एक बूंद इश्क - 12 Sujal B. Patel द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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एक बूंद इश्क - 12

१२.रक्षाबंधन


कुछ दिन ऐसे ही बीत गए। इन दिनों में रुद्र और अपर्णा की किसी ना किसी बात पर लड़ाई हों ही जाती। इसी बीच रक्षाबंधन की छुट्टियां पड़ते ही अपर्णा बनारस जाने की तैयारी करने लगी। वह अपना बैग पैक कर रही थी। तब नियति उसकी मदद करने के लिए आई।
"तुम ट्रेन से जा रही हों या प्लेन से?" नियति ने आतें ही पूछा।
"मै अपनें दोस्त की गाड़ी में जा रही हूं। आज़ निकलेंगे तो कल तक आराम से पहुंच जाएंगे।" अपर्णा ने बैग पेक करते हुए कहा।
"वहीं दोस्त ना जो तुम्हें उस दिन यहां छोड़ने आया था?" नियति ने अपर्णा को उसका सामान देते हुए पूछा।
"हां, वहीं दोस्त! उसका नाम कबीर है।" अपर्णा ने कहा।
"अच्छा तो जन्माष्टमी तो यहां आकर मनाओगी ना? रूद्र सर के यहां उस दिन बहुत बड़ा फंक्शन होता है।" नियति ने पूछा।
"कोशिश करुंगी अगर हो पाया तो आ जाउंगी।" अपर्णा ने बैग बंद करते हुए कहा।
"ठीक है, हैप्पी जर्नी।" नियति ने अपर्णा को गले लगाकर कहा और चलीं गईं।
नियति के जाते ही अपर्णा अपना सारा सामान लेकर नीचे आ गई। उतने में कबीर भी अपनी गाड़ी लेकर आ गया। अपर्णा ने अपना सामान पीछे की सीट में रखा और आगे आकर बैठ गई। कबीर ने गाड़ी आगे बढ़ा दी। नियति अपने फ्लैट की बाल्कनी से दोनों को जाता हुआ देख रही थी। फिर उसने किसी को एक मैसेज भेजा और अंदर आ गई।

कल राखी का त्यौहार था तो रूद्र और विक्रम अपनी बहन के लिए तोहफ़े लेने मार्केट आएं हुए थे। उस वक्त रुद्र ने अपनें फ़ोन पर आया एक मैसेज पढ़ा तो उसके चेहरे पर सुकून दिखाई दिया। ये देखकर विक्रम ने पूछा, "ऐसा मैसेज में क्या पढ़ लिया? जो चेहरे पर इतना सुकून नज़र आ रहा है?"
"कुछ भी तो नहीं। ऑफिस के काम का ही मैसेज था।" रूद्र ने फोन वापस से जेब में रखकर कहा।
"ओहहह..तो अब मुझसे भी झूठ बोला जा रहा है। कोई बात नहीं बेटा! जन्माष्टमी के दिन तुझे अच्छे से देख लूंगा।" विक्रम ने कहा और मुस्कुराते हुए आगे बढ़ गया।
"मुझे भी उसी दिन का इंतजार है। बस वो आ जाएं।" रुद्र ने मन ही मन कहा और वह भी आगे बढ़ गया। दोनों भाइयों ने मिलकर अपनी बहन के लिए ढेर सारे तोहफे खरीदें। आखिर स्नेहा उनकी एकलौती बहन जो थी। फिर राखी का त्यौहार तो भाई-बहन के लिए सब से ख़ास होता है। तो उस दिन अपनी बहन को खुश करना बनता है।
रुद्र और विक्रम तोहफे खरीदकर बाहर आएं और सभी बैग्स गाड़ी में रखकर विक्रम ने किसी को फोन किया।
"हेल्लो मॉम! स्नेहा कहा है?" विक्रम ने तुरंत पूछा।
"वो उसकी दोस्त के यहां गई है।" विक्रम की मॉम सरिता जी ने कहा।
"ठीक है।" विक्रम ने कहा और फोन डिस्कनेक्ट करके गाड़ी की ड्राईवर सीट पर आ बैठा। रुद्र उसकी पासवाली सीट में बैठ गया। विक्रम ने गाड़ी घर की तरफ़ आगे बढ़ा दी। घर पहुंचते ही दोनों ने सारे तोहफे गेस्ट रूम में रखे ताकि स्नेहा उन तक पहुंच ना पाएं। तोहफे रखने के बाद दोनों नीचे आकर टीवी देखने लगे।
स्नेहा जब घर पर आई तो वह सीधा अपनें दोनों भाईयों के कमरें में पहुंच गई। ताकी वो पता कर सके की उसके भाई उसके लिए तोहफ़े लाएं है या नहीं? लेकिन उसे वहां कुछ नहीं मिला। वह नीचे आकर मुंह फुलाकर बैठ गई। उसका फुला हुआ मुंह देखकर विक्रम और रूद्र को हंसी आ रही थी। लेकिन वह कैसे भी कंट्रोल करके बैठे थे। हर साल रक्षाबंधन का अगला दिन ऐसा ही जाता था। स्नेहा पूरा दिन मुंह फुलाएं घूमी और रात को सो गई।

अगली सुबह रुद्र और विक्रम जल्दी ही उठकर राखी की तैयारी करने लगे। दोनों ने स्नेहा के कमरें में आकर जगह-जगह तोहफे रख दिए। फिर वापस अपने कमरे में आ गए। स्नेहा की जब नींद खुली। तो वह पहले कपड़े निकालने वॉर्डरॉब की ओर गई। उसने वॉर्डरॉब खोला तो उसमें उसे अपना पहला तोहफ़ा मिला। जो एक सुंदर ड्रेस थी। उसे लेकर स्नेहा बाथरूम में चली गई। जब वह नहाकर बाहर आई तब तैयार होने गई। तो ड्रेसिंग के पास एक प्यारा सा नेकलेस मिला।
विक्रम और रूद्र ने ऐसे ही पूरे कमरे में तोहफे रखे थे। जिसे देखकर स्नेहा बहुत खुश हुई। वह तैयार होकर नीचे आई तब सब ने देखा की रात को जो गुस्से से फुला हुआ चेहरा लेकर सोई थी। वही चेहरा अब खुशी से फूला नहीं समा रहा था। उसने अपने दोनों भाईयों के पास आकर कहा, "आप दोनों हर साल ऐसा ही करते है। जब अगले दिन ही तोहफे लाते है तो तभी क्यूं नहीं देते?"
"क्यूंकि मेरी प्यारी बहना! तोहफ़े उसी वक्त दिए जाते है जब उसका सही वक्त हों।" रूद्र ने कहा तो स्नेहा मुस्कुराने लगी।
आज़ घर के सभी लोगों ने मिलकर पहले घर के मंदिर में स्थापित लड्डु गोपाल को राखी बांधी। फिर स्नेहा ने अपने दोनों भाईयों को राखी बांधी। विक्रम और रूद्र स्नेहा के लिए तोहफ़े तो लाएं ही थे। साथ ही परिवार की प्रथा के अनुसार दोनों भाइयों ने स्नेहा को सगुन के तोर पर एक हजार एक का लिफाफा भी दिया। हर साल की तरह दोनों भाईयों ने इस साल भी स्नेहा को खुश कर दिया।
रक्षाबंधन के बाद सब लोग जन्माष्टमी की तैयारियों में लग गए। आज़ से सात दिन बाद अग्निहोत्री परिवार में जन्माष्टमी का बहुत बड़ा फंक्शन होनेवाला था। इसके लिए सारी तैयारी अभी से करना जरूरी था। सब लोगों ने अपने-अपने हिसाब से एक एक काम चुन लिया। रुद्र तो बस अपनें दादाजी के वेलकम की तैयारी में लग गया। जब से दादाजी आश्रम गए थे। रूद्र हर साल यहीं काम करता था।


(क्रमशः)

_सुजल पटेल