शारदा अपने पिशाच तंत्र के द्वारा हाकिनी को माझी पत्नी के अंदर आह्वान करने में सफल रही । अब बेताल को आह्वान करना है। दो भयानक शक्तियों को वह मंत्र शक्ति द्वारा एक साथ लाना चाहती है । यह क्रिया कितना भयानक है इस बारे में शारदा को पता है । अगर इस क्रिया में वह असफल रही तो उसके जान पर खतरा तो है ही तथा साथ ही साथ गांव वालों पर भी एक भयानक संकट उतर आएगा । लेकिन वह गांव के साधारण मनुष्यों की परवाह नहीं करती , इसके अलावा शारदा ने यह सोचकर भी रखा है कि बेताल को वश में करने के बाद गांव के लोगों को ही एक - एक कर बेताल को भेंट चढ़ाएगी ।
उसे केवल शक्तिशाली बनना है ।
रात का तीन पहर बीत गया है यही असल समय है । जब नकारात्मक शक्ति सबसे ज्यादा शक्तिशाली हो जाता है । शारदा ने अब माझी पत्नी को भेंट बनाकर बेताल को आह्वान किया ।
शिवचरण पंडित जी एक झाड़ी के पीछे बैठकर सब कुछ देख रहे हैं । चारों तरफ सुनसान , कहीं पर कोई झींगुर या निशाचर पक्षी की आवाज भी नहीं सुनाई दे रहा ।
अगले दिन पूर्णिमा है इसीलिए चांद की रोशनी ने पूरे श्मशान को आलोकित कर रखा है । उस रोशनी में शारदा स्पष्ट रूप से नहीं दिख रही लेकिन सफेद साड़ी के कारण माझी पत्नी साफ-साफ दिख रही है । परंतु अब उसे माझी पत्नी नहीं कह सकते। उसके आंखों की पुतली मानो अब गायब सी हो गई है , पुतली के सफेद हिस्सों में अब लाल खून जैसा जम गया है । तथा उसके पूरे चेहरे पर काले धब्बे उभरने लगे हैं । मानो कोई नरक का जीव किसी मंत्र शक्ति के द्वारा पृथ्वी पर उतर आया है और अपने शिकार के लिए घात लगाकर बैठा है ।
शारदा ने अब जलते अग्निकुंड में माझी पत्नी के अंगुली में चीरा लगाकर खून की आहुति दिया । तुरंत ही कुछ दूरी पर एक हवा का झोंका घूमता हुआ दिखाई दिया । हवा का झोंका घूमता हुआ धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठने लगा । इसी बीच शारदा अपने आसन को छोड़कर दूर एक जगह छुप गई है ।
आप चारों तरफ एक भयानक हंसी की आवाज़ सुनाई दे रहा है । कुछ देख के जैसे काले बादल में जाने कहां से आकर चांद की रोशनी को ढक दिया है । तुरंत ही पूरा श्मशान काले अंधेरे से भर गया ।
धूल भरे हवा के झोंके ने घूमते हुए रूप धारण करना शुरू किया । उस हवा के झोंके में धीरे - धीरे भोला पागल का कंकाल शरीर उभरने लगा । शारदा जान गई कि बेताल आ चुका है । उसका बड़ा सा जीभ हवा में तैर रहा है ।
इधर इतना सब कुछ होने के बाद भी माझी पत्नी वृत्त के अंदर चुपचाप बैठी है मानो वह सही समय की अपेक्षा में है । बेताल अपने भयानक दृष्टि से उसे देखकर धीरे-धीरे उसकी तरफ बढ़ रहा है ।
शारदा ने श्मशान में आने के बाद एक जगह पर लाल सिंदूर से एक बड़ा रक्षा वृत्त बना दिया था उसी के अंदर उसने हाकिनी आह्वान को संपूर्ण किया । परंतु बेताल को वश में कर उसकी शक्तियों को हरने के लिए हाकिनी को एक शरीर की जरूरत थी । शारदा ने हाकिनी के लिए माझी पत्नी का आहुति दिया है ।
