तड़प--भाग(६) Saroj Verma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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तड़प--भाग(६)

चित्रलेखा ने वहाँ जाकर देखा तो उसका होटल जलकर खाक हो गया था,अपना माथा पकड़ने के सिवाय उसके पास कोई और चारा नहीं था,उसके दो तीन दिन तो ऐसे ही चिन्ता में बीते,आग लगने का कोई भी कारण पता ना चला,कुछ लोंगों की उसमें जान भी चली गई थी,चित्रलेखा ने उन सब मृतको के परिवार वालों को मुआवजे के रूप में कुछ रकम दी और वो रकम उसने अपने गाँव के खेत और जमीन को गिरवीं रखकर दी थी।।
अब उसके पास केवल जेवरात और उस हवेली के कुछ ना बचा था जिसमें वो रहती थी,अब उसे दिन रात ये चिन्ता सताएं जाती कि अब वो क्या करेगी? बिना पैसों के शिवन्तिका की जिन्दगी कैसे चलेगी? उसके बाद उसका क्या होगा? यही सोच सोचकर वो बीमार रहने लगी।।
तभी एक दिन उनकी हवेली के सामने बहुत बड़ी इम्पाला मोटर आ रूकी और उसमे से ड्राइवर उतर कर आया और माली से पूछा....
चित्रलेखा जी यहीं रहतीं हैं।।
जी! हाँ! यहीं रहतीं हैं मालकिन,माली बोला।।
तो क्या इस वक्त उनसे मुलाकात हो सकती है?ड्राइवर ने पूछा।।
जी! अभी मालकिन घर पर ही हैं,माली बोला।।
तो उन्हें जाकर सूचना दो कि विक्रम सिंह आएं हैं,ड्राइवर बोला।।
और इतना सुनकर माली हवेली के भीतर सूचना देने भागा,विक्रम के आने की सूचना सुनकर चित्रलेखा बाहर आईं,उन्होंने अपनी आँखों का चश्मा ठीक करते हुए देखा और उस शख्स को पहचान गईं.....
वो शख्स अपनी इम्पाला से उतरा और चित्रलेखा के पास आकर उनके चरण स्पर्श किए और फिर बोला....
राजमाता! पहचाना आपने मुझे,मैं आपके बेटे अमर्त्यसेन का जूनियर था,मेरा नाम विक्रम है,अमर्त्यसेन जब विलायत में पढ़ते थे तो उन्होंने ही मुझे विलायत में पढ़ने की सलाह दी थी,तब मेरे पास इतने रूपए नहीं थे तो आपलोगों की मदद से ही मैं विलायत पढ़ने जा सका,फिर मुझे वहीं अच्छी नौकरी मिल गई और मैं वहीं बस गया,
सालों बाद भारत लौटा हूँ तो आपलोगों की याद आ गई तो सोचा आपलोगों से मिलता चलूँ लेकिन यहाँ आकर पता चला कि अमर्त्यसेन तो इस दुनिया से जा चुके हैं और आपका होटल भी जलकर खाक़ हो गया है,मैने तो ये भी सुना है कि आपने जमीन-जायदाद भी गिरवीं रख दी है,इतना सबकुछ हो गया और आपने मुझे खबर भी नहीं की।।
मुझे तो तुम्हारी याद ही ना रही,अभी देखा तब याद आया,चित्रलेखा बोली।।
मैं आपकी कोई भी मदद करने को तैयार हूँ,विक्रम बोला।।
पहले अन्दर चलो,फिर बात करते हैं,चित्रलेखा बोली।।
फिर चित्रलेखा,विक्रम को भीतर ले गई और उनके बीच बहुत सी बातें हुई और बातों ही बातों में ये निष्कर्ष निकला कि चित्रलेखा को विक्रम के साथ विलायत चले जाना चाहिए लेकिन चित्रलेखा बोली...
विक्रम! मैं अकेली होती तो तुम्हारे साथ विलायत चल पड़ती लेकिन मेरी पोती भी तो है,उसे किसके सहारे छोड़ दूँ।।
क्या कहा आपने? आपकी पोती भी है,विक्रम बोला।।
हाँ!उसका नाम शिवन्तिका है,सोचती हूँ मेरे बाद उसका क्या होगा? ना जमीन रही ना जायदाद,कैसे जिएगी वो अपनी जिन्दगी,चित्रलेखा बोली।।
आप इतना परेशान क्यों होतीं हैं राजमाता! मैं हूँ ना!आपको जो भी दिक्कत हो तो आप मुझसे कह सकतीं हैं,विक्रम बोला।।
सोच रही थी कि समय रहते कोई अच्छा सा वर मिल जाता शिवन्तिका के लिए तो उसके हाथ पीले कर देती,लेकिन अब कौन करेगा उससे शादी ,ना होटल रहा और ना जमीन-जायदाद रहीं,चित्रलेखा बोली।।
वैसे छोटा मुँह और बड़ी बात, अगर आपको कोई एतराज ना हो तो मैं शिवन्तिका से शादी कर सकता हूँ,विक्रम बोला।।
लेकिन तुम कैसे कर सकते हो उससे शादी,वो तो तुमसे उम्र में काफी छोटी होगी,चित्रलेखा बोली।।
मैं समझ सकता हूँ आपके मन की बात,लेकिन आपने जो सालों पहले मुझ पर एहसान किया था उसका बदला चुकाने का वक्त आ गया है,मैं बहुत बड़ा बिजनेसमैन हूँ ,मेरे पास करोड़ो अरबों की जायदाद है,मैं आपसे कुछ भी नहीं छुपाऊँगा,मेरी शादी एक बहुत ही करोड़पति बिजनेसमैन की बेटी से हुई थी,वो अपने पिता की इकलौती वारिस थी,हमारे दो बच्चे भी हुए बेटा अभी ग्यारह साल का है और बेटी आठ साल की ,फिर उसे ब्लड कैंसर हो गया और वो हमें छोड़कर चली गई।।
अगर आपको इस शादी से कोई एतराज है तो कोई बात नहीं,लेकिन मैं आपका कर्ज उतारना चाहता हूँ,इसलिए आपको किसी भी मदद की जुरूरत हो तो जरूर बोलिएगा,विक्रम बोला।।
मुझे सोचने के लिए थोड़ा वक्त दो,चित्रलेखा बोली।।
आप जितनी मोहलत चाहती हैं तो ले सकतीं हैं,विक्रम बोला।।
ठीक है तो चलो आज दोपहर का खाना तुम हमलोगों के साथ करो,इसी बहाने तुम्हारी मुलाकात शिवन्तिका से भी हो जाएगी,चित्रलेखा बोली।।
कुछ ही देर में खाने की टेबल पर खाना लगा ,शिवन्तिका भी नीचे आई और विक्रम ने जैसे ही शिवन्तिका को देखा तो देखता ही रह गया,खाना खाकर विक्रम चला गया,उसने शिवन्तिका से कुछ ज्यादा बातें नहीं की तभी शिवन्तिका ने चित्रलेखा से पूछा....
दादी माँ! कौन था ये?
ये तेरे पापा का जूनियर था,हमलोगों ने इसकी पढ़ाई में मदद की थी,विलायत गया पढ़ने तो वहीं बस गया,सालों बाद भारत लौटा है,हमारे होटल की खबर सुनी तो मदद करने चला आया ,कह रहा था कि कुछ मदद चाहिए तो बताएगा,मैने तो अभी कुछ नहीं कहा लेकिन....आगें तो भगवान ही जाने क्या होगा? चित्रलेखा बोली।।
दादी माँ को चिन्ता में देखकर शिवन्तिका भी चिन्तित हो गई।।
अब आएं दिन लेनदारों का ताताँ लगा रहता चित्रलेखा के दरवाजे पर,इस तरह जो भी जेवरात थे चित्रलेखा के पास वो भी बिक गए,सिवाय हवेली के अब उसके पास कुछ ना रह गया,इस तरह चिन्ता में बैठी एक दिन चित्रलेखा आँसू बहा रही थी,शिवन्तिका उनके पास पहुँची और बोली....
दादी माँ! आप इस तरह से परेशान होगीं तो आपकी तबियत बिगड़ जाएगी।।
हमें अपनी नहीं आपकी चिन्ता है,हमारा तो बुढ़ापा है क्या पता किस दिन बुलावा आ जाएं लेकिन आपके सामने तो पूरी जिन्दगी पड़ी है,आपको अकेले ऐसे छोड़कर जाना अखरेगा हमें,चित्रलेखा बोली।।
दादी माँ! मैं कोई नौकरी कर लूँ,शिवन्तिका बोली।।
नहीं! हम ये हरगिज़ नहीं होने देगें,अगर आप मेरी बात माने तो आपसे एक बात कहूँ,चित्रलेखा बोलीं।।
जी !कहिए दादी माँ! मैं आपके लिए सबकुछ करने को तैयार हूँ,शिवन्तिका बोली।।
तो अगर आप विक्रम से शादी के लिए मान जाएं तो ये बहुत बड़ा एहसान होगा आपका,हम पर ,हम आपकी जिम्मेदारी विक्रम के हाथों में सौंपकर चैन से मर सकेंगें,चित्रलेखा बोली।।
लेकिन दादी माँ! शादी,मैं ये शादी कैसे कर सकती हूँ,मैं तो अब भी शिवदत्त को अपने दिल से नहीं निकाल पाई हूँ,शिवन्तिका बोली।।
लेकिन जो दुनिया से चला गया हो तो उसके लिए जीवन भर रोते रहना ,ये कोई बात तो ना हुई,जिन्दगी में आगें बढने में ही समझदारी है,ऐसी बातें करके आप क्यों मेरे तनाव को बढ़ा रहीं हैं,चित्रलेखा बोली।।
लेकिन दादी माँ! मेरा मन नहीं मानता,शिवन्तिका बोली।।
लेकिन कभी कभी इस मन को मनाना पड़ता है बेटा! चित्रलेखा बोली।।
मैं आपके लिए कुछ भी कर सकती हूँ,अगर मेरे शादी करने से आपकी मुश्किलें हल हो जातीं हैं तो मैं शादी करने को तैयार हूँ,शिवन्तिका बोली।।
तो हम विक्रम से बात कर लें इस विषय पर,चित्रलेखा बोली।।
लेकिन शादी चुपचाप होगी,मन्दिर में,शिवन्तिका बोली।।
ठीक है जैसा आप चाहतीं हैं वैसा ही होगा,चित्रलेखा ने आश्वासन दिया।।
और दो दिनों के भीतर ही शिवन्तिका की शादी विक्रम से हो गई,विक्रम ने दोनों को विलायत चलने को कहा क्योंकि अब यहाँ उनके लिए कुछ बचा नहीं था सिवाय एक पुरानी हवेली के,चित्रलेखा की तबियत भी थोड़ी ठीक नहीं थी,तनाव लेना और उन्हें अकेला छोड़ना शिवन्तिका को ठीक नहीं लगा इसलिए हवेली में एक बार फिर से ताला लगाकर वें हवाई जहाज में विक्रम के संग विलायत के लिए उड़ गईं।।
उनके जाते ही एक दिन फिर से शिवदत्त हवेली आया ,उसने शहर में पता किया तो उसे पता चला कि चित्रलेखा का होटल जल गया है और उन दोनों के बारें में किसी को कुछ भी पता नहीं है कि वे दोनों कहाँ गई,
और हवेली में ताला लगा देखकर मायूस होकर लौट गया,वो फिर सियाशरन के यहाँ गया तो पता चला कि सुहासा का दिल्ली में इलाज चल रहा है इसलिए वो लोंग कुछ महीनों से दिल्ली में ही हैं अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ,क्योंकि डाक्टर ने कहा था कि माँ और बच्चे की जान को खतरा हो सकता है इसलिए आप फौरन ही सुहासा को दिल्ली के अस्पताल में ले जाइए,
जिन्दगी कौन से खेल खिला रही थी ये किसी को भी पता नहीं था,सबकी मंजिलें अलग हो चुकी थीं ,विलायत में शिवन्तिका को देखकर विक्रम के बच्चे बहुत खुश हुए,वें उसे नई माँ...नई माँ...कहकर पुकारने लगे,उन बच्चों को देखकर शिवन्तिका को अपने शिवम की याद आ जाती।।
लेकिन विक्रम और शिवन्तिका के बीच अभी भी दूरियाँ थी क्योंकि शादी की पहली रात को ही शिवन्तिका ने अपना सारा सच विक्रम से कह दिया था वो बोली थी....
