जीवित मुर्दा व बेताल - 8 Rahul Haldhar द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

जीवित मुर्दा व बेताल - 8

घर पहुंचकर उस छोटे लोहे के डिब्बे को खोलते ही शारदा ने देखा उसमें एक कागज रखा हुआ है जिसे मोड़कर लाल धागे द्वारा बांधा गया था । देख कर ही जाना जा सकता है कि इसमें कुछ विशेष है । पुराने समय में पोथी या लिपि लिखने के लिए जिस तरह की कागज का प्रयोग किया जाता था यह ठीक उसी प्रकार का कागज है । उस कागज को देखकर ही समझा जा सकता था कि वह बहुत ही प्राचीन है । शारदा ने सावधानी से लाल धागे को खोल कर कागज को अपने सामने फैलाकर देखा लेकिन वह उसमें लिखा कुछ भी शब्द समझ नहीं पाई । लिखावट और उसमें बने कुछ चिन्हो देखकर शारदा को पता चल गया कि इसमें बहुत ही मूल्यवान कुछ लिखा हुआ है ।
शारदा सही थी । उन पीले कागजों में कुछ विशेष पद्धति का उल्लेख था जोकि भारतीय तंत्र शास्त्र एवं विदेशी काले जादू से प्रेरित था ।
असल में यह मुखिया जगन्नाथ सिन्हा के संग्रहालय का ही कोई वस्तु है। लेकिन बाद में उन्होंने जब तंत्र मंत्र के बारे में कुछ जाना तब इस कागज में क्या लिखा है इस बारे में उन्हें पता चल चुका था । जिसके कारण उन्होंने इसे छुपा कर रखने का निर्णय लिया लेकिन उन्होंने एक तरफ से यह भी व्यवस्था कर दिया था कि कोई अगर तंत्र - मंत्र के इस अंधेरे पथ पर बढ़ना चाहता है तो वह अवश्य ही इस विशेष कागज को खोज लेगा । जिसके फलस्वरूप अब यह शारदा के हाथ में है ।
इसके कुछ दिनों बाद शारदा कंधे पर एक पोटली और उसमें यही सब रखकर रातो रात गांव से बाहर निकल पड़ी। तंत्र साधना के प्रति आकर्षण और अलौकिक शक्ति को पाने की कोशिश में शारदा देश के विभिन्न जगहों पर घूमती रही । कई बड़े-बड़े साधक व साधिकाओं से मिली तथा कई विद्याओं को सीख लिया। जहां भी वह गई उसे आदर और सम्मान मिला केवल उस पीले कागज की वजह से , हालांकि कुछ लोगों ने उससे यह लूटने की बहुत कोशिश की लेकिन चतुर बुद्धि और साहस की वजह से शारदा सभी परेशानियों से बाहर निकल गई ।
अंत में पश्चिम भारत के एक सिद्ध साधक के सानिध्य में आकर शारदा उस कागज में लिखें बातों का असल अर्थ जान सकी। कागज में कई सारे विभिन्न तंत्र साधनाओं के बारे में बताया गया है । इतने सालों में शारदा ने उन सभी साधनाओं में सिद्धि प्राप्त किया है अब केवल एक विशेष साधना बाकी है जिसे करने पर वह बहुत ही शक्तिशाली हो जाएगी । लेकिन इस शक्ति को पाने का पथ इतना आसान नहीं है । लेकिन शारदा पीछे नहीं हटने वाली , कई सालों तक देश के इधर - उधर घूमने के बाद वह फिर अपने राज्य के गावों में लौट आई क्योंकि इस पद्धति में लगने वाला सामान उसे यहां आसानी से प्राप्त हो जाएगा ।
इसीलिए सुनसान श्मशान में बैठ धुएँ के गोले के अंदर जमील मांझी को खाते उस भयानक शैतान को देखकर शारदा की आंखें चमक उठी । उसके दिमाग में एक उपाय सुझा और होंठ पर एक कुटिल हंसी देखने को मिला।.......

इधर महोबा गांव में संजय के रहस्यमय मृत्यु के बाद गांव वालों में डर का माहौल है । हालांकि संजय के खराब व्यवहार की बात सभी जानते थे तथा इसके ऊपर जमींदार के लड़के दिनेश का साथ रहने के बाद से वह और भी बिगड़ गया था । इसीलिए उसके मौत से गांव वालों को कोई फर्क नहीं पड़ा लेकिन उसके सूखे हुए रक्तहीन शरीर के दृश्य को सोचकर गांववाले कांप उठते ।
संजय की मृत्यु कैसे हुई थी इस बारे में गांववाले कुछ सोच भी नहीं पा रहे थे ।
इस घटना को 3 दिन हो गया है । दिनेश और उसके दोस्त अपने साथी को खोने का मातम खत्म कर फिर से नशे में डूब गए हैं ।
उधर जमींदार साहब की चिंता और भी बढ़ गई है । आजकल हमेशा गंभीर रहते हैं । दिनेश को घर से बाहर जाते देख कभी-कभी उसे रोककर कहते हैं ,
" बेटा दिनेश फिर कहां चले ? आज क्या घर में ही नहीं रह सकते । "
लेकिन दिनेश अपने पिता की एक भी ना सुनता और किसी भी तरह उन्हें चिंता करने में मजबूर कर देता ।
शायद दिनेश और उसके दोस्तों ने संजय की मौत को साधारण मौत समझ लिया था । लेकिन जमींदार रामनाथ
जानते हैं कि उन्हें ही लक्ष्य बनाकर विपत्ति के दिन आने वाले हैं ।....

रात के कितने बज रहे हैं यह बताना मुश्किल है । गहरे नींद में मुकेश ने सुना कि कोई उसे बुला रहा है । कुछ देर आवाज आने के बाद वह अचानक उठ बैठा और ध्यान से सुनने की कोशिश करने लगा ।

" मुकेश , अबे ओ मुकेश ,बाहर आ भाई जरूरी काम है । "

वह बिस्तर छोड़ कर उठ खड़ा हुआ । इस आवाज को वह पहचानता है , दिनेश बुला रहा है । कभी-कभी वह रात के वक्त चला आता है । इससे पहले भी कई बार वह मुकेश के घर रात को शराब की खोज में आ चुका है । रात को उसे नशा चढ़ जाता है और बिना शराब के वह रह नहीं पाता। आज भी शायद इसीलिए चला आया है ।
यही सोचकर मुकेश आँख रगड़ते हुए दरवाजा खोल बाहर आया । उसने देखा कि सचमुच बाहर कुछ दूरी पर दिनेश खड़ा है ।
" क्या यार तुझे फिर से रात को नशे ने पेल दिया । "
दिनेश कुछ नहीं बोला । आसमान में शुक्ल पक्ष का चांद है । उसी रोशनी में जितना दूर दिख रहा है उससे देखकर लगा कि आज दिनेश को नशा का वासना नहीं है । वह केवल एकटक मुकेश के तरफ देखते हुए खड़ा है ।

" क्या हुआ दिनेश ऐसे क्यों खड़ा है ,कुछ हुआ क्या ? "

दिनेश कुछ देर चुप रहने के बाद धीरे आवाज में रतन के बारे में कुछ बोलना चाहता था।
" क्या हुआ है रतन को ? "
" मेरे साथ चल , तुझे कुछ दिखाता हूं । "
यह बोलकर सामने रास्ते की ओर चलने लगा ।
मुकेश बोला,
" पहले यह तो बता कि कहां जाना है और रतन को क्या हुआ है ? "
तब तक दिनेश सामने के रास्ते से जल्दी-जल्दी आगे बढ़ चला है । मुकेश भी अब उसके पीछे चल पड़ा । "
" इतनी रात को मुझे कहां ले कर जा रहा है ? "
दिनेश किसी बात का उत्तर नहीं दे रहा। वह केवल जल्दी से आगे चलता ही जा रहा है । मुकेश को अब उसके पीछे एक प्रकार से दौड़ना पड़ा ।
सामने रास्ता दाहिने तरफ मुड़ गया है । दिनेश भी उस रास्ते से दाहिने तरफ मुड़ गया । लेकिन दाहिने तरफ मुड़ते ही मुकेश को रुकना पड़ा । अब तक वह अंधे की तरह दिनेश के पीछे चल रहा था , किधर व कहां जा रहा है इस बारे में उसे होश ही नहीं था । अब उसे होश आया कि
वह गांव के मंदिर के सामने वाले रास्ते पर खड़ा है ।
मंदिर में दीपक जल रहा है तथा मंदिर के पास ही बड़ा पुराना बरगद का पेड़ है । लेकिन रास्ते से मुड़ने के बाद आखिर दिनेश कहां चला गया ?
सामने व चारों तरफ कोई भी नहीं है । दिनेश को बुलाते हुए मुकेश धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा । कहीं पर कोई भी नहीं है । अब उसे थोड़ा बहुत डर लग रहा है ।
कांपते हुए आवाज में वह फिर बोला ,
" दिनेश भाई इतनी रात को ऐसा मजाक अच्छा नहीं लगता । कहां पर है तू ?
इस प्रश्न के उत्तर में पास के पेड़ से कोई पक्षी चिल्लाते हुए उड़ गया । कहीं पर भी क्या कोई नहीं है , तो फिर वह किसके पीछे - पीछे घर से यहां तक आया ? उसने तो साफ-साफ देखा था कि दिनेश उसे बुलाने के लिए घर आया था तथा उसने दिनेश के मुरझाए चेहरे व आवाज को देखा व सुना था । इतनी बड़ी गलती तो उससे नहीं हो सकता । यही सब कुछ सोचते हुए वह मंदिर की तरफ और आगे बढ़ गया है । इसी वक्त पास के बरगद के डाल पर उसकी नजर पड़ी । वहां पर उसने जो दृश्य देखा वह देख उसे अपने आँखों पर विश्वास ही नहीं हुआ ।....

...क्रमशः....