जैसें कि समय, स्थान, अनंत के लियें जो अनुकूलता योग्य नहीं ऐसा क्रोध, डर, भूख, गर्व, अहं, ईर्ष्या, मोह, संदेह यानी झिझक आदि इत्यादि ऐसा कुछ भी जिसें नही होना चाहियें।
यदि ध्यान हटाया जा सकें तो इस कदर हटाओं कि तुमकों उसके अनुभव की पहचान भी न रह पायें।
24 JAN. 2022 AT 23:36
ध्यान पर नियंत्रण की सार्थकता से भिज्ञता जरूरी हैं।
यह जान लेना जरूरी हैं कि यदि समस्या हैं तो इसका मतलब हैं कि ध्यान पर नियंत्रण नहीं और समाधान हैं इसका मतलब हैं ध्यान नियंत्रण में हैं।
यदि ध्यान पर नियंत्रण हैं तो कोई समस्या नहीं हैं क्योंकि हम जहाँ नहीं चाहते कि हमारा ध्यान जायें, यदि हमारी इच्छा के बिना वह फिर भी जायें तो ही तो समस्या हैं; नहीं तो समाधान।
उदाहरण के लियें हमें सुबह पाँच बजें उठना हैं; जिससें कि हम अखाड़ें जाकर कसरत कर सकें तो यदि हमारा ध्यान आलस्य के अनुभव पर जायें यानी वहाँ जायें जहाँ नहीं जाना चाहियें तो समस्या हैं और यह तभी संभव हैं जब ध्यान हमारें नियंत्रण में नहीं हों।
परंतु यदि हम हमारें ध्यान पर इतना नियंत्रण रख सकें कि वह वहाँ लगें जहाँ हम चाहतें हैं यानी अखाड़े जाने पर और वह भी इस कदर कि हम आलस्य का अनुभव ही भूल जायें तभी समाधान हैं।
अब यदि हम ध्यान की एकाग्रता या निरुद्धता वाले नहीं तो हमें चाहें उसे साधना ही क्यों नहीं पड़े, उसें साध कर नियंत्रित करनें में ही जड़ से समाधान हैं इस लियें नियंत्रण करना ही होगा।
25 JAN. 2022 AT 9:21
मोह इससें नहीं हैं कि तुम किसी के भी प्रेम पर ध्यान ही न दों, तुम्हारा उस अधिकता में ध्यान देना तब अनुचित्ता होगी जो ध्यान तुम्हें तुम्हारें द्वारा कियें जा सकनें वालें प्रेम पर तुम्हारा ध्यान ही नहीं होनें दें , हाँ! तब मोह इतना अधिक होगा यानी अनुचित होगा जब तुम अपने प्रेमी के प्रेम पर केवल ध्यान दों जिससें कि अपनें प्रेम पर ध्यान ही न दें सकों।
26 JAN. 2022 AT 9:58
शून्य और अनंत अस्तित्व यानी जो नहीं हैं और जो हैं उसकी यानी अपनी यथार्थ यानी परम् अर्थ पूर्ति में निरुद्धचित्तता ही परम् समाधि हैं।
27 JAN. 2022 AT 14:27
ऐसा कोई जो तर्क की सार्थकता से भिज्ञता रखता हों फिर भी पूरें होश के साथ अतार्किकता युक्त अभिव्यक्ति करनें वाला हैं या वह कर रहा हैं तो इसका अर्थ स्पष्ट हैं कि आपकों उसकी तर्क हीन प्रतीत होने वाली अभिव्यक्ति तो पूर्णतः तर्क संगत हैं परंतु जिस अनुभव के आधार पर उसनें अभिव्यक्ति की हैं आप उसकी भिज्ञता से वंचित हैं।
29 JAN. 2022 AT 11:32
यदि आप सही अर्थों के यानी यथार्थ धर्म नामक परम् कर्म की पूर्ति कर रहें हैं तो कोई आपको अपने धर्म का पालन करनें से रोक नहीं सकता और आप भी किसी के भी साथ किसी भी शर्त पर ऐसा नहीं कर सकतें। जिस धर्म का पालन करनें से पालन कर्ता को बाधित किया जा सकें; यदि सत्य कहें तो यथा अर्थों में धर्म हैं ही नहीं।
31 JAN. 2022 AT 12:12
ऐसी कोई भी समस्या नहीं हैं जिसकी जड़ अचेतनता यानी बेहोशी नहीं हों; जितनी अधिक बेहोशी उतनी ही बड़ी समस्या। यह कहना अनुचित न होगा कि बेहोशी ही समस्या या हानी का स्पष्ट अर्थ हर एक महत्वपूर्ण आधार पर हैं और बेहोशी के विपरीत चेतनता यानी होश या ध्यान ही हर एक समस्या का समाधान। चेतन्यता जितनी अधिक होगी उतनी ही अधिक हर एक समस्या के कम से कम होने की संभावना।
31 JAN. 2022 AT 20:38
परमात्मा इतने श्रेष्ठ हैं कि उनकी यथार्थ भक्ति करनें वालें यानी सही अर्थों के जो उनके भक्त हैं वह भी उन जितनी ही श्रेष्ठता वालें हों जायें यानी योग्यता के आधार पर परमात्मा हो जायें तो भी संकोच करना अनुचित्ता होगी।
- © रुद्र एस. शर्मा (०,००)