा खोल न।" विक्रम ने रिक्वेस्ट करते हुए कहा।
"आप पहले मुझे ये बताईए आपने सीधा-सीधा वज़ह क्यूं नहीं बताई कि बारिश की वज़ह से मैं अपर्णा को छोड़ने गया था? मैंने आज़ तक किसी लड़की को वैसी नज़र से नहीं देखा और आपने आज़ नीचे जो कहा उससे सब कबाड़ा हो गया।" रुद्र ने गुस्से से पूछा।
"अरे यार भूल हो गई। अब क्या फांसी चढ़ाएगा मुझे? खोल ना दरवाज़ा।" विक्रम ने कहा तो रूद्र ने दरवाज़ा खोल दिया और जाकर खिड़की के सामने खड़ा हो गया। विक्रम खाने की थाली टेबल पर रखकर उसके पास गया।
"अब माफ़ कर दे मुझे और खाना खा ले।" विक्रम ने रुद्र का हाथ पकड़कर कहा।
"किया माफ़ क्यूंकि आपने एक अच्छा काम किया कि अपर्णा का नाम नहीं लिया।" रुद्र ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा।
"क्या मतलब? अगर नाम ले लेता तो क्या होता?" विक्रम ने हैरानी से पूछा।
"होता ये कि पापा अपर्णा पर हर वक़्त नज़र रखते। फिर जब वो घर आती तो उसकी क्लास लग जाती। इतने सवाल पूछते।" रुद्र ने खाते हुए कहा।
"मतलब तुने उसे घर बुलाया है? वाह मेरे शेर क्या बात है! वैसे कब बुलाया है?" विक्रम ने खुशी से उछलकर कहा।
"इतना भी खुश होने की जरूरत नहीं है। जैसा आप समझ रहे है। वैसा कुछ नहीं है। उसके दादाजी बिल्कुल हमारे दादाजी जैसे थे। लेकिन अब वो इस दुनिया में नहीं है। इसलिए आज़ सुबह अपर्णा थोड़ी दुःखी हो गई। तो मैंने कहा कि तुम्हारे दादाजी मेरे दादाजी जैसे थे। तो आज़ से मेरे दादाजी भी तुम्हारे दादाजी हुए और वह जन्माष्टमी पर घर आ रहे है। तो तुम उनसे मिलने आ जाना।" रुद्र ने कहा।
"ये तो बहुत अच्छी बात है। इस बहाने घर पर बाकी लोगों से भी मिल लेगी।" विक्रम ने खुश होकर कहा।
"क्यूं आपको उसका मेरे साथ रिश्ता तय करना है जो सब से मिलवाया चाहते हो?" रुद्र ने आंखें छोटी करके पूछा।
"दादाजी मान जाएं तो ये भी हो जाएं। मुझे तो वह बहुत अच्छी लगती है।" विक्रम ने कहा।
"हां, गुस्सा भी बहुत अच्छा कर लेती है। अगर वो इस घर में आ गई ना तो पापा और उसकी रोज़ कोई ना कोई बात पर लड़ाई हों ही जानी है। लेकिन इसमें मेरा एक फ़ायदा है। बचपन से आज़ तक मैं पापा के गुस्से का टार्गेट बनता आया हूं। अपर्णा के आने के बाद पापा का टार्गेट वो बनेगी। लेकिन एक बात का फर्क होगा कि मैं तो कभी-कभार ही पापा को उल्टा जवाब देता हूं। लेकिन अपर्णा तो कभी-कभार ही उल्टा जवाब नहीं देगी ऐसा होगा। इस बहाने घर में सब का इंटरटेनमेंट भी हो जाएगा।" रुद्र ने खिसियाते हुए कहा।
"क्या यार तू उसकी बुराई पर बुराई किए जा रहा है? वह कितनी अच्छी और शांत है।" विक्रम ने कहा।
"लगता है अब आपको भी डेमो दिखाना ही पड़ेगा।" रुद्र ने कहा।
"क्या मतलब?" विक्रम ने पूछा।
"मतलब ये कि हमारी ऑफिस के गार्ड को भी ऐसा ही लगता था कि अपर्णा बहुत शांत है। इसलिए मैंने उसे अपर्णा के गुस्से का डेमो दिखाने के लिए अपर्णा को जानबूझकर गिराया। फिर उसने जो गुस्सा किया बाप रे! फिर मैंने गार्ड के पास जाकर पूछा कि 'इतने से चलेगा या पूरी पिक्चर दिखाएं?' तो बेचारा कहने लगा 'इतना काफी है। ये तो वहीं हो गया कि लोग जितना शांत उतना ही बवाल मचाते है।" रुद्र ने अपर्णा का ऑफिस का पहला दिन याद करते हुए कहा। उसकी बात सुनकर विक्रम पेट पकड़कर हंसने लगा। फिर अचानक ही कुछ याद आने पर पूछा, "तुम्हें ये सब कैसे पता कि वो इतना गुस्सा करती है?"
विक्रम के सवाल पर रुद्र ने बनारस वाला किस्सा बता दिया। सब सुनकर विक्रम खड़ा होकर रुद्र के पास आया और उसके कान खींचकर कहने लगा, "साले! तू पहले से उसे जानता है और अब बता रहा है। तभी मैं सोचूं तुने इतनी आसानी से उसे नौकरी पर कैसे रख लिया? फिर जब मैंने उसका टेस्ट लिया तो लगा कि उसका काम देखकर तुने उसे नौकरी पर रखा है। लेकिन यहां तो उल्टी गंगा बह रही है।"
विक्रम की बातें सुनने के बाद रुद्र को पता चला कि उसने बातों-बातों में विक्रम को अपर्णा के बारे में सब बता दिया है। तो वह अपना कान छुड़ाकर, बेड पर जाकर सो गया और कहने लगा, "आप सोच रहे है वैसा कुछ नहीं है। अब आप जाईए। मुझे सोना है।"
"कोई बात नहीं बेटा। तुझे तो मैं जन्माष्टमी के दिन देख लूंगा।" विक्रम ने कहा और अपने कमरे में चला गया।


(क्रमशः)

_सुजल पटेल