अभी तक आपने पढ़ा माया पढ़ी-लिखी होने के बाद भी स्त्री और पुरुष की दोस्ती को शक़ की नज़रों से ही देखती थी और यही शक़ उसने अपने पति पर भी किया। अजय और दीपा को एक ही गाड़ी में जाता देख माया आग बबूला हो गई। क्या आज अजय को माया के गुस्से का सामना करना पड़ा, पढ़िए आगे -
तभी अजय का घर में प्रवेश हुआ, अजय को देखते ही माया का पहला प्रश्न था, "बहुत देर लगा दी अजय, टीम के साथ डिनर पर गए थे क्या?"
"अरे माया ऐसा क्यों बोल रही हो, तुम्हें छोड़ कर कभी बाहर खाना खा कर आया हूं क्या मैं? वह ऐसा हुआ माया कि आज दीपा की कार खराब हो गई थी, वह सुबह काफी देर से आई थी। उसने बताया था कि रास्ते में कार खराब हो गई इसलिए वह टैक्सी से आई थी। अब तुम ही बताओ माया ऐसी परिस्थिति में क्या मुझे उसे छोड़ने नहीं जाना चाहिए था? उसने तो मना किया था लेकिन टैक्सी भी नहीं मिल रही थी तो मैं उसे छोड़ने चला गया था इसलिए देर हो गई।"
अजय के मुँह से सच्चाई सुनकर माया जितना झगड़ा करना चाह रही थी नहीं कर पाई, अपनी भड़ास भी नहीं निकाल पाई। अजय ने उसकी नाराज़गी को बिल्कुल स्वाभाविक समझते हुए उसे सीने से लगा लिया। उसे प्यार करके समझाया, "माया बहुत काम बढ़ गया है, देखो यदि आगे बढ़ना है तो काम तो करना ही पड़ेगा। तुम चाहती हो ना कि मुझे प्रमोशन मिले, मैं तेजी से आगे भी बढ़ूं तो फ़िर नाराज़ मत हुआ करो माया"
नारी का मन बहुत ही कोमल होता है अजय की प्यार भरी बातों से माया का गुस्सा शांत हो गया लेकिन शक का जो पौधा उसने लगा रखा था वह मुरझाया फ़िर भी नहीं।
आज सोमवार का दिन था, ऑफिस आते ही दीपा ने अजय से कहा, "अजय कल मेरा जन्म दिन है, मैंने ओबेरॉय होटल में बहुत ही छोटी सी पार्टी रखी है, आप आओगे ना?"
"हाँ-हाँ दीपा मैं ज़रूर आऊँगा", और इतना कह कर अजय वापस काम में व्यस्त हो गया।
शाम को घर पहुँच कर अजय ने माया को बताया, "माया कल दीपा का जन्म दिन है तो मुझे पार्टी में जाना होगा।"
"अच्छा कौन से होटल में पार्टी है, कितने लोग आएँगे?", माया ने प्रश्न किया।
"अरे माया पार्टी ओबेरॉय होटल में है और कितने लोग आएँगे यह तो मैंने नहीं पूछा।"
सुबह अजय ने माया से कहा, "माया मेरा सूट निकाल देना शाम को ऑफिस से ही पार्टी में चला जाऊँगा, समय बचेगा और हाँ यार परफ्यूम की बोतल भी रख देना।"
परफ्यूम की बोतल का सुनते ही फिर माया का माथा ठनका। उसके मन में तरह-तरह के विचार आने लगे। उसके मन में उठा हुआ शक़ का तूफ़ान बार-बार उसे अपनी बाँहों में जकड़ता ही जा रहा था।
शाम को अजय ऑफिस से ही तैयार होकर ओबेरॉय होटल के लिए निकल गया। रास्ते में रुक कर उसने फूलों का एक सुंदर गुलदस्ता खरीद लिया। होटल पहुँच कर जैसे ही वह अंदर गया, सामने से लाल रंग की साड़ी पहने दीपा आ रही थी। आज वह रोज़ से भी ज्यादा सुंदर लग रही थी। अजय ने दीपा के हाथों में फूलों का गुलदस्ता देकर उसे जन्म दिन की बधाई दी साथ ही उसकी ख़ूबसूरती की तारीफ करते हुए कहा, "बहुत ही सुंदर लग रही हो दीपा।"
अजय को थैंक यू कहते हुए वह उसे अपने साथ टेबल की ओर ले गई जो उसने बुक कर रखा था।
अजय ने जैसा सोचा था वहाँ वैसा कुछ भी नहीं था। कुछ लोग वहाँ डिनर कर रहे थे। उन्हें देखकर अजय का यह समझ लेना स्वाभाविक ही था कि वे इस पार्टी का हिस्सा नहीं हैं। बाकी सब कुछ शांत था हल्का संगीत चल रहा था। माया ख़ूबसूरत तो बहुत लग रही थी पर उसके चेहरे पर उदासी थी। वह ताज़गी जो हर रोज़ देखने को मिलती है कहीं खो गई थी। अजय हैरान था कि आख़िर बात क्या है।
टेबल पर पहुँचते ही अजय ने प्रश्न किया, "दीपा अभी तक कोई भी नहीं आया, मैं सोच रहा था शायद मैं ही सबसे आख़िर में पहुँचूँगा।"
लेकिन अजय की इस बात को दीपा ने हँस कर टाल दिया। काफी समय बीतता जा रहा था, दीपा थोड़ी-थोड़ी देर में बाहर दरवाज़े की तरफ जा रही थी और बार-बार किसी को फ़ोन लगा रही थी।
दीपा की इस बेचैनी को समझते हुए अजय ने पूछा, "दीपा क्या हुआ कोई समस्या है क्या? काफी वक़्त हो गया है, यदि ठीक समझो तो तुम मुझे बता सकती हो, शायद मैं तुम्हारी कोई मदद कर पाऊँ।"
रात आगे बढ़ रही थी इधर माया की बेचैनी का कोई पार ही नहीं था। ईर्ष्या और शक के बीच वह पूरी तरह से घिर चुकी थी। शायद वह होश में ही नहीं थी आज अपनी कार निकाल कर वह फ़िर से अजय की जासूसी करने निकल पड़ी थी। तेज रफ़्तार में कार चलाती हुई माया ओबेरॉय होटल के सामने पहुँच गई। कार रोक कर वह सोच रही थी, क्या करूँ अंदर जाऊँ या यहीं इंतज़ार करके पता लगाऊँ कि चल क्या रहा है।
तभी कार से नीचे उतरने के लिए जैसे ही उसने दरवाज़ा खोलकर अपने कदम बाहर निकाले, उसके मन से एक आवाज़ आई यह तू क्या कर रही है माया, इतनी रात को क्या सबके सामने तमाशा करने जा रही है। ऐसा विचार आते ही उसके कदम स्वतः ही कार के अंदर चले गए। उसका मन बार-बार करवटें बदल रहा था। उसे फिर अंदर से आवाज़ आई कि यदि वे अकेले हैं तो यही मौका है उन्हें रंगे हाथों पकड़ने का।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः