तड़प--(अन्तिम भाग) Saroj Verma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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तड़प--(अन्तिम भाग)

शिवन्तिका मारे खुशी के भाव-विह्वल हो गई,उसने मन में सोचा कि भारत पहुँचकर वो सबसे पहले शिमला जाएगी वीना आण्टी के पास और अपने शिवम से मिलेगी,अब तो वो बड़ा भी हो गया होगा और खूब बातें भी करने लगा होगा,वो उस रात मारे खुशी के सो ना सकी।।
और दूसरे दिन सुबह ....
बच्चे अभी नाश्ते की टेबल पर नहीं आए थे तो शिवन्तिका ने विक्रम से कहा....
थैंक्यू! विक्रम जी! और साँरी भी...
थैंक्यू और साँरी किसलिए,विक्रम ने पूछा...
आप मुझे भारत ले जा रहे हैं इसलिए थैंक्यू और मैं आपको आज तक पति का दर्जा नहीं दे पाई उसके लिए साँरी,शिवन्तिका बोली।।
चलो! तुमने मेरी फीलिंग्स समझने की कोशिश तो की,विक्रम बोला।।
जी! मैं आपको सम्मान दे सकती हूँ लेकिन प्यार नहीं,शिवन्तिका बोली।।
मुझे तुमसे ना सम्मान चाहिए और ना तुम्हारा प्यार,बस थोड़ा सा अपनापन चाहिए,ताकि मैं तुम्हें एक दोस्त मान सकूँ और तुम भी मुझे अपना दोस्त समझकर अपने सुख दुख बाँट सको,इससे ज्यादा और कुछ नहीं,विक्रम बोला।।
मैं कोशिश करूँगीं,शिवन्तिका बोली।।
मुझे तुमसे यही उम्मीद है,विक्रम बोला।।
तब तक बच्चे आ गए और विक्रम ने उनसे कहा कि हम भारत जा रहे हैं घूमने के लिए,अपनी अपनी पैंकिंग कर लो,ये सुनकर बच्चे बहुत खुश हुए तब सम्पदा ने पूछा....
पापा ! हम भारत में कहाँ ठहरेगें क्योंंकिं हमारा तो वहाँ घर भी नहीं है,आपने तो वहाँ का पुराना घर बेँच दिया है।।
मैने सब इन्तजाम कर लिया है,हम शिमला के एक होटल में ठहर रहे हैं,फिर वहाँ से कहीं और घूमने का प्रोग्राम बन गया तो देखेगें,विक्रम बोला।।
मैं एक बात कहूँ,शिवन्तिका बोली।।
हाँ! कहो!,विक्रम बोला।।
क्यों ना हम एक दो दिन दादी माँ की पुरानी हवेली में जाकर रहें,फिर वहाँ से शिमला चल पड़ेगें,शिवन्तिका बोली।।
ठीक है तो ऐसा कर लेते हैं,विक्रम बोला।।
थैंक्यू! शिवन्तिका बोली।।
थैंक्यू की क्या बात है? विक्रम बोला।।
और ऐसे ही सबने अपनी अपनी तैयारी कर ली और वें सब दो तीन दिनों के बाद हवाईजहाज में बैठकर भारत के लिए उड़ गए,वहाँ शिवन्तिका ने अपनी पुरानी हवेली का दरवाजा खोला और दरवाजा खुलते ही उसकी आँखों में आँसू आ गए उसे अपनी दादी माँ की याद आ गई ,फिर विक्रम ने देखा कि हवेली बहुत ही गंदी हो चुकी थी,सफाई करने में ही कम से कम हफ्ता भर लग जाता तो विक्रम बोला...
शिवन्तिका!इसकी सफाई करते करते ही हमारी छुट्टियांँ बीत जाएंगी,तुम ऐसा करो फिर से ताला लगा दो,मैं होटल में ठहरने का बंदोबस्त करता हूँ।।
विक्रम की बात भी शिवन्तिका को सही लगी फिर उसने हवेली में ताला लगाया और एक टैक्सी पकड़कर किसी होटल की ओर चल पड़े,एक रात वहाँ रूके और दूसरे दिन शिमला के लिए रवाना हो गए....
शिमला में वे एक होटल में ठहरें और शाम के वक्त वें घूमने निकले,तब सम्पदा बोली....
छोटी माँ! अब आपको अच्छा लग रहा है ना! भारत आकर।।
हाँ! अच्छा लग रहा है,शिवन्तिका बोली।।
लेकिन आप तो अब भी खुश नज़र नहीं आ रहीं,सम्पदा बोली।।
तुम्हारी माँ का स्वभाव ही ऐसा है सम्पदा बेटा! उनके चेहरे पर भाव दिखाई नहीं देते,विक्रम बोला।।
ऐसा कुछ नहीं है,मैं बहुत खुश हूँ,शिवन्तिका बोली।।
तो फिर हँसिए ना! सम्पदा बोली।।
और सम्पदा के कहने पर शिवन्तिका मुस्कुरा दी...
