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प्रेम पथ

प्रेम पथ

अरूणाचल प्रदेश भारत चीन सीमा का सीमावर्ती प्रदेश होने के कारण अपनी भौगोलिक स्थिति, सामरिक महत्व, वर्ष भर हिम से आच्छादित पर्वत श्रंृखलाओं के नैसर्गिक सौंदर्य से परिपूर्ण है। इस प्रदेश में तेजी से आर्थिक विकास करता हुआ बोमडिला नाम का एक शहर है, जहाँ आनंद और गौरव पर्यटन हेतु गये हुए थे। वे सुबह के 10 बजे आराम से सोकर उठे थे परंतु शीतलहर का प्रकोप कम नही हुआ था और धुंध के कारण लंबी दूरी तक देख पाना मुश्किल हो रहा था। उन दोनो को पर्यटन के संदर्भ मे बोमडिला के पास स्थित पर्यटन कार्यालय में जाना था। ऐसे मौसम में मनमोहक प्राकृतिक दृश्यों का लुत्फ उठाते हुए आनंद अपने मित्र गौरव के साथ मंथर गति से कार चलाते हुए आगे बढ रहा था। इसी समय एक लडकी ने हाथ देकर लिफ्ट मांगने के लिए इशारा किया। आनंद ने गाडी को उसके समीप रोक दिया और काँच उतार कर पूछा कि हम आपके लिए क्या कर सकते है ?

लडकी ने विनम्रतापूर्वक मुस्कुराते हुए कहा कि मेरा कॉलेज यहाँ से 10 किमी. आगे है यदि आप उस तरफ जा रहे है तो क्या मुझे वहाँ तक छोडने की कृपा करेंगे ? आज बहुत ज्यादा शीतलहर है और मेरी गाडी भी बीच रास्ते में खराब हो गई है। आनंद ने उसके व्यवहार और मिठास भरी वाणी से अभिभूत होकर उससे कहा कि हम लोग पर्यटन कार्यालय तक जा रहे हैं अगर आपका कॉलेज उस रास्ते पर है तो आपका सहर्ष स्वागत है। यह सुनकर वह बोली कि मेरा कॉलेज उसी के पास स्थित है। आनंद ने कार का दरवाजा खोला और वह लडकी सामने वाली सीट पर शालीनतापूर्वक बैठ गयी। उस लड़की के रूप और सौंदर्य को देखकर आनंद अनायास ही सोचने लगा कि आज का दिन कितना अच्छा है कि सुबह सुबह ही ऐसी मनमोहक संुदरता को देखने का अवसर मिल रहा है।

आनंद ने गाडी आगे बढाते हुये उससे पूछा कि आपका नाम क्या है और आप क्या करती है ? वह बोली ”मेरा नाम मानसी है और मैं बी.कॉम. अंतिम वर्ष की छात्रा हूँ।”

आनंद - ” कॉलेज की पढाई पूरी करने के बाद आगे आपका क्या इरादा है ?

मानसी - ” मेरा इरादा आगे एमबीए करने का है परंतु बोमडिला में इस प्रकार की उच्च शिक्षा की सुविधा उपलब्ध नही है इसलिये मुझे गुवाहटी या ईटानगर जाकर अध्ययन करना होगा। क्या आप लोग यहाँ पर्यटन हेतु आये हुये है ?

”हाँ , मेरा नाम आनंद है और पीछे मेरा मित्र गौरव बैठा हुआ है। मैं इंजीनियर हूँ एवं गौरव डॉक्टर है तथा उच्च शिक्षा के लिये प्रयासरत है। हम दोनो मध्य प्रदेश के निवासी है और यहाँ छुट्टियाँ बिताने आये हुए है।”

मानसी- ”क्या आपके शहर में उच्च शिक्षा उपलब्ध है ?“

आनंद - “ हाँ, हमारा शहर उच्च शिक्षा का बड़ा केंद्र है और लगभग हर विषय में उच्च शिक्षा उपलब्ध है।“

अब धीरे धीरे उन तीनों के बीच मित्रवत बातचीत का दौर प्रारंभ हो गया था। तभी गौरव ने पूछा - “ आप को अनजान लोगों से लिफ्ट मांगते हुये डर नही लगता।“ उसने हँसते हुए कहा “ आप लोगों के लिये मैं भी तो अंजान हूँ, क्या आप लोगों को मुझसे डर लग रहा है ? नही, ना, इसी तरह मुझे भी आपसे कोई खतरा नही महसूस हो रहा है। यहाँ के लोगो के दिल और दिमाग में बहुत खुलापन है और महिला उत्पीड़न के मामले नगण्य है। “

गौरव ने मानसी से वहाँ की संस्कृति, रहन सहन एवं पर्यटन स्थलों के संदर्भ में जानने की इच्छा व्यक्त की। वह बोली कि यहाँ कि संस्कृति बौद्ध धर्म से प्रभावित है। खानपान में अधिकांश लोग मांसाहारी है। यहाँ की परंपरा के अनुसार विवाह के उपरांत लडके का सारा खर्च लडकी वहन करती है और लडका अपना घर छोडकर लडकी के साथ रहता है। हमारे यहाँ विवाह करने के लिए मुख्यतः चार पद्धतियाँ प्रचलित है जिनमें हिंदू, ईसाई, बौद्ध एवं स्थानीय रीति रिवाजों के अनुसार विवाह संपन्न होते है। यहाँ विवाह प्रायः बडी उम्र लगभग 30 वर्ष की उम्र के बाद होते है और यहाँ स्थानीय परंपरा के अनुसार किये गये विवाह में तलाक भी बहुत आसानी से हो जाता हैं। यहाँ पर विवाह लंबे समय तक नही टिक पाते है।

गौरव- “ क्या मेरी भी यहाँ शादी हो सकती है ?“

मानसी- “ यदि आप यहाँ किसी लड़की को पसंद करते है तो मैं आपकी मदद कर सकती हूँ।“

गौरव आनंद की ओर इशारा करते हुए मजाक में मानसी से पूछता है कि क्या इन महानुभाव की भी शादी हो सकती है ? वह बोली हाँ, क्यों नही। यदि मैं इन्हें पसंद हूँ तो मैं भी इनसे शादी के लिये तैयार हूँ। यदि इनकी विवाह के लिये सहमति है तो मैं यहाँ की प्रचलित पद्धति से विवाह कर सकती हूँ और यहाँ की परंपरा के अनुसार आपके जीवन यापन का संपूर्ण खर्च भी वहन कर सकने में सक्षम हूँ। मेरे पास कीवी के बगीचे है आप चाहे तो देख सकते है। यह सुनकर आनंद और गौरव आश्चर्यचकित हो गये कि कोई लडकी छोटी सी मुलाकात में ही स्वयं की शादी की बात कर सकती है।

आनंद ने मानसी से कहा कि काश तुम पहले मिली होती तो मैं ऐसा जरूर कर सकता था परंतु मैं विवाहित हूँ इसलिये ऐसा करना संभव नही है। यदि तुम चाहो तो पीछे मेरा मित्र गौरव बैठा है जो कि अविवाहित है। यह सुनकर मानसी सोचने लगी और पूरे आत्मविश्वास के साथ बोली कि मैं आपकी दूसरी पत्नी बनने के लिए भी तैयार हूँ। मैं आपकी पहली पत्नी को अपनी बडी बहन की तरह मान सम्मान दूंगी यदि आप चाहे तो एक माह अपनी पहली पत्नी के साथ और दूसरा एक माह यहाँ मेरे साथ बिता सकते है। यदि संभव हो तो मैं आपकी पत्नी के साथ वहाँ या वे चाहे तो यहाँ मेरे साथ भी सम्मानपूर्वक रह सकती है। यह सुनकर दोनों की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई।

आनंद कहता है कि आपका सुझाव विचार करने योग्य है परंतु यह अत्यंत गंभीर विषय है और मुझे कुछ समय दीजिए ताकि मैं इस विषय पर अंतिम निर्णय ले सकूँ। हमारे देश के कानून के अनुसार हिंदू धर्म में दूसरा विवाह करना दंडनीय अपराध है। हाँ यदि पहली पत्नी अनुमति और सहमति दे अथवा विधिवत संबंध विच्छेद हो गया हो तभी दूसरा विवाह संभव है। मानसी कहती है कि आपको मेरे साथ विवाह करने में आपकी पहली शादी का होना बाधक बन रहा है परंतु आप सोचिए कि हमारी प्राचीन संस्कृति में बहुपत्नी प्रथा हमेशा से रही है किसी भी हिंदू धर्मग्रंथ में दूसरी शादी करना प्रतिबंधित है, ऐसा नही लिखा है अर्थात् धर्म ग्रंथों के अनुसार दूसरी शादी प्रतिबंधित नही है। यदि बहुविवाह की संस्कृति आती है तो लड़कियों की कमी होने के कारण विवाह में दहेज जैसी कुप्रथा स्वतः समाप्त हो जायेगी। दो पत्नियों के रहने से पुरूष के मानसिक संतुलन में स्थायित्व आ सकता है।

आनंद ने कहा कि हम लोग तवांग जाना चाहते हैं। यह सुनकर मानसी उनसे पूछती है कि क्या आपको तवांग के विषय में पूरी जानकारी है ? वे अनभिज्ञता जाहिर करते है। मानसी बताती है कि आपकी यह कार वहाँ तक नही जा सकती है। रास्ते में एक जगह बर्फ से जमी हुयी झील है जो कि सेना के नियंत्रण में है। उसे पार करने के लिये चारों चकों पर विशेष प्रकार की चेन का इस्तेमाल होता है जिससे बर्फ को हटाते हुये गाड़ी धीमी गति से चल पाती है। इस परिवहन हेतु जीप का इस्तेमाल किया जाता है जिसे वहाँ के निपुण ड्राइवर ही चला सकते है। मानसी आगे बताती है कि तवांग में अनेक दर्शनीय स्थल है जिनमें प्रमुख भारत चीन सीमा है। वहाँ पर जाने के लिये भी सेना से विशेष अनुमति लेना पड़ती है जिसमें कुछ समय लग जाता है। आनंद ने कहा कि हमारे पास तो ऐसी कोई अनुमति नही है, अच्छा हुआ आपने बता दिया वरना हमारा जाना निरर्थक हो जाता। गौरव कहता है कि इन सब औपचारिकताओं को पूरा करने के लिये हमें बोमडिला में ही दो दिन और रूकना पड़गा। मानसी आनंद से कहती है कि आप पर्यटन कार्यालय तक जा ही रहे है। वहाँ पर आप को सारी जानकारी मिल जायेगी। इसी वार्तालाप के दौरान मानसी का कॉलेज आ जाता है। मानसी गाड़ी से उतरकर आनंद को धन्यवाद देते हुये विनम्रतापूर्वक पूछती है कि आपको विवाह के विषय में निर्णय लेने के लिये कितना समय चाहिए ?

आनंद बोला कि हमारी आपकी मुलाकात हुये अभी एक घंटा भी नही हुआ है और हम एक दूसरे के विषय में विस्तारपूर्वक कुछ भी नही जानते है। ऐसी परिस्थितियों मंें विवाह जैसा महत्वपूर्ण निर्णय लेना जल्दबाजी होगी। आनंद आगे कहता है कि क्यों ना हम कुछ और मुलाकातें करें ताकि हम एक दूसरे को अच्छी समझ सके। मानसी बोली आपकी इस बात से मैं भी सहमत हूँ। यदि आप उचित समझें तो मैं भी आपकी मदद हेतु पर्यटन कार्यालय तक चल सकती हूँ क्योंकि लगभग आधे घंटे में मेरी बहन पल्लवी भी कॉलेज से वापिस आ जायेगी तब हम लोग वापिस बोमडिला ही जायेंगे। अगर आपकी सहमति हो तो हम लोग आधें घंटे बाद मेरी बहन को लेकर वापिस बोमडिला लौट चलेंगे तब तक हम लोग पर्यटन कार्यालय से होकर आ जायेंगे। यह सुनकर आनंद मानसी को पुनः कार में बैठाकर पर्यटन कार्यालय की ओर निकल जाता है परंतु कार्यालय में किसी की भी उपस्थिति नही थी यह देखकर वे वापस कॉलेज लौट आते है और पास ही स्थित एक रेस्टॉरेंट में बैठकर उसकी बहन पल्लवी का इंतजार करने लगते है। इसी बीच आनंद कॉफी का आर्डर देता है और वे सभी आपस में चर्चा करने लगते है। तभी मानसी आनंद से कहती है कि मैं अपनी बहन की सहेली को बता दूँ कि हम लोग यहाँ इस रेस्टारेंट में उसका इंतजार कर रहे हैं अन्यथा वह परेशान होगी। यह कहकर मानसी कुर्सी से उठकर चल देती है।

गौरव कहता है कि यहाँ कि संस्कृति में कितनी स्वतंत्रता एवं परिपक्वता है कि एक 20 साल की लडकी स्वयं अपने विवाह की बात कर रही है और एक विवाहित व्यक्ति से विवाह करके उसकी दूसरी पत्नी के रूप में भी रहने के लिए तैयार है। आनंद ने गौरव से पूछा कि तुम्हें क्या लगता है। यह रिश्ता कैसा रहेगा ? मानसी बहुत खूबसूरत और पढी लिखी लडकी है। गौरव मजाक ही मजाक में आनंद से कहता है कि एक एक माह वाली शर्त में शादी करने में क्या बुराई है। अपने घर में घरवाली से मजे और बोमडिला में दूसरी घरवाली से मजे। तुम्हारी किस्मत बडी लाजवाब है तुम शादीशुदा हो यह जानकार भी वह तुमसे शादी करने के लिये तैयार है और मैं अविवाहित हूँ फिर भी वह मुझे कोई भाव नही दे रही है। आनंद ने कहा कि यह तो दिल की बात है यह कब, कहाँ किस पर कैसे आ जाए, कोई नही जानता। गौरव आनंद से पूछता है कि तुम्हारा इरादा क्या है ? क्यों इस लडकी की और अपनी जिंदगी तबाह करने पर तुले हुये हो है। तुम एक 30 साल के समझदार व्यक्ति हो और मानसी अभी 20 साल की अल्हड जवानी के नशे में डूबी हुयी लडकी है। इस कदम से तुम्हारी और तुम्हारे परिवार की प्रतिष्ठा धूमिल हो जायेगी। थोडी ही देर बाद मानसी आ जाती है और गौरव तथा आनंद अपना वार्तालाप वहीं रोक देते है चर्चा का विषय बदल देते है।

थोडी ही देर बाद पल्लवी आती हुयी दिखाई देती है। मानसी उसको हाथ हिलाकर वहाँ आने के लिये इशारा करती है। वहाँ पहुँचकर दो अंजान लोगों को मानसी के साथ देखकर आश्चर्यचकित होकर बैठ जाती है। मानसी, गौरव और आनंद का परिचय कराती है। पल्लवी दिखने में मानसी से भी अधिक संुदर थी। गौरव उसे एकटक देखता ही रह गया। यह देखकर पल्लवी उसको कहती है कि आप किन ख्यालों में कहाँ खो गये हैं। यह सुनकर गौरव झेंप जाता है। मानसी पल्लवी को बताती है कि मैं आनंद से विवाह करना चाहती हूँ तो पल्लवी इस बात को सुनकर चौंक जाती है। वह मानसी से पूछती है कि यह इश्क का बुखार तुम्हें कब से चढ़ा है ? मानसी कहती है कि बस एक घंटे पहले से। मानसी उसे सारी बातें बता देती है। यह सुनकर पल्लवी बहुत आश्चर्यचकित हो जाती है।

गौरव पुनः कहता है कि जब तक आपके माता पिता की भी अनुमति नही मिल जाती है तब तक इन सब बातों का कोई महत्व नही है। मुझेे विश्वास नही होता कि आपका विवाह एक शादीशुदा व्यक्ति के साथ हो सकेगा क्योंकि इनकी पहली पत्नी अभी है और इस कारण आपके माता पिता भी इसके लिये अनुमति नही देंगे। मानसी कहती है कि यह मेरी समस्या है इसका निदान कैसे करना यह मैं जानती हूँ। इनकी पहली पत्नी का होना इनकी समस्या है जिसका निदान इन्हें करना होगा। मुझे कुछ समय तो दीजिए ताकि मैं परिवार की सहमति प्राप्त कर सकूँ ।

गौरव पल्लवी को बड़े ध्यान से देख रहा था और मानो सपनों में खो गया था तभी पल्लवी बोलती है कि गौरव जी कहाँ ध्यान है ? कॉफी ठंडी हो रही है और हमें वापिस भी लौटना है। मौसम में बारिश की संभावना नजर आ रही है ? जिस कारण वाहन चलाने में असुविधा हो सकती है। आप जो चिंतन, मंथन कर रहे है वह बोमड़िला पहुँच कर भी कर सकते है। यह सुनकर गौरव तुरंत ही कॉफी खत्म करके जाने के लिये तैयार हो जाता है। वे लोग बोमड़िला वापिस आ जाते है। रास्ते में इस बात पर सभी की सहमति बनती है कि लौटकर मानसी और पल्लवी बोमड़िला के दर्शनीय स्थलों को दिखाने ले जायेंगी और शनिवार होने के कारण रात्रि में होने वाले मेले में भी जायेंगे। लगभग 4 से 5 घंटे दर्शनीय स्थलों पर घूमने के दौरान वे आपस में पारिवारिक, सामाजिक एवं संभावित विवाह के बारे में बातचीत करते हैं अंत में शनिवार को होने वाले मेले का लुत्फ उठाने के बाद अगले दिन मिलने का वादा करके वे सभी एक दूसरे से विदा ले लेते है। लौटते समय भी गौरव पल्लवी को एकटक देखता रहा। पल्लवी भी इस बात पर गौर कर रही थी।

रात्रि में होटल पहुँचकर आनंद और गौरव भोजन के पश्चात एक एक पैग लेते हुये आपस में चर्चा कर रहे थे। आनंद -“ गौरव मैं निर्णय नही कर पा रहा हूँ कि मानसी के साथ शादी करूँ अथवा नही क्योंकि निशा से विश्वासघात करके दूसरी शादी करने के लिये मेरा दिल नही मान रहा है।“

गौरव - “ आनंद तुम निशा भाभी के साथ कोई विश्वासघात नही कर रहे हो। तुम्हारे दिल में उनके लिए जो जगह है वो आज भी वैसी ही जैसी कि उनके साथ हुयी दुर्घटना से पहले थी जबकि हम सब यह बात जानते हैं कि उस दुर्घटना के कारण भाभी कभी माँ नही बन पायेंगी। फिर भी पूरा परिवार और तुम उन्हें कभी इस बात का अहसास तक नही होने देते। कई बार भाभी ने भी तुमसे किसी बच्चे को गोद लेने या फिर सरोगेसी के माध्यम से बच्चा प्राप्त करने की बात कही है परंतु हर बार तुमने मना कर दिया। अब ईश्वर की इच्छा से यह मौका आया है इसलिये बिना किसी सोच विचार के हाँ कर दो और वैसे भी निशा भाभी वहाँ रहेंगी और मानसी यहाँ रहेगी तो किसी को कोई भी समस्या नही होगी फिर समय देखकर एक दिन तुम भाभी को सब कुछ सच सच बता देना। मैं भी पल्लवी को बहुत पसंद करता हूँ और उससे विवाह करना चाहता हूँ।“ यह सुनकर आनंद मुस्कुरा देता है और दोनो इस विषय पर चर्चा करते हुये सो जाते है।

अगले दिन दिन आनंद मानसी को फोन करके उसके साथ विवाह की सहमति दे देता है यह सुनकर वह बहुत ही प्रसन्नतापूर्वक आनंद को बताती है कि मेरे पिताजी तुमसे मिलना चाहते है और इस हेतु उन्होंने तुम्हें और गौरव को आज दोपहर के भोजन पर आमंत्रित किया हैै। यह सुनकर आनंद खुशी से झूम उठता है और गौरव को यह खुशखबरी बताता है। दोनो ही तैयार होकर मानसी के घर पहुँचते है और वहाँ पर हुए अपने स्वागत, सत्कार और उनके विनम्र व्यवहार से वे गदगद हो जाते है। मानसी अपने माता पिता से उनका परिचय कराती है। बातचीत के दौरान वह कहती है कि आपको आश्चर्य हो रहा होगा कि मैं क्यों आपके साथ शादी करना चाहती हूँ ? इसका कारण यह है कि हमारे समाज में बहुत खुलापन है और यहाँ पर शादी लंबे समय तक नही टिकती है इसलिये मैं यहाँ शादी नही करना चाहती हूँ। मेरे लिए यह और भी अच्छी बात है कि आप विवाहित है इस कारण आप अपनी जिम्मेदारियों को अच्छी तरह समझते होंगे और अपने कर्तव्यों का पूरी तरह से निर्वहन करेंगे।

बातचीत के दौरान मानसी के पिता बताते है कि उनकी यह अभिलाषा है कि दोनो लडकियों की शादी के उपरांत उनके पति भी यही उनके साथ रहे और मेरे कारोबार में हाथ बटाएँ। यही शादी के लिये हमारी एकमात्र शर्त है। यह सुनकर आनंद के चेहरे पर चिंता की लकीरे उभर आती है। आनंद की स्थिति को देखकर मानसी इशारे ही इशारे में आनंद से चुप रहने के लिये कहती है और स्वयं अपने पिता से कहती है कि मैंने इन्हें सब बता दिया है और यह सहमत है। यह सुनकर मानसी कि पिता बहुत प्रसन्न होते है और सहर्ष ही इस रिश्ते को स्वीकार कर लेते है। वे आनंद के परिवारजनों के संबंध में पूछते है और आनंद से कहते है कि तुम्हारे माता पिता भी यहाँ आकर कुछ जानकारी चाहेंगे या संपूर्ण निर्णय तुम स्वयं लोगे। यह सुनकर आनंद ने कहा कि यह मेरा स्वयं का निर्णय है और इसमें उनका कोई हस्तक्षेप नही होगा। इस प्रकार हंसी खुशी से भरे माहौल में सभी एक दूसरे से अच्छी तरह से परिचित होकर संतुष्टिपूर्वक विदा हो जाते है।

उसी दिन शाम को मानसी, उनको अपने कीवी के बगीचे पर आमंत्रित करती है। वहाँ पहुँचकर आनंद और गौरव, साडी में मानसी और पल्लवी की सुंदरता को देखते ही रह जाते है। आनंद धीरे से मानसी से कहता है कि इस साडी में तुम बहुत ही संुदर लग रही हो। गौरव भी पल्लवी को छेडते हुए गाना गाता है कि क्या खूब लगती हो, बडी संुदर दिखती हो। इस प्रकार हंसी मजाक से सारा वातावरण आनंदित रहता है। कुछ देर बाद आनंद ने मानसी और पल्लवी से कहा कि हमें तवांग जाना है अगर आप लोग भी हमारे साथ चलेंगे तो हमें बहुत अच्छा लगेगा। यह सुनकर मानसी और पल्लवी जाने के लिए अपनी सहमति दे देती है। मानसी तवांग का कार्यक्रम निश्चित हो जाने के पश्चात वहाँ के इंतजाम में लग जाती है और वह वहाँ की सबसे अच्छी होटल अशोका जो कि केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय द्वारा संचालित है उसमें दो सुइट रूम आरक्षित करवाती है एवं वहाँ के स्टॉफ को भारत चीन सीमा पर जाने के लिये आवश्यक अनुमति पत्र प्राप्त करने के लिये अनुरोध करती है।

दूसरे दिन वे सभी तवंाग जाने के लिये रवाना हो जाते है। पल्लवी रास्ते के लिए पोर्टेबल ऑक्सीजन केन एवं रम की बॉटल रख लेती है। यह देखकर मानसी कहती है कि पल्लवी यह तुमने बहुत अच्छा किया वरना मैं तो भूल ही गयी थी। पल्लवी मुस्कुराकर कहती है अब तो तुम आनंदमयी हो गयी हो तो तुम्हें कैसे याद रहेगा। गौरव पूछता है कि रम किसलिए रख ली, होटल में तो वैसे ही मिल जायेगी। वह कहती है कि यह तो मुझे भी मालूम है परंतु ठंड की दम से बचने के लिए रम चाहिए। दर्रे के पास जब तापमान शून्य से नीचे रहेगा तो पैरांे के तलवे में रम लगाना अनिवार्य होता है। अगर आप नही लगायेंगे तो इससे आपको जो तकलीफ होगी इसका नजारा आपको वही समझ में आयेगा।

तवांग, भारत का सीमांत शहर है। यहाँ से लगभग 40 किमी. दूर चीन की सीमा लग जाती है। यहाँ जाने के लिये पर्यटकों को सेना द्वारा विशेष अनुमति लेना पडती है। मानसी ने इसकी व्यवस्था पहले से ही करा ली थी। यह देखकर पल्लवी, आनंद से कहती है कि लगता है मानसी पर आप का प्रभाव आने लगा है तभी तो इसने बुद्धिमत्ता दिखाते हुये पहले से ही तवांग में भारतीय सीमा के पास तक जाने के लिए अनुमति ले ली है। यह सुनकर आनंद, मानसी को देखकर मुस्कुराने लगता है। पल्लवी सभी को बताती है कि तवांग के बारे में कुछ बातें बहुत प्रसिद्ध है, इस शहर में सन् 1962 के युद्ध के समय के शहीदों की स्मृति में स्मारक बना हुआ है। इसमें हम चीन से क्यों हारे इसके कारणों को दर्शाया गया है। उसमें बताए गए कारणों में प्रमुख है तत्कालीन प्रधानमंत्री के पंचशील के सिद्धांत, विदेश मंत्री की अदूरदर्शिता तथा अनुभव का अभाव, चीन की ताकत को कम आंकना, आधुनिक हथियारों की कमी के कारण सेना की तैयारी का न होना, हमारी संचार व्यवस्था एवं गोपनीय सूचनाओं को प्राप्त न करने की क्षमता इत्यादि।

इस युद्ध में हमारे देेश के अनेक सैनिकों ने बलिदान दिया। अरूणाचल प्रदेश में ऐसा कोई चौराहा या सडक का मोड नही है जहाँ पर कि देश के लिये बलिदान देने वाले सैनिक का नाम ना लिखा हो। तवांग शहर का निवासी एक सैनिक अंतिम समय तक अपनी चौकी पर डटा रहा और अंत में वीरतापूर्वक लडते हुए अत्यंत घायल अवस्था में अस्पताल लाया गया। उसकी यही अंतिम इच्छा थी कि देश का हर युवा इस हार का बदला लेगा एवं अपनी हारी हुई भूमि को पुनः चीन से प्राप्त करेगा। उसकी आत्मा को आज तक शांति नही मिली। आज भी उस चौकी पर रात में वह सैनिक हाथों में बंदूक लिए नजर आता है। ऐसा प्रतीत होता है कि जब तक युद्ध में खोई हुई अपनी प्रतिष्ठा एवं भूमि को हम वापिस प्राप्त नही कर लेते तब तक उसकी आत्मा को शांति नही मिलेगी। सेना में तैनात जवान कभी कभी उसकी आवाज सुनते हुए ऐसा महसूस करते है कि वह वही कही पर मौजूद होकर अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए तैनात है। आज भी राष्ट्र के प्रति उसकी श्रद्धा, सम्मान, समर्पण एवं बलिदान को याद कर हम अपने को गौरवान्वित महसूस करते है।

यह सुनकर आनंद, पल्लवी की तारीफ करते हुए कहता है कि यह बहुत अच्छी बात है कि तुम्हें इतिहास का भी अच्छा ज्ञान है। इस प्रकार कुछ समय पश्चात सभी लोग सेला दर्रे के पास पहुँच जाते हैं। सेला दर्रा बर्फ से साल भर आच्छादित रहता है। यहाँ पर ऑक्सीजन की कमी होती है इसलिये पल्लवी ने आपातकालीन स्थिति के लिये ऑक्सीजन का केन भी साथ रख लिया था। सभी लोग दर्रे के पास स्थित झील को अत्यंत सावधानी पूर्वक धीरे धीरे पार करने लगे। इस झील पर आवागमन के लिये ड्राइवरों को विशेष रूप से प्रशिक्षित किया जाता है जिसका प्रमाण पत्र उनके पास रहता है और इसे दिखाने के उपरांत ही झील को पार करने दिया जाता है। इस को पार करने के लिये बर्फ को काटकर रास्ता बनाया जाता है। इस पर चलने हेतु वाहनों के चकों में विशेष प्रकार की चेन बांधी जाती है ताकि गाडी बर्फ पर आसानी से चल सके।

झील पार करते समय अचानक ही गौरव को सांस लेने में कठिनाई का अनुभव होने लगा। पल्लवी ने तुरंत गौरव को ऑक्सीजन मास्क लगाकर ऑक्सीजन देना प्रारंभ कर दिया। लगभग 10 मिनिट के सबसे खतरनाक एवं सबसे दर्शनीय पडाव को पार करते हुये वे आगे की ओर बढ गये। पडाव पार करते ही पल्लवी ने गौरव के चेहरे से ऑक्सीजन मास्क हटा दिया। अब गौरव को सांस लेने में कोई तकलीफ नही थी। पल्लवीने बताया कि हम लोग लगभग 4000 मी. की ऊँचाई पर है और यहाँ ऑक्सीजन की कमी होने के कारण किसी किसी को सांस लेने में तकलीफ हो जाती है। मास्क हटा देने के बाद अब गौरव को बहुत ठंड का अनुभव हो रहा था। पल्लवी ने यह देखकर तुरंत गौरव को रम पिलाकर अपनी बांहों में भर लिया। कुछ देर बाद जब गौरव के शरीर का तापमान सामान्य हो गया तो उसे देखकर आनंद मुस्कुराते हुए बोला गर्मी का मौसम कैसा लगा। यह सुनकर गौरव बोला तुम भी तो मानसी के साथ गर्म हवा के झोंके ले रहे हो। रास्ते में भारतीय सैनिकों की कड़ी पहरेदारी देखकर आनंद ने कहा कि हम बख्तरबंद जीप के अंदर भी इतनी ठंड का अनुभव कर रहे है और हमारी सेना के वीर जवानों को देखो बाहर शून्य से नीचे तापमान पर भी कितनी मुस्तैदी के साथ डटे हुये है। हमें अपनी सेना की बहादुरी और देशप्रेम के प्रति बहुत गर्व है। कुछ देर बाद वे सभी जीप से उतरकर शहीद जसवंत सिंह की स्मृति में बने हुये स्मारक को देखने के लिये उतरते है। मानसी कहती है कि यहाँ की एक सच्ची घटना बहुत प्रसिद्ध है जिससे मैं आप लोगों को अवगत कराती हूँ।

अरूणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर के पास एक गांव में किसान के बेटे को सेना में नौकरी प्राप्त हो गई । जब वह अपने नियुक्ति स्थल पर जा रहा था तो उसकी माँ ने उसे आशीर्वाद देते हुये कहा- युद्ध के समय कभी पीठ मत दिखाना, इससे अच्छा है वीरतापूर्वक लडते हुये शहीद हो जाना। उसने यह बात गाँठ बाँधकर अपने मस्तिष्क में बैठा ली। कुछ महीनों के बाद ही भारत चीन युद्ध छिड गया। उसे तवांग शहर के पास एक चौकी पर तैनात किया गया। चीनी सेना ने उस चौकी पर हमला कर दिया। भारतीय सेना ने भी उसका भरपूर जवाब दिया किंतु परिस्थितियाँ विपरीत थी, हार निश्चित दिख रही थी। इस परिस्थिति को देखकर कमांडर ने सभी सैनिकों को चौकी छोडकर पीछे हट जाने का निर्देश दिया। इस चौकी पर तैनात सभी सैनिकों ने आज्ञा का पालन किया लेकिन जसवीर सिंह को अपनी माँ की बात याद आ गई। उसने चौकी छोडने से इनकार कर दिया। वह अकेला वीरतापूर्वक चीनी सैनिकों से लडता रहा। अंत में वह शहीद हो गया।

उसका पार्थिव शरीर उसके गांव लाया गया और पूरे राजकीय सम्मान के साथ उसका अंतिम संस्कार किया गया। गांव में सभी लोग उसे श्रद्धांजलि देने के लिए उसके अंतिम संस्कार में सम्मिलित हुये। सेना के कमांडर ने उसकी माँ को एक चिट दी जिसमें जसवीर सिंह ने लिखा था, “माँ, मैं अपना वचन निभा रहा हूँ।” यह पढकर उसकी माँ ने गर्व से कहा-”मेरा दूसरा बेटा भी सेना में जाने के लिए तैयार है। “ उस माँ के साहस और उसके बेटे के बलिदान को आज भी याद रखा जाता है। उस वीर सैनिक जसवीर सिंह की स्मृति में यह स्मारक बना हुआ है, जो आज भी भारतीय सेना की वीरता का अहसास दिलाते हुये राष्ट्र प्रथम की भावना की प्रेरणा देता है।

जीप का ड्राइवर बताता है कि पिछले सप्ताह यहाँ पर दो विदेशी पर्यटकों की ऑक्सीजन की कमी के कारण मृत्यु हो गई थी। यहाँ पर बर्फीले तूफान अक्सर आते रहते है जिस कारण हमें अपने वाहन को मौसम को देखते हुए बहुत संभल कर चलाना पडता है एवं कई बार यातायात भी लंबे समय तक अवरूद्ध हो जाता है। इस प्रकार रास्ते भर रमणीक दृश्यों को देखते एवं बातचीत करते हुए शाम तक वे सभी होटल अशोका पहुँच जाते है। रास्ते की थकान के कारण कुछ देर विश्राम एवं तरोताजा होने के बाद वे सभी आनंद के रूम की बालकनी में बैठ जाते है। आनंद अंदर जाकर स्कॉच की बोतल लेकर आता है और गौरव एवं अपने लिये ड्रिंक बनाने के बाद मानसी और पल्लवी से भी ड्रिंक के लिये पूछता है। मानसी आनंद को कहती है कि मैं शराब नही पीती हूँ परंतु पल्लवी को इसका बहुत शौक है ये आपका साथ देगी। आनंद पल्लवी के लिये एक पैग बनाता है और साथ ही साथ मानसी को कहता है कि कितना हसीन मौसम है और आप जैसी संुदर लड़कियों का साथ है। ऐसे मनमोहक वातावरण में आज आपसे निवेदन है कि एक पैग लेकर तो देखिये रास्ते की सब थकान खत्म हो जायेगी और वह मानसी के लिये भी एक ड्रिंक बना देता है। थोडा ना नुकुर करने के बाद मानसी भी उनका साथ देने के लिये पैग ले लेती है।

आपस में चर्चा के दौरान आनंद कहता है कि इतने अच्छे पर्यटन स्थल में जहाँ पर्यटन की अनेक संभावनाये है परंतु इसका विकास उतना नही हुआ है। इस प्रदेश में बिजली का उत्पादन आवश्यकता से अधिक है इस कारण दूसरे प्रदेशांे को यहाँ से बिजली दी जाती है परंतु शासकीय उदासीनता के कारण यहाँ के गावों में बिजली की उपलब्धता कम है। शहरों में भी समय असमय बिजली कटौती होती रहती है। यहाँ की जनता इसके खिलाफ आवाज क्यों नही उठाती है ? पल्लवी कहती है कि शासकीय नीतियों की गलतियों के कारण ऐसा है। सन् 1962 के युद्ध के पहले तक तो यहाँ कोई देखने भी नही आता था कि आम नागरिक किन परिस्थितियांे में जीवन यापन कर रहा है। 1962 के युद्ध में हार के बाद शासन को हमारी याद आयी कि हम भी भारत के नागरिक है और विकास में हम लोग भी अभिरूचि रखते है। यहाँ पर पहले पूरे प्रदेश में अंग्रेजी माध्यम का एक भी स्कूल नही था परंतु अब स्थिति बदल रही है। अब गांव गांव में शिक्षा के केंद्र खुल रहे हैं, सड़कों का विस्तारीकरण एवं नवीनीकरण तथा आवागमन को सुलभ बनाने के लिये पहाड़ों को काटकर नयी सड़कों का निर्माण हो रहा है। यह पर्वतों से आच्छादित प्रदेश है जहाँ प्रायः साल भर बर्फ जमी रहती है इस कारण खेती करना संभव नही है। अब यहाँ पर उद्योगपतियों को आमंत्रित करके औद्योगिकीकरण को बढावा दिया जा रहा है। यहाँ उद्योगों को विभिन्न प्रकार की सुविधायें जैसे आयकर, सीमाकर आदि से पूर्णतः मुक्त रखा गया है।

मानसी कहती है कि आज राजनीति और राजनीतिज्ञों का विश्लेषण बहुत कठिन है। आजादी से पहले हमारे देश में राजतंत्र था आजादी के बाद लोकतांत्रिक व्यवस्था लागू हुई। हमारा देश 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुआ और सभी देशवासियों के मन में अत्यंत उत्साह, आनंद, नई दिशा की नई उडान, सुखद एवं संपन्न भारत की अभिलाषा मन में हिलोरे मार रही थी। राजतंत्र से लोकतंत्र में कदम रखता हमारा देश अनेक परिवर्तनों के दौर से गुजर रहा था। महात्मा गांधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल, लाल बहादुर शास्त्री, जवाहरलाल नेहरू जैसे सशक्त व्यक्तित्व एवं बहुआयामी प्रतिभा के धनी उस समय की राजनीति के आधार स्तंभ थे। परिवर्तनों के इस दौर में राजनीति भी कब तक अछूती रहती। जैसे जैसे समय बदलता गया, लोग बदलते गये और राजनीति में भी परिवर्तनों का सिलसिला शुरू हुआ। सामान्य परिप्रेक्ष्य में पुराने समय में राजनीति का उद्देश्य जनसेवा और जन कल्याण था परंतु आज के परिप्रेक्ष्य में किसी भी तरह से सत्ता प्राप्त कर शासन करने की नीति ही राजनीति है। राजसत्ता का उपभोग, ऐसा कोई भी राजनीतिज्ञ नही होगा जो इसकी लालसा ना रखता हो। राजनीति के नैतिक मूल्यों पर चिंतन पुरातन समय से चला आ रहा है और निष्कर्ष अभी तक स्पष्ट नही है।

पहले था राजतंत्र

अब है लोकतंत्र।

पहले राजा शोषण कर रहा था

अब नेता शोषण कर रहा है।

जनता पहले भी गरीब थी

आज भी गरीब है।

कोई ईमान बेचकर,

कोई खून बेचकर

और कोई बेचकर तन

कमा रहा है धन।

तब कर पा रहा है

परिवार का भरण पोषण।

कोई नहीं है

गरीब के साथ,

गरीबी करवा रही है

प्रतिदिन नए-नए अपराध।

खोजना पड़ेगा कोई ऐसा मंत्र

जिससे आ पाये सच्चा लोकतंत्र।

मिटे गरीब और अमीर की खाई।

क्या तुम्हारे पास है कोई

ऐसा इलाज मेरे भाई।

समय के साथ साथ राजनीति का उद्देश्य एवं कार्यप्रणाली भी बदल रही है। आज राजनीति में अपराधियों का वर्चस्व बढता जा रहा है जो कि लोकतंत्र के लिए अत्यंत घातक है और लोकतांत्रिक मूल्यांे एवं सिद्धांतों के सर्वथा विपरीत है। हमारे पूर्ववर्ती नेताओं द्वारा बनाये गये संविधान का स्वरूप भी बदलता जा रहा है। जनमानस के मन में ऐसी धारणा बनती जा रही है कि -

सरकार तेजी से चल रही है।

जनता नाहक डर रही है।

सर के ऊपर से कार निकल रही है।

सर को कार का पता नही

कार को सर का पता नही

पर सरकार चल रही है।

हर पाँच साल में जनता

सर को बदल देती है।

कार जैसी थी

वैसी ही रहती है।

सर बदल गया है

कार भी बदल गई है

आ गई है नई मुसीबत

सर और कार में

नही हो पा रहा है ताल मेल

लेकिन सरकार

फिर भी चल रही है।

जनता जहाँ थी वही है

परिवर्तन की चाहत में

सर धुन रही है।

आज ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा, समर्पण का भाव कम होता जा रहा है और इसका स्थान स्वार्थ, भाई भतीजावाद व धन लोलुपता ने ले लिया है। गरीबी और अशिक्षा की वजह से बहुत से लोगों के लिए दो वक्त का भोजन जुटाना ही अत्यंत कठिन कार्य है, उनके लिए राजनीति और राजनेता जैसी बातें कोई मायने नही रखती है। उनके लिए दो वक्त की रोटी और तन ढकने के लिये कपड़ा ही महत्वपूर्ण है। जब नेताओं से यह प्रश्न किया जाता है कि देश की प्रगति अन्य विकसित देशों की तुलना में उनके समकक्ष क्यों नहीं नजर आती है तो वे इसका स्पष्ट जवाब देते है कि जनसंख्या वृद्धि इसका प्रमुख कारण है जो हमारे सारे विकास की दर को धीमा कर देता है। किसी भी राष्ट्र की प्रगति का आधार स्तंभ उसकी शिक्षा प्रणाली है। हमारे यहाँ शासकीय स्कूलों की स्थिति आज भी बहुत अच्छी नहीं है। शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव लाकर सबके लिए निशुल्क आधारभूत शिक्षा जैसी कार्य योजना लागू करनी चाहिए परंतु जब तक राजनेता ही शिक्षित नहीं होंगे तब तक यह कार्य कैसे होगा ?

आज सुबह नाश्ते में

लड्डू, जलेबी और बादाम का हलुआ देखकर

मन बाग बाग हो गया।

इतना बढ़िया नाश्ता देखकर

मैं पत्नी के प्यार में खो गया

मेरी वाणी और मेरे स्वर में

उनके लिये बेहद प्यार आ गया

परंतु उनका जवाब सुनकर

मैं तो चक्कर ही खा गया

पड़ोसी का लड़का

कॉलेज के अंतिम वर्ष में

प्रथम श्रेणी में प्रथम आया था

इसी खुशी में मैंने अपनी प्लेट में

यह लडडू पाया था

यह तो तय था कि उसे

कोई अच्छी नौकरी मिल जायेगी

और फिर जिंदगी भर

उससे चापूलसी करवायेगी।

दूसरा पड़ोसी था एक नेता का लड़का

पढ़ने लिखने में था एकदम कड़का

बड़ी मुश्किल से पास हो पाया था

परीक्षा में केवल पासिंग मार्क्स लाया था

नेता जी खुशी जता रहे थे

लोगांे को बता रहे थे

थर्ड डिवीजन में आया है

बडा उजला भविष्य लाया है

बहुत किस्मत वाला है

मुझसे ऊँचा जाएगा

मैं तो केवल नेता हूँ

यह मंत्री बन जाएगा

ईश्वर से मांग रहे थे दुआ

सबको खिला रहे थे

बादाम का हलुआ

मैं अपने ही ख्यालों में खो गया

पहले जनता का बोझ ढोता था गधा

अब गधे का बोझा ढोयेगी जनता

लोकतंत्र का नया रूप नजर आएगा

लोक अब तंत्र का बोझा उठाएगा।

आनंद कहता है कि हमें राजनीति के सिर्फ नकारात्मक पक्ष को नही देखना चाहिए बल्कि इसके सकारात्मक पक्ष की तरफ ज्यादा ध्यान देना चाहिए। हमने बीते हुए कल और आज में जो भी प्रगति की है उसे नजरअंदाज नही किया जा सकता है। कृषि के क्षेत्र जो हरित क्रांति हुई उस पर हमें गर्व होना चाहिये, कभी हम अनाज आयात करते थे आज हम अनाज निर्यात कर रहे हैं। अनेक क्षेत्रों में हम स्वावलंबी हो चुके हैं। विश्व के मानचित्र में आज हमारा बहुत विशेष स्थान है और हमें गर्व है कि हम भारतीय हैं। रक्षा के क्षेत्र में भी हम काफी आगे है। आधुनिक हथियारों एवं अनेक उपकरणों के माध्यम से अपनी सीमाओं की रक्षा हेतु सक्षम है। हमें भारत का यह उन्नत स्वरूप लोकतंत्र एवं सकारात्मक राजनीति के माध्यम से ही प्राप्त हुआ है। क्रीड़ा के क्षेत्र में भी हमारी प्रगति उल्लेखनीय है। ओलंपिक खेलों में हमारे देश के खिलाड़ियों ने बहुत ही शानदार प्रदर्शन कर गोल्ड मेडल हासिल कर कीर्तिमान स्थापित किया है। देश ने महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में भी काफी प्रगति की है। महिलाओं को पुरूषों के समकक्ष या कई क्षेत्रों में वे पुरूषों से भी आगे बढकर देशसेवा एवं विकास में अपना योगदान दे रही है। वर्तमान में हमारी वित्तमंत्री भी एक महिला माननीया श्रीमती निर्मला सीतारमण है। राजनीतिक विचाराधारा में सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष सदैव से रहे हैं और शायद आगे भी रहेंगे परंतु प्रगति केवल सकारात्मक दृष्टिकोण से ही प्राप्त होती है।

इसी समय गौरव कहता है कि मैं कई घंटों से अपने दिल की बात नही कह पा रहा हूँ। पल्लवी कहती है कि ऐसी क्या बात है ? दिल की बात को हमेशा जुबान पर ले आना चाहिये नही तो दिल दुखी हो जाता है। गौरव कहता है पल्लवी मैं तुम्हें बहुत प्रेम करता हूँ और तुमसे शादी करना चाहता हूँ। पल्लवी कहती है कि मुझे सोचने का वक्त दो क्योंकि मेेरे हम उम्र एक लडके से मेरी प्रगाढ मित्रता है जिसे तोड़ना पड़ेगा। क्या फिर भी मैं तुम्हें स्वीकार हूँ तो मुझे सोच समझकर बताना।

उन चारों को अब तक शराब का सुरूर चढ़ चुका था। रात्रि भोज के उपरांत गौरव पल्लवी से कहता है कि मुझे तुमसे कुछ और भी बातें करनी है। मेरे कमरे में चलो वही बैठ कर बातें करेंगें। आनंद भी मानसी से कहता है कि तुम अकेली क्या करोगी, चलो तुम्हारे कमरे में बैठते है। कमरे में जाकर आनंद कहता है कि कहाँ खोयी हुयी हो और क्या सोच रही हो। मानसी कहती है कि प्रेम भरी रात है ऐसी मदहोशी में आपका साथ है। यह सुनकर आनंद उसे बाहों में कसकर जकड़ लेता है और वे दोनो एक दूसरे की सासों को महसूस करते हुए दो बदन एक जान कब हो जाते हैं उन्हें इसका आभास ही नही होता है और आनंद उसके होंठों का चुंबन लेते हुए कहता है -

काम वासना नही

कामुकता वासना हो सकती है।

काम है प्यार के पौधे के लिये

उर्वरा मृदा।

काम है सृष्टि में

सृजन का आधार।

इससे प्राप्त होता है

हमारे अस्तित्व का विस्तार।

काम के प्रति समर्पित रहो

यह भौतिक सुख और

जीवन का सत्य है।

कामुकता से दूर रहो,

यह बनता है विध्वंस का आधार

और व्यक्तित्व को

करता है दिग्भ्रमित

और अवरूद्ध होता है

हमारा विकास।

मानसी कहती है कि तुम कवि भी हो क्या ? इतनी ठंड में भी दोनों गर्मी महसूस कर रहे थे। वे दोनो प्रेम के आगोश में इस कदर महहोश थे कि उनके बीच में कौमार्य की मर्यादा भी टूट गयी। कुछ समय बाद जब वे होश में आये तो दोनो को अपनी गलती महसूस हो रही थी और वे शर्मिंदा होकर एक दूसरे से नजरंे चुरा रहे थे। मानसी ने घड़ी देखी तो रात का 1 बज रहा था उसने आनंद से कहा कि पल्लवी कमरे में अकेली सो रही होगी वह मेरे विषय में क्या सोचेगी ? आनंद ने कहा कि मेरी जान गौरव भी उसी कमरे है और हो सकता है वे दोनो अभी तक बातें ही कर रहें होंगे। यह कहकर आनंद ने पुनः मानसी को अपनी बाहों में भर लिया। उधर गौरव और पल्लवी गंभीर मुद्रा में कमरे में बैठ हुये थे। गौरव पल्लवी से कहता है कि मैं तुमसे बहुत प्रेम करता हूँ और सिर्फ तुमसे ही शादी करना चाहता हूँ। मुझे तुम्हारे किसी मित्र के साथ संबंध से कोई आपत्ति नही है। मुझे तुम्हारे अतीत से भी कोई लेना देना नही है। यह सुनकर पल्लवी के चेहरे पर तनाव की लकीरें समाप्त हो जाती है और वह मुस्कुरा कर गौरव से कहती है कि तुम्हें पाकर मैं धन्य हो गई।

मेरे अतीत में हुई घटनाओं के कारण मैंने सेाचा भी नही था कि मुझे तुम्हारे जैसा इतना अच्छा पति मिल जायेगा। मैं भी तुम्हारे साथ विवाह के लिये तैयार हूँ। इतना कहकर पल्लवी अपना सिर गौरव के कंधे पर रख देती है। पल्लवी के स्पर्श मात्र से ही गौरव के शरीर में अजीब सी फुरफुराहट आ जाती है। धीरे से गौरव पल्लवी को कसकर अपनी बाहों में जकड़ लेता है। पल्लवी भी इसका विरोध ना करते हुए उसकी बाहों में समाने लगती है। गौरव धीरे धीरे पल्लवी का चुंबन लेने लगता है। काम की इस मदहोशी में दोनो ही अपने आप को नही रोक पाते है धीरे धीरे एक दूसरे में समाकर नये जीवन की कल्पनाओं में खो जाते है। अगले दिन प्रातः जब वे सभी नाश्ते पर मिलते है तो मन ही मन उनके चेहरों पर अजीब सी संतुष्टि और चमक छाई हुयी थी। नज़रों ही नज़रों में रात का खुमार हिलोंरे मार कर बीती रात की दास्तान खुद बयाँ कर रहा था।

प्रातः तैयार होकर वे सभी भारत चीन सीमा देखने के लिये रवाना होते है। ड्राइवर एक बार पुनः सभी वैध दस्तावेजों की जाँच कर लेता है। तवांग से सीमा की दूरी लगभग 40 किमी. है परंतु रास्ते की विसंगतियों, सुरक्षा चौकियों एवं मौसम के कारण लगभग 3 से 4 घंटे पहुँचने में लग जाते है। यहाँ पहाडों को काटकर, सेना द्वारा रास्ता तैयार किया गया है ताकि आवागमन सुलभता से हो सके। वहाँ पहुँचकर वे सभी देश की रक्षा हेतु तैनात सेना को देखकर अभिभूत हो जाते है। कुछ समय वहाँ बिताने के पश्चात वे वापिस लौट जाते है। तवांग पहुँचते पहुँचते उन्हें शाम हो जाती है और वे सभी पास में स्थित स्थानीय बाजार में घूमने के लिये चले जाते है।