माँफ कीजिए! विक्रम जी! ये शादी मैं सिर्फ़ अपनी दादी माँ की खुशी के लिए कर रही हूँ,ये शादी नहीं समझौता है,मैं किसी से बहुत प्यार करती थी लेकिन ऐन मौके पर वो ये दुनिया छोड़कर चला गया,हम दोनों का एक बेटा भी है जो शिमला में हैं,दुनिया की बदनामी के डर से दादी ने उसे अपनी सहेली को दे दिया,मैं कभी भी आपको पति का दर्जा नहीं दे पाऊँगी,हम सिर्फ़ दुनिया वालों के लिए पति पत्नी होगें।।
विक्रम ने भी इस बात को भली भाँति समझ लिया और फिर उसने शिवन्तिका से कोई भी सवाल नहीं किया,जिन्दगी इसी तरह आगे बढ़ रही थी।।
इधर शिवन्तिका दिन रात अपने शिवम को याद करके रोती और उधर शिवदत्त ,शिवन्तिका को याद करके रोता उसे शिवन्तिका की कोई भी खबर नहीं मिल रही थी,गाँव में भी उसका मन नहीं लगता था,इसी तरह पाँच साल बीत गए लेकिन शिवदत्त को शिवन्तिका की कोई खबर ना लगी।।
और उधर चित्रलेखा भी लम्बी बीमारी के बाद स्वर्ग सिधार गईं,जीवन है वो तो सदा ही गतिमान रहता है,तो अपनी गति से बस चले जा रहा था।।
और फिर एक रोज शिवदत्त के पास खबर आई कि उसके दूर के फूफा अब नहीं रहे,इसलिए बुआ ने उसे अपने पास बुलाया है,फूफाजी ऊनी कपड़ो की दुकान चलाते थे,उनके कोई सन्तान नहीं थी इसलिए बुआ को अपने इस भतीजे की याद आ गई,बुआ को लगा वो तो वहाँ अकेला ही रहता है,मैं भी अकेली रह गई हूँ,दोनों को ही एक दूसरे का सहारा मिल जाएगा,शीलवती बुआ शिमला में रहतीं थीं,शिवदत्त भी वहाँ पहुँच गया और उनकी दुकान सम्भालने लगा।।
दिनभर दुकान में रहता तो उसका ध्यान बँटा रहता लेकिन रात को फिर उसे रह रहकर शिवन्तिका की याद आ जाती,उसे ये समझ नहीं आ रहा था कि आखिर शिवन्तिका गई तो गई कहाँ? उसे खबर रहती कि शिवन्तिका कहाँ है तो कुछ तसल्ली रहती ,वो इसी उधेडबुन में लगा रहता।।
शीलवती बुआ भी अपने भतीजे की हालत देखकर मायूस हो जाती क्योकिं शिवदत्त ने उन्हें सब बता दिया था।।

और इधर वीना के घर में....
नानी माँ! देखो तो ये स्वेटर कितना पुराना हो गया है,आपसे कितनी बार कहा कि नया दिला दो,लेकिन आप तो दुकान चलती ही नहीं,आपको क्या है पुराने स्वेटर में जरा भी गर्माहट नहीं रह गई है,मैं यहाँ ठण्ड से काँपता रहता हूँ,शिवम ने वीना से कहा....
ओहो....नया स्वेटर चाहिए हमारे शिवम को ,कितने तो स्वेटर पड़े हैं उनमे से कोई पहन ले,वीना बोली।।
वे भी पुराने ही है, जब रूठ जाऊँगा ,तभी मानोगी क्या आप,शिवम बोला।।
ना बाबा रूठो मत,बस शाम को चलते हैं नया स्वेटर लेने,वीना बोली।।
और वो नए वाले जूते जो देखें थे,जिनमें सीटी बजती थी,वो भी चाहिए मुझे,शिवम बोला।।
बड़ा चतुर है रे तू! वीना बोली।।
चतुर क्या होता है? शिवम ने पूछा।।
चालाक,होशियार,,वीना बोली।।
मैं आपको चालाक दिखाई देता हूँ,शिवम ने भोलेपन से पूछा।।
ना तू तो बहुत भोला है रे मेरे भोलूराम! वीना बोली।।
किताबें भी तो लेनी है आज है,शिवम बोला।।
हाँ! रे !मै तो भूल ही गई थी कि तू अब पाँच साल का हो गया है,कल से तुझे स्कूल जाना है,वीना बोली।।
आपको कुछ याद नहीं रहता नानी माँ! आप बूढ़ी जो हो गई हो,शिवम बोला।।
हाँ रे! तू सही कह रहा है,वीना बोली।
तो शाम को तैयार रहिएगा,बाजार जाना है ,शिवम बोला।।
हाँ! बिल्कुल! मेरे नन्हे बादशाह! जो हुकुम,वीना बोली।।
और फिर शाम को वीना और शिवम बाजार पहुँचे,वीना दूसरी दुकान से कुछ सामान खरीदने लगी तो शिवम कपड़ो की दुकान में घुस गया और बोला.....
अंकल! मेरे लिए अच्छा सा स्वेटर दिखाओ।।
वो दुकान शिवदत्त की थी....

क्रमशः.....
सरोज वर्मा....