लेकिन शिवन्तिका के मन मे तो कुछ और ही चल रहा था,वो तो जल्दी से जल्दी वीना आण्टी के घर जाकर अपने शिवम से मिलना चाहती थी और ये बात वो किसी से नहीं कह सकती थी।।
शाम का समय था,ठण्ड बढ़ रही थीं और शिवन्तिका ना तो स्वेटर पहनकर आई थी और ना ही शाँल ओढ़कर आई थी,उसकी सिफाँन की पतली साड़ी ठण्डी हवा के झोंको को नहीं रोक पा रही थी,शिवन्तिका को जोर की ठण्ड लगने लगी,उसे ठिठुरते देख विक्रम ने पूछा....
शिवन्तिका! ठण्ड लग रही है।।
नहीं! ठीक है,शिवन्तिका बोली।।
मुझे पता है कि तुम्हें ठण्ड लग रही है,चलो तुम्हें नया शाँल दिला देते हैं,विक्रम बोला।।
नहीं...नहीं..रहने दीजिए,मुझे ठण्ड नहीं लग रही,शिवन्तिका बोली।।
ठण्ड से काँप तो रही हो और कहती हो कि ठण्ड नहीं लग रही है,चलो ना उस दुकान से तुम्हें शाँल दिला देता हूँ,विक्रम बोला।।
हाँ! चलो ना माँ! क्या बच्चों सी जिद करती हो?नीलेश बोला।।
तू कहता है तो चल खरीद लेती हूँ शाँल,शिवन्तिका बोली।।
और सब कपड़ो की दुकान की ओर चल पड़े,दुकान पहुँचकर विक्रम बोला....
भाई! एक अच्छा सा शाँल दिखा दो,दुकानदार पीठ किए हुए अपनी वेसाखी के सहारे दुकान की अलमारियों में तहाए हुए कपड़े रख रहा था,विक्रम की आवाज सुनकर वो मुड़ा और उसने जैसे ही अपने सामने शिवन्तिका को देखा तो सन्न रह गया।।
शिवन्तिका की माँग में सिन्दूर,गले में मंगलसूत्र और कलाइयों में चूड़ियाँ देखकर एक पल को वो मौन ही खड़ा रहा,यही हाल शिवन्तिका का था,सालों बाद शिवदत्त से ऐसे मुलाकात होगी ये उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था तब विक्रम ने उसे टोकते हुए कहा....
क्या हुआ भाई! तुम्हें क्या हुआ? शांत क्यों खड़े हो ? शाँल तो दिखाओ...
जी!साहब! माफ किजिए,अभी दिखाता हूँ शाँल,शिवदत्त बोला।।
तब शिवदत्त ने शाँल दिखाने शुरू किए,तो सम्पदा को उनमे से एक पसंद आया तो उसने शिवन्तिका से कहा....
छोटी माँ! ये वाला सुन्दर है,ये ले लीजिए,उसने नीलेश से भी पूछा ...
भइया! ये वाला अच्छा है ना!
वो शाँल विक्रम को भी पसंद आया फिर विक्रम ने उस शाँल को शिवन्तिका को ओढ़ा दिया, उस के दाम चुकाए और फिर सब घूमकर वापस होटल आ गए,शिवन्तिका फौरन बाथरुम गई और जी भर कर रोई,उसने मन मे सोचा....
उसका शिवदत्त जिन्दा है,अपाहिज भी हो गया और उसने मुझे आकर क्यों कुछ नहीं बताया? लेकिन वो हवेली पर आया भी होगा तो वो तो शिमला आ गई थी और किसी को बताया भी नहीं था कि वें कहाँ जा रहे हैं तो बेचारे शिवदत्त को कुछ कैसे पता चलता? उसने कितना ढूढ़ा होगा उसे,ये कैसी बिडम्बना है ? उसका बच्चा भी है और उसके बच्चे का बाप भी है लेकिन वो कितनी मजबूर है कि दोनों से ही नहीं मिल सकती,लेकिन मैं उससे क्या कहूँगी? क्या बताऊँगीं कि वो शादीशुदा है और किन हालातों में उसने ये शादी की वो कैसे इस बात की सफाई दे पाएगी शिवदत्त को,वो इसी उधेडबुन में काफी देर तक बाथरुम में रोती रही,जब वो बाहर निकली तो उसकी आँखें लाल थीं,उसकी लाल आँखों को देखकर सम्पदा ने पूछ ही लिया....
छोटी माँ!क्या बात है? आपकी आँखें लाल क्यों हैं?
कुछ नहीं ,शायद ठण्डी हवा से हो गईं होंगीं,शिवन्तिका बोली।।
तो चलो फिर डिनर करने नीचे रेस्टोरेंट में चलें,मुझे तो भूख लग रही है,विक्रम बोला।।
हाँ! पापा! मुझे भी भूख लगी है,नीलेश और सम्पदा भी बोले।।।
आप लोंग खाना खाने चले जाइए,मुझे भूख नहीं है,शिवन्तिका बोली।।
लेकिन क्यों? विक्रम ने पूछा।।
ऐसे ही,शिवन्तिका बोली।।
ठीक है तो हम लोंग तुम्हारे खाने के लिए कुछ पैक कराकर ले आएंगे,जब भी भूख लगें तो खा लेना,विक्रम बोला।।
जी,ठीक है,शिवन्तिका बोली।।
सब खाना खाने चले गए तो कमरा एकदम खाली हो गया और शिवन्तिका बिस्तर पर लेटकर कुछ सोचने लगी।।

और उधर शिवदत्त का मन भी बहुत ही विचलित था,उसके मन में शिवन्तिका के लिए गलतफहमी ने घर कर लिया था,वो सोच रहा था कि शिवन्तिका दौलत के लिए इतना गिर गई कि दो बच्चों के बाप से शादी रचा बैठी,अगर उसे दौलत ही चाहिए थी तो मेरे दिल के साथ खिलवाड़ क्यों किया?मेरे साथ प्यार का झूठा नाटक क्यों किया?तुम ऐसा कुछ कर सकती हो शिवन्तिका ये मैने कभी नहीं सोचा था।।
शिवदत्त ने उस रात खाना भी नहीं खाया और ऐसे ही सोचते सोचते ही सो गया।।

दूसरे दिन सुबह भी शिवन्तिका ने नाश्ता करने से मना कर दिया और बोली कि तबियत ठीक नहीं है,विक्रम बोला डाक्टर को बुलाऊँ लेकिन शिवन्तिका ने मना कर दिया ,उसे पता था कि उसके उदास मन को कोई भी ठीक नहीं कर सकता,वो शिवदत्त को बताना चाहती थी कि उनका एक बेटा भी है,वो उससे जाकर ये कहना चाहती थी कि किन मजबूरियों में उसने विक्रम से शादी की।।
विक्रम ,शिवन्तिका की हालत देखकर बहुत ही दुखी था,लेकिन शिवन्तिका उससे कुछ कहना नहीं चाहती थी,दोपहर का लंच विक्रम ने अपने कमरे में ही मँगवा लिया,तब शिवन्तिका को सबके साथ खाना ही पड़ा, लंच करने के बाद विक्रम ने बच्चों से कहा....
बच्चों! आज तुम लोंग कमरें में आराम करो,आज मैं तुम्हारी माँ के साथ घूमने जाना चाहता हूँ।।
और बच्चे राजी हो गए,फिर विक्रम ने शिवन्तिका को तैयार कराया और दोनों चल पड़े,टहलने के लिए,माल रोड पर.....

और उधर शिवदत्त की दुकान पर उसके ही पड़ोस का एक आदमी आ कर बोला...
शिवदत्त! तुम्हारी बुआ की अचानक तबियत बिगड़ गई हैं,मैनें उन्हें अस्पताल में भरती करवा दिया है और तुम्हें बताने चला आया,तुम्हें फौरन दुकान बंद करके अस्पताल चलना होगा।।
और ये सुनकर शिवदत्त ने फौरन दुकान बंद की और चल पड़ा अस्पताल की ओर,अस्पताल जाकर देखा तो उसकी बुआ बिस्तर पर थी और अब वो बिल्कुल ठीक थी,एक नर्स उनको दवा पिला रह थी और वें दवा पीने से इनकार कर रही थीं।।
तब शिवदत्त उनके पास जाकर बोला....
पी लीजिए दवा,अब कैसी तबियत है आपकी? क्या हुआ था?
देखिए तो ये दवा पीने से इनकार कर रहीं हैं और जैसे ही शिवदत्त ने नर्स का चेहरा देखा तो फौरन पहचान लिया,वो नर्स वीना थी,फिर वो बोला...
अरे,आप! और यहाँ!