रात्रि भोजन के पश्चात थकान होने के कारण सभी लोग जल्दी सो जाते है। अगले दिन वे सभी पुनः बोमडिला लौटने के लिये नाश्ता करने के पश्चात निकल पडते है। रास्ते में वे सभी सेना द्वारा बनाये गये स्मारक को देखने के लिये रूकते हैं। उन सभी को वॉर मेमोरियल पहुँचकर बडा आश्चर्य होता है क्योंकि पल्लवी ने जो भी उस समय के युद्ध के बारे में बताया था वे सभी बातें वहाँ पर शिलालेख पर अंकित थी। सन् 1962 के युद्ध में जितने भी सैनिक शहीद हुये उन सभी के नाम उस स्मारक में अंकित है। वे सभी उन वीर सैनिकों को स्मरण करते हुए अपनी श्रद्धांजली अर्पण कर स्मारक घूमने के पश्चात बाहर निकलकर वहाँ स्थित स्थानीय बाजार में खरीददारी के लिये निकल जाते है। थोडी बहुत खरीददारी के पश्चात वे सभी बोमडिला के लिए रवाना हो जाते है। जीप धीरे धीरे हिचकोले खाती हुयी चल रही थी। इस प्रकार वे लोग हंसी मजाक करते हुए बोमडिला पहुँच जाते है। वर्तमान समय में वैवाहिक संबंधों में कुंडलीयों का मिलान कम और ब्लड गु्रप का मिलान अधिक प्रचलित हो रहा है इसी को देखते हुए वे चारों भी अपना अपना ब्लड गु्रप मिलान करवाते है ताकि विवाह के बाद कोई विसंगति ना आये।

रास्ते में पल्लवी और मानसी बोमडिला पहुँचने के पूर्व आनंद और गौरव से आग्रह करती है कि अब आपका होटल में रूकना अनुचित प्रतीत होता है। हमारा घर भी तो आपका ही घर है, आप हमारे साथ हमारे घर पर ही रूकिये। वे दोनो उनकी बातें मान लेते है। मानसी आनंद से कहती है कि मैं आप का इंतजाम अपने फार्महाऊस में कराती हूँ। गौरव यह सुनकर कहता है कि मुझे तुम्हारे घर में रूककर क्या कबड्डी खेलना है ? मैं भी आनंद के साथ फार्महाऊस में ही रूकूंगा। मानसी तुरंत फार्महाऊस के कर्मचारी को फोन करके सब बताती है। फार्महाऊस पहुँचने पर उन लोगों को सब व्यवस्थाएँ तैयार मिलती है। खाना खाने के उपरांत आनंद और गौरव सोने के लिये चले जाते है एवं मानसी और पल्लवी अपने घर लौट जाती है। मानसी के पिता आनंद और गौरव को अगले दिन दोपहर में भोज के लिये आमंत्रित करते हैं।

मानसी और पल्लवी ने विशेष तौर पर अपने हाथों से भोजन बनाया था। मानसी कहती है कि गौरव जी अपने दिल की बात यहाँ सबके सामने बताइये। यह सुनकर गौरव झेंप जाता है और शर्माते हुये पल्लवी के पिता से कहता है कि मैं पल्ल्वी से बहुत प्रेम करता हूँ और उससे शादी करना चाहता हूँ। यह सुनकर पल्लवी के पिता कहते है कि मुझे कल रात इन दोनो ने बता दिया था परंतु मैं स्वयं तुम्हारे मुँह से सुनना चाहता था। मुझे इस विवाह से कोई ऐतराज नही है बस मेरी एक ही शर्त है कि आपको यही रहकर मेरे व्यापार हाथ बँटाना होगा। यह सुनकर गौरव चुपचाप हामी भर देता है। इस बात को सुनकर सभी बहुत प्रसन्न हो जाते है। भोजन के पश्चात सभी लोग ताश खेलने के लिये बैठ जाते हैं। बातों ही बातों में आनंद बताता है कि कल हम लोग ईटानगर के लिये प्रस्थान करेंगें तभी मानसी कहती है कि आनंद तुम अपने कार्यक्रम को यही विराम देकर जबलपुर जाने की तैयारी करो। मुझे आप लोगों के विषय में पूरी जानकारी है। मुझे आप लोगों के काम, व्यवसाय, सामाजिक स्थिति आदि के बारे में पूरा ज्ञान है। हमने ऐसे ही आपको शादी के लिये हाँ नही की थी। आनंद पूछता है कि आप को हमारे बारे में इतनी जानकारी कहाँ से प्राप्त हुयी।

मानसी कहती है कि आप जब होटल में चेक इन कर रहे थे तब मैंनें आप लोगों को देखा था और मैं आपकेा देखकर बहुत प्रभावित हुयी थी। आप लोगों के होटल में अंदर जाने के बाद मैंने आपका नाम और बाकी जानकारियाँ जो रजिस्टर में भरी थी वह मुझे मेरी पहचान के कारण प्राप्त हो गई थी। जबलपुर का नाम आते ही मैं समझ गई थी कि आप लोगों के विषय में सबकुछ मालूम हो जायेगा क्योंकि यहाँ पर कार्यरत एक उच्च अधिकारी का ट्रांसफर जबलपुर हो गया था और वे अभी भी वहाँ पर कार्यरत है परंतु उनका नाम मैं नही बताऊँगी। उन्होंने ने ही मेरे अनुरोध पर आप दोनों के विषय में सारी जानकारी विस्तृत रूप से उपलब्ध करा दी थी। मुझे पता था कि आपकी पत्नी का एक्सीडेंट हो जाने के कारण वह कभी माँ नही बन सकती है। आपके माता पिता इस कारण हमेशा चिंतित रहते है और वे आप पर दूसरी शादी या किसी बच्चे को गोद लेने का दबाव डाल रहे है। यह सब सुनकर आनंद और गौरव आश्चर्यचकित रह जाते हैं। गौरव भी मानसी की बात का समर्थन करते हुए कहता है कि हमें अब जबलपुर लौट जाना चाहिये ताकि हम अपने परिजनों को सारी बातें समझा सकें।

अब गौरव और आनंद दोनो अपने अपने घर फोन करके संक्षिप्त में सारी जानकारी दे देते है। यह सुनकर गौरव के माता पिता तो बहुत खुश होते हैं परंतु आनंद के माता पिता चिंतित हो जाते है। वे यह बात आनंद की पत्नी के स्वास्थ्य को देखते हुए नही बताते है कि कही उसे गहरा सदमा ना लग जाए। दोनो परिवारों के परिजन मानसी और पल्लवी से फोन पर ही बात करते हैं, उन्हें उनके विवाह से पहले एक बार जबलपुर आने का निवेदन करते है। वे दोनो भी इस बात के लिये सहमति दे देती है। आनंद और गौरव के जबलपुर पहुँचने पर गौरव के यहाँ तो बहुत खुशी का माहौल था परंतु आनंद के यहाँ तनाव पूर्ण वातावरण था। शाम को आनंद परिवारजनों के साथ बैठकर चाय पी रहा था तभी उसकी चचेरी बहन कविता आंखों में आंसू भरे हुये आती है और एक रिपोर्ट आनंद के हाथ में दे देती है। आनंद पूछता है कि यह क्या है ? कविता कहती है कि तुम स्वयं ही पढ़ लो। रिपोर्ट पढ़ते ही आनंद के चेहरे पर हवाईयाँ उड़ने लगती है। आनंद के पिताजी पूछते है कि क्या बात है ? आनंद रिपोर्ट उनके हाथ में देते हुए कहता है कि निशा को ब्लड कैंसर है जो कि अंतिम अवस्था तक पहुँच चुका है। इस दुखद खबर को सुनकर सभी लोग निढ़ाल से हो गये थे और वातावरण में मायूसी का माहौल छा गया था।

किचन से आते हुये निशा सभी को उदास अवस्था में बैठा देखकर शंकित होते हुये पूछती है कि आप लोगों को क्या हो गया है और आप लोग इस तरह उदास हो कर क्यों बैठे हुये है। तब कविता धीरे धीरे गंभीर मुद्रा में उसे बताती है कि पिछले हफ्ते जो टेस्ट आपके करवाए गये थे उसकी रिपोर्ट आज ही मुझे मिली है और उसके अनुसार आपको ब्लड कैंसर की अंतिम अवस्था है। यह कहते ही कविता फफक फफक कर रो पडती है। सारा माहौल गमगीन हो जाता है। निशा को यह सुनकर गहरा सदमा जैसा लग जाता है। यह देखकर आनंद उसे गले लगा लेता है। निशा अपने आप को संभालते हुये कहती है कि हुइ है वही जो राम रचि राखा। जो होना है सो होगा इसलिये बहुत चिंता नही करनी चाहिये। मानसी को भी यह खबर मिलने पर बहुत दुख होता है और वह अपने माता पिता से वहाँ जाने के लिये जिद करने लगती है। उसके माता पिता उसे समझाते है कि अभी वहाँ जाना उचित नही है परंतु उसके तर्काे के आगे सब बेबस हो जाते हैं।

मानसी ने अपने पिता से कहा कि मैं आनंद की पत्नी निशा को अपनी बड़ी बहन के समान मानती हूँ और दुख की इन कठिन परिस्थितियों में उनकी सेवा करना है मेरा धर्म और कर्तव्य है। समाज चाहे कुछ भी कहे मुझे इन बातों से कोई फर्क नही पडता है। आनंद ने भी मानसी को बहुत समझाने की कोशिश करी परंतु वह टस से मस नही हुई। मानसी के जबलपुर पहुँचने पर कविता उसका परिचय कराते हुये बताती है कि यह मेरी सहेली मानसी है और यहाँ पर उच्च शिक्षा के लिये आयी है। निशा उसका बहुत प्रेमपूर्वक स्वागत करती है। धीरे धीरे मानसी अपने कार्याें और व्यवहार से सभी का दिल जीत लेती है खासकर वह निशा की एकदम अंतरंग मित्र जैसी हो जाती है। एक माह तक तो सब कुछ ठीक चल रहा था परंतु धीरे धीरे आनंद की पत्नी की तबीयत खराब रहने लगी और कुछ समय बाद उसकी स्थिति ऐसी हो गयी थी कि वह बिस्तर से उठ भी नही पाती थी। ऐसी परिस्थितियों में भी मानसी ने उसकी सेवा करना नही छोडा था, वह बिल्कुल उसे अपनी बडी बहन की तरह ही मानती थी।

उसकी इस सेवा और लगन को देखते हुये एक दिन आनंद की पत्नी ने परिवार के सभी सदस्यों को अपने कमरे में बुलवाया। उसने मानसी से अपने अलमारी के लॉकर में रखे हुए गहनों में से अपनी पसंदीदा हीरे की अंगूठी और एक हार बुलवाकर आनंद का हाथ, मानसी के हाथ में थमाते हुए कहा कि यह अंगूठी और हार इसे पहना दो। मेरे जीने की अब कोई उम्मीद नही है और मैंने भी अब जीवन की आशा छेाड दी है। मुझे बस इसी बात की चिंता थी की मेरे ना रहने पर आनंद कैसे जियेगा ? परंतु तुम्हारी सेवा देखकर वह चिंता भी अब दूर हो गयी है। मैं जानती हूँ कि तुम्हारे मन में भी आनंद के लिये बहुत प्रेम है। यह सुनकर मानसी कहती है कि यह आप क्या कह रही हैं दीदी ? निशा कहती है कि मानसी मुझे सब कुछ पता है आनंद ने मुझे सबकुछ बता दिया था, मैं स्वयं चाहती थी कि इस घर में बच्चे की किलकारियाँ गूंजे परंतु दुर्भाग्य से ऐसा हो नही सका। जब आनंद ने मुझे यह सब बताया तो मैं कुछ समय के लिये व्यथित हो गई थी परंतु जब मैंनें गंभीरतापूर्वक विचार किया तो वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुये आनंद का निर्णय ठीक लगा। अब में पूर्ण रूप से संतुष्ट हूँ और स्वयं चाहती हूँ कि तुम दोंनों अपना प्रेम इसी प्रकार बनाए रखो और विवाह कर लो, यही मेरी अंतिम इच्छा है। इतना कहकर निशा अचानक ही बेहोश हो जाती है। यह देखकर तुरंत डॉक्टर को बुलाया जाता है और वह उनकी जाँच करने के उपरांत कहता है कि इनकी श्वांस थम चुकी है और अब यह इस संसार से विदा हो चुकी है।

निशा की मृत्यु का समाचार जैसे ही मानसी के मातापिता और अन्य रिश्तेदारों केा प्राप्त होता है वे बहुत दुखी मन से आनंद के गृहनगर जबलपुर के लिए निकल पडते है। सभी रिश्तेदारों के सम्मुख बहुत गमगीन माहौल में उसका अंतिम संस्कार होता है। अपनी पत्नी की मृत्यु से जितना दुखी आनंद था, मानसी भी उतना ही दुख महसूस कर रही थी क्योंकि इस एक माह में वह उससे इतनी अधिक जुड चुकी थी कि जैसे दोनो जन्मजात सगी बहने हों। समस्त पारंपरिक रीति रिवाजों के संपन्न हो जाने के बाद यह तय किया जाता है कि आनंद और मानसी का विवाह छः माह पश्चात ही सादे समारोह में करना उचित होगा। मानसी के मातापिता भी इस बात से सहमत हो जाते है और उसके दुखी मन को देखते हुए उसे वापस बोमडिला चलने के लिए कहते है। आनंद भी मानसी को समझाता है कि कुछ समय तुम बोमडिला चली जाओ तुम्हारा मन हल्का हो जायेगा। मानसी सभी की बात मानते हुये मातापिता के साथ वापस बोमडिला चली जाती है। समय चक्र धीरे धीरे चलता रहता है। आनंद और मानसी का जीवन भी धीरे धीरे सामान्य हो रहा था।

अचानक एक दिन मानसी की तबीयत खराब हो जाती है। उसकी माँ उसे तुरंत नजदीकी पारिवारिक डॉक्टर को दिखाती है। जाँच के उपरांत डॉक्टर उसकी माँ को बताते है कि मानसी गर्भवती है। यह सुनकर उसकी माँ सकते मंे आ जाती हैै और तुरंत यह बात मानसी के पिता को बताती हैै। वे भी यह खबर सुनकर गंभीर हो जाते है। तुरंत इस बात की सूचना आनंद के माता पिता को भी दी जाती है और वे भी यह खबर सुनकर सकते में आ जाते है। तुरंत सभी लोग बोमडिला के लिये रवाना हो जाते है और वहाँ पहुँचकर मानसी के माता पिता के साथ इस गंभीर परिस्थिति से निकलने के उपाय पर चर्चा करते है। आनंद के पिता कहते है कि निशा के देहांत को अभी मात्र 1 महीना ही हुआ है और विवाह जैसा शुभकार्य इतनी जल्दी नही किया जा सकता है और गर्भपात कराना भी उचित नही है। आनंद कहता है कि परिस्थितियों की गंभीरता को देखते हुये शादी जल्द से जल्द सादे समारोह में की जाये ताकि गर्भावस्था के कारण कोई अन्य व्यवधान ना हो।

मानसी के पिता कहते है कि क्यों ना मानसी के साथ साथ पल्लवी का भी विवाह गौरव के साथ उसी समय कर दिया जाए ? इस संबंध में जब गौरव से बात की जाती है तो वह मना देता है और कहता है कि वह आनंद के विवाह के बाद उचित समय पर धूमधाम से विवाह करेगा। पल्लवी भी इस बात पर सहमत हो जाती है कि मानसी की शादी परिस्थितिवश जल्दी और सादगीपूर्ण ढंग से करना पड रही है परंतु वह अपनी शादी धूमधाम से करना चाहती है इसलिये वह भी इंतजार करने के लिये तैयार है। विचार विमर्श के उपरांत सभी लोग यह तय करते है कि आनंद और मानसी का 1 माह बाद बोमडिला में ही हिंदू पद्धति से विवाह संपन्न होगा और गौरव व पल्लवी का विवाह उचित समय पर संपन्न होगा। आनंद और मानसी यह सुनकर बहुत प्रसन्न हो जाते है। पल्लवी धीरे से मानसी से कहती है कि तुम वहाँ सेवा करने गयी थी और ये कौन सा मेवा लेकर आ गयी। यह सुनकर मानसी मुस्कुराते हुये शर्मा जाती है।

आनंद और उसके माता पिता वापिस जबलपुर लौट आते है और शादी की तैयारियों में व्यस्त हो जाते है। एक माह का समय कैसे बीत गया, पता ही नही चला और विवाह का दिन भी आ जाता है। बोमडिला में सादे समारोह में आनंद का विवाह संपन्न हो जाता हैं। विवाह पश्चात सभी लोग जबलपुर के लिये प्रस्थान करते है और यहाँ पर भी बहुत सादगी से स्वागत समारोह संपन्न हो गया। आनंद मानसी से हनीमून पर कही बाहर चलने के लिये कहता है परंतु मानसी उसे मना कर देती है और कहती है कि अभी कुछ समय पूर्व ही दीदी की मृत्यु हुई है ऐसे में हनीमून पर कहीं बाहर जाना हमें शोभा नही देता है। यह सुनकर आनंद कहता है कि यह बात तो मैंने तुम्हारी खुशी के लिये कही थी परंतु वास्तविकता में मैं भी नही जाना चाहता था। तुमने मेरे मन की बात कहकर मेरा दिल जीत लिया है। मानसी यह सुनकर आनंद की बांहो में सिमट जाती है और आनंद भी उसे कसकर अपनी बांहो में जकड लेता है। मानसी उसे अलग करती हुयी कहती है कि नही अब नही, हमारी सुहागरात तो पहले ही तवांग में मन चुकी है और यह उसी का परिणाम हैं। अब हमारी परंपरा के अनुसार जब तक प्रसव नही हो जाता है तुम्हें इंतजार करना पडेगा। यह सुनकर आनंद मुस्कुराते हुये उसे अपनी बांहों में भरकर सो जाता है।

