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तड़प--भाग(७)

शिवम की आवाज़ सुनकर एक पल को शिवदत्त मौन होकर उसे निहारने लगा....
अंकल! आपको सुनाई नहीं दिया क्या? मैने आपसे स्वेटर माँगा,शिवम दोबारा बोला।।
वो तो ठीक है नन्हें फरिश्ते लेकिन तुम्हारी माँ कहाँ हैं? तुम अकेले ही बाजार आएं हो,शिवदत्त ने पूछा।।
लेकिन मेरी तो माँ ही नहीं है,मैं तो अपनी नानी के संग बाजार आया हूँ,शिवम बोला।।
अच्छा! तो फिर तुम्हारी नानी कहाँ हैं?शिवदत्त ने पूछा।।
वो मेरे साथ ही आईं हैं,बगल वाली दुकान से कुछ सामान खरीदने लगीं तो मैने सोचा कि मैं ही अपने लिए स्वेटर खरीद लूँ,शिवम बोला।।
ओहो..इतने छोटे होकर इतनी बड़ी बड़ी बातें करना कहाँ से सीखा,शिवदत्त ने पूछा।।
मेरी नानी कहती है कि मैं बहुत होशियार हूँ,इसलिए सीख गया बातें करना,शिवम बोला।।
अच्छा जी! वाकई तुम बहुत होशियार हो,शिवदत्त बोला।।
तो फिर स्वेटर दिखाइए,लाल रंग का चाहिए,मैं गोरा हूँ ना! तो लाल रंग मेरे ऊपर खिलता है,ऐसा मेरी नानी कहती है,शिवम बोला।।
अच्छा जी! और क्या क्या कहती हैं तुम्हारी नानी, शिवदत्त ने पूछा।
वो मुझे नन्हा बादशाह भी कहती है,शिवम बोला।।
अच्छा जी! तो मैं भी आपको आज से नन्हा बादशाह ही कहूँगा,शिवदत्त बोला।
और तभी वीना,शिवम को ढूढ़ते हुए वहाँ आ पहुँची,शिवम के देखते ही बोली....
अरे,तू यहाँ आ पहुँचा,मैं कब तुझे ढूढ़ रही थी॥
नानी! आप दुकान से सामान खरीद रही थीं तो मैं अपना स्वेटर लेने इस दुकान पर चला आया,शिवम बोला।।
तू अकेले ही चला आया इधर और मैं तुझे वहाँ ढूढ़ रही थी,वीना बोली।
आप ना जाने कबसे दूसरा सामान खरीदने में लगी हुई थीं,मेरी बात ही नहीं सुन रहीं थीं तो मैं यहाँ पर आ गया,शिवम बोला।।
बहुत सयाना है रे तू! लेकिन तूने मुझे डरा दिया,तू खो जाता तो तेरी नानी क्या करती?वीना बोली।।
आप मुझे खोज लेतीं,जैसे अभी खोज लिया,शिवम बोला।।
अच्छा! अब बातें बनाना छोड और अपने लिए स्वेटर पसंद कर ले,वीना बोली।।
वो तो अंकल से मैने पहले ही कह दिया था,शिवम बोला।।
हाँ! नन्हे बादशाह! मैने तुम्हारे लिए स्वेटर निकाल भी दिये,इतने ढ़ेर सारे है,पसंद कर लो,शिवदत्त बोला।।
एक लाल रंग का स्वेटर देखते ही शिवम बोला...
नानी ! मुझे ये वाला पसंद है,ये वाला ले लें।।
हाँ! ले ले,जो भी तुझे पसंद हो,वीना बोली।।
मुझे तो यही पसंद है ,मैं तो यही लूँगा,शिवम बोला।।
ठीक है तो यही ले ले फिर वीना ने स्वेटर के दाम चुकाए और आने लगी तो तभी शिवदत्त बोला....
माँफ कीजिए आण्टी जी! अगर आपको कोई एतराज़ ना हो तो ये दूसरा स्वेटर मैं अपनी तरफ से बच्चे को देना चाहता हूँ,शिवम बोला।।
ले लो ना नानी! अंकल इतने प्यार से दे रहे हैं,शिवम बोला।।
फिर वीना ,शिवम की बात ना टाल सकी और स्वेटर ले लिया,तब शिवदत्त ने शिवम से पूछा....