मैं यहीं काम करती हूँ,सालों से हूँ इस अस्पताल में वीना बोली।।
और शिवम कहाँ है? शिवदत्त ने पूछा।।
अस्पताल का ही अपना क्रेच है,जहाँ सभी महिला कर्मचारियों के बच्चे शाम तक रहते हैं और फिर मैं बीच बीच में जाकर उससे मिल आती हूँ,वीना बोली।।
अच्छा!...हाँ! तो बुआ जी आप को क्या हुआ? तबियत क्यों बिगड़ी?शिवदत्त ने पूछा।।
बस,उल्लटियाँ हो रही थीं लगातार,तो पड़ोसन को बताया,उसके पति मुझे यहाँ छोड़ गए और फिर तुम्हें खबर पहुँचाने दुकान पर चलें गए,बुआ जी बोली।।
अच्छा! तो ये बात है,शिव बोला।।
इनसे कहिए दवा पी लें,वीना बोली।।
पी लीजिए ना दवा,शिव ,बुआ जी से बोला।।
मैं ना पिऊँगीं,कड़वीं होगी,बुआ बोली।।
आप तो बच्चों से भी गई गुजरीं है और फिर इतना कहकर शिवदत्त ने जबरदस्ती बुआ को दवा पिला दी।।
बुआ ने सड़ा सा मुँह बनाकर वीना से पानी माँगा,वीना ने पानी पिला दिया फिर शिवदत्त ने वीना से कहा....
क्या मैं शिवम से मिल सकता हूँ?
हाँ! क्यों नहीं! चलिए मैं आपको ले चलती हूँ और इतना कहकर वीना शिवदत्त को शिवम से मिलवाने चल पड़ी।।
शिवदत्त को देखकर मारे खुशी के शिवम उछल पड़ा और फौरन शिवदत्त के गले लग गया।।
वीना भी वहीं रूक गई और दोनों से बातें करने लगी।।
कुछ ही देर में शिवदत्त ,शिवम से मिलकर आ गया और अपनी बुआ के पास आकर बैठ गया।।

माल रोड पर चलते चलते फिर विक्रम ने शिवन्तिका से कहा....
तुम अपने मन की उलझन नहीं बताओगी तो मुझे कैसे पता चलेगा?
मुझे कोई उलझन नहीं है ,शिवन्तिका बोली।।
तुम झूठ बोल रही हो,विक्रम बोला।।
मैं सच कहती हूँ,शिवन्तिका बोली।।
मुझे याद है कि तुमने कहा था कि तुम्हारा बेटा शिमला में हैं,मुझे बताओ कि वो कहाँ रहता है? मैं तुम्हें उससे मिलवाने ले चलता हूँ,विक्रम बोला।।
आप मुझे क्यों मिलवा रहे हैं मेरे बेटे से? शिवन्तिका ने पूछा।।
वो इसलिए कि तुम्हारे चेहरे पर मुस्कान आ सकें शिवन्तिका! विक्रम बोला।।
आपको मेरे खुश रहने से कोई सरोकार नहीं होना चाहिए,विक्रम बोला।।
मैं तुम्हें चाहने लगा हूँ शिवन्तिका!तुम्हें हमेशा खुश देखना चाहता हूँ,विक्रम बोला।।
मैं खुश हूँ,विक्रम जी! शिवन्तिका बोली।।
तुम्हारा ये उदास और बुझा हुआ चेहरा देखकर कौन कहेगा कि तुम खुश हो? विक्रम बोला।
तो आप क्या चाहतें हैं? शिवन्तिका ने पूछा।।
कुछ नहीं ! बस तुम अपने बच्चे से मिल लो,मैं यही चाहता हूँ,विक्रम बोला।।
और फिर विक्रम के इतना कहने पर शिवन्तिका ,वीना आण्टी से मिलने विक्रम के साथ उनके घर गई,पता चला कि वो अस्पताल गईं हुईं हैं तो दोनों अस्पताल की ओर चल पड़े।

विक्रम और शिवन्तिका अस्पताल पहुँचे और वीना के बारें में पूछा.....
वहाँ रेसेप्सनिस्ट ने बताया कि वीना किसी मरीज के पास होंगीं,बेड नम्बर पाँच से दस तक के मरीजों की देखभाल करने की उनकी जिम्मेदारी है आप इन्हीं बेड पर जाकर देख लें,तब शिवन्तिका विक्रम से बोली ....
आप यही ठहरिए मैं वीना आण्टी से मिलकर आती हूँ,
क्यों ?मुझे अपने बच्चे से नहीं मिलाना चाहती क्या?विक्रम ने पूछा।।
अच्छा! चलिए आप भी संग चलिए,शिवन्तिका बोली।।
और दोनों बेड्स के पास पहुँचे तो बेड नम्बर नौ के पास उन दोनों को वीना मिली,वो बेड शिवदत्त की बुआ का था और शिवदत्त भी वहीं मौजूद था,शिवन्तिका ने वीना को देखा तो आवाज दी....
वीना आण्टी....
वीना ने शिवन्तिका की आवाज़ सुनी और बोली....
अरे! शिवन्तिका ! तुम ! इतने दिनों ,यहाँ!
जी! आण्टी! आपसे अकेले में कोई बात करनी थी,शिवन्तिका और विक्रम ने उस समय जल्दबाजी मेँ शिवदत्त को नहीं देखा उसे अनदेखा करते हुए वें दोनों वीना को लेकर बाहर चले गए, शिवदत्त सिवाय चौंकने के और कुछ ना कर सका...
बाहर जाकर शिवन्तिका ने वीना से पूछा.....
मेरा शिवम कहाँ हैं आण्टी?
शिवम! वो तो नहीं रहा,मैनें उसे बचाने की बहुत कोशिश की लेकिन बिन माँ का बच्चा ज्यादा नहीं जी पाया,शायद वीना के मन में पाप समा गया था ,वो अब किसी भी हाल में शुभम को नहीं खोना चाहती थी,वो तो उसके जीने का सहारा था वो भला शिवम को कैसे लौटा देती इसलिए उसने झूठ बोल दिया।।
ये सुनकर शिवन्तिका के पैरों तले जमीन खिसक गई और वो वहीं पास में पड़ी बेंच पर धम्म से बैठ गई,सिवाय रोने के उसके पास और कोई चारा नहीं था,उसे विक्रम ने सम्भाला....
फिर वीना ने शिवन्तिका से पूछा....
चित्रलेखा कैसी है?
जी ! वो अब इस दुनिया में नहीं रहीं,विक्रम बोला क्योंकि शिवन्तिका को तो कोई सुध ही नहीं थी।।
वीना ने सुना तो चित्रलेखा के लिए अफसोस जाहिर किया।।
और फिर विक्रम ने वीना को शुक्रिया कहा और होटल की ओर चल पड़े।।
वीना ने झूठ तो बोल दिया था लेकिन उसकी आत्मा अन्दर से उसे धिक्कार रही थी,मारे चिन्ता के उसके माथे पर पसीना झलक आया और वो शिवदत्त के पास पहुँची...
शिवदत्त ने उससे पूछा....
क्या हुआ आण्टी? कौन थी वो लड़की? क्या आप उसे जानतीं हैं।।
हाँ! वो मेरी पुरानी सहेली की पोती है शिवन्तिका, मुझसे मिलने आई थी ,ये बताने आई थी कि उसकी दादी अब इस दुनिया में नहीं है,वीना ने एक बार फिर झूठ बोला।।
अच्छा! तो दादी माँ नहीं रहीं ,शिवदत्त ने मन में कहा।।
कुछ कहा क्या आपने?वीना ने शिवदत्त से पूछा।।
जी! नहीं! कुछ नहीं,शिवदत्त बोला।।
दोनों ने बड़ी होशियारी के साथ अपने अपने मन की बात छुपा ली।।...

होटल पहुँचकर शिवन्तिका बस रोए जा रही थी,विक्रम ने उसे शान्त करवाने की कोशिश की तो वो विक्रम के सीने से लगकर फफक फफक कर रो पड़ी,विक्रम ने उसे सान्त्वना देते हुए कहा....
चुप हो जाओ शिवन्तिका! शायद होनी को यही मंजूर था,शायद वो तुम्हारी किस्मत में नहीं था....
क्या मेरी किस्मत इतनी खराब है विक्रम जी! कि ना शिवदत्त मेरी किस्मत में था और ना मेरा बेटा मेरी किस्मत मे था,ऐसे कौन से पाप किए थे मैने,बस सच्चे दिल से शिवदत्त को ही तो चाहा था,भगवान ने मुझे उससे भी अलग कर दिया और अब शिवम से भी अलग कर दिया,शिवन्तिका खुद को सम्भाल नहीं पा रही थी,इसलिए उसने सारा गुबार निकाल दिया।।
सम्भालो अपने आप को शिवन्तिका! ऐसे हिम्मत नहीं हारते,विक्रम बोला।।
कैसे सम्भालूँ खुद को?मैं भीतर से टूट चुकी हूँ,अब शायद कभी ना सम्भल पाऊँ,शिवन्तिका बोली।।
जिन्दगी है शिवन्तिका ! ऐसे ही रंग दिखाती रहती है,मैं भी ऐसे ही टूट गया था जब नीलेश की माँ गुजरी थी,विक्रम बोला।।
और फिर विक्रम शिवन्तिका से काफी देर तक ऐसे ही बातें करता रहा,जब तक कि शिवन्तिका शान्त ना हो गई।।
विक्रम ने जबरदस्ती शिवन्तिका को रात का खाना खिलाया और शिवन्तिका से बोला तुम सो जाओ,मैं जरा बाहर टहल कर आता हूँ और विक्रम रोड पर टहलने आ पहुँचा,उसने एक सिगरेट जलाई और रास्ते में कश़ लगाते हुए चलने लगा,उसे एक चाय की दुकान दिखी तो सोचा चाय पी लूँ,
उसका मन भी काफी अशांत था ,वो शिवन्तिका को ऐसे घुट घुटकर जीते हुए नहीं देख सकता था,उसने तो हमेशा से उसकी खुशी चाही थी लेकिन शिवन्तिका की खुशियाँ उससे दूर जा रही थीं,वो दुकान पर पहुँचा और उसने चाय वाले को एक चाय का आर्डर दिया,चाय वाला बोला....
