पिछले भाग में आपने पढ़ा कि माया के दिलो दिमाग में अजय को लेकर शक़ का बीज रोपित हो गया है। इस बात से अजय अंजान है। क्या माया का शक़ सही है, पढ़िए आगे -
एक दिन शाम को ऑफिस से निकलने के बाद अजय दीपा से बातें कर रहा था और माया उसका गाड़ी में इंतज़ार कर रही थी। वह बैठे-बैठे काफी बोर हो रही थी। तब उसने अजय को फ़ोन लगाया। अजय ने फ़ोन काट दिया क्योंकि वह किसी बहुत ज़रूरी डिस्कशन में व्यस्त था। फ़ोन काटने से माया नाराज़ हो गई।
कुछ समय बाद जब अजय आया तो माया ने चिढ़कर कहा, "क्या अजय मेरा फ़ोन क्यों काटा? ऐसी तो क्या ज़रूरी बात चल रही थी।"
"माया किसी मैटर में उलझे हुए थे और उसी को सॉल्व कर रहे थे इसलिए फ़ोन काट दिया था यार। क्या तुम भी छोटी-छोटी बातों में नाराज़ होने लगी हो।"
"चलो छोड़ो, यह बताओ अजय, कौन है वह लड़की?"
"वह दीपा है माया, बहुत ही अच्छा काम करती है। उसके टीम में होने से मुझे भी बहुत मदद मिल जाती है।"
अजय के मुँह से दीपा की तारीफ़ सुन माया के मन में ईर्ष्या की अग्नि प्रज्वलित हो रही थी। माया का मूड अच्छा करने के लिए अजय ने कहा, "अच्छा चलो आज बाहर ही डिनर करके घर चलते हैं।"
डिनर करते समय अजय ने कहा, "माया तुम गुस्से में भी कितनी ख़ूबसूरत लगती हो, आई लव यू।"
इस तरह प्यार भरी बातों से अजय ने माया का मूड अच्छा कर दिया।
ऑफिस में अजय और दीपा अपने काम में इतने अधिक व्यस्त रहते थे कि व्यक्तिगत बातें करने का उनके पास वक़्त ही नहीं होता था। शनिवार का दिन था आज अजय अकेले ही अपनी कार से नौ बजे ऑफिस पहुँच गया, लगभग ग्यारह बजने को आए लेकिन दीपा अभी तक ऑफिस नहीं आई। अजय ने भी तुरंत फ़ोन करना उचित नहीं समझा। वह सोच रहा था कि छुट्टी का दिन है कुछ काम आ गया होगा। तभी लगभग 11: 30 बजे दीपा आई और आते ही वह बोली, "सॉरी अजय आज मुझे देर हो गई।"
अजय ने कहा, "अरे कोई बात नहीं दीपा।"
अजय ने दीपा से देर से आने का कारण भी नहीं पूछा।
दीपा स्वयं ही अजय को बताने लगी, "अजय आज रास्ते में मेरी कार अचानक बंद हो गई, मैंने बहुत कोशिश की किंतु कार स्टार्ट नहीं हो रही थी। किसी तरह से मैंने उसे सुरक्षित जगह पर पार्क किया और फिर टैक्सी लेकर आई हूँ, इसलिए देर हो गई।"
"अरे दीपा मुझे फ़ोन कर लेती, मैं आ जाता तुम्हारी मदद के लिए।"
काम निपटाते हुए काफ़ी वक़्त गुजर गया, शाम के 7: 30 बज चुके थे। वह दोनों काम ख़त्म करके नीचे आ रहे थे। तभी अजय को ध्यान आया कि आज तो दीपा के पास कार नहीं है।
"दीपा चलो मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ देता हूँ, तुम्हारी कार भी तो उठानी होगी ना।"
"नहीं-नहीं अजय आप रहने दो, मैं टैक्सी से चली जाऊँगी। कार मैंने सुरक्षित स्थान पर रखी है। कल रविवार है मेरी पहचान का एक लड़का है, वह कार का काम करवा देगा।"
इतना कहकर दीपा टैक्सी बुक करने लगी, अजय उसके पास ही खड़ा रहा। दो-तीन बार कोशिश करने के बाद भी जब कार बुक नहीं हुई तो अजय ने कहा, "छोड़ो दीपा चलो मैं तुम्हें छोड़ देता हूँ।"
दीपा इंकार ना कर पाई और अजय की बात मानकर उसके साथ जाने के लिए तैयार हो गई।
माया का शक़ इस हद तक बढ़ चुका था कि उसने मन ही मन सोच लिया था कि वह टैक्सी से जाकर आज देखेगी कि ऑफिस में कौन-कौन आता है और अजय वहाँ से सीधे घर आता है या और कहीं जाता है।
जब क़िस्मत खराब होती है तो सारे पासे ग़लत ही पड़ते हैं और आज का दिन शायद कुछ ऐसा ही नज़ारा दिखाने वाला था। माया ऑफिस से कुछ ही दूरी पर टैक्सी में बैठकर नज़र रखे हुए थी।
तभी बात करते हुए दीपा और अजय माया को दिखाई दिए। माया देख रही थी कि अजय और दीपा साथ-साथ चलते हुए गाड़ी की पार्किंग की तरफ़ जा रहे हैं और तभी उसने देखा कि अजय की गाड़ी में ही दीपा भी बैठ गई और अजय गाड़ी चलाते हुए वहाँ से निकल गया।
यह सब देखकर माया का गुस्सा सातवें आसमान पर था और उसने मन ही मन निर्णय ले लिया कि अब चुप रहने से काम नहीं चलेगा। आज वह अजय से बात अवश्य करेगी। इस मामले में देर करने का मतलब है अपने पैर पर ख़ुद ही कुल्हाड़ी मारना और वह अपना घर टूटने नहीं देगी। इतना सोचते हुए माया ने ड्राइवर को वापस चलने के लिए कहा।
माया घर पहुँच गई और रोज़ की तरह ना चाहते हुए भी काम में लग गई ताकि अजय को कुछ भी पता ना चल सके। माया मन में सोच रही थी कि आज अजय का झूठ खुल जाएगा। वह तो झूठ ही बोलेगा कि ऑफिस से सीधा घर आ रहा है। वह मुझे यह सच कभी नहीं बताएगा कि वह दीपा के साथ बाहर गया था।
लेकिन मैं कोई कूप मंडूक नहीं हूँ जो घर की चार दीवारी में बंद रहूँ, मैं अपनी आँखें हमेशा खुली रखती हूँ और अपने हक़ की रक्षा करना भी अच्छी तरह जानती हूँ। आज अजय को मेरे गुस्से का सामना करना ही पड़ेगा।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः