मुकेश धीरे - धीरे मंदिर के पास पहुंचा । वहां पास ही बरगद के पेड़ पर उसने कुछ ऐसा देखा कि उसको अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था ।
चांद की रोशनी पत्तों के भीतर से हल्की - हल्की नीचे की तरफ आई है उसी हल्की रोशनी में पेड़ के नीचे का अंधेरा थोड़ा कम हो गया है । बरगद के पेड़ से उस वक्त मुकेश की दूरी लगभग 10 गज होगा इसीलिए पूरी तरह साफ न दिखने पर उनसे कुछ तो देखा । उसने ठीक से देखा , एक ऊँचे डाली पर कुछ झूल रहा था । कुछ देर उस तरफ देखने के बाद वह चौंक उठा ।
बरगद के डाली से गले में रस्सी डालकर कोई झूल रहा था लेकिन मुकेश उसके चेहरे को ठीक से देख नहीं पर रहा।
मुकेश अब धीरे-धीरे बरगद के पेड़ के और नजदीक गया । चारों तरफ अंधेरा मानो अब और बढ़ने लगा । एक ठंडी हवा का झोंका मुकेश को छूकर दूर चला गया ।
अब मुकेश उस झूलते शरीर के सामने खड़ा हुआ । लम्बा एक शरीर शिथिल होकर झूल रहा है तथा उसका सिर कंधे पर लटका है । देखकर ही समझा जा सकता है कि शरीर से जान कब का निकल गया लेकिन चेहरा अब भी ठीक से दिखाई नहीं दे रहा ।
मुकेश दो कदम और आगे गया । पेड़ के नीचे अंधेरा कुछ ज्यादा ही है । तभी अचानक पेड़ के एक खुले भाग से थोड़ी रोशनी सीधे झूलते लाश पर पड़ी और तुरंत ही मुकेश हड़बड़ाते हुए पीछे हट गया ।
झूलता शरीर रतन का है । मुकेश और खड़ा नहीं रह सका , आश्चर्य होकर जमीन पर बैठ गया। मोटा रस्सी रतन के गले में मानो धंस गया हो , जिसकी वजह से जीभ व आँख बाहर निकल गया था । रतन का चेहरा बहुत ही वीभत्स लग रहा था । ज्यादा देर तक यह दृश्य ना देख पाने के कारण मुकेश ने अपनी आंखें बंद कर ली ।
आज रात को ही तो रतन और बाकियों के उसने मौज मस्ती किया था । इसी बीच ऐसा क्या हो गया कि रतन को आत्महत्या करनी पड़ी ? इसके अलावा इतने ऊंचे डाली पर रतन ने रस्सी कैसे झूलाई होगी ?
कुछ देर आँख बंद कर मुकेश शायद यही सब सोच रहा था ।
अब आंख खोलकर रतन के झूलते शरीर को मुकेश ने फिर से देखा और इस बार डर व आश्चर्य से उसका पूरा शरीर कांप गया । झूलते रतन का सिर अबतक बाएं कंधे पर था लेकिन अब वह दाएं कंधे पर लटक रहा है ।
यह कैसे संभव है ? क्या मुकेश ने अंधेरे में गलत देखा था ?
दोनों हाथों से आँख रगड़कर मुकेश ने ठीक से देखने की कोशिश की । तभी एक और भयावह दृश्य दिखाई दिया।
रतन का लटका हुआ सिर धीरे - धीरे सीधा हुआ तथा आश्चर्यजनक रूप से बाहर निकला हुआ जीभ क्रमशः लम्बा होने लगा । रतन के झूलते शरीर से मांस गलकर गिरने लगा तथा कुछ ही देर में रतन का शरीर एक कंकाल में परिवर्तित हो गया ।
अचानक देखने से ऐसा लगेगा कि गले में रस्सी डाल मानो किसी कंकाल को झूलाकर रखा गया है ।
मुकेश इस विभत्स दृश्य को देख डर से मानो जम गया था । हिलने - डुलने की शक्ति भी मानो उसमें नहीं है ।
अब मुकेश ने देखा कि झूलते कंकाल रूपी शरीर का चेहरा अब बदल गया है । यह तो भोला पागल का चेहरा है ।
उसका लम्बा जीभ किसी सांप की तरह लपलपा रहा है । चेहरे के एक ओर से मांस गलकर नीचे गिर रहा है । उसके आँखों में बदले की आग साफ दिखाई दे रहा ।
अपने आँखो के सामने रतन के शरीर को भोला पागल में बदलते देख मुकेश की धड़कन लगभग बंद ही होने वाला था लेकिन शरीर में जितना भी शक्ति है उसी को इकट्ठा कर मुकेश वहाँ से भागना चाहा ।
तभी उसने महसूस किया कि उसका शरीर क्रमशः हवा में जमीन से ऊपर जा रहा है । उसी अवस्था में मुकेश ने देखा भोला पागल का कंकाल रूपी शरीर हँसते हुए हवा में इधर - उधर झूल रहा है ।
मुकेश छटपटाने लगा । वह चिल्लाने वाला था लेकिन उसकी आवाज़ गले तक ही रह गई क्योंकि किसी ने उसे अंदर ही रोक दिया है ।
मुकेश का शरीर हवा भोला पागल के कंकाल रूपी शरीर के पास तक पहुंच गया । अब उसने अनुभव किया कि जिस शक्ति ने उसे हवा में उठा कर रखा था उसने अचानक से छोड़ दिया है लेकिन फिर मुकेश का शरीर नीचे न गिर वहीं लटक गया । तुरंत ही उसने गले में एक दवाब महसूस किया , उसका जीभ बाहर निकलने लगा।
हवा के लिए कुछ देर शरीर कंपने के बाद धीरे - धीरे शिथिल होने लगा । उसी अवस्था में मुकेश ने देखा उसके सामने झूलते कंकाल के चेहरे पर एक हंसी खेल रहा है ।
इस हंसी की आवाज़ को मुकेश अच्छी तरह जनता है ।...
...क्रमशः...