मेरे घर के ठीक बगल वाले घर में एक बेलदार परिवार था।तीन भाइयों का परिवार एक साथ रहता था।उनमें एक भाई को कोई संतान नहीं थी।उसकी पत्नी ने सारे जप -तप ,व्रत- उपवास,पूजा- पाठ कर डाले पर उसकी कोख फलित नहीं हुई।फिर उसे दौरे पड़ने लगे।दौरा उसे वर्ष में एक बार ही पड़ता था।वह भी बाले मियाँ के विवाह के अवसर पर।
बाले मियाँ मुस्लिमों में पूज्य हैं।वे कोई मुस्लिम सन्त थे।
हजरत सैयद मसूद गाजी मियां (बाले मियां) रहमतुल्लाह अलैह हजरत अली करमल्लाहू वजहू की बारहवीं पुश्त से है। गाजी मियां के वालिद का नाम गाजी सैयद साहू सालार था। सुल्तान महमूद गजनवीं की फौज में कमांडर थे। सुल्तान ने साहू सालार के फौजी कारनामों को देख कर अपनी बहन सितर-ए-मोअल्ला का निकाह बाले मियां से कर दिया। जिस वक्त सैयद साहू सालार अजमेर में एक किले को घेरे हुए थे, उसी वक्त मुताबिक 405 हिजरी में गाजी मियां पैदा हुए।
बाले मियां का वास्तविक नाम अमीर मसूद था। गाजी मियां गजनी से वापस हिन्दुस्तान आए तो राजा महिपाल से जंग में फतह के बाद तख्त पर बैठने से इंकार कर दिया। गाजी मियां जब बहराइच में तशरीफ फरमा थे तब वहां के 21 राजाओं ने मिल कर आपसे बहराइच खाली करने को कहा।
गाजी मियां ने बहादुरी से मुकाबला करते हुए आपने शहादत का जाम पिया।
ऐसे शुरू हुई लगन की परम्परा उस जमाने में रूधौली जिला बाराबंकी की रहने वाली बीबी साहिबा जोहरा पैदाइशी अंधी थी। जिनकी आंखें गाजी मियां की करामात से रौशन हो गई। उन्होंने बहराइच में मजार की चौहद्दी तामीर कराया और यही की होकर रह गई। उनका इंतकाल 19 साल की उम्र में जेठ माह में हुआ। साल गुजरते रहे और फिर एक दिन ऐसा आया कि इस दिन को लोगों ने लगन के नाम से मंसूब कर दिया।
हिंदू- मुस्लिम एकता के प्रतीक हजरत सैय्यद सालार मसऊद गाजी रहमतुल्लाह अलैह का बहुत बड़ा मेला बहरामपुर में लगता है।इस मेले में लाखों की संख्या में अकीदतमंद के आते हैं।
कई एकड़ मैदान में फैले मेला परिसर में खानपान व मनोरंजन की दुकानों सजती हैं। ईदगाह मैदान में भी श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए साफ सफाई करा दी जाती है। आस्ताने पर खाने, पीने, घरेलू सामनों, खिलौनों आदि की दुकानों के साथ ही छोटे-बड़े झूले, सर्कस, जादू यहां आने वाले अकीदतमंदों के मनोरंजन के लिए तैयार रहते हैं।
दरगाह में सभी धर्मों के मानने वाले लोग आते हैं। एक माह तक चलने वाले इस एतिहासिक मेले में लाखों की भीड़ देख पुलिस प्रशासन सुरक्षा व नगर निगम परिसर में सफाई, पेयजल, पथ प्रकाश और अस्थायी शौचालय का इंतजाम कर देती है।
शाम 6 बजे से गाजे -बाजे के साथ आकर्षक झाकियों के साथ बारातों का सिलसिला शुरू होता है। पलंग पीढ़ी लेकर नाचते -गाते आने वाली इन बारातों को देखने के लिए दरगाह क्षेत्र में जायरीनों का सैलाब उमड़ पड़ता है। यह सिलसिला पूरी रात चलता है। बारातों में महिला, पुरुष और बच्चे नाचते -गाते और सिर पर पलंग पीढ़ी लेकर आते हैं। इनका स्वागत आस्ताने में मौजिज लोगों द्वारा किया जाता है। लोग जियारत कर अपने-अपने हिसाब से नजराने अकीदत पेश करते हैं।