हाकिनी ने माझी पत्नी के आत्मा को अपना बनाकर उसके अंदर खुद को प्रतिस्थापन कर लिया है । माझी पत्नी के शरीर को वह केवल एक माध्यम की तरह उपयोग करेगी । बड़े उस वृत्त के अंदर एक छोटे वृत्त में अब भी शांत होकर हाकिनी बैठी हुई है । उधर खून का प्यासा बेताल हकिनी की ओर धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा है ।
बेताल द्वारा बड़े वृत्त में पैर रखते ही हाकिनी की शरीर में बिजली दौड़ गया । अब उसने सिर उठाकर बेताल की तरफ देखा । बेताल के भयानक दृष्टि के विरुद्ध और भी भयानक दृष्टि बेताल पर डालते हुए हाकिनी उठ खड़ी हुई । तुरंत ही बेताल ने अपने लंबे जीभ से माझी पत्नी को चारों तरफ से लपेट लिया । तुरंत ही माझी पत्नी का शरीर काले धुएं में परिवर्तित होकर वहां से उड़ गया ।
जमीन से कई फुट ऊपर उठकर उस काले धुएँ ने फिर से माझी पत्नी का रूप लिया लेकिन अब उसके चेहरे पर एक भयानक हंसी है तथा उसकी आंखों से एक ज्वाला जैसी रोशनी निकल रही है । बेताल ने तुरंत ही खुद को एक हवा के झोंके में परिवर्तित करके हकिनी को चारों तरफ से घेर लिया । हवा का झोंका बहुत ही तेज तथा उसके केंद्र में हाकिनी को लेकर लट्टू की तरह बेताल घूमता रहा । बेताल के भयानक हंसी की आवाज चारों तरफ सुनाई दे रहा था ।
माझी पत्नी दिखाई नहीं दे रही क्योंकि बेताल ने धूल भरी हवा के झोंके से उसे ढक दिया है । घूमते घूमते हवा के झोंके का आकार अब कम होने लगा बेताल मानो हाकिनी को निगल जाना चाहता है । बेताल के हंसी की आवाज अब और तेज हो गया । बेताल सर्वशक्तिमान प्रेत है उसे वश में करना इतना आसान नहीं है लेकिन शारदा के बनाए गए रक्षा वृत्त में हाकिनी की शक्ति भी बहुत ज्यादा है । धूल भरी हवा का झोंका धीरे - धीरे शारदा के बनाए उस छोटे वृत्त के अंदर आ गया और तुरंत ही दृश्य में परिवर्तन आ गया । अब दिखाई दिया कि वृत्त के अंदर दोनों हाथ को फैलाकर माझी पत्नी रूपी हाकिनी खड़ी है तथा अपने मुंह को फैलाकर हवा के झोंके को निगलती जा रही है । हवा के झोंके में अंतिम बार के लिए भोला पागल का चेहरा उभर आया , बेताल हाकिनी से खुद को छुड़ाने की कोशिश करते हुए धीरे-धीरे उसके के मुंह के अंदर चला गया ।
चारों तरफ फिर सब कुछ शांत , माझी पत्नी भी शांत होकर गोल वृत्त के अंदर बैठ गई ।
एक बहुत ही भयानक रात समाप्त होकर पूरब की ओर कुछ हल्की रोशनी दिखाई दे रहा है ।
शिवचरण पंडित जी को मानो काटो तो खून नहीं , पूरी रात बैठकर झाड़ी के पीछे से आखिर उन्होंने यह क्या देखा । बीच-बीच में उन्हें ऐसा भी लगा कि क्या यह सब वास्तव है या किसी कल्पना के जगत में खोए हुए हैं ।
अब उन्होंने देखा कि शारदा एक कांच की शीशी लेकर मंत्र पढ़ते हुए बाहर निकल आई । माझी पत्नी के सामने आकर उसने शीशी को लाल वृत्त के अंदर रख दिया तथा आंख बंद कर शैतान का नाम लेकर और भी न जाने क्या मंत्र बड़बड़ाती रही । कुछ देर बाद दिखाई दिया एक काला धुआं माझी पत्नी के आंखों से निकल रहा है और सीधा कांच की शीशी में जा रहा है । पूरा धुंआ शीशी के अंदर जाने के बाद शारदा ने मंत्र पढ़ते हुए उसके ढक्कन को बंद कर दिया ।.....
.... क्रमशः...