जीवित मुर्दा व बेताल - अंतिम भाग Rahul Haldhar द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

जीवित मुर्दा व बेताल - अंतिम भाग

उधर गोपाल सुबह होते ही घर से चल पड़ा । आज उसके ऊपर एक विशेष कार्यभार है । भोर में उसने आज फिर सपना देखा था उसी सपने में उसे इस विशेष कार्य का आदेश मिला है । आज उसके सपने में स्वयं देवी काली ने उसे दर्शन दिया है । वह उम्र में छोटा हो सकता है लेकिन डरपोक नहीं है । गोपाल ने घरवालों को कुछ भी ना बताकर सीधा नदी की ओर चल पड़ा ।

शारदा परम आनंद से दोनों हाथों को फैला पूरब में उगते सूर्य की ओर देखकर चिल्लाते हुए बोलने लगी ,
" पृथ्वी की एक बहुत बड़ी शक्ति मेरे पास है , मैं अब अपराजित हूं । "

बेताल को वश में करने के आनंद में शारदा हंसने लगी ।
शक्ति के अभिमान में वह चूर हो गई है । उसके सामने माझी पत्नी का मृत शरीर पड़ा हुआ है । वृत्त के अंदर एक शीशी है जिसके अंदर एक काला धुआं इधर-उधर घूम रहा है ।
शिवचरण पंडित जी अब और खुद को संभाल नहीं पाए हाथ में एक अधजला हुआ लकड़ी उठाकर शारदा की ओर झपट पड़े।

" हरामजादी अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिए किसी का प्राण लेने से पहले तुम्हारे हाथ भी नहीं कांपे। "

शारदा उस वक़्त शक्ति पाने की आनंद में मशगूल थी इसीलिए शिवचरण पंडित के इस अचानक हमले से निपटने के लिए वह बिल्कुल भी तैयार नहीं थी । दूसरा कोई भी शमशान में हो सकता है उसने सोचा भी नहीं किया इसीलिए किसी दूसरे के आवाज को सुन शारदा
आश्चर्य से पीछे की तरफ पलटी । तब तक शिवचरण पंडित का फेंका हुआ हुआ लकड़ी शारदा को जाकर लगा । अचानक हुए इस हमले से शारदा खुद को संभाल नहीं पाई और गिर पड़ी उसी के साथ मानो भाग्य भी शारदा को देखकर हंस पड़ा । वृत्त में रखें शीशी के ऊपर गिरने के कारण कांच की शीशी टूट कर चूर-चूर हो गई और तुरंत ही उसके अंदर से काला धुआँ निकलकर हवा में मिल गया ।
शारदा उठकर क्रोध भरे निगाह से शिवचरण पंडित की ओर देखकर कुछ बोलने ही वाली थी कि उसी वक्त एक काला हवा का झोंका तेजी से आकर शारदा को जमीन से ऊपर उठा लिया । काले हवा के झोंके ने शारदा को चारों तरफ से घेर लिया , कुछ देर की प्रतीक्षा उसके बाद ही खून और मांस चूसा हुआ शारदा की शरीर नीचे जमीन पर आ गिरा । मृत माझी पत्नी के शरीर के पास एक और मृत शरीर पड़ा है जो शारदा का है ।
शिवचरण पंडित ने ऐसी घटना के बारे में सोचा भी नहीं था। बेताल फिर मुक्त हो गया है और पहले से ज्यादा हिंसक है और ज्यादा शक्तिशाली भी है । अब वह विध्वंस लीला की ओर बढ़ रहा है । काला हवा का झोंका घूमते हुए जमींदार घर की ओर चल पड़ा ।

उधर गोपाल नदी के घाट पर आ पहुंचा है । नदी के उस पार कुछ दूरी पर ही एक श्मशान है । सपने में बार-बार वह इसी श्मशान को ही देखता है तथा मंदिर के उस अज्ञात आदमी को भी इसी जगह उसने कई बार देखा है ।
गोपाल ने अनुभव किया कि एक सड़े दुर्गंध से नदी का घाट भरा हुआ है । इधर - उधर नजर दौड़ाते ही गोपाल ने देखा नदी के बीच एक जगह पर जलकुंभी में कुछ अटका हुआ है तथा वहां पर बहुत सारे मक्खी भनभना रहे हैं । जलकुंभी के पौधों में भोला पागल का मांस सड़ा हुआ कंकाल रूपी शरीर अटका हुआ है ।
गोपाल पहले यह देख थोड़ा घबरा गया इसीलिए अपनी आंखों को बंद कर देवी काली को शरण किया । फिर अपने मन को कठोर किया उसे पता है कि अब क्या करना है । समय व्यर्थ ना करते हुए गोपाल नदी में उतर गया , नदी में उतरने से पहले उसने किनारे से एक बड़ा सा डंडा ले लिया था । जलकुंभी के पौधों के पास जाकर गोपाल ने डंडे से भोला पागल के कंकाल को नदी के तल से ऊपर उठाया फिर कंकाल के हाथ को पकड़ कर एक हाथ से तैरते हुए उसे नदी के उस तरफ ले गया ।

उधर महोबा गांव में बेताल मृत्युलीला में व्यस्त है । जमींदार साहब और उनके लड़के दिनेश की बेताल ने निर्मम हत्या की लेकिन फिर भी वह शांत नहीं हुआ ।
अब वह पूरे गांव को ही विध्वंस करके शांत होगा । परंतु बेताल के इस कार्य में अब भी कोई बाधा देने की कोशिश कर रहा है ।
शिवचरण पंडित गांव के बीच में एक पत्थर पर सिन्दूर से तीन आँख बनाकर पूजा करने बैठे हैं । उनके गुरु ने उनसे कहा था कि जब भी किसी घोर विनाश को देखो तो किसी भी शिला पर तीन नेत्र बनाकर देवी काली को शरण करना सभी काली शक्तियां उनके सामने नतमस्तक हो जाते हैं ।
शिवचरण पंडित के इन मंत्रों की ध्वनि दूर तक गूंज रहा है ,
" ॐ काली महाकाली कालिके परमेश्वरी ।
सर्वानन्दकरी देवी नारायणि नमोऽस्तुते ।।

काली काली महाकाली कालिके पापनाशिनी ।
खड्गहस्ते मुण्डहस्ते काली काली नमोस्तुते ।।

ॐ जयन्ती मङ्गलाकाली भद्रकाली कपालिनी ।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।

जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि।
जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोऽस्तुते ॥ "

यही एकमात्र बाधा है इसे खत्म कर बेताल अपना तांडव पूरे गांव वालों पर चला सकता है ।....

पूरे गांव पर अब विनाश की छटा दिखाई देने लगी । काले बादल ने आसमान ढक लिया जिस वजह से दिन में भी चारों तरफ अंधेरा हो गया तथा चारों तरफ बिजली कड़कड़ाने की आवाज़ सुनाई देने लगी ।
शारदा के कहे अनुसार अब भी सभी गांव वाले घर के अंदर ही हैं लेकिन अचानक आने वाले इस प्रलय के कारण वो सभी डर से कांप उठे । तेज हवा की आंधी से उनके घर कांप रहे हैं तथा बड़े - बड़े पेड़ों पर बिजली गिर रही है ।

°°°°
उधर गोपाल भोला पागल के कंकाल को लेकर लगभग किनारे पर पहुंच गया है । उसी वक्त नदी के अंदर वाले लताएं मानो जाग उठे तथा गोपाल के हाथ - पैर को पकड़ उसे अंदर की ओर खींचने लगे । उसी के साथ भोला पागल का कंकाल भी धीरे-धीरे पानी के नीचे जाने लगा ।
धीरे - धीरे नदी के नीचे से निकले लताओं ने गोपाल के पूरे शरीर को जकड़ लिया । बहुत छटपटाने की बात भी वह ऊपर की ओर नहीं जा पर रहा और धीरे - धीरे उसके शरीर से ऑक्सीजन की मात्रा भी कम होने लगा ।
पानी के नीचे गोपाल का शरीर शांत होता जा रहा है तथा उसके आँखों में मृत्यु रुपी अंधेरा छाने लगा ।

°°°°

इधर शिवचरण पंडित काले शिला पत्थर के सामने बैठकर तेज आंधी में देवी काली मंत्र पाठ में मग्न हैं । यह आंधी मानो उन्हें ही निगलना चाहती है पर वो कठोर होकर जमीन पर बैठ लगातार मंत्र पाठ कर रहे हैं ।
शिवचरण पंडित के सामने अब बेताल अपने शरीर रूप में आया । आज आकार में वह और भी बड़ा है , मुंह में चमकदार दाँत तथा जीभ से ताज़ा खून की बून्द जमीन पर टपक रहा है। कुछ देर पहले ही बेताल ने इस जीभ से जमींदार वंश के खून को चूसकर उन्हें निरवंश कर दिया है । उसका जीभ किसी विषैले साँप की तरह हवा में इधर - उधर झूल रहा है ।

भोला पागल ने बेताल होकर अपना बदला लिया लेकिन अब उसके अंदर शैतान की शक्ति आ गई है इसलिए अब केवल अपना बदला लेकर ही वह शांत नहीं होगा। अब उसे सभी गांव वालों का मौत व खून चाहिए ।
भोला पागल खड़े - खड़े शिवचरण पंडित को देख अपने अंदाज में हंसने लगा ।
' हीहीहाहीहीहीहीहीहीहीहीहीहीहीहीहीही '

उसका खून टपकता जीभ पंडित जी के खून को चूसने के लिए बढ़ रहा है ।
भोला पागल धीरे-धीरे हंसते हुए शिवचरण पंडित की ओर बढ़ रहा है । शिवचरण पंडित ने अब भोला पागल के आंख में देखकर मंत्र पाठ करने लगे । यह मानो दोनों में लड़ाई का आगाज है । परंतु पंडित जी केवल एक साधारण मनुष्य हैं तथा दूसरी तरफ भोला पागल अति शक्तिशाली एक प्रेत है इसीलिए पंडित जी के इस मंत्र पाठ से विशेष कोई कार्य नहीं हुआ ।
बेताल गर्जन करते हुए शिवचरण पंडित के शरीर को हवा में उठाकर नीचे जमीन पर पटक दिया । देवी शिला के सामने तुरंत ही शिवचरण पंडित लगभग बेहोश हो गए । सिर फटने के कारण वहां से खून निकल रहा है ।

शिवचरण पंडित के फटे हुए सिर से खून बहता जा रहा है । उसी अवस्था में बड़बड़ाते हुए बोले,
" हे देवी माता ! रक्षा करो , रक्षा करो, रक्षा ....... "

°°°°°

पानी के नीचे गोपाल लगभग अधमरा है , उसके पास ही भोला पागल का कंकाल शरीर पड़ा हुआ है ।
उसी वक़्त गोपाल के शर्ट जेब में रखा कागज की पुड़िया से रोशनी निकलने लगा । अवश्य ही पानी में रहने के कारण पुड़िया में रखा राख भीग गया था । अचानक ही उसने
गोपाल के पूरे शरीर में ऊर्जा प्रवाह करने लगा ।
अब गोपाल ने अपने आँखों को खोला फिर सीने के पास हाथ रखकर भोला पागल के कंकाल को पकड़ पानी के ऊपर उठने की कोशिश करने लगा । उसके शरीर में मानो कोई दिव्य शक्ति उत्पन्न हुआ है ।
कुछ देर में ही गोपाल कंकाल रुपी सड़े - गले शरीर को नदी के तट पर ले आया । इसके बाद क्या करना है उसे पता है । भोर के सपने में देवी माता ने स्वयं उसे निर्देश दिया है कि इस कार्य के साथ कई असहाय का जीवन निर्भर है इसलिए जो भी हो गोपाल अपने प्राण की आहुति देकर भी इसलिए दायित्व को पूरा करेगा ।
एक काला अंधेरा मानो बार - बार उसे पकड़ना चाहता है लेकिन उसके शर्ट के जेब में रखे कागज की पुड़िया ने उसे इन सब से बचा कर रखा है ।

शिवचरण पंडित को फाड़कर खाने के लिए उन पर बेताल के कूदते ही एक तेज रोशनी ने उसे रोक दिया । तब तक पंडित जी के सिर से खून बहते हुए सामने के देवी शिला को स्पर्श किया है और उसी देवी शिला से ही यह ज्योति निकल रहा है । उसके प्रभाव से ही बेताल दूर जा गिरा था ।

उधर गोपाल ने देर ना करते हुए आसपास से एक लकड़ी का जुगाड़ किया तथा उसे फावड़े की तरह उपयोग करते हुए मिट्टी खोदना शुरू कर दिया । नदी के किनारे की मिट्टी इसीलिए ज्यादा सख्त नहीं है लेकिन फिर भी गोपाल के लिए यह गड्ढा बनाना कठिन कार्य है । हार मानने से नहीं चलेगा क्योंकि उसके पास समय नहीं है इसलिए गोपाल जल्दी - जल्दी अपना हाथ चलाने लगा । कुछ देर खोदने के बाद उसने एक बड़ा गड्ढा बना लिया तथा सड़े - गले कंकाल शरीर को उसमें खींच लाया । और फिर इसके बाद वह मिट्टी से गड्ढे को भरने लगा। धीरे - धीरे भोला पागल का कंकाल शरीर मिट्टी के नीचे ढकने लगा ।

बेताल ने अब और विशाल शरीर को धारण कर उस दिव्य रोशनी पर झपट पड़ा लेकिन तब तक गोपाल ने अपने जेब से कागज की पुड़िया को भोला पागल के समाधि शरीर पर रख दिया है ।
तुरंत ही बेताल का शरीर राख में बदल गया और वह राख देवी शिला से निकलते रोशनी में जाकर गायब हो गया ।
आसमान से काले बादल भी अब ना जाने कहाँ गायब हो गए हैं । सूर्य के किरण ने गांव की मिट्टी को स्पर्श किया है । अचानक से चारों तरफ का प्रलय बेताल के साथ ही गायब हो गया है ।
शिवचरण पंडित सिर पर हाथ रखकर उठ बैठे । जिस प्रकार का चोट उनके सिर पर लगा था उससे शायद वह बच नहीं सकते थे लेकिन शायद स्वयं देवी काली ने उनकी रक्षा की थी । एक बार आंख बंद कर उन्होंने देवी माता को नमन किया तुरंत ही उनके आंखों के सामने एक छोटे लड़के का चेहरा उभर आया ।

कागज की पुड़िया को भोला पागल के समाधि दिए शरीर के ऊपर रख लौटते वक्त गोपाल को बहुत बुरा लग रहा था । लेकिन आखिर वह क्या करें सपने में देवी माता ने उसे ऐसा ही करने का आदेश दिया था । पर उसने मन ही मन सोचा कि अगर मंदिर में फिर कभी वह उस अज्ञात आदमी से मिला तो उनसे ऐसी कागज की पुड़िया फिर से मांग लेगा । लेकिन खुद की रक्षा के लिए नहीं , देवी माता की वह प्रसाद रूपी राख अपने पास रखने में उसे तृप्ति का अनुभव होता है ।.

// समाप्त //

@rahul