तुम्हारा नाम क्या है? बेटा!
मेरा नाम शिवम है,शिवम बोला।।
बहुत ही प्यारा नाम है,शिवदत्त बोला।।
और अंकल आपका नाम क्या है? शिवम ने शिवदत्त से पूछा।।
मेरा नाम शिवदत्त है,शिवदत्त बोला।।
टाटा! अंकल! मैं अब जाता हूँ,शिवम बोला।।
आते रहा करो,मुझे अच्छा लगेगा,शिवदत्त बोला।।
हाँ! अंकल ! अब तो मैं जरूर आऊँगा,शिवम बोला।।
और फिर शिवम चला गया और शिवदत्त उसे जाते हुए देखता रहा.....
रात को शिवदत्त खाना खाकर अपने बिस्तर पर पहुँचा तो उसे रह रहकर शिवम याद आता रहा उसने मन में सोचा कितना प्यारा बच्चा है पहली ही मुलाकात में उसने मेरा मन मोह लिया,अगर शिवन्तिका से मेरी शादी हो जाती तो अब तक हमारा बच्चा भी इतना बड़ा हो जाता और यही सोचते सोचते शिवदत्त की कब आँख लग गई उसे पता ही नहीं चला।।

और उधर शिवन्तिका अपने कमरें में काफी उदास बैठी थी,तभी विक्रम की बेटी सम्पदा शिवन्तिका के पास आकर बोली....
क्या हुआ छोटी माँ ! आप इतनी उदास क्यों बैठी हैं,मैं कब से आपको ढूढ़ रही थी।।
कुछ नहीं सम्पदा! बस ऐसे ही मन थोड़ा सा उदास है,दादी माँ की याद आ रही है,शिवन्तिका ये ना बोल पाई कि मुझे अपने बेटे शिवम की याद आ रही है।।
अच्छा तो ये बात है,ऐसा तो नहीं आपको इण्डिया जाने का मन कर रहा है,सम्पदा बोली।।
इण्डिया का नाम सुनते ही शिवन्तिका के मन में खुशी की लहर दौड़ गई,सच तो यही था कि वो भारत जाना चाहती थी और शिमला जाकर अपने बेटे शिवम से मिलना चाहती थी,लेकिन ये वो अपने मुँह से नहीं कह सकती थी।।
सम्पदा अब तेरह साल की हो चुकी थी वो चंचल और समझदार थी और विक्रम का बेटा नीलेश भी अब सोलह साल का हो चुका था,वो समझदार भी था और गम्भीर भी,पाँच साल से शिवन्तिका दोनों बच्चों को सगी माँ से भी ज्यादा प्यार करती आ रही थी,दोनों बच्चों को भी शिवन्तिका कभी सौतेली माँ नहीं लगी,वे दोनों भी शिवन्तिका की बहुत इज्जत करते थे और प्यार भी करते थे।।
माँ दुखी थी तो सम्पदा कैसे अपनी माँ को दुखी देख सकती थी,इसलिए उसने अपने पापा विक्रम से कहा....
पापा!माँ ! आजकल बहुत दुखी-दुखी सी रहतीं हैं।।
तुमने अपनी माँ से कारण नहीं पूछा,विक्रम बोला।।
पूछा था तो वें बोली कि उन्हें अपनी दादी माँ की याद आ रही है,सम्पदा बोली।।
कोई बात नहीं, मैं खुद ही तुम्हारी माँ से पूछ लूँगा कि क्या बात है? वो उदास क्यों है? विक्रम बोला।।
थैंक्यू पापा! और इतना कहकर सम्पदा चली गई।।
रात हुई विक्रम अपने कमरें में पहुँचा,नाइटी पहने शिवन्तिका बेड पर लेटकर कोई किताब पढ़ रही थी,विक्रम के आते ही वो उठकर बैठ गई फिर विक्रम ने कहा....
लेटी रहो,
कोई बात नहीं,शिवन्तिका बोली।।
पाँच सालों से हमारे बीच ये खामोशी फैली है,पति का दर्जा तो तुमने मुझे कभी नहीं दिया लेकिन क्या तुम्हारा दोस्त बनने की हैसियत भी मैं नहीं रखता,विक्रम बोला।।
मैने ऐसा तो कभी नहीं कहा,शिवन्तिका बोली।।
जरूरी नहीं कि हर बात जुबाँ से कही जाए,कभी कभी इन होठों की खामोशी भी बहुत कुछ कह जाती है,विक्रम बोला।।
मैने तो आपसे कभी कोई शिकायत नहीं की,शिवन्तिका बोली।।
तो तुम इतनी गुमसुम और चुपचाप क्यों रहती हो?मुझे पता है कि तुम मेरे साथ बिल्कुल भी खुश नहीं हो,घुट घुटकर जी रही हो,ये रिश्ता तुमने अपनी दादी माँ की खातिर किया था,लेकिन अब दादी माँ नहीं रही तो तुम इस रिश्ते से आज़ाद हो सकती हो,मैं तुम्हें कभी नहीं रोकूंँगा,रही बच्चों की बात तो मैं उन्हें समझाऊँगा तो वें समझ जाएगें,विक्रम बोला।।
आप ऐसी बातें क्यों कर रहे हैं? शिवन्तिका ने पूछा।।
पहले मुझ तक सीमित थी तुम्हारी उदासी लेकिन अब तुम्हारी उदासी बच्चों के दिल में घर करने लगी है,विक्रम बोला।।
ऐसा कुछ भी नहीं है,शिवन्तिका बोली।।
तुम क्या चाहती हो? साफ-साफ बता दो,मैं तुम्हारी ख्वाहिश पूरी करने की पुरजोर कोशिश करूँगा,विक्रम बोला।।
मेरी कोई भी ख्वाहिश नहीं है,शिवन्तिका ने झूठ बोला।
झूठ मत बोलो,शिवन्तिका! झूठ उससे बोलो जिसे तुम्हारे बारें में कुछ पता ना हो, मैं तुम्हारे मन की बात समझता हूँ,विक्रम बोला।।
मैं झूठ नहीं बोल रही ,विक्रम जी! शिवन्तिका बोली।।
तो तुम सच भी तो नहीं कह रहीं,विक्रम बोला।।
आप गलत समझ रहे हैं,शिवन्तिका बोली।।
मैं बिल्कुल सही समझ रहा हूँ,विक्रम बोला।।
मुझे अकेला छोड दीजिए,मैं कुछ देर अकेले रहना चाहती हूँ,शिवन्तिका बोली।।
अकेले रहने से तुम्हारी मुश्किलें हल नहीं हो जाएंगीं,विक्रम बोला।।
तो आप क्या चाहते हैं? खुलकर क्यों नहीं बोलते?शिवन्तिका ने पूछा।।
तुम्हारी खुशी शिवन्तिका! तुम मुझे चाहो ना चाहो लेकिन मैं तुम्हें चाहने लगा हूँ,तुमने जिस तरह से मेरे बच्चों और घर को सम्भाला है मैं उसका एहसानमंद हूँ,तुम अपनी माँग में झूठा ही सही लेकिन सिन्दूर तो मेरे नाम का ही लगाती हो ना! गले मे तुमने ये मंगलसूत्र दुनिया वालों को दिखाने के लिए ही सही लेकिन पहना तो है ना! इसका मतलब तुम्हारे मन में कुछ ना कुछ भाव तो है ही मेरे लिए,तो कहो तुम्हें खुश रखने के लिए मैं ऐसा क्या करूँ? जो तुम्हारे चेहरे पर मुस्कान और आँखों में चमक ले आएं,विक्रम बोला।।
मैं जो चाहती हूँ वो आप कभी नहीं कर पाऐगे,शिवन्तिका बोली।।
एक बार कहकर तो देखो,विक्रम बोला।।
मैं अपने बेटे शिवम से मिलना चाहती हूँ,शिवन्तिका बोली।।
ये सुनकर कुछ पल के लिए विक्रम खामोश हो गया तो शिवन्तिका बोली....
हो गए ना आप खामोश़ ,मैं जानती थी कि आप मेरी ख्वाहिश कभी पूरी नहीं कर पाएगें,शिवन्तिका बोली।।
बस,इतने सालों में मुझे इतना ही समझ पाई,तैयारी करो हम सब कुछ दिनों की छुट्टियांँ मनाने भारत जाऐगे,अब तो खुश हो ना तुम और ये कहकर विक्रम बाहर चला गया।।
इधर शिवन्तिका के मारे खुशी से आँखो से आँसू छलक पड़े....

क्रमशः....
सरोज वर्मा.....


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