दूसरे दिन सुबह बोमडिला से मानसी के पिताजी का फोन आता है। वे आनंद के पिताजी से बात कर रहे थे, उनकी आवाज बहुत थर्रायी हुयी थी। उन्होंने बताया कि कल शाम को गौरव का फोन आया था। यहाँ वहाँ की बातचीत करने के उपरांत उसने बताया कि मानसी का बडा दुर्भाग्य है कि उसे आगे आने वाले कष्टों को झेलना पडेगा। जबलपुर से तो उसे बहुत उत्सावर्धक, खुशनुमा माहौल में बोमडिला भेजा जायेगा परंतु फिर उसे कभी जबलपुर नही बुलाया जायेगा। बस यही बात मुझेे बहुत परेशान कर रही है। ऐसी क्या बात हो गई है, क्या मानसी से कोई गलती हुई है ? यह सुनकर आनंद के पिताजी भौचक्के रह जाते है। वे कहते है कि यह बात तो बिल्कुल ही गलत है, हम लोगो के मन में ऐसी कोई बात नही है और मानसी तो बहुत ही अच्छी लडकी है जिसे हम कुछ माह अपनी बहू की जी जान से सेवा करते हुये देख चुके है। हम मानसी के प्रति ऐसा बिल्कुल भी नही सोच सकते है। ऐसा लगता है कि गौरव को कुछ गलतफहमी हुई हैं। आप मानसी के बारे में बिल्कुल निश्चिंत रहिये, मानसी हमारी भी बेटी ही जैसी है।

इतना कहकर आनंद के पिताजी ने, मानसी के पिताजी को आश्वस्त करते हुए फोन रख दिया। उन्होंने आनंद को बुलाकर गौरव के बारे में बताया और कहा कि तुम्हारा यह मित्र कैसा है ? जो अपने ही मित्र की गृहस्थी को उजाडने के बारे में सोच रहा है। यह सुनकर आनंद ने कहा कि पिताजी आप चिंता मत करिए मैं गौरव से इस बारे में बात करूँगा। आनंद गौरव को फोन करके पूछता है कि तुमने मानसी के पिताजी को फोन करके अनर्गल बातें क्यों की, इन बातों से वे कितना परेशान हो गये है। यह सुनकर गौरव कहता है कि मैंने तो उन्हंे फोन नही किया है, लगता है तुम्हें किसी ने गलत जानकारी दी है। यह सुनकर आनंद भडक जाता है और कहता है कि गौरव यह अच्छी बात नही है, मानसी के पिताजी ने स्वयं फोन करके यह जानकारी दी है। आनंद गुस्से में कहता है कि इतने बरस की दोस्ती तुमने एक झटके में खत्म कर दी। गौरव उसे बहुत समझाने का प्रयास करता है कि वह फोन उसने नही किया है चाहे वह जाँच करवा ले। यह सुनकर आनंद फोन काट देता है।

अब मानसी के पिताजी अपने उच्च संपर्कोंं के माध्यम से उस फोन नंबर की जाँच करवाते है तो पता चलता है कि वह नंबर बोमडिला के पास किसी टेलीफोन बूथ का नंबर है। थोडा सख्ती से पूछताछ के बाद टेलीफोन बूथ का मालिक बताता है कि एक लडका उस दिन फोन करने आया था। वह अक्सर यहाँ आता है। आप चाहे तो जब वह यहाँ आयेगा तो मैं आपको इत्तला कर दूँगा। संयोग से वह लडका अगले ही दिन वहाँ आता है तो उसे पकडकर पूछताछ की जाती हैं। पहले तो वह सारी बातों से मुकर गया परंतु जैसे ही उससे पुलिसिया अंदाज में पूछताछ की गयी तो उसने सारी बात बता दी कि वह मानसी के साथ कॉलेज में पढता था और उससे एक तरफा प्यार करता था, उसने कई बार मानसी को बताया भी परंतु मानसी ने हर बार मना कर दिया, फिर एक दिन पता चला कि मानसी की शादी हो गयी है। ईर्ष्यावश मैंने आपको गौरव का नाम लेकर झूठा फोन कॉल किया ताकि मानसी का वैवाहिक जीवन बर्बाद हो जाये। मैं अपने इस कृत्य के लिए आप लोगों से क्षमा चाहता हूँं। जब आनंद को सच्चाई का पता चलता है तो वह तुरंत गौरव को फोन करके माफी मांगता है और कहता है कि मेरे दोस्त मुझे माफ कर दो मैंने आवेश में आकर तुम्हें काफी बुरा भला कह दिया था। यह सुनकर गौरव कहता है कि कोई बात नही मेरे दोस्त अच्छा हुआ तुम्हें सच्चाई का पता चल गया वरना एक झूठ के कारण हमारी जीवन भर की दोस्ती टूट जाती।

मानसी को चित्रकारी का बहुत शौक था और वह खाली समय में अक्सर एक हवेली का चित्र बनाती रहती थी। यह चित्र जब आनंद ने देखा तो वह बोल पडा कि यह तो हमारी पुश्तैनी हवेली के समान प्रतीत होता है जिसका निर्माण हमारे पूर्वजों ने करवाया था। परंतु उनकी अचानक मृत्यु हो जाने के कारण वे इसमें निवास नही कर पाये। उनके बाद खानदान के जिस व्यक्ति ने भी यहाँ पर रहने का प्रयास किया उसके साथ कुछ ना कुछ दुर्घटना घटित होकर इस हवेली को छोडना पडा। कुछ वर्षों बाद यह हवेली सुनसान हो गयी और यह धारणा बन गयी कि यह शापित हवेली है। एक दिन आनंद, मानसी को लेकर अपने फार्म हाऊस जाता है, जहाँ से इस प्राचीन हवेली के खंडहर देखकर मानसी के मन में उसे देखने की इच्छा उत्पन्न होती है और वह आनंद से खंडहर को देखने की इच्छा व्यक्त करती है। यह सुनकर आनंद उसे समझाने का प्रयास करता है कि वहाँ जाना अभी ठीक नही है परंतु उसके बहुत जिद करने पर आनंद उसे गर्भवती होने के कारण ऐसी किसी भी जगह पर ले जाने से स्पष्ट मना कर देता है।

मानसी इसके बाद भी अपनी जिद पर अडी रहती है तब आनंद कहता है कि ठीक है परंतु तुम सिर्फ कार में बैठे बैठे ही उस हवेली को देखोगी, कार से नीचे नही उतरोगी। आनंद हवेली के पास कार ले जाता है, उसी समय वहाँ पर अचानक भयानक सी आवाज सुनाई देती है और एक पत्थर कार के पास गिरता है यह देखकर मानसी डर जाती है और आनंद तुरंत वहाँ से कार लेकर अपने घर की ओर निकल जाता है। घर पहुँचकर आनंद इस घटना की जानकारी अपने माता पिता को देता है। वे उसे डाँटते हुये कहते है कि जब तुम्हें पता है कि वह हवेली भूतहा है और मानसी भी गर्भवती है तो तुम उसे लेकर वहाँ क्यों गये थे ? यदि वहाँ कोई दुर्घटना घटित हो जाती तो हम मानसी के माता पिता को क्या जवाब देते ? इस घटना की जानकारी होने पर गौरव भी भागा भागा आता है। मानसी आनंद को बताती है कि मुझे हवेली में ऐसा महसूस हुआ कि वहाँ पर कोई खजाना छुपा हुआ है। यह सुनकर आनंद और गौरव के चेहरे पर आश्चर्य के भाव आ जाते है और वे मुस्कुराते हुये कहते है कि यह सब मनगढंत बाते है। मानसी कुछ दिन आराम करने के पश्चात इसकी सच्चाई जानने के लिये प्रयासरत हो जाती है। इस हेतु वह पुनः फार्महाऊस आकर गांव के अनेक बडे बुजुर्गों से बातचीत करती है। इन सभी से बातचीत के दौरान उसे पता चलता है कि उस हवेली में अनेकों रहस्यमय घटनायें घटित हुई है। जिसमें एक घटना बहुत चर्चित थी।

कुछ वर्ष पूर्व गावं में ही एक वैद्य रहते थे। एक दिन रात में 12 बजे के आसपास उनके दरवाजे पर दस्तक हुयी और दरवाजा खोलने पर एक सज्जन अंदर आकर बोले वैद्य जी एक मरीज बहुत असहनीय पीडा में है। आपको चलकर उसे देखना है यह एक अशर्फी आप अपने पास रखिये। आप के इलाज के उपरांत एक अशर्फी और बतौर फीस दे दी जाएगी। वैद्य जी अशर्फी का मूल्य समझते थे और वे तुरंत ही उसके साथ अपना झोला लेकर चल पडे़ जिसमें आपातकालीन दवाएँ थी।

वे सज्जन बिना कोई बातचीत किये चुपचाप आगे बढ रहे थे और उनके पीछे पीछे वैद्य जी भी चल रहे थे। उन्हें यह देखकर आश्चर्य हो रहा था कि उस व्यक्ति के दोनेा हाथ नही दिख रहे थे। उन्होने इसको अपना दृष्टिभ्रम समझा और चुपचाप चलते रहे। वह व्यक्ति उन्हें उस हवेली में ले गया और ऊपर की ओर सीढी चढ़ने लगा यह देखकर वैद्य जी ठिठके और उन्होने पूछा कि तुम मुझे कहाँ ले जा रहे हो ? यहाँ तो कोई भी नही रहता है। उसी समय उन्हें आभास हुआ कि उनके पीछे एक आदमी और आ गया है और वे दोनो उन्हें इशारा करके ऊपर चढने के लिये कह रहे हैं। वे उनकी बात मानकर चलते रहे और तीसरी मंजिल पर पहुँच गये।

वहाँ पर जीने से बाहर आकर बरामदे का दरवाजा खुलने पर अंदर का दृश्य देखकर वे हतप्रभ हो गये वहाँ दिन के उजाले के समान रोशनी जल रही थी, खूबसूरत झाड़ फानूस टंगे हुये थे कुछ लोग हाथ से पंखा चला रहे थे और वहाँ की आंतरिक साज सज्जा देखकर वैद्य जी भौचक्के रह गये। हाल के बीचों बीच एक खूबसूरत औरत जिसके पैरों में घुंघरू बंधे हुये थे, लेटी हुयी थी और पेट दर्द के कारण कराह रही थी। वैद्य जी ने उसे कुछ दवा दी जिससे आश्चर्यजनक रूप से वह आधे घंटे में ही काफी ठीक हो गयी। वैद्य जी ने उसे अगले दो दिन की दवाई बनाकर दे दी। जो व्यक्ति उन्हें वहाँ पर लेकर आया था उसने अपने वादे के अनुसार एक अशर्फी उन्हें बतौर फीस देकर कहा इस घटना का जिक्र आप किसी से भी किसी भी परिस्थिति में कहीं पर भी नहीं करंेगें अन्यथा इसका परिणाम बहुत घातक होगा। वैद्य जी उनसे विदा लेकर तेज कदमों से चलते हुये अपने घर पहुँच गये।

वैद्य जी को रात भर नींद नही आयी और वे इस घटना का विश्लेषण करते रहे। दूसरे दिन सुबह होते ही वे गांव के मुखिया के पास गये और इस अद्भुत घटना की जानकारी दी। यह सुनकर वे बोले कि वैद्य जी आज सुबह सुबह कौन सा सपना देखा है मुझे तो आपने बता दिया लेकिन किसी और से ऐसा मत कहियेगा अन्यथा लोग आपको पागल और सिरफिरा कहने लगेंगे। वैद्य जी ने तुरंत अपनी जेब से दोनो अशर्फियाँ निकालकर सामने रख दी और बोले ये इस बात का सबूत है कि मैं मनगढंत बातें नही कह रहा हूँ।

मुखिया जी यह सुनकर चार पाँच लठैतों के साथ वैद्य जी केा लेकर हवेली के उस स्थान पर पहुँचे तो सभी ने देखा कि उस कमरे में ताला लटक रहा था। बड़ी मुश्किल से उसको तोड़कर दरवाजा खोला गया। उस कमरे के अंदर चमगादड़ लटक रहे थे धूल की परत जमी हुयी थी, दीवारांे का चूना उखड रहा था और अजीब सी गंध फैली हुयी थी। वैद्य जी यह देखकर भौचक्के रह गये और उनसे कुछ भी कहते नही बन रहा था। सभी लोग वापिस आ गये मुखिया जी ने वैद्य जी को घर जाकर आराम करने की सलाह दी। उन्होने अशर्फियों की जाँच करवायी तो वह असली पाई गयीं। जिसे उन्होेने वैद्य जी को सौंपकर हँसते हुये कहा कि हम लोगों को भूत प्रेतों के दर्शन ही नही होते, आपकी मुलाकात होकर बातचीत भी हुयी और आपने उनका इलाज करके अशर्फी भी प्राप्त कर ली। दूसरे दिन वैद्य जी रोते हुये मुखिया के पास पहुँचे और उन्हें बताया कि रात्रि में अचानक उन्हें ऐसा लगा कि जैसे कोई उन्हें बेतहाशा मार रहा हो परंतु दिखाई कोई भी नही दे रहा था। इसलिये मैं अब इस गावं में नही रह सकता। मैं अब इस गांव को छोडकर जा रहा हूँ। जब आसपास के गांववालों को ऐसी घटना का पता चला तो दिन में भी कोई वहाँ जाने की हिम्मत नही करता था। उस सुनसान हवेली के खंडहर में मानो प्रेतात्माओं का वास हो गया हो ऐसी अफवाह सभी लोगों में फैल गयी। धीरे धीरे वह इलाका पूरी तरह से सुनसान हो गया।

मानसी, आनंद से कहती है कि मुझे पूरा विश्वास है कि इस हवेली में कहीं खजाना छुपा हुआ है। आनंद कहता है कि मैं भी काफी समय से वास्तविकता को जानने का प्रयास कर रहा हूँ परंतु पिताजी के वहाँ ना जाने के सख्त निर्देशों के कारण कुछ नही कर पाया फिर जब से व्यापार संभाला तो समय ही नही मिला की इस दिशा में कुछ कर सकूँ परंतु अब तुम भी कह रही हो तो मैं प्रयास करूँगा और सच्चाई का पता लगाऊँगा ? आनंद इस बारे में गौरव से चर्चा करता है। गौरव ऐसे मामलों में पडने से बचना चाहता था किंतु घनिष्ट मित्रता के कारण वह आनंद का साथ देने के लिये तैयार हो जाता है। आनंद अपने पिताजी को बताता है कि खेती के आधुनिकीकरण हेतु उन्हें गांव में कुछ लंबे समय तक रूकना पड सकता है। पिताजी कहते है कि आनंद अपना ध्यान रखना और भूल से भी हवेली की तरफ मत जाना। आनंद कहता है कि वह ऐसा कुछ भी नही करेगा जिससे उस पर किसी भी तरह का खतरा हो। वह पिताजी को बताता है कि गौरव भी उसके साथ जा रहा है। मानसी उसको कहती है कि तुम रोज मुझे सुबह शाम फोन पर बात करते रहोगे।

अब आनंद और गौरव गांव पहुँच जाते है। वह गांववालों के हित के लिये खेती के आधुनिकीकरण को सिखाने आये हुये प्रशिक्षकांे से सभी को मिलवाता है। आनंद गौरव से कहता है कि हम भोजन करने के उपरांत दोपहर को हवेली के आसपास मुआयना करने चलते है। गौरव कहता है कि ऐसा करने से यदि हम किसी की नजरों में आ गये तो चारों ओर बात फैल जायेगी। आनंद बोला कि हम भेष बदलकर चलेंगे। वे दोनो भिखारी के वेश में सायंकाल के समय खंडहर में प्रवेश करते है। कुछ आगे बढने पर शाम होने के कारण हवेली मंे अंधकार छा जाता है। वे दोनो बिना टार्च जलाए आगे बढते है। तभी एक स्थान पर ठिठक कर खडे हो जाते है क्योंकि सामने उन्हें दीवार पर विभिन्न प्रकार की आकृतियाँ बनती बिगडती दिखती है। वे सोचने लगते है कि आखिर यह क्या रहस्य है ? तभी अचानक वे दोनो जहाँ खडे थे उस जगह पर कुछ कंपन महसूस करते है। गौरव आनंद को पकडकर सुरक्षा हेतु अंधेरे में ही एक दीवार के किनारे ले जाता है।

अचानक आनंद के पैरों पर कुछ टकराता है वह उसे टटोलकर देखता है तो महसूस होता है कि यह तो तारों का बंडल है। वह सावधानीपूर्वक कुछ तारों को काट देता है जैसे ही वह तारों को काटता है वैसे ही दीवार पर बन रही आकृतियाँ मिट जाती है और जमीन पर हो रहा कंपन भी बंद हो जाता है। आनंद, गौरव से कहता है लगता है यहाँ पर कोई अलग ही मामला है जिसमें आधुनकि वैज्ञानिक तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है। यह आश्चर्यजनक एवं खोजपूर्ण विषय है। निश्चित ही यह किसी के खुराफाती दिमाग का काम है जिसका उद्देश्य हम अभी नही समझ पा रहे है। उन्हें थोडा आगे बढने पर पत्थर की एक छोटी सी कलाकृति दिखाई दी जिसे देखकर वे ठिठक कर वहीं रूक गये और उसका ध्यानपूर्वक अवलोकन करके उन्होंने उसे पांव से दबाकर देखने का निर्णय लिया तदनुसार आनंद ने अपना दाहिना पांव उस पर रख दिया। ऐसा करते ही उस जगह पर कुछ कंपन सा हुआ और वहाँ से सुरंग नुमा एक रास्ता दिखने लगा।

जिसे देखकर आनंद ने इसमे प्रवेश हेतु अपना पांव आगे बढाया तभी गौरव ने उसे पीछे खीच लिया और कहा कि इस रहस्यमयी सुरंग में जाने का मार्ग तो हमें दिख रहा है परंतु वापिस आने पर यह दरवाजा कैसे खुलेगा इसकी जानकारी हमें नही है। हमंे बहुत जल्दबाजी नही करनी चाहिए और मन को एकाग्र रखते हुये भविष्य में होने वाली संभावित घटनाओं के बारे में पहले से सोच लेना चाहिए अन्यथा हम अपनी ही गलती के कारण मुसीबत में पड जायेंगें। अब तो यह स्पष्ट है कि यह भूत प्रेतों का काम नही है। आम नागरिकों एवं आसपास के ग्रामीणों को ऐसा धमकाया गया है कि उनकी सिट्टी पिट्टी गुम हेाकर मानो यहाँ आने का प्रवेश वर्जित कर दिया गया हो। वे वापस लौटने के बारे में सोच ही रहे थे कि उन्हें दो व्यक्तियों की बहुत डरावनी आवाज आयी। वे धीरे से एक दीवार के पीछे छिप गये और उन्होंने देखा कि देा व्यक्तियों को सैकडों चमगादड काटते हुये उसी रास्ते से बाहर आने पर विवश कर रहे थे, जैसे ही वे व्यक्ति सुरंग के दरवाजे के समीप पहुँचे दरवाजा बंद हो गया। यह देखकर वे दोनो पीछे की ओर भागते है तभी सुरंग में एक आवाज के साथ दरवाजा नीचे खुल जाता है और दोनो उसमें से नीचे गिरकर मौत के आगोश में चले जाते है। यह देखकर आनंद और गौरव के रोंगटें खड़े हो जाते है। वे सोच रहे थे कि यदि हम नही रूकते और जल्दबाजी कर जाते तो हमारा भी हश्र ऐसा ही होता।

वे सुरंग वाले हिस्से को छोडकर हवेली में आगे की ओर बढ जाते है। थोडी दूर जाने पर ही मध्यम रोशनी में अनेकों जानवरों की खाल भूसा भरकर दीवार पर लटकती हुयी दिखती है। आनंद, गौरव से कहता है कि रोशनी के लिए बिजली कहाँ से और कैसे प्राप्त हो रही है ? लगभग उसी समय कुछ लोग काले कपडों में रहस्यमय रूप से दूसरी सुरंग से अंदर जाते हुये दिखते है। जैसे ही सुरंग का दरवाजा खुलता है मनोरंजक धुन सुनाई पडती है। यह देखकर आनंद और गौरव भी सुरंग में प्रवेश करते है। सुरंग में थोडी दूर जाने पर उन्हें एक दरवाजा दिखाई पडता जिसे वे खोलने का प्रयास करते है परंतु कार्ड द्वारा लॉक होने के कारण दरवाजा नही खुलता है यह देखकर वे कुछ देर के लिये छिप जाते है और जैसे ही दो लोेग भीतर प्रवेश करने की कोशिश करते है वे पीछे से हमला करके के उन्हें बेहोश कर देते है और उनका परिचय पत्र एवं रिवॉल्वर निकालकर अपने पास रख लेते है। उन्ही परिचय पत्रों के आधार पर वे उस दरवाजे से प्रव्ेाश करते है। अंदर जाने पर कुछ दूर तक चलने के पश्चात वे एक हॉल के पास पहुँचते है और वहाँ बैठे हुये एक शख्स को देखकर आनंद आश्चर्यचकित हो जाता है। गौरव, आनंद से पूछता है कि क्या बात है तुम अचानक ठिठक कर क्यों रह गए ? आनंद बताता है कि हॉल के अंदर जो बुजुर्ग शख्स बैठा हुआ दिख रहा है वह कोई और नही इसी गांव का वही वैद्यराज है जिसके बारे में अफवाह फैली थी कि उसने भूत देखा है और उस दिन के बाद से वह लापता हो गया था।

इसके बाद धीरे धीरे सर्तकता के साथ वे दोनो आगे बढ रहे थे फिर भी उन्हें ऐसा आभास हो रहा था कि उनके पीछे कोई आ रहा है। यह देखने के लिये वे दोनो सुरंग में मौजूद एक चट्टान के पीछे छिपकर बैठ गये। लगभग 15 मिनिट के बाद एक आदमी उनके पास से गुजरा उसका चेहरा देखकर आनंद आश्चर्य में रह गया। यह वही व्यक्ति था जो कि एक बार उसकी ट्रेन यात्रा में सहयात्री था। आनंद धीरे से गौरव को बताता है कि यह बात आज से कुछ वर्ष पहले की है जब मैं पटना से जबलपुर आ रहा था तो इस व्यक्ति का व्यवहार बहुत अजीब था। ट्रेन रवाना होने से पहले ही उसने अपने पास से एक बैग खीचा जिसमें शराब की विभिन्न ब्रांडों की बोतले थी। उसने वे सब बोतले निकालकर सामने सजा दी तभी ट्रेन रवाना हो गई। उसने एक बोतल खोली और साथ देने के लिए सबको निवेदन किया। उसके बोलने के तरीके से बहुत अहंकार झलक रहा था जैसे कि वह कोई बहुत ताकतवर व्यक्ति हो। उसके निवेदन को सभी ने विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दिया। अब वह मेरे बहुत पीछे पड़ गया कि आपको मेरा साथ देना होगा। उसके बहुत आग्रह पर मैंने एक पैग ले लिया और धीरे धीरे पीने लगा। उस यात्री के व्यवहार से ऐसा प्रतीत होता था कि जैसे वह मानसिक रूप से असंतुलित हो। उसी समय कोच अटेंडेट रात के डिनर के लिए पूछने आया। उससे वह अंटसंट बात करने लगा जिससे मैं समझ गया कि यह व्यक्ति ठीक नही है। इसके बाद सीधे उसने पूछा कि बगल के कंपार्टमेंट में जो दो लडकियाँ बैठी है वो कौन है ? और वहाँ पर दो बर्थ खाली है, मुझे वहाँ शिफ्ट कर दो। यह सुनकर अटेंडेट ने टिकिट चेकर को जाकर सब बातें बतायी और पीछे पीछे वह यात्री भी आ गया। टिकिट चेकर ने कहा उस कंपार्टमेंट में अगले स्टेशन से दो यात्रियों को आना है अतः वह बर्थ नही दी जा सकती।

यह सुनकर वह एकदम गुस्सा हो गया और वापिस अपने कंपार्टमेंट में आकर उसने अपना बैग खोलकर रिवाल्वर निकाल ली। यह देखकर दो सहयात्रियों ने उसको रोकने का प्रयास किया तो वह बोला कि जो मेरे शराब पीने के निवेदन को अस्वीकार कर देता है, मैं उसे गोली मार देता हूँ और जो मेरे साथ शराब पीता है उसे अपना मित्र समझकर उसे छोड देता हूँ। उसकी इन पागलपन भरी बातों को सुनकर मेरे सहयात्री हँस रहे थे परंतु मैं गंभीर था क्योंकि मेरे शहर के क्लब में दारू पीकर बहकने वाले एवं असगंत वार्तालाप करके झगडा करने वालों की गतिविधियों को मैंने नजदीक से देखा था। मैंने तुरंत उसका हाथ पकडा और उससे कहा कि भाईसाहब ऐसा कहा जाता है कि एक पैग दुश्मन को पिलाया जाता हैं और एक से ज्यादा मित्रों को। मेरी आपकी कोई दुश्मनी तो है नही, क्या आप मुझे एक पैग और नही पिलायेंगे। मेरी बात सुनकर वह बहुत प्रसन्न हो गया और बोला मैं पिलाऊँगा भी और तुम्हारे ऊपर गोली नही चलाऊँगा। मैं उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दिया और अगला स्टेशन आने तक धीरे धीरे पैग पीकर उसे बातों में उलझाये रखा और जैसे ही अगला स्टेशन आया ट्रेन खडी होने के पहले ही दरवाजा खोलकर अटेंडेंट के पास भाग गया और टीटी को बुलाकर उसकी जाँच करने के लिये कहा। मैं टीटी से बात कर ही रहा था कि गोली चलने की आवाज आयी। हम तुरंत वहाँ पहुँचे और देखा कि गोली लगने के कारण दोनो सहयात्री घायल होकर गिरे पडे है दोनो ने मुझे देखकर भागने का इशारा किया और मैं बिना समय गंवाए तुरंत ही नीचे उतर गया और घबराहट में तेजी से भागकर स्टेशन के बाहर चला गया। कुछ देर बाद जब मैं संयत हुआ तब वापिस प्लेटफार्म पर आया तो देखा कि गाडी खडी हुयी थी और मुसाफिरों में हडकंप मचा हुआ था और पुलिस उसे चेतावनी देकर बाहर आने के लिये दबाव बना रही थी एवं साथ ही साथ चौथे यात्री यानी मेरी खोज के लिये भी एनाऊंसमेंट कर रहे थे। उस सिरफिरे ने अचानक ही एक पुलिस अधिकारी की ओर गोली चलायी परंतु निशाना चूक जाने के कारण वह बच गया। यह देखकर पुलिस कर्मियों ने फायरिंग शुरू कर दी और उसे कोच से गिरफ्तार कर लिया। दोनो घायल यात्रियों को एंबुलेंस से अस्पताल भिजवा दिया गया। यह बहुत ही खतरनाक वारदात हो गई थी इसलिये मुझे पुलिस कार्यवाही पूरी होने तक रूकना पडा तत्पश्चात दूसरी ट्रेन से मैं रवाना हो गया।

आनंद और गौरव के चारों ओर बडा अजीब सा माहौल था। वे दोनो किसी प्रकार छिपते छिपाते सुरंग से गुजर रहे थे। हॉल से कुछ ही दूरी पर जहाँ सुरंग समाप्त हो रही थी, उसके पास ही एक एस्केलेटर भी लगा हुआ था जिसमें बडी बडी पेटियाँ दूसरी तरफ से अंदर आ रही थी। आनंद ने गौरव से कहा की हम इसी एस्केलेटर के साथ साथ चलते है शायद हमें इसकी तह तक पहुँचने का रास्ता मिल जाये क्योंकि ऐसा लगता है यह सारी बडी बडी पेटियाँ दूसरी तरफ से ही आ रही है। वे दोनो एस्केलेटर के किनारे किनारे धीरे धीरे आगे बढते हुए सुरंग की दूसरी तरफ से बाहर आ जाते है। बाहर आते ही वे देखते है कि पीपल के पेड पर दो लाशें लटक रही है जब वे नजदीक से देखते है तो समझ जाते है कि ये लाशंे उन्ही दो लोगों की है जिनसे हमने परिचय पत्र छीन लिया था। संभवतः इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप इन लोगों को जान से हाथ धोना पडा। दोनो लटकी हुयी लाशें माहौल में बहुत भयानकता का अहसास करा रही थी।

सुरंग के दूसरी तरफ का मुँह नदी किनारे निकलता था जिसका मुँह पत्थरों एवं झाडियों से इस प्रकार ढका रहता था कि किसी को प्रतीत ही नही होता था कि यह सुरंग है। थोडा आगे आने पर उन्होंने देखा के नदी के किनारे थोडी दूर पर तीन चार नाव खडी हुयी थी। आनंद ने गौरव से कहा कि लगता है नाव के माध्यम से भी चोरी छिपे आने जाने का रास्ता है। गौरव भी कहता है हाँ तुम सही कह रहे हो सुरंग देखकर ही यह प्रतीत हो गया था कि इस तल के नीचे भी इन लोगों ने निर्माण कर रखा है। कुछ दूर और चलने पर उन्हें एक गुफानुमा एक दूसरी सुरंग दिखाई देती है। इस सुरंग के पास ही बहुत बडा बिजली का ट्रांसफार्मर लगा हुआ था जिससे हवेली में बिजली की आपूर्ति जारी रहती थी और उसके पास ही एक मोबाइल जैमर भी लगा हुआ था। आनंद को बडा आश्चर्य हुआ कि किसके नाम पर इतना बडा बिजली का कनेक्शन है ?

वे दोनो यही सब सोचते हुए बहुत सावधानी से उस सुरंग में प्रवेश करते है सुरंग के भीतर बहुत अंधेरा था। वे बहुत धीरे धीरे आगे बढ रहे थे तभी गौरव का पैर किसी वस्तु से टकराया गौरव ने टटोला तो उसे वह वस्तु कोई बडी संदूकनुमा महसूस हो रही थी। उन्होंने धीरे से मोबाइल टार्च की रोशनी में उसे देखा तो दोनो ठिठक कर रह गये। ये तो हेंड ग्रेनेड से भरी हुई पेटी है। अब वे दोनो उस अंधेरी कोठरीनुमा जगह में धीरे धीरे और भी चीजों को देखने लगे। जैसे जैसे वे देख रहे थे उनका मुँह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया क्योंकि वहाँ पर विभिन्न प्रकार की बंदूके और नशीले पदार्थ जैसे शराब, अफीम, गांजा, कोकीन आदि रखे हुये थे। आनंद ने गौरव से कहा कि अब तो पक्का यकीन हो गया है कि यहाँ पर भूत प्रेत की आड में देशद्रोही गतिविधियाँ चल रही है। हमें शीघ्र ही यहाँ से निकलकर इसकी जानकारी पुलिस को दे देनी चाहिये।

रात्रि के दस बज रहे थे और आनंद का फोन अभी तक मानसी के पास नही आने से वह चिंतित हो रही थी क्योंकि वह भी कई बार आनंद और गौरव को फोन कर चुकी थी परंतु किसी का भी फोन नही लग रहा था और फार्म हाऊस में फोन करने पर पता चला कि आनंद और गौरव साहब तो दोपहर से कही गये हुये है तब से नही लौटे है। मानसी चिंतित होकर अपने ससुर को सारी बातें बताती है। यह सुनकर वे भी चिंतित हो जाते है और तुरंत गांव के नजदीकी थाने में फोन करके अपने परिचित पुलिस अधिकारी को सारी बातें बताते है। इंस्पेक्टर साहब उन्हें भरोसा दिलाते है कि हम तुरंत हवेली की ओर जा रहे है आप निश्चिंत रहिए हम आनंद और गौरव को खोज लेंगे। आनंद और गौरव अब गुफा से निकलने के प्रयास में थे वे धीरे धीरे आगे बढते हुये गुफा के मुहाने तक पहुँच गये। जैसे ही गुफा के मुहाने पर पहुँचे तभी उन्हें कुछ बंदूकधारी नकाबपोशों ने पकडकर चारों ओर से घेर लिया। उन्होंने आनंद से पूछा कि तुम कौन हो और यहाँ क्या कर रहे हो ? आनंद बहुत दयनीय भाव चेहरे पर लिये हुये गिडगिडाते हुये कहने लगा कि हुजुर हम लोग भिखारी है और रास्ता भटक कर इस ओर आ गये थे कि शायद रात बिताने के लिये कोई सुरक्षित जगह मिल जायेगी।

यह सुनकर वे लेाग उन दोनो भिखारियों को डांटकर आगे बढने को कह देते है। उसी समय आनंद की नजर नदी किनारे आती हुई एक नाव पर गई जो कि इसी तरफ आ रही थी। आनंद और गौरव चुपचाप पेड की ओट में छिपकर देखने लगे की आगे क्या होता है ? थोडी ही देर के पश्चात नाव किनारे पर लग गई और उनमें से कुछ लोग उतरकर गुफा की ओर बढ गये। कुछ समय पश्चात उन्ही में से कुछ लोग गुफा से कुछ संदूकों को लाते हुये दिखे। संदूक रखने के पश्चात नाव वापिस रवाना हो गई। अब आनंद और गौरव वहाँ से निकलने का उपाय खोजने लगे उसी समय तीन चार नकाबपोशों ने उन्हें पुनः घेर लिया और पकडकर गुफा में अपने मुखिया के पास ले गये। नकाबपोश मुखिया ने उनसे कहा कि तुम हमारी नावों को इतने गौर से क्यों देख रहे थे। हमने तुम्हें भिखारी समझकर छोड दिया था परंतु ऐसा लगता है कि तुम लोग भिखारी नही हो। सच सच बताओं तुम लोग कौन हो अन्यथा तुम्हें यही मार दिया जायेगा और तुम्हारी लाशें भी किसी को नही मिलेगी। वे आनंद और गौरव की तलाशी लेते है तो उनके पास से उनके साथियों के पहचान पत्र और रिवाल्वर मिलता है। यह देखकर मुखिया कहता है कि यह पहचान पत्र और रिवाल्वर तुम्हारे पास कैसे आये।

आनंद ने बताया कि सुरंग में प्रवेश के दौरान दो नकाबपोशों से यह हथिया लिया था। यह सुनकर मुखिया क्रोधित हो जाता है और आनंद तथा गौरव को झापड मारते हुए कहता है कि क्या तुम हम लोगो को मूर्ख समझते हो, तुमने हमारा पूरा ठिकाना देख लिया है। अब तुम हमारे बारे में सबकुछ जान चुके हो और अब भोले बनकर यहाँ से भागने की तैयारी में हो। अब मरने के लिये तैयार हो जाओ क्योंकि हम अपने दुश्मन को जिंदा नही छोडते है। पस्थितियों की गंभीरता को देखकर आनंद, मुखिया से कहता है कि पहले मेरी बात तो सुनलो इसके बाद तुम्हें जो करना है कर लेना। आनंद बताता है कि यह हवेली हमारे पूर्वजों की है और मेरे पास पक्की जानकारी है कि यहाँ पर खजाना गड़ा हुआ है। एक दिन अचानक ही मुझे अपने घर से एक नक्शा प्राप्त हुआ जो कि आधा फटा हुआ था इससे स्पष्ट नही हो पा रहा है कि खजाना कहाँ पर रखा हुआ है। इसलिये हम लोग वेश बदलकर खजाने की खोज में आये हुये है। यह सुनकर उस सरदार ने कहा कि ऐसी बातें तो मैंने भी गांववालों के मुख से सुनी थी और मेरे पास भी इस हवेली से प्राप्त एक अधूरा नक्शा है उसी आधार पर मैंने खजाने की खोज का प्रयास भी किया था परंतु असफल रहा। यदि तुम सच कह रहे तो तो मुझे वह नक्शा दिखाओं।

आनंद वह नक्शा उसे दिखा देता है। मुखिया आनंद से कहता है कि तुम हमारे दुश्मन नही हो परंतु यह इत्तेफाक है कि तुमने खंडहर में प्रवेश करने के बाद बायीं की जगह दायी तरफ खोज चालू की और यही पर हमारा गुप्त दरवाजा था जिस कारण तुम यहाँ तक पहुँच सके। खैर छोडो, आओ अंदर चलकर दोनो नक्शों को मिलाकर खजाने की खोज शुरू की जाये।

वह मुखिया अपने मुख्य सरदार तक सारी खबर पहुँचाता है और उनके आदेश का इंतजार करता है। मुख्य सरदार आदेश देता है कि आनंद और गौरव को सख्त पहरे में मेरे पास ले आओे। कुछ ही दूरी पर एक दूसरी जगह पर मुख्य सरदार के सामने उन्हें ले जाया जाता है। वहाँ वह सम्मान पूर्वक उन्हें बडी अच्छी तरह से अपने पास बैठाता है। आनंद देखता है कि वैद्यराज और ट्रेन वाला सहयात्री भी वही बैठे हुये थे और वार्तालाप को ध्यानपूर्वक सुन रहे थे। अब सरदार अपने पास का आधा फटा हुआ नक्शा निकलता है और आधा नक्शा आनंद से लेकर उसको जोडकर देखता है। सरदार और उसका मुख्य सरदार इस निष्कर्ष पर पहुँचते है नक्शा सच्चा है और किसी प्रकार की तब्दीली भ्रमित करने हेतु नही की गयी है। वे यह भी समझ लेते है कि इस स्थान पर आनंद और गौरव के सहयोग के बिना नही पहुँचा जा सकता है। अब वे इन दोनो को कहते है कि अब हमें नक्शे के अनुसार आगे बढना चाहिए। उनकी बात सुनकर आनंद कहता है कि खजाना मिलने के पश्चात हमारा हिस्सा देकर हमें सकुशल छोडना पडेगा। वह सरदार उसे आश्वासन देता है कि ठीक है खजाना मिलने के पश्चात तुम्हें और तुम्हारे मित्र को सकुशल छोड दिया जायेगा। सरदार नक्शे को देखता है परंतु उसे कुछ समझ नही आता है वह आनंद से पूछता है कि इसमें तो सबकुछ चित्र पहेली जैसा बना है कुछ भी समझ नही आ रहा है। आनंद कहता है कि यदि पूरी तरह से हमारी भी समझ में आ गया होता तो अब तक खजाना नही निकाल चुके होते। वह कहता है कि जहाँ तक मुझे समझ आ रहा है वह मैं तुम्हें बता देता हूँ।

आनंद बताता है कि इस चित्र पहेली में यह जो घर का चित्र दिख रहा है वह हवेली है और फिर उसी घर के पीछे की तरफ अनेक झाडियाँ और नदी का चित्र दिख रहा है वह स्थान यही कहीं प्रतीत होता है। अब यहाँ तक तो हम लोग पहुँच चुके है। इस नक्शे के अनुसार झाडियों से घिरी हुई दो चट्टानों के बीच से कोई रास्ता है जो नदी तक पहुँचता है और वहाँ से नदी पार करके दूसरी ओर स्थित किसी गुफा में वह खजाना छिपा है। अब हमें वह स्थान तलाश करना है जहाँ झाडियाँ हो और दो चट्टानों के बीच से कोई रास्ता जा रहा हो। यह सुनकर मुख्य सरदार आदेश देता है कि अपने कुछ गुर्गो के साथ धीरे धीरे टार्च की रोशनी से ऐसे स्थान को तलाशना शुरू करो। बहुत देर तक खोजने के पश्चात उन्हें ऐसी दो तीन जगह दिखाई पडती है जहाँ झाडियों के बीच चट्टाने हैं। वे सभी पुनः भ्रमित हो जाते है कि इनमें से कौन सी जगह सही है।

मुखिया अपने दो गुर्गों से एक जगह पर जाने और रास्ता देखने के लिये कहता है वे दोनो किसी तरह झाडियों को काटकर आगे बढते हैं और एक कीचडनुमा गड्ढे में फंस जाते है जैसे ही वे वहाँ से निकलने का प्रयास करते है वे और ज्यादा उसमें धंसने लगते है। यह देखकर वे घबरा जाते है और वही से सबको चिल्लाकर रोकने का प्रयास करते है और बताते है कि लगता है यहाँ पर दलदल है और हम लोग उसमें फंस गये है यह सुनकर सभी लोग रूक जाते है। उनके नकाबपोश साथी उन्हें निकालने का प्रयास शुरू करते है परंतु तब तक वे दोनो उसमें डूब जाते हैं। अब सरदार उनसे कहता है कि लगता है यह जगह वह नही है जिसकी हम खोज कर रहे है। हमें दूसरी जगह को देखना चाहिये।

वे सभी वहाँ से और आगे की तरफ एक स्थान पर पहुँचते है जहाँ पर झाडियों के बीच चट्टाने थी। वहाँ भी सरदार अपने कुछ गुर्गों को रास्ता तलाशने एवं झाडियों को साफ करने का आदेश देता है। चार नकाबपोश धीरे धीरे झाडियों को काटते हुये आगे बढते है। वे थोडी ही दूर तक बढे ही थे कि एक नकाबपोश के चीखने की आवाज आयी जैसे ही उसके साथियों ने उस तरफ टार्च से देखा तो सन्न रह गये। लगभग 6 फीट लंबा एक कोबरा सांप उसे डस कर फन फैला कर खडा था, जब तक वे सभी संभल पाते अचानक एक और साथी के चीखने की आवाज आयी। सभी का ध्यान उस ओर गया तो वहाँ भी एक और कोबरा सांप फन फैलाये खडा हुआ था। दोनो नकाबपोश जिन्हें सांपों ने डसा था उनकी तत्काल मृत्यु हो गयी यह देखकर बाकी के दो नकाबपोश बहुत डर गये जैसे ही उन्होंने टार्च की रोशनी से अपने चारों ओर देखा वे सन्न रह गये क्योंकि वहाँ पर बहुत सारे सांप रेंग रहे थे। अब उन्हे समझ आया कि वे सांपों की बांबियों के पास आ गये थे। उन्होंने वही से सभी को आवाज लगायी कि इस ओर मत आइये यहाँ पर जहरीले सांपों की बांबियाँ है। यह कहकर वे बहुत सावधानी पूर्वक वहाँ से निकलने लगे परंतु टार्च की रोशनी के कारण उत्तेजित सांपों ने उन्हें डस लिया और वे भी वही पर मारे गये।

अपने साथियों की मृत्यु देखकर बाकी नकाबपोश भी बहुत डर गये थे। सरदार भी अपने गुर्गों के मारे जाने से दुखी था परंतु खजाने की लालच ने उसे अंधा कर दिया था इसलिये अब वह तीसरी जगह पर पहुँचा जो कि हूबहू नक्शे में दी हुई जगह से मिलती थी। सरदार ने अब अपने गुर्गों की जगह आनंद और गौरव से कहा कि इन झाडियों को काटकर आगे का रास्ता तलाशों। आनंद और गौरव भी बहुत डरे हुये थे। आनंद ने कहा कि अगर इन झाडियों में कही दुर्घटनावश हमारी मृत्यु हो गयी तो तुम्हें खजाने तक कौन ले जायेगा क्योंकि इस खजाने के नक्शे को मैं ही समझ सकता हूँ। अब गौरव सरदार से कहता है कि क्यों न हम सुबह तक इंतजार कर ले क्येांकि रात के अंधेरे में कुछ भी नही समझ में आ रहा है और तुम्हारे कुछ साथियों की भी मृत्यु हो चुकी है अतः हम सभी को सुबह तक इंतजार करना चाहिये ताकि उजाले मंे आसानी से रास्ता खोज सके। यह सुनकर सरदार अपने मुख्य सरदार को वायरलेस करके सारी स्थिति बताता है और पूछता है कि आगे क्या किया जाए ? मुख्य सरदार कहता है कि अभी तुम लोग वही पर रूकों मैं कुछ देर बाद बताता हूँ। उसी समय गुफा के किनारे नदी में टार्च की रोशनी दिखाई देती है और एक गुर्गा कहता है कि सरदार माल आ गया है इसको उतरवा कर गुफा में रखवाना पडेगा। सरदार सभी लोगों को वापिस गुफा के पास नदी किनारे चलने के लिये कहता है। यह सुनकर आनंद की जान में जान आ गयी और वह भी चुपचाप उनके साथ चलने लगा।

वे लोग नदी के किनारे पर पहुँचे ही थे कि सरदार के पास मुख्य सरदार का वायरलेस आया। उसने कहा कि सब लोग कही पर छुप जाओं हवेली के आसपास पुलिस बल देखा गया है। सरदार उसे बताता है कि माल भी आ गया है अब इसका क्या करे। मुख्य सरदार कहता है कि जल्दी जल्दी माल को सुरक्षित पहुँचाओं तथा आनंद और गौरव को गोली मार दो ऐसा लगता है कि इनके पीछे ही पुलिस यहाँ तक पहुँची है। आनंद, सरदार से कुछ ही दूरी पर खडा था और चौकन्ना होकर उनकी बातों को सुनने का प्रयास कर रहा था। जैसे ही उसे आशंका हुई कि शायद सरदार हमें मार डालेगा। वह बहुत फुर्ती से सरदार की तरफ लपका और उससे हाथापाई करने लगा। जब तक गौरव व सरदार के अन्य गुर्गे कुछ समझ पाते आनंद ने सरदार की रिवाल्वर छीन ली और जोर से गौरव की ओर चिल्लाकर कहा कि भागो ये हमें मारने वाले है। गौरव भी चौकन्ना था उसने भी एक गुर्गे को धक्का देकर उसकी बंदूक छीन ली और सरदार की ओर गोली चलाकर नदी के पास स्थित झाडियों में कही छिप गये। अब सरदार किंकर्तव्यविमूढ हो गया था उसे समझ नही आ रहा था कि अचानक यह सब कैसे घटित हो गया और अब वह क्या करें।

आनंद के पिता ने इंस्पेक्टर साहब को फोन तो कर दिया था परंतु उनका मन नही मान रहा था उन्होंने तुरंत गौरव के पिता को फोन लगाया और सारी बातों से अवगत कराया। तत्पश्चात वे दोनो गांव जाने के लिये एकसाथ निकल पडे। इधर इंस्पेक्टर साहब ने भी अपनी खोजबीन शुरू कर दी थी। फार्महाऊस के कर्मचारियेां से पूछताछ के दौरान पता चला कि आनंद और गौरव दोपहर का भोजन करने के उपरांत कुछ आवश्यक कार्योंं के लिये निकल गये थे उसके बाद से उनका कोई पता नही चला। कुछ गांववालों से पूछताछ के दौरान इंस्पेक्टर साहब को पता चला कि गांव में स्थित भूतहा हवेली के रास्ते पर काफी दूर आनंद और गौरव को देखा गया था और साथ ही साथ यह भी पता चला कि हवेली के पीछे स्थित नदी के किनारे उन्होंने एक नाव को देखा था। तभी नदी किनारे से गोली चलने की आवाज इंस्पेक्टर साहब के कानों में भी पडी। यह सुनकर इंस्पेक्टर साहब तुरंत हवेली के पीछे की तरफ मुआयना करने के लिये निकल पडे। जैसे ही वे हवेली के पीछे की तरफ पहुँचे उन्हें पेड पर लटकी हुई दो लाशें मिली दिखी।

अब इंस्पेक्टर साहब का शक और भी गहरा हो रहा था क्योंकि जहाँ पर लाशें मिली थी वहाँ पर कच्चा पगडंडी जैसा रास्ता था जो कि आने जाने के लिये इस्तेमाल होता है। पगडंडी के रास्ते पर चलते हुये वे उस जगह पर पहुँच गये थे जहाँ हवेली की सुरंग का रास्ता खुलता था। इंस्पेक्टर साहब ने तुरंत इन सभी बातों की सूचना वायरलेस पर अपने उच्च अधिकारियों को दी एवं स्थिति की गंभीरता को देखते हुये अतिरिक्त पुलिस बल बुलवाया। इंस्पेक्टर साहब सावधानी पूर्वक पुलिस बल के साथ उस सुरंग में दाखिल होते है और जैसे ही वे अंदर थोडी दूर तक चलते है भीतर का माहौल देखकर दंग रह जाते है वहाँ भीतर स्थित एक हॉल में अनेक लोग थे जो हथियारों से सुसज्जित थे और वहाँ पर बहुत सारी पेटियाँ रखी हुयी थी जिनमें माद्रक द्रव्य, हथियार, सोना आदि रखे हुये थे। इंस्पेक्टर साहब पुलिस बल को धीरे धीरे सुरंग को चारों ओर से घेरने का आदेश देते है।

अब सभी पुलिसकर्मी सर्तकता के साथ बिना कोई आवाज किये अपनी अपनी जगह पर मुस्तैदी के साथ खडे हो जाते है। एकाएक इंस्पेक्टर साहब जोर से दरवाजे पर लात मारते हुये एक हवाई फायर करते है और हॉल के भीतर स्थित सभी लोगों को चेतावनी देते हुये कहते है कि सभी अपने अपने हथियार नीचे रख दो अन्यथा मार दिये जाओगे परंतु अचानक से उन तस्करांे का एक साथी गोली चला देता है। इंस्पेक्टर तुरंत वहाँ से हटकर अपनी जान बचाता है और जोर से अपने साथियों को आवाज लगाते हुये गोली चलाने का आदेश देता है। गोलीबारी के दौरान अचानक बिजली बंद हो जाने से पूरी तरह अंधेरा छा जाता है। हवेली एवं आसपास के इलाकों में गोलियों की आवाजें गंूज रही थी। अचानक हुये इस हमले से तस्कर घबरा जाते है और अंधेरे का फायदा उठाकर सुरंग से निकलने की कोशिश करते है परंतु पुलिस बल के आगे उनकी एक नही चली और अधिकांश तस्करों की मृत्यु के पश्चात बाकी बचे हुए लोग पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर देते है।

यह सब देखकर तस्करों का मुख्य सरदार और वैद्यराज सुरंग में एक टाइम बम फिट कर देते है और अंधेरे का फायदा उठाते हुए सुरंग से तुरंत निकल जाते है। एक पुलिसकर्मी जो कि मुख्य सरदार पर घात लगाए बैठा था उसने उन्हे टाइम बम लगाते हुए देख लिया था। वह तुरंत इंस्पेक्टर साहब के पास जाकर उन्हें सारी बातें बताता है। इंस्पेक्टर साहब सभी पुलिस कर्मियों को तुरंत सुरंग से बाहर निकलने का आदेश देते है जैसे ही वे लोग सुरंग से बाहर निकलते है कि अचानक ही जोरदार धमाका होता है और सुरंग के साथ ही साथ पूरी हवेली जमींदोज हो जाती है। धमाके के कारण सुरंग के भीतर स्थित तस्करी का सारा सामान नष्ट होकर तितर बितर हो जाता है। यह धमाका देखकर इंस्पेक्टर साहब की रूह कांप जाती है और वे सकुशल सुरक्षित होने के लिए ईश्वर को धन्यवाद देते है। इंस्पेक्टर साहब तुरंत कंट्रोल रूम फोन करके उच्च अधिकारियों को परिस्थिति से अवगत कराते है और बताते है कि ईश्वर की कृपा से एक भी पुलिसकर्मी को कोई चोट तक नही पहुँची है परंतु धमाके के कारण तस्करी का सारा माल नष्ट हो गया है। अब इंस्पेक्टर साहब वैघराज और उसके भाई की तलाश करने में जुट जाते है।

गोलीयों की आवाजें और अचानक हुए धमाके की आवाज सुनकर छोटा सरदार भी आनंद और गौरव की तलाश छोडकर हवेली तरफ भागता है परंतु रास्ते में ही उनकी मुठभेठ पुलिस से हो जाती है क्योंकि इंस्पेक्टर साहब ने जब नदी किनारे गोली की आवाज सुनी थी तभी एक पुलिस दल उन्होंने नदी किनारे भेज दिया था। इस मुठभेड में छोटा सरदार और उसके सारे गुर्गे मारे जाते है। पूरी रात्रि पुलिस सर्च लाइट के माध्यम से बचे खुचे तस्करांेे को ढंढती है और उन्हंे गिरफ्तार कर लेती है। अंततः मुख्य सरदार और वैद्यराज भी एक जगह घनी झाडियों की बीच पकडे जाते है। अनैतिक गतिविधियों का इतना बडा अड्डा और उसके संचालक को जिंदा पकडने की खुशी में इंस्पेक्टर साहब फूले नही समा रहे थे। वे इन सब चीजों में इतना उलझ गये थे कि आनंद और गौरव को तलाशने की बात उनके दिमाग से ही निकल गयी थी। वे कंट्रोल रूम में संदेश भेजते है कि सामान जप्त करने हेतु अतिरिक्त पुलिस वाहन की आवश्यकता है। वे इन्ही क्रियाकलापों में इतना व्यस्त थे कि अचानक उनके मोबाइल पर घंटी बजी और उधर से आनंद के पिताजी की आवाज आयी कि इंस्पेक्टर साहब मैं गांव पहुँच गया हूँ। आनंद और गौरव का कुछ पता चला ? यह सुनकर इंस्पेक्टर साहब जैसे नींद जागे और कहा कि क्षमा कीजियेगा ठाकुर साहब अभी उन दोनो का कुछ पता नही चला है परंतु मैं उनकी तलाश में आपकी हवेली के पीछे नदी किनारे आया हूँ और मुझे उम्मीद है कि वे दोनो भी यही कहीं होेंगे। तभी आनंद के पिताजी कहते है ठीक है इंस्पेक्टर साहब हम भी वही पहुँचते है। यह कहकर वे फोन काट देते है। इंस्पेक्टर साहब मुख्य सरदार समेत तुरंत उन सभी तस्करों को गिरफ्तार कर लेते है और अपने मातहत कर्मचारियेां को आदेश देते है कि शीघ्रतिशीघ्र इन सभी सामानों की जप्ती बनाकर सरकारी वाहन से थाने भेजा जाए। वे अपने साथ कुछ पुलिस कर्मियों को लेकर आनंद की खोज में निकल पडते है।

इतनी सब कवायद में कब रात बीत गयी कुछ पता ही नही चला धीरे धीरे सूर्य भगवान अपनी लालिमा बिखेरते हुये, रात के अंधेरे को मिटाते हुये प्रकट होे रहे थे। इंस्पेक्टर साहब लाउड स्पीकर के माध्यम से मुनादी कराते हुए आनंद और गौरव को ढंूढने का प्रयास करते है। आनंद और गौरव झाडियों में छिपे हुये थे। मुनादी सुनते ही, सुरक्षित महसूस होने पर वे बाहर निकल आते है। आनंद और गौरव को सकुशल देखकर इंस्पेक्टर साहब भी बहुत प्रसन्न होते है। उसी समय उनके पिताजी भी वहाँ पहुँच जाते है। आनंद और गौरव को सकुशल देखकर उनकी आँखों से खुशी के आंसू बहने लगते है। दोनो तुरंत अपने पिताजी के पास पहुँचते है और उनके पैर छू कर आशीर्वाद लेते है।

इंस्पेक्टर साहब अपनी वैधानिक कार्यवाही में व्यस्त हो जाते है। उन्होंने पास ही स्थित उस गुफा को भी निगरानी में लेते हुये वहाँ स्थित सारी सामग्री जप्त कर ली थी। इस बीच आनंद ने मौका देखकर चुपके से छेाटे सरदार के मृत शरीर की जेब से नक्शा निकालकर अपने पास रख लिया था। उजाला होने के बाद इंस्पेक्टर साहब पुनः हवेली की ओर जाते है और उसी समय प्रशासनिक अधिकारी, पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी एवं पत्रकारागण पहुँच जाते है। वहाँ पहुँचकर वे सभी आश्चर्य चकित रह जाते है क्योंकि धमाके के कारण हवेली तो जमींदेाज हो गयी थी परंतु उस धमाके की वजह से वहाँ एक बडा गड्ढा निर्मित हो गया था और अनेक तरह के पुराने जमाने के संदूक आदि उसमें नजर आ रहे थे। प्रशासनिक अधिकारियों के आदेश पर गड्ढें एवं उसके आसपास खुदाई शुरू करवायी गयी और जैसे जैसे वे मलबे केा हटाते जा रहे थे उन्हेें अनेक पुराने जमाने के संदूक, पेटियाँ, भगवान की स्वर्ण निर्मित मूर्तियाँ आदि मिलने लगी। प्रातः काल से शाम तक पुलिस और प्रशासन के सभी बडे अधिकारी और मीडिया के बडे बडे पत्रकार वहाँ पर उपस्थित थे क्यांेकि तस्करों के पकडने के साथ ही साथ उस धमाके के कारण जमीन के नीचे गडा हुआ खजाना भी सामने आ गया था और जैसे ही यह खबर न्यूज चैनलों ने प्रसारित की सभी लोग आश्चर्य चकित रह गये। गांव वाले जो अब तक सिर्फ खजाने को एक अफवाह मानते थे वे भी इस सच को स्वीकार कर रहे थे।

आनंद और गौरव को कानूनी कार्यवाही के कारण कुछ समय तक रूकना पडा फिर वे अपना बयान दर्ज करवा कर और आगे भी पुलिस कार्यवाही में सहयोग देने का वादा करके अपने फार्महाऊस की ओर निकल गये। अब भूतिया हवेली की सारी दास्तान आग की तरह आसपास के सारे गांवों में फैल गयी। जब इस घटना के मुख्य आरोपी वैद्यराज और उसके भाई को गांव वालों के सामने लाया गया तो सारे लोग आश्चर्य चकित रह गये कि ये तो वही वैद्यराज है जो कि इस गांव से गायब हो गये थे। थाने लाकर जब वैद्यराज और उनके भाई से कडाई से पूछताछ की गयी तो सारा भेद खुल गया। वैद्यराज ने बताया कि बहुत पहले वे इस गांव में वैद्य का कार्य करते थे तब से इस हवेली की भूतहा होने के बारे में सुनते थे। एक बार उनका भाई जो कि नामी गिरामी डॉन था और तस्करी का कार्य करता था वह छिपता छिपाता मेरे पास गांव आया क्योंकि एक ट्रेन में गोलीकांड के कारण उसे काफी लंबी सजा मिली थी और वह पेशी के समय पुलिस को चकमा देकर भाग निकलने में कामयाब रहा तो अपनी फरारी काटने के लिये मेरे पास आया था। मैंने पहले तो उसे रहने से मना कर दिया परंतु अत्याधिक रूपयों के लालच में मैने उसे अपने पास रोक लिया।

एक दिन हम लोग ऐसे ही टहलते हुये हवेली तक पहुँचे। मेरे भाई को वह हवेली बहुत पसंद आयी कि इस जगह से अपना कारोबार बेरोकटोक चल सकता है। मैंने उसे बताया कि यहाँ अफवाह है कि यह भूतहा हवेली है परंतु वह नही माना और हवेली को पूरा घूम आया उसे कुछ भी नही हुआ। उसे देखकर मेरा भी डर जाता रहा। एक दिन उसने मुझे एक योजना बताई जिसके तहत मुझे गांव वालों में यह बात फैलानी थी कि मैं रात में उस हवेली में इलाज करने गया और मुझे अशर्फी मिली और उसके दो दिन बाद मुझे गांव से गायब हो जाना था जिससे गांव वालों में मन में हवेली का भय और ज्यादा घर कर गया। इसके बाद मेरे भाई का तस्करी का कारोबार इस हवेली के सूने होने की वजह से बेरोकटोक चलने लगा। मुझे भी अनाप शनाप पैसा मिलने लगा। नदी किनारे पर हमने फैक्ट्री डालने के बहाने से बिजली कनेक्शन भी ले लिया था और अधिकारियों को रिश्वत देकर वैद्य दस्तावेज भी तैयार करा लिये थे। फिर धीरे धीरे हमने हवेली से नदी तक सुरंग बना ली थी जिससे किसी को भी पता ही नही चलता था कि यहाँ पर कुछ हो रहा है परंतु आज अचानक पुलिस का छापा कैसे पडा यह बात नही समझ आई।

अब इंस्पेक्टर साहब आनंद से कहते है कि अब तुम अपनी बात बताओ तुम्हें कैसे सूझा कि यहाँ कुछ है? आनंद ने कहा कि मैं विज्ञान का छात्र हूँ और सुनी सुनाई बातों पर यकीन कर लेना मुझे पसंद नही है। मैं तो बहुत पहले से इस हवेली के भीतर जाकर देखना चाहता था कि वास्तविकता क्या है ? परंतु पिताजी के भय के कारण कभी नही आया फिर बाद में व्यापारिक व्यस्तता के चलते इधर आना ही नही हुआ। अभी कुछ समय पहले जब मैं अपनी पत्नी मानसी के साथ गांव आया तो उसकी जिद के कारण मुझे हवेली तक आना पडा और जैसे ही हम लोग हवेली के मुख्य द्वार पर पहुँचे अचानक हमारी ओर पत्थर फेंके जाने लगे। यह देखकर मानसी डर गई और मैं भी तुरंत कार में बैठ गया तभी मुझे कार के रिव्यू मिरर से हवेली की खिडकी पर एक नकाबपोश व्यक्ति दिखाई दिया। मैं तभी समझ गया था कि यहाँ पर कुछ गडबड जरूर है। फिर एक दिन हम यहाँ पर कृषि आधुनिकीकरण के कार्य के लिए आये उसी समय हमने ठान लिया था कि इस हवेली में प्रवेश करके यहाँ की सच्चाई का पता लगायेंगे।

एक दिन हम लोग देापहर के भोजन के उपरांत पैदल ही फार्महाऊस से निकले और थोडी देर बाद एक सुनसान जगह पर जाकर अपनी वेशभूषा बदलकर भिखारियों जैसी बना ली और हवेली की ओर चल दिये। हवेली तक पहुँचते पहुँचते शाम ढल चुकी थी और अंधेरा हो चुका था। हम धीरे से हवेली में दाखिल हुये और चलते चलते एक छिपी हुयी सुरंग के पास पहुँचे जब हमने सुरंग के अंदर हॉल में वैद्यराज और उनके अपराधी भाई के साथ हथियार बंद लोगों को देखा तो हमें सब समझ में आ गया कि हवेली के भूतहा होने की अफवाह फैलाकर यहाँ पर देशद्रोही गतिविधियाँ संचालित हो रही है। सुरंग से बाहर आकर हम नदी किनारे की गुफा तक गये। वहाँ भी बहुत सारे हथियार और तस्करी का सामान रखा हुआ था। हम गुफा से निकलकर पुलिस को सूचना देने की योजना बना ही रहे थे कि पकडे गए यह सब देखकर मुझे यकीन हो गया था यहाँ से सकुशल लौटना मुश्किल है।

वे लोग इतने खतरनाक थे कि शायद हमें तुरंत ही मार देते परंतु अपने आप को सकुशल बचाए रखने की दृढ इच्छाशक्ति के कारण मैंने एक योजना बनायी और कहा कि मैं इस हवेली का मालिक हूँ और अपने पूर्वजों द्वारा छोडे गये खजाने की खोज मैं आया हूँ, मेरे पास उसका नक्शा भी है इसी नक्शे के अनुसार मैं यहाँ तक पहुँचा हूँ। जैसा मैंने सोचा था वैसा ही हुआ उन तस्करों का मुखिया खजाने की लालच में मेरे जाल में फंस गया। मेरी अगली योजना थी कि किसी भी तरह से रात का समय व्यतीत हो जाये तो सुबह तक कुछ न कुछ मदद अवश्य पहुँच जायेगी। मैं उन तस्करों को रात भर खजाने की तलाश में इधर उधर भटकाता रहा जिस कारण दलदल में फंसने एवं सर्पदंश के कारण कुछ तस्कर मारे भी गए। रात्रि में मुझे छोटे सरदार पर कुछ शक हुआ कि शायद अब यह हमें मार सकता है। यह विचार आते ही हम भागने की फिराक में थे और मौका देखकर अचानक ही हमने सरदार पर हमला कर दिया और उसकी बंदूक छीनकर गोली चला दी ताकि गोली की आवाज से यदि कोई हमें खोजने आ रहा है तो चौकन्ना हो जाए और उसे पता भी चल जाए कि हम किस दिशा में है। हमारी एक फायरिंग के कुछ देर बाद ही हवेली के पास से जब दनादन फायरिंग की आवाजे आने लगी और एक तेज धमाका सुना तो कुछ देर के लिये हम भी भयभीत हो गये कि क्या हो रहा है परंतु जब हमने सुबह मुनादी सुनी और देखा कि पुलिस आ चुकी है और सारे तस्कर हथियार डाल चुके है तब हम बाहर निकल आये।

प्रशासन एवं पुलिस के उच्च अधिकारियों ने आनंद और गौरव, दोनो की सूझबूझ और चतुराई की बहुत तारीफ की। आनंद ने गौरव से कहा कि हमें हमारे पूर्वजों का खजाना तो मिला नही परंतु कोई और खजाना हाथ लग गया साथ ही साथ जान बची तो लाखों पाये की कहावत भी आज चरितार्थ हो गयी। अपने खजाने की खोज फिर कभी भविष्य में करेंगें। यह सुनकर गौरव भी आनंद की बात पर सहमत हो जाता है और कुछ समय पश्चात सारी कानूनी कार्यवाही के बाद दोनो वापिस अपने गृहनगर लौट आते है। जब मानसी और पल्लवी को सारी बाते पता हुई तो वे भगवान की इस कृपा के लिए नतमस्तक हो गयी।

समय चक्र धीरे धीरे चल रहा था। इतने बडे हादसे से बचने के बाद अब आनंद अधिकतर समय जनसेवा के कार्यांे में ही व्यतीत करने लगा उसका मानना था कि उसके कुछ पुण्य कर्मों से ही यह ईश्वर कृपा हुई है इसलिये वह अधिकतर समय समाज सेवा के कार्याें में देने लगा। पिछले एक साल में हुए हादसों को भुलाते हुये पूरा परिवार गौरव और पल्लवी के विवाह की खुशियों में डूब जाता है। दोनों का विवाह अत्यंत धूमधाम से संपन्न हो जाता है।

एक दिन वे चारों बगीचे में बैठकर गुफ्तगूं कर रहे थे तभी पल्लवी बोली कि मैंने सुना है कि आप लोग जिस खजाने की खोज में गये थे वह तो आपको मिला नही परंतु आपके भाग्य से दूसरा खजाना मिल गया जिसका दस प्रतिशत लाभांश एवं प्रशस्ति पत्र आप लोगों को प्राप्त हो चुका है। अब इतनी दौलत का सदुपयोग आप कैसे करेंगें ? आप लोगों की किस्मत बहुत बुलंद है और ईश्वर की महती कृपा है कि आपकी जान भी बच गयी और धन, संपत्ति, मानसम्मान भी प्राप्त हुआ। अब आप अपने परिवार के गड़े धन के विषय में क्या सोचते हैं ? क्यों न उस खजाने की प्राप्ति हेतु एक और प्रयास किया जाए। गौरव कहता है कि अब यह संभव नही है क्योंकि संपत्ति का अधिग्रहण सरकार द्वारा किया जा चुका है।

आनंद कहता है मेरा विचार है कि हम शासकीय विभाग को वह नक्शा सौंप दे तो धन प्राप्ति पर कम से कम दस प्रतिशत के हकदार तो हो जायेंगे। सभी लोग इस बात पर सहमति व्यक्त करतें हैं और दूसरे दिन नक्शा एवं अन्य जानकारियाँ स्थानीय प्रशासनिक अधिकारी को दे देते है। वे इस पर तुरंत कार्यवाही करके येन केन प्रकारेण खजाने को खोजकर शासकीय खजाने में जमा कर देते है। आनंद के परिवारजन उसमें से अपना दस प्रतिशत हिस्सा मांगने की मांग करते है जो कि स्वीकृत कर लिया जाता है और उन्हें उनका हिस्सा ससम्मान दे दिया जाता है। आनंद खजाने से प्राप्त लाभांश की राशि को गांव के सर्वांगीण विकास के लिये अपनी पहली पत्नी निशा की स्मृति में ट्रस्ट बनाकर सौंप देता है।

--- राजेश माहेश्वरी ( लेखक )

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