इस विवाह का आयोजन बगल के बेलदार परिवार में भी धूमधाम से किया जाता था।कच्चा घर गोबर और पीली माटी से लीप-पोतकर स्वच्छ किया जाता। एक गगन चुंबी पतले बॉस में कपड़े की झंडियां बांधी जातीं।उस बॉस को बाले मियाँ का प्रतीक मानकर उसकी पूजा की जाती।बाले मियां के लिए स्पेशल प्रसाद और चढ़ावा तैयार किया।इस विवाह में ढोल नगाड़े बजाकर उस बॉस को लहराया जाता फिर उसे छत से बांध दिया जाता।
उस दिन बेलदार की बांझ बहू पर बाले मियां आ जाते थे।वैसे तो वह हमेशा पर्दे में रहती थी पर जब उस पर बाले मियां आ जाते तो उसे खुले आंगन में बिठा दिया जाता।वह खेलने लगती तो उसके केश खुल जाते ।साड़ी अस्त -व्यस्त हो जाती। वह बार -बार उछल -उछलकर गिरती।मुहल्ले के समस्याग्रस्त लोग अपनी -अपनी समस्याओं का समाधान पूछने के लिए वहाँ जमा हो जाते।बच्चों का वहाँ आना मना था क्योंकि वे वहां का दृश्य देखकर डर सकते थे।
इस बार माँ नानी के कहने पर मुझे लेकर आई।मैंने देखा कि वे चाची सफेद साड़ी में बाल खोले आंगन में एक धूनी के पास बैठी हैं।धूनी में लोबान जल रहा है।लोग जमा है।एकाएक उनका शरीर हिलने लगा ।वे जोर -जोर से झूमने लगीं और अजीब -अजीब सी आवाजें निकालने लगीं ।मुझे डर लग रहा था मैं वहां से भाग जाना चाहती थी पर माँ मुझे कसकर पकड़े हुए थी। थोड़ी देर खेलने के बाद जब चाची थोड़ी स्थिर हुईं तो लोग एक -एककर अपनी समस्या उनके सामने रखने लगे।वे झूमते हुए उनकी समस्या का समाधान बताती जातीं।जब मेरी बारी आई तो माँ ने मेरा सिर उनके सामने झुका दिया और बताया कि कुछ दिन से इसके पेट में दर्द हो रहा है।उन्होंने मुझे घूरकर देखा।
और माँ से गुस्से में बोलीं--और ...और इसे सहेली के घर भेजो।लड़की इतरा- इतरा कर चलती है।अपने को बहुत काबिल समझती है इसीलिए इसको कुछ खिला दिया गया है। ले ..इसे मियां जी का प्रसाद खिला...ठीक हो जाएगी
कहते हुए उन्होंने जलती धूनी से एक मुट्ठी राख उठाकर मुझ पर फेंक दिया।आश्चर्य की राख बर्फ की तरह ठंडी थी।फिर उन्होंने माँ के हाथ में कुछ बतासे रख दिए।
घर आकर माँ ने वह बतासे मुझे दिए कि बाल मियाँ का नाम लेकर खा जा।हो सकता है इससे तुम्हारी बीमारी ठीक हो जाए।मुझे तो उनकी कही बात सही लग रही है।हो सकता है मीना के घर वालों ने ही कुछ करा दिया हो।
--नहीं माँ ऐसा नहीं हो सकता।
कहते हुए भी मेरे मन में सन्देह पैदा हो गया।सन्देह का कारण भी था। हाईस्कूल की परीक्षा में मैंने कॉलेज टॉप किया था जबकि मीना सेकेंड क्लॉस में पास हुई थी।मीना अक्सर बीमार रहती थी,जबकि मुझे कभी सिर- दर्द भी नहीं हुआ था। नाचने -गाने में भी मैं माहिर थी।एक समय में दस गाने गाकर नाच लेने की क्षमता थी ,जबकि मीना न तो गा सकती थी न उसकी कमर ही हिलती थी।मीना के घर गौने में भी मैं खूब नाची- गाई थी।कहीं इसी जलन में कि उनकी बेटी में ये सब गुण नहीं हैं।उसके घर वालों ने कुछ टोना करा दिया हो।उसके काका तो पूजा -पाठ ,तंत्र -मंत्र,झाड़- फूंक का ही काम करते हैं।
हे भगवान,कहीं कोई भूत तो मुझ पर नहीं छोड़ दिया गया है।
यह सोचते ही मेरे पेट में और जोर से दर्द होने लगा।