मुखिया जगन्नाथ सिन्हा के अद्भुत मृत्यु की खबर शारदा ने ही जाकर पुलिस थाने में बताया था। रोते हुए उसने पूरी घटना पुलिस को बताई थी। उसके बात और चेहरा को देखकर पुलिस को उस पर जरा भी शक नहीं हुआ। इसके अलावा अगर शारदा पुलिस थाने में ना आकर कहीं भाग जाती तब पुलिस उसके बारे में कुछ सोच सकते थे कि जमींदार घर के मूल्यवान वस्तुओं को चुराने के लिए शारदा ने मुखिया साहब का खून कर भाग गई । पुलिस ने मुखिया साहब के संग्रहालय में छानबीन की लेकिन वहां से यह पता चला कि शारदा ने वहां से कुछ भी हाथ साफ नहीं किया है। उसने केवल अपने मालिक के मृत्यु की खबर पुलिस थाने तक पहुंचा दिया था। हालांकि सत्य भी यही है कि केवल उस अद्भुत मूर्ति के अलावा शारदा ने कुछ भी नहीं लिया लेकिन इस बारे में पुलिस को कैसे पता चले। इसके अलावा क्योंकि मुखिया जगन्नाथ सिन्हा का कोई भी रिश्तेदार नहीं है इसीलिए पुलिस ने इस मृत्यु पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया । पुलिस ने गांव में कुछ दिन छानबीन किया फिर जब उन्हें कुछ भी सुराग नहीं मिला तो छानबीन बंद कर दिया तथा संग्रहालय का सभी सामान सरकार ने जब्त कर लिया ।
इधर शारदा के जीवन ने परिवर्तन शुरू हो गया है । अब वह घर से बाहर ज्यादा नहीं निकलती , काम में उसकी कोई रुचि नहीं । गांव के एक कोने में उसका घर है , पूरे दिन घर में रहकर वह उस मूर्ति व लाल कॉपी के साथ न जाने क्या करती रहती ? हालांकि यह लाल कॉपी कोई साधारण कॉपी नहीं है। हिंदू शास्त्र के विभिन्न तंत्र - मंत्र व काले जादू के बारे में पूर्ण बातें उसमें लिखी हुई है ।
बचपन में उसमें थोड़ी बहुत पढ़ाई - लिखाई की थी , इसके अलावा मुखिया जगन्नाथ सिन्हा को प्रतिदिन समाचार पत्र वही पढ़कर सुनाती इसीलिए उसमें लिखें तंत्र - मंत्र को पढ़ने में शारदा को ज्यादा समस्या नहीं हुई ।
एक दिन शाम के वक्त शारदा उस मूर्ति को इधर उधर से देख रही थी । मनुष्य के शरीर पर ऐसे बकरे का सिर लगा हुआ क्या यह किसी देवता की मूर्ति है या शिल्पकार ने अपने मन मुताबिक कुछ भी बना दिया ? मूर्ति देखने में अच्छा नहीं है लेकिन न जाने क्यों वह मूर्ति शारदा को अपनी तरफ आकर्षित करती है ?
शारदा यही सब सोच रही थी कि अचानक मूर्ति उसके हाथ से फिसलकर नीचे गिर गई । तुरंत ही मूर्ति का सिर एक तरफ और शरीर दूसरी तरफ चला गया। मूर्ति के शरीर वाले हिस्से के अंदर पीला कागज का टुकड़ा था ।
शारदा जल्दी से नीचे बैठ गई , अब उसने मूर्ति को उठाकर देखा तो वह अंदर से खोखले थी । शारदा ने उस पीले कागज के टुकड़े को बाहर निकाला फिर मूर्ति के अलग हुए सिर को उसके धड़ पर लगाकर थोड़ा सा दबाते ही 'ठक्क ' की आवाज के साथ मूर्ति पहले जैसी बन गई।
शारदा समझ गई कि यह मूर्ति किसी छोटी डब्बे की तरह बनाई गई है जिसमें मूर्ति का सिर ढक्कन है । कुछ भी हो मूर्ति नहीं टूटा यह देख शारदा का मन थोड़ा शांत हुआ ।
अब वह उस कागज को देखना लगी । पूरे कागज पर हल्दी लगा हुआ है तथा लाल रंग से लिखा हुआ था " सिंह के उत्तर, जड़ की गहराई में "।
शारदा को इस बात का अर्थ समझ नहीं पाई लेकिन यह किसने लिखा है वह जानती है । ऐसी लिखावट मुखिया जगन्नाथ सिन्हा की है ।
उस पूरी रात शारदा लिखे हुए बात का अर्थ क्या है इस बारे में सोचती रही । जमींदार घर के बारे में मुझसे जो कुछ भी पता है उस बारे में सोचती रही ।
सोचते हुए ना जाने कब वह सो गई । ब्रह्ममुहूर्त में उसने एक सपना देखा । वह लालटेन हाथ में लेकर एक खिड़की पर खड़ी है तथा उस वक़्त आधी रात , चारों तरफ सन्नाटा केवल झींगुर की आवाज के आलावा और कोई आवाज़ नहीं। वह जिस खिड़की पर खड़ी है वहां से बाहर का छोटा बाग जैसा जंगल चांद की रोशनी के कारण साफ दिख रहा है। उसी रोशनी में शारदा ने देखा कि एक महिला पूरे बाग में इधर-उधर घूम रही है । उस महिला की नजर नीचे जमीन पर है तथा सभी पेड़ के नीचे कुछ खोज रही है । अब वह महिला एक मोटे से पेड़ के सामने आकर खड़ी हो गई तथा कुछ देर उस पेड़ के सामने खड़ी रहने के बाद उस महिला ने अचानक से खिड़की की तरफ देखा , जहाँ पर शारदा खड़ी थी । बाग में खड़ी वह महिला हुबहू शारदा के जैसी थी । चांद की इस हल्की रोशनी में उस महिला का चेहरा और भी फीका लग रहा था ।
सुबह नींद से जागने के बाद शारदा कुछ देर बैठी रही । आज उसमें जो सपने देखा उसे पूरी तरह याद नहीं आ रही । उस सपने में कुछ इशारा था । आखिर क्या ?
अपने मन को स्थिर करके कुछ देर सोच - विचार करने के बाद अचानक शारदा के दिमाग में बिजली चमका । जमींदार घर का नाम याद आया , घर के अंदर जाते वक्त गेट के बाएं तरफ एक पत्थर के पट पर उसने यह नाम बहुत बार देखा है । वहाँ पर ' सिंह भवन ' लिखा है ।
धीरे-धीरे शारदा के दिमाग में सब कुछ स्पष्ट होने लगा । उसे याद आया कि मुखिया साहब बोलते थे कि उत्तर दिशा की हवा मेरे शरीर व मन दोनों चंगा कर देता है ।
जिस खिड़की के पास मुखिया जगन्नाथ सिन्हा बैठकर आराम करते थे शारदा सपने में उसी खिड़की पर खड़ी थी । आज सब कुछ उसके सामने साफ है इसीलिए वह जमींदार घर की ओर चल पड़ी । शारदा जानती है कि उसे कुछ तो मिलने वाला है ।
जमींदार घर के उत्तर की तरफ वाले बाग में एक बड़ा मोटा सा आम का पेड़ है इस बारे में वह जानती थी लेकिन अब उसे याद आया कि उस पेड़ के जड़ के पास एक खोखला जगह है। ' सिंह के उत्तर, जड़ की गहराई में ' अर्थात सिंह भवन के उत्तर उस आम के पेड़ की जड़ में खोखली जगह के अंदर मुखिया साहब ने अवश्य ही कुछ छुपाकर रखा है ।
कुछ देर बाद शारदा जमींदार घर के सामने पहुंच गई । पूरा घर सुनसान है कहीं किसी की आवाज़ नहीं। पहले शारदा को थोड़ा डर लगा लेकिन डरने से कुछ नहीं होगा , इस रहस्य का समापन उसे करना ही होगा । कुछ देर जमींदार घर के सामने पर खड़ी रही फ़िर बाग की तरफ गई । चारों तरफ झाड़ी और बड़े-बड़े घास से यह बाग भरा हुआ है लेकिन शारदा सीधे उस आम के पेड़ के सामने आकर खड़े हुई। उस पेड़ के जड़ के पास एक खोखला जगह है । शारदा में डरते हुई उस खोखली जगह में अपनी हाथ को डाला लेकिन उसके हाथ में कुछ भी नहीं आया शायद अंदर खोखले की गहराई ज्यादा थी । डरते हुए उसने और ज्यादा अपने हाथ को अंदर डाला तथा तुरंत ही अपने हाथ को झटके में बाहर निकाल लिया । उसकी हाथों ने ठंडा कुछ स्पर्श किया था । पहले उसे लगा कि कोई सांप या कौन जंतु तो अंदर नहीं बैठा इसीलिए एक डंडे को खोखले में डालकर पहले कुछ देर देखा। नहीं अंदर कोई भी जन्तु या सांप जैसा कुछ नहीं था । शारदा ने हाथ डालकर उस ठंडी वस्तु को निकाला वह एक छोटा सा लोहे का डिब्बा था । उसने एक बार चारों तरफ देखा और फिर उस लोहे के डिब्बे को आंचल से छुपाकर अपने घर की ओर चल पड़ी । चलते हुए उसने अनुभव किया कि यह लोहे का डिब्बा कुछ ज्यादा ही ठंडा है । .....
... क्रमशः...