साहब! थोड़ी देर ठहरिए,बस चाय बनने में थोड़ी ही देर लगेगी।।
तभी वहाँ एक शख्स और आया और उसने कहा...
भाई! एक चाय मेरी भी बढ़ा देना,वो शिवदत्त था।।
दुकान में ज्यादा रोशनी नहीं थी,एक पीला सा बल्ब जल रहा था,उस रोशनी में विक्रम ने शिवदत्त को देखा तो पहचान लिया...
अरे,आप वही कपड़ो की दुकान वालें हैं ना!
ठीक पहचाना आपने,शिवदत्त बोला।।
जी! आप भी खाना खाने के बाद चाय पीने का शौक रखते हैं,विक्रम ने पूछा।।
जी! नहीं! मन कुछ उदास सा था,इसलिए मन की शान्ति ढूढ़ने बाहर चला आया,तो सोचा शायद चाय की चुस्कियों से ग़म दूर हो जाए,इसलिए चाय पीने चला आया....शिवदत्त बोला।।
ओह...अच्छा! ये बात है,ये लीजिए सिगरेट,आप भी एक कश़ लगा लीजिए,विक्रम बोला।।
जी! नहीं! मै ये शौक नहीं रखता,ग़म भुलाने के लिए शराब का सहारा भी नहीं लेता,नहीं तो पड़ा होता अब तक किसी मय़खाने में,शिवदत्त बोला।।
जी! मय़ का शौक़ तो मैं भी नहीं रखता,लेकिन हाँ! सिगरेट कभी कभार चल जाती है,विक्रम बोला।।
जी!लगता है कि आप यहाँ नहीं रहते,शिवदत्त ने पूछा।।
जी! नहीं विलायत में रहता हूँ,विक्रम बोला।।
अच्छा! जी!बहुत बढ़िया,शिवदत्त बोला।।
तभी चायवाले ने आवाज़ दी कि चाय तैयार है और शिवदत्त दोनों चाय के गिलास लेने चला गया,फिर उसने विक्रम को चाय दी,दोनों एकांत में जाकर खड़े हो गए ,तब विक्रम ने पूछा....
आपके ग़मों की वज़ह कहीं आपका अपाहिज होना तो नहीं,
जी! नहीं! शरीर पर लगें घाव तो सह लेता है इन्सान लेकिन दिल पर लगें बेवफाई के घाव बरदाश्त से बाहर हो जाते हैं,शिवदत्त बोला।।
ओह....दिल पर चोट खाए हुए लगते हैं,विक्रम बोला।।
जी! हाँ! कमबख्त ने चकनाचूर कर दिया दिल को,शिवदत्त बोला।।
जान सकता हूँ कि वो कौन है? विक्रम ने पूछा।।
माँफ कीजिए नहीं बता सकता,शिवदत्त बोला।।
कभी कभी अजनबियों को अपना दुख बताकर मन हल्का कर लेना चाहिए,विक्रम बोला।।
आप मेरे लिए अजनबी नहीं है,शिवदत्त बोला।।
मैं कुछ समझा नहीं,विक्रम बोला।।
वो उस दिन शाँल खरीदते वक्त दुकान में मुलाकात हो गई थी ना आपसे,इसलिए आप अजनबी नहीं हैं,शिवदत्त ने बात बदलते हुए कहा....
अच्छा! अब समझा,विक्रम बोला।।
और आप कौन से ग़म को मिटाने बाहर आएं थे,शिवदत्त ने पूछा।।
जी! मेरी कहानी आपसे मिलती जुलती है,मैं उसे चाहता हूँ लेकिन वो किसी और को चाहती है और वो जिसे चाहती है वो अब इस दुनिया में ही नहीं है,मतलब वो अपने पूर्व प्रेमी को अब तक भूल नहीं पाई है,इतने सालों के बाद आज भी हम अलग अलग कमरों में सोते हैं,वो कहती है कि मैने केवल अपनी दादी माँ की खुशी की लिए आपसे शादी की थी,आज वो बहुत ही ज्यादा दुखी थी,आज पहली बार वो मेरे कन्धे पर सिर रखकर रोई है,विक्रम बोला।।
और उनके रोने की वज़ह कहीं आप तो नहीं थे,शिवदत्त ने पूछा।।
जी!नहीं! मैं तो उसे दुख देने के बारें में कभी सोच ही नहीं सकता,विक्रम बोला।।
फिर क्या वज़ह थी उनके रोने की?शिवदत्त ने पूछा।।
गलत मत समझना उसे,एक रात उसके अपने पूर्वप्रेमी के साथ सम्बन्ध बन गए,उधर वो माँ बनने वाली थी और इधर ये खबर आई कि उसका प्रेमी अब दुनिया में नहीं रहा,लोक लाज के डर से उसकी दादी उसे शिमला ले आई,यहाँ उसकी दादी की सहेली वीना रहती थी जो कि एक नर्स थी,उसने बच्चे की जिम्मेदारी अपने सिर ले ली,शिवन्तिका मेरी पत्नी ने बच्चे को जन्म दिया फिर ये कहकर वो उसे वीना के पास छोड़ गई कि जब भी उसका मन करें तो वो अपने बच्चे शिवम से मिल सकती है लेकिन आज.....,ये कहते कहते विक्रम रूक गया...
