Galatfahmi - Part 1 books and stories free download online pdf in Hindi

ग़लतफ़हमी - भाग १

अजय अत्यंत ही आकर्षक व्यक्तित्व का धनी था तो उसकी पत्नी माया भी कम सुंदर नहीं थी, बहुत ही सुंदर जोड़ी थी दोनों की। वह दोनों ही सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करते थे और उनका ऑफिस एक ही दिशा में था इसलिए दोनों साथ ही आते जाते थे। माया का ऑफिस थोड़ा आगे था इसलिए अजय को छोड़ कर वह आगे निकल जाती थी और लौटते वक़्त अजय को साथ लेते हुए घर जाती थी।

अजय अपनी कंपनी में प्रोजेक्ट मैनेजर के पद पर कार्यरत था। उसकी टीम में एक लड़की थी दीपा, अपना सारा काम समय पर करना उसे बहुत पसंद था इसीलिए अजय की टीम में वह टॉप पर थी। अजय उसके काम पर बहुत विश्वास करता था, दीपा भी अजय की ही तरह देर तक बैठ कर काम करती थी।

माया अपना काम ख़त्म करती तब तक साढ़े सात बज जाते थे, तब वह अपनी कार से अजय के ऑफिस आती और अजय का इंतज़ार करती। अक्सर शाम को अजय और दीपा काम ख़त्म करके बातें करते हुए नीचे उतरते थे, फिर दीपा अपनी कार लेने पार्किंग की तरफ़ चली जाती और अजय अपनी पत्नी माया की तरफ़ आ जाता। कार में बैठकर वह दोनों बातें करते हुए घर पहुँच जाते थे।

अजय और दीपा को हर रोज़ साथ में देर तक खड़े रह कर बातें करता देख, धीरे-धीरे माया के मन में शक का बीज उत्पन्न हो रहा था। उस बीज को अंकुरित करने के लिए उस समय के हालात खाद और पानी का काम कर रहे थे। वक़्त गुजरता जा रहा था और शक का अंकुरित होता बीज छोटे से पौधे के रूप में परिवर्तित हो रहा था।

अजय और दीपा साथ में काम करते-करते अच्छे दोस्त भी बन गए थे, हम उम्र भी थे अब तक उनकी घनिष्ठता भी इतनी बढ़ चुकी थी कि कैंटीन में चाय तथा दोपहर का भोजन दोनों साथ-साथ करने लगे थे।

अजय इस बात से एकदम अंजान था कि माया इन दिनों एक अलग ही दुनिया में जी रही है और अपने मन मस्तिष्क में एक बहुत बड़ा बोझ लेकर चल रही है। अजय पर काम का दबाव इतना अधिक बढ़ गया कि उसे तथा उसकी टीम को शनिवार को भी ऑफिस जाना शुरू करना पड़ा। माया की शनिवार को छुट्टी रहती थी। घर में अकेले रहकर शक का पौधा और अधिक विकसित हो रहा था। उसे ऐसा लगने लगा कