समझौता प्यार का दूसरा नाम - 6 Neerja Pandey द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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समझौता प्यार का दूसरा नाम - 6

विमल और वसुधा ने अपनी जिंदगी की शुरुआत सभी बड़ों के आशीर्वाद से की। वसुधा ने कभी सोचा भी न था की पापा उसकी शादी विमल से करा देंगे। सब कुछ सपने के सच होने जैसे लग रहा था; बल्कि सपने से भी खूबसूरत लग रहा था। सपना तो कुछ पल बाद टूट जाता है, पर ये तो खुली आंखों से दिखने वाला सपना था।
कुछ दिनों की छुट्टी दोनो ने ले रक्खी थी। इस बीच वो घूमने भी गए। अब छुट्टियां खत्म हो गई। दोनो अपने अपने काम पर जाना शुरू कर देते है। मिलजुल कर घर का निपटाते और नौकरी करते। सब ठीक था पर विमल ने ये बात सब से छिपाई थी की वो ईसाई बन गया है। अब धीरे धीरे सामने आ रहा था। हर संडे सुबह वो गायब हो जाता। पूछने पर भी नही बताता। पर हकीकत बहुत दिन नहीं छुप पाती। यही हुआ एक दिन वसुधा को पता चल गया। वो बहुत दुखी हुई । इतना बड़ा सच विमल ने उससे और उसके परिवार वालों से छुपाया था। उसका विमल पर किए अटल विश्वास को ठेस लगी थी। पर विमल ने उसे समझाया ये सब तुम्हे भी बहुत अच्छा लगेगा, एक बार तुम चर्च चल के तो देखो। बहुत शांति मिलती है। समझा बुझा कर वो वसुधा को भी चर्च ले कर गया। पहले तो वसुधा बेमन से गई पर वहां सभी की सहृदयता उसे पसंद आई। वहां की प्रार्थना सभा में उसे भी धीरे धीरे अच्छा लगने लगा। पर अपने मायके में उसने ये बात नहीं बताई।
धीरे धीरे एक वर्ष बीत गया।
विमल को बच्चे बहुत पसंद थे। वो जल्दी से जल्दी पिता बनाना चाहता था। पर अभी तक कोई खुशखबरी नहीं आई उनके घर। विमल ने वसुधा से कहा," वसु तुम हॉस्पिटल में ही काम करती हो,डॉक्टर के संग रहती हो क्यूं नहीं अपना चेक अप करवाती हो…?"
पहले तो वसुधा ने टाला की "कौन सी हमारी उम्र बीत गई है? अभी तो एक साल ही हुआ है।"
पर विमल ने हठ ही पकड़ ली। हार कर वसुधा को भी राजी होना पड़ा। विमल खुद उसे लेकर डॉक्टर के पास गया। डॉक्टर ने दोनो को कुछ दवाएं लिखी और दो महीने बाद आने को कहा।
अफसोस दो महीने बाद भी दोनो के हाथ निराशा ही लगी। दोनो फिर डॉक्टर से मिले। डॉक्टर ने इस बार दोनो के ढेर सारे टेस्ट करवा डाले। वो अपनी सारी शंका का समाधान कर लेना चाहती थी। अब रिपोर्ट की प्रतीक्षा होने लगी। वसु और विमल दोनो आशंकाओं से घिरे थे। पर प्रत्यच्छ रूप से एक दूसरे को आश्वासन देते की सब अच्छा ही होगा। सारी रिपोर्ट नॉर्मल ही आएगी।
आज रिपोर्ट मिलना था दोनो ही नर्वस थे । मन में अनेक आशंकाएं उथल पुथल मचा रही थीं। विमल जानता था की वसुधा बिना डॉक्टर के बताए ही रिपोर्ट देख कर सब समझ जायेगी इसलिए वो उसके साथ ही रहा उस दिन छुट्टी ले कर। रिपोर्ट ले कर इंतजार करता रहा। जब वसु आई तो दोनो सबसे लास्ट में डॉक्टर के पास गए। रिपोर्ट डॉक्टर के हाथ में थी, जैसे जैसे वो देखती जा रही थी हर पन्ने के साथ उनके चेहरे की गंभीरता बढ़ती जा रही थी। जिसे देख वसु और विमल दोनो बेचैन हो रहे थे ये जानने के लिए की आखिर रिपोर्ट में लिखा क्या है? डॉक्टर ने रिपोर्ट पढ़ कर एक लंबी सांस लेते हुए उसे टेबल पर रख दिया। अब विमल से बर्दाश्त नहीं हुआ पूछ बैठा,"क्या हुआ डॉक्टर साहब सब ठीक तो है ना.. कोई परेशानी वाली बात तो नहीं है ना…!"
डॉक्टर ने कहा,"देखिए मिस्टर विमल वसुधा मेरी छोटी बहन जैसी है। मैं इधर उधर की बातें करके उसे झूठी उम्मीद नहीं दिखा सकती। सच बात तो ये है की आपकी सारी रिपोर्ट नॉर्मल है, पर प्रॉब्लम वसुधा में है।
और कोई छोटी मोटी प्रॉब्लम नहीं है। आप कहीं भी इलाज करा लें पर सच्चाई ये है की वसुधा कभी मां नहीं बन सकती।"
फिर वो बोली,"आप निराश ना हो किसी बच्चे को गोद ले ले। अबोध बच्चे को खुद जन्म दे या पाले मां बाप तो आप बन ही जायेंगे ना।"
इसके बाद डॉक्टर उठी और वसु के कंधे पर दिलासा के लिए हाथ रक्खा। "निराश मत हो सब ठीक हो जायेगा।" इसके बाद वो अपने केबिन से बाहर चली गई। डॉक्टर के मुंह से निकले कुछ शब्दों ने विमल और वसु की दुनिया बेरंग कर दी थी। सारे अरमान जैसे टूट गए। दोनो में से किसी के पास शब्द नहीं था एक दूसरे को आश्वासन देने के लिए। चुप चाप उठ कर दोनो घर चल दिए।
उस रात खाना नहीं बना, किसी ने भी पहल नहीं की। कपड़े बदल बिस्तर के दो कोनों पर दोनो लेट गए। आंख से नींद कोसो दूर थी पर एक दूसरे को ऐसा दिखा रहे थे की सो रहे है। अपनी सिसकियों को काबू में कर वसुधा चुपचाप रोती रही। रोते रोते वसु की पलके कब बंद हुई उसे पता भी नहीं चला।
दुख चाहे जितना भी बड़ा हो खुद को संभाल कर आगे बढ़ना ही पड़ता है। पहले तो वसुधा ने सोचा छुट्टी ले ले। पर छुट्टी कोई विकल्प नहीं था। इसलिए ड्यूटी जाने का निश्चय किया। घर पर पड़े पड़े बेकार के दस ख्याल मन में आयेंगे। वहां थोड़ा मन बदलेगा। यही सोच वो उठी और जल्दी जल्दी नाश्ता बनाया अपने और विमल के लिए। फिर लंच पैक किया दोनो का और रोज की तरह विमल उसे हॉस्पिटल छोड़ आया।
जिंदगी चल रही थी,पर अब वैसी खुशनुमा नहीं रह गई थी। इस निराशा से मुक्ति का मार्ग विमल के अनुसार प्राथना सभा में ही सिर्फ था। वो वसुधा से कहता,"प्रभु सब ठीक करेंगे उनके पास से किसी को निराशा नहीं हुई है।
तुम विश्वास रखो वो हम दोनो को भी जरूर हमारी खुशियां देंगे।" वो कहते है ना की कोई भी बात जब बार बार दोहराई जाए तो सच लगने लगती है। यही हाल वसु का भी था। युग युग से सनातनी परिवार की बेटी वसुधा को अब ईशु की प्रार्थना सभा अच्छी लगने लगी थी। धीरे धीरे उसका भी नजरिया विमल जैसा ही होने लगा था।

विमल जब भी वसुधा के साथ उसके मायके जाता सब बहुत प्रभावित होते उसके रईसी, रोबीले अंदाज से। रागिनी और जयंती तो जैसे मंत्र मुग्ध हो जाती विमल को देख कर। वो उन्हे भी खूब प्रोत्साहित करता पढ़ाई करने के लिए।
एक दिन वसुधा हॉस्पिटल में थी तभी उसने बाकी नर्सों को बात करते सुना की पुल के नीचे एक लावारिस नवजात बच्चा मिला है, जिसे किसी ने मरने के लिए छोड़ दिया था। वो बहुत बीमार है। उसका इलाज हो रहा है। ये सुन कर वसुधा के अंदर दबी ममता हिलोरे मारने लगी। कहां वो तड़प रही है मां बनने के लिए और कोई बच्चे को मरने के लिए फेक गया। उसके कदम बच्चों के वार्ड की ओर बढ़ चले। उस मासूम नवजात को देख वसुधा खुद को रोक ना सकी। झट से हाथ बढ़ा कर उसे उठाया और सीने से लगा लिया। लगा जैसे ये उसका खुद का जन्मा बच्चा हो। वो अपनी ड्यूटी भूल कर उस बच्चे के पास ही रह गई। वसु की स्थिति से सभी वाकिफ थे इसलिए किसी ने उसे रोका नहीं। शाम को विमल उसे लेने आया। पर उसने विमल को वापस भेज दिया। बच्चा जब वसु की गोद में रहता तो चुप रहता। जैसे ही बिस्तर में लिटाया जाता रोने लगता। विमल भी बच्चे को देख उसमे अपने बच्चे की छवि देख रहा था।
विमल घर गया फिर दोनो के लिए खाना लेकर वापस हॉस्पिटल आ गया। तीन दिन में बच्चा बिलकुल ठीक हो गया। जिन डॉक्टर ने बच्चे का इलाज किया था वो वसुधा और विमल की ममता देख ये फैसला लिया की अगर वो पुलिस को बच्चा सौंपेंगे तो वो अनाथालय ही जायेगा।
अनाथालय में इसका भविष्य कैसा होगा ? इसका अंदाजा डॉक्टर को भी था। बच्चे के लिए तड़पते एक दंपती को सौंपा उन्हे पुण्य का काम ही लगा। इससे अच्छा है की वो चुप चाप बच्चा वसुधा और विमल को ही सौप दे। उनके पास बच्चे का भविष्य सुरक्षित रहेगा। इस तरह वसु और कमल बच्चे को लेकर घर आ गए। उसके किए ढेर सारी चीजे विमल ने खरीदी। वो बहुत खुश था इस बच्चे का पिता बन कर। वसु तो उस पर अपनी ममता उड़ेलते न अघाती। जब भी वसु को बच्चे संग खुश देखता विमल कहता "देखा प्रभु ईशु ने हमारी सुन ली उनकी ही कृपा से आज हमारे घर में एक स्वस्थ बच्चा खेल रहा है।" वसु को भी ऐसा ही लगता। विमल ने बच्चे का नाम अरुण रक्खा। वो कहता इसके चेहरे पर सूर्य सी चमक है इस लिए इसका नाम अरुण होगा।
बच्चे के आ जाने से वसुधा की जिम्मेदारी बहुत बढ़ गई थी। वो परेशान हो जाती घर और बच्चा संभालने में। फिर नौकरी भी करनी थी आखिर कब तक छुट्टी ले कर बैठती? विमल सहयोग तो करता था पर उसकी भी नौकरी थी। वसु ने अपना विचार विमल के सामने रक्खा की वो अपने घर से किसी को बुला लेती है। विमल ने कहा,"मां की तो उम्र हो गई है वो बच्चे और घर दोनो को नहीं संभाल पाएंगी। तुम ऐसा करो… रागिनी को बुला लो। उस बिचारी की आगे पढ़ाई कराने को उसके घर वाले तैयार नहीं हैं। जबकि वो पढ़ने के साथ साथ संगीत भी सीखना चाहती है। उसके रहने से तुम्हे भी सहारा मिल जायेगा और उसकी पढ़ाई भी हो जायेगी।"
वसु खुश हो गई। उसने सोचा उसके दिमाग में ये बात पहले क्यों नही आई? वसु ने फैसला किया कि अब वो जल्दी से जल्दी विमल के साथ अपने गांव जायेगी और रागिनी को अपने साथ ले आएगी।
अभी तक मोटर साईकिल से चलने वाले विमल को अब दो पहिए नहीं सुहाते थे। उसने अपनी और वसुधा की सैलरी से रुपए इक्कठे कर एक कार खरीद ली। वसु तो छुट्टी पर थी ही अपनी छुट्टी पड़ते ही कमल वसु को संग ले गांव के लिए चल पड़ा।
जो परिवार वाले पहले विमल से उखड़े उखड़े से रहते थे। अब उसके हंसमुख व्यवहार से सब उसे पसंद करने लगे थे। घर पहुंचते ही रागिनी जयंती सब वसुधा और बच्चे को देखने चले आए।

क्या विमल ने रागिनी को साथ रख कर पढाने का प्रस्ताव रक्खा? क्या रागिनी के घर वाले तैयार हुए उसे भेजने को? पढ़े अगले भाग में।🙏🙏🙏🙏