लेकिन आज क्या हुआ? आगें भी कहिए...,शिवदत्त ने कहा।।
लेकिन आज वीना जी ने कहा कि वो बच्चा उनके पास नहीं है,वो बच्चा इस दुनिया से जा चुका है..,विक्रम बोला।।
वीना आण्टी झूठ बोल रहीं हैं,वो बच्चा जिन्दा है,मैं उस बच्चे से मिल चुका हूँ,वो उनके ही पास है,आप जिस वक्त अस्पताल आएं थे तो वो बच्चा अस्पताल के क्रेच में ही था,शिवदत्त बोला।।
लेकिन आपको कैसे पता? विक्रम ने पूछा।।
क्योंकि आप जिस वक्त अपनी पत्नी के साथ अस्पताल आएँ थे मैं भी वहीं मौजूद था,मेरी बुआ उस समय अस्पताल में ही थीं,शायद जल्दबाजी में आप दोनों की नज़र मुझ पर नहीं पड़ी,शिवदत्त बोला।।
तो क्या आप हम दोनों को उस बच्चे से मिलवा सकतें हैं,विक्रम बोला।।
जी! हाँ ! जुरूर,अभी बच्चे का एडमिशन हो गया है और स्कूल से वो दो बजे लौटता है फिर इसके बाद वो क्रेच मे रहता है,आप दोपहर के समय आ जाइए,मैं आपको वहीं अस्पताल में मिलूँगा,शिवदत्त बोला।।
दोस्त मै तुम्हारा किस तरह शुक्रिया अदा करूँ,तुमने मेरी बहुत बड़ी समस्या हल कर दी,विक्रम बोला।।
कोई बात नहीं साहब! जिसका बच्चा है उसे ही मिलना चाहिए ना!,शिवदत्त बोला।।
चलो अब काफी देर हो गई फिर कल दोपहर में दो बजे मिलते हैं अस्पताल के बाहर,विक्रम बोला।।
और फिर विक्रम ने चाय के दाम चुकाएं और दोनों अपने अपने रास्ते रवाना हो गए।।
विक्रम होटल पहुँचा और उसने ये बात शिवन्तिका से बताई तो शिवन्तिका ने पूछा....
आपको किसने बताया कि शिवम जिन्दा है?
अरे,उस दुकानदार ने जिससे हमने शाँल खरीदा था,विक्रम बोला।।
उसने बताई आपको ये बात,शिवन्तिका ने पूछा।।
हाँ!उसी ने बताई और वो बच्चे से मिल भी चुका है,विक्रम बोला।।
तो क्या शिवदत्त ,शिवम से मिल चुका है,शिवन्तिका आपा खोकर शिवदत्त का नाम बोल ही बैठी।।
शिवदत्त! उसका नाम शिवदत्त है,तुम्हें कैसे पता कि उस दुकानदार का नाम शिवदत्त है?विक्रम ने पूछा।।
ऐसे ही ,शिवन्तिका बोली।।
बोलो! जवाब दो,विक्रम चीखा।।
क्योंकि वो ही शिवम का बाप है,शिवन्तिका बोली।।
तो वो जिन्दा है और तुमने मुझे बताया ही नहीं,विक्रम बोला।।
मुझे भी नहीं पता था कि वो जिन्दा है शाँल लेते वक्त मैने उसे दुकान में देखा तब पता चला कि वो जिन्दा है,शिवन्तिका बोली।।
तुम दोनों ही ना जाने कौन सी मिट्टी के बने हो ,वो इतनी देर तक मुझसे बातें करता रहा उसने भी सच नहीं बताया और तुमने भी सच नहीं बताया,विक्रम बोला।।
माफ कर दीजिए,शिवन्तिका बोली।।
कोई बात नहीं,अब तो खुश हो जाओ,कल दो बजे तैयार रहना हम शिवम से मिलने चलेगें।।
और फिर शिवन्तिका लेट तो गई लेकिन उसें रातभर मारे खुशी के नींद नहीं आई।।

और उधर शिवदत्त के मन का बोझ भी हल्का हो गया था,उसे अब ये पता चल गया था कि उसकी शिवन्तिका बेवफा नहीं है,उसके लिए सबसे ज्यादा खुशी की बात थी कि शिवम उसका ही बेटा है और वो भी रातभर मारे खुशी के सो ना सका।।
और इधर वीना भी ये सोचकर परेशान थी कि कहीं शिवन्तिका को ये पता ना चल जाएं शिवम उसके ही पास है,उसे भी चिन्ता खाएं जा रही थी और वो किसी भी हाल में अब शिवम को लौटा नहीं सकती थी उसकी ममता पूरी तरह से शिवम के साथ जुड़ चुकी थी और इसी चिन्ता मे वो रातभर सो ना सकी।।
दुसरे दिन दोपहर के दो बजे सब अस्पताल के बाहर मिले,अब शिवदत्त और शिवन्तिका दोनों ही खुश थे क्योंकि दोनों के मन का मैल दूर हो चुका था,शिवन्तिका को खुश देखकर विक्रम को भी बहुत खुशी हो रही थी,शिवदत्त बोला....
वीना आण्टी को ये ख़बर बिल्कुल नहीं होनी चाहिए कि आप लोंग फिर से शिवम से मिलने आएं हैं नहीं तो एक बार फिर से वो मुकर जाएगी,कहीं ये ना कहदे कि ये बच्चा उसे कहीं और से मिला है,मैं उनसे बातों बातों में सारी सच्चाई उगलवा लेता हूँ और आप लोंग छुपकर सुनिए जब वो सब कुछ उगल दे तब बाहर आइएगा....
ठीक है,विक्रम बोला।।
और फिर शिवदत्त ,वीना के पास पहुँचा और बोला....
वीना आण्टी मैं शिवम से मिलने आया हूँ,आप मिलवा सकतीं हैं उससे।।
हाँ! चलो! कुछ देर पहले ही तो स्कूल से लौटा है,वीना बोली।।
आण्टी क्या ये आपकी बेटी का बेटा है? शिवदत्त ने पूछा।।
नहीं! मेरी कोई बेटी ही नहीं थी,वीना जल्दबाजी में सच बोल गई।।
तो फिर ये किसका बेटा है?शिवदत्त ने पूछा।।
अब तुमसे क्या छुपाना,ये मेरी एक सहेली का पोता है,वो बिन ब्याही माँ बनने वाली थी तो मैने इसे अपने पास रख लिया,वीना बोली।।
उस लड़की का नाम बता सकेंगीं,शिवदत्त ने पूछा।।
नाम याद नहीं,वीना बोली।।
मैं याद दिलाता हूँ और फिर उसने छुपी हुई शिवन्तिका को आवाज दी...
शिवन्तिका! बाहर आ जाओ,तुमसे झूठ बोला गया था।।
और फिर शिवन्तिका ने वीना से कहा....
आण्टी आपने झूठ क्यों बोला।।
क्योकिं मैं शिवम को किसी से भी बाँटना नहीं चाहती थी,वीना बोली।।
अब तो मुझे मेरा शिवम लौटा दीजिए,शिवन्तिका गिड़गिड़ाई।।
हाँ! तुम ले जाओ अपने बेटे को,मेरा जमीर भी नहीं मान रहा था,झूठ बोलते मुझे भी अच्छा नहीं लग रहा था,वीना बोली।।
और फिर वीना ने शिवम को लौटा दिया,शिवन्तिका बहुत खुश थी शिवम को पाकर।।
विक्रम ने शिवन्तिका का हाथ शिवदत्त के हाथों में सौंपा और बोला.....
तुम दोनों ऐसे ही हमेशा खुश रहो अपने बच्चे के साथ,मैं विलायत जाकर तलाक के पेपर भेज दूँगा,बच्चों को भी समझा दूँगा,लेकिन हर साल तुम लोगों से मिलने जरूर आया करूँगा अपने बच्चों के साथ,तुम्हारे परिवार को किसी की नज़र ना लगें और सबसे विदा लेकर वो चला गया कुछ दूर जाकर उसने अपना रूमाल निकाला और अपने आँसू पोछ लिए।।
शिवदत्त ने अपनी बुआ की दुकान बेच दी और अपने पुराने शहर जाकर एक नई कपड़ो की दुकान खरीदी,उसने वीना की भी नौकरी छुड़वा दी,फिर अपनी बुआ,वीना,शिवन्तिका और शिवम के साथ चित्रलेखा की हवेली में ही रहने लगा,शिवम को अब नानी और दादी दोनों का प्यार मिल रहा था।।
अपने पुराने शहर आकर वें दोनों सुहासा और सियाशरन से भी मिले,उनकी एक बेटी थी जो बहुत प्यारी थी और इस तरह से शिवन्तिका और शिवदत्त दोनों ही शिवम को पाकर बहुत खुश थे उन दोनों के मन में सालों से एक दूसरे के लिए जो तड़प थी अब वो शान्त हो चुकी थी।।

समाप्त...
सरोज वर्मा...