हॉंटेल होन्टेड - भाग - 14 Prem Rathod द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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हॉंटेल होन्टेड - भाग - 14

मनीष और राज दोनों बातें कर ही रहे थे कि तभी उन्हें पीछे से आवाज सुनाई देती है "क्या आप लोग उस भूतिया जगह में ठहरे हैं?"यह आवाज सुनकर वह चारों चौक जाते हैं और पीछे मुड़कर देखने लगते हैं। वह पीछे देखते हैं तो पाते हैं कि एक आदमी उन लोगों के पीछे खड़ा था उसके कपड़े को देखकर यह कह सकते हैं कि कोई आम आदमी होगा, वह चलते हुए उन चारों के पास आता है।

मनीष उसकी ओर देखकर कहता है "भूतिया जगह से आपका क्या मतलब है?आप ऐसा क्या जानते हैं उस जगह के बारे में कि उसे भूतिया कह रहे हैं?" मनीष की बात सुनकर वह आदमी मनीष की ओर देखते हुए कहता है "कुछ नहीं साहब मैं बहुत सारी बातें बता सकता हूं,उस मनहूस जगह के बारे में, उस जगह में रुकना यानी अपनी मौत को बुलाने जैसा है, साहब मेरा नाम रमेश है, मैं यही का रहने वाला हूं,अभी तो मैं मिल में काम करता हूं, पर जब वह होटल बन रहा था तब मैंने वहां भी काम किया था।"

रमेश की बात सुनकर मनीष राज की और देखते हुए कहता है "शायद मैंनेजर निकुंज का कहना सही था, यह गांव वाले ही बातें बना कर उस होटल के बारे में कई तरह की अफवाहें फैला रहे हैं।" मनीष की बात सुनकर रमेश उसे ओर घूरते हुए कहता है "आपको यह बात शायद मजाक लगे पर मैंने जो अपनी आंखों से देखा है मैं वही बता रहा हूं,यह कोई मनगढ़ंत कहानी या अफवाह नहीं है।" उसकी बात सुनकर मनीष के साथ सभी लोग उसकी और देखने लगते हैं।

"यह कोई मजाक की बात नहीं है साहब, वह जगह सचमुच शापित है,आप शायद इन सब बातों पे यकीन नहीं करते होगे पर वह जगह बनते वक्त कई मजदूरों की जानें गई है,उनमें से अभी कितने लोगों की तो लाशें भी नहीं मिली है।" रमेश की बात सुनकर वहां जैसे सन्नाटा सा छा गया था,उन चारों में से कोई भी कुछ नहीं बोल रहा था। रमेश अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहता है "चलो शायद आपको लगता है यह मेरी बनी बनाई मनगढ़ंत कहानी है,पर होटल के इनॉगरेशन के दिन जो हुआ उसके बारे में तो पूरे ऊंटी के लोगों को पता होगा,क्योंकि उस दिन जो हुआ वह तो सभी लोगों ने अपनी आंखों से देखा है और यह बात किसी से भी छुपी नहीं है। शायद कभी ही लोग उस रात का वह मंजर भूला पाएंगे।रमेश की बात सुनकर मनीष हैरान भरी नजरों से उसके सामने देखते हुए पूछता है "क्यों आखिर ऐसा क्या हुआ था उस रात?"

यहां के सबसे बड़े बिजनेसमैन धवल साहब की उसी रात पार्टी में मौत हो गई थी, इसके अलावा एक कपल और होटल के बाहर मौजूद गार्ड्स उन सभी की उसी रात मौत हो गई था।उस पार्टी में मौजूद लोगों के मुताबिक कपल में जो लड़की थी उसके शरीर के टुकड़े टुकड़े होते हुए सभी लोगों ने अपनी आंखों से देखे थे और धवल साहब के अलावा बाकी चारों की लाश का कोई भी पता नहीं है।"

रमेश की बात सुनकर अंकिता मनीष का हाथ पकड़ते हुए कहती है "मनीष मुझे लगता है इनका कहना ठीक है, शायद हमें इस होटल से चले जाना चाहिए।मुझे इनकी बातें सुनकर अब डर लग रहा है ,सचमुच वहां पर कुछ हुआ तो, इसलिए जल्द से जल्द हमें यहां से चले जाना चाहिए।"

अंकिता की बात सुनकर मनीष उसकी ओर देखते हुए कहता है "क्या तुम भी अंकिता.... तुम कहां इसकी बातों में आ रही हो। यहां लोग तो ऐसे ही बातें बनाते रहते हैं,जानती हो ना निकुंज ने पहले ही हमें कहा था और वैसे भी उन लोगों की बॉडीज अभी तक नहीं मिली है तो फिर यह सब इतना यकीन से कैसे कह सकते हैं कि वह लोग मर ही गए होगे।" मनीष की बात सुनकर अंकिता सोच में पड़ जाती है।अंकिता का चेहरा देखकर मनीष रमेश की ओर देखते हुए कहता है "आप जाइए यहां से बेकार में यह सब बातें बनाकर हम लोगों को डराना बंद कीजिए और वैसे भी मैंने आपसे कुछ नहीं पूछा था, हम लोगों को खामखा परेशान करना बंद कर कीजिए।"

मनीष की बात सुनकर रमेश रहता है "देखो साहब मैंने आपकी अच्छाई के लिए जो कहना था वह कह दिया, मानना या ना मानना अब यह आपके ऊपर हैं, शायद मैंरे कहने से कुछ लोगो की जान बचती है तो इसीलिए इंसानियत के नाते मैंने आपसे कहा था, वैसे भी सच ही कहा है किसी ने मां के बिना दी हुई सलाह या मदद की वैसे भी कोई कीमत नहीं होती, अच्छा साहब मैं चलता हूं" इतना कहकर रमेश रेस्टोरेंट के बाहर निकल जाता है और वह चारों उसे चाहते हुए देखते रहते हैं। रमेश के जाते ही मनीष अंकिता की और देखता है,जो अभी भी उन सब चीजों के बारे में सोच रही थी। मनीष उससे कहता है" मैंने कहा ना अंकिता तुम इस चीज के बारे में ज्यादा मत सोचो, यह सब बातें बनाने के लिए बोल देते हैं।" अंकिता बस मनीष की ओर देखती रहती है, उसके बाद वह चारों खाना खाकर वापस होटल की ओर जाने लगते हैं।

अंकिता वापस जाते हुए रास्ते में उन्हीं सब चीजों के बारे में सोच रही थी, रमेश की कही गई बातों ने उसके दिमाग में अभी भी घूम रही थी, अब उसका घूमने का बिल्कुल मन नहीं था क्योंकि वह बड़ी मुश्किल से रात की वह सब बातें बुला पाई थी, पर वह सब फिर से उसके दिमाग में घूमना शुरू हो गया था। इसलिए वह परेशान लग रही थी। होटल में अपने रूम पर आकर अंकिता कुछ बात किए बिना सो जाती है मनीष भी उसे परेशान करना ठीक नहीं समझता। ऐसे करते कब रात हो जाती है उन दोनों को पता नहीं चलता। रात में चारों डिनर पर मिलते हैं।मनीष अंकिता के चेहरे को देख रहा था, जो बिना कुछ बोले हुए बस खाने पर ध्यान दे रही थी, इसलिए वह राज से कहता है "हेय राज क्यों ना खाने के बाद हम लोग कहीं घूमने चलें,आज वैसे भी पूर्णिमा है इसीलिए रात में घूमने का और भी मजा आएगा।"
मनीष की बात सुनकर राज कहता है "हां आईडिया तो अच्छा है पर घूमने कहां जाएंगे?"

उसके जवाब में मनीष कहता है "अरे होटल के पीछे जो जंगल है वहीं पर घूमने चलते हैं, वैसे भी वहां किसी जंगली जानवरों का खतरा भी नहीं है, तुम क्या कहती हो अंकिता?" मनीष अंकिता को देखते हुए कहता है जो कोई जवाब नहीं देती इसीलिए मनीष वापस अंकिता से कहता है "अंकिता......" मनीष की आवाज सुनकर अंकिता कहती है "हंहह.... क्या?"मनीष फिर से अपनी बात दोहराते हुए कहता है "खाने के बाद पीछे जंगल में घूमने चलें?" अंकिता उसकी बात सुनकर कहती है "हां क्यों नहीं अच्छा आईडिया है।"उसका यह जवाब सुनकर मनीष खुश हो जाता है। सभी लोग अपना खाना कंप्लीट करते हैं और होटल के पीछे के दरवाजे से निकलकर जंगल की ओर जाने लगते हैं।

होटल की रोशनी से दूर जैसे जैसे वह आगे चलते थे होटेल के लाइट्स की रोशनी कम होती जा रही थी, पर आसमान में खिले हुए पूरे चांद की वजह से उन्हें देखने में दिक्कत नहीं हो रही थी। तारों से चमकता हुआ आसमान बहुत सुंदर दिख रहा था,थोड़ी दूर चले थे कि तभी वह जंगल के घने पेड़ों के बीच पहुंच गए पेड़ों के पत्तों के बीच में से चांद की चांदनी नीचे जमीन को छू रही थी। अंकिता गौर से पूरी जंगल को देख रही थी अब बिल्कुल शांत लग रही थी, वह मनीष के बिल्कुल पीछे चल रही थी। सभी लोग बातें करते हुए आगे बढ़ रहे थे। पर तभी अचानक मनीष को अंकिता के पैरों की आवाज सुनाई देने बंद हो जाती है इसलिए वह पीछे मुड़कर देखता है तो दंग रह जाता है उसके मुंह से निकलता है "अंकिता???!!!.... अंकिता कहां गई?"

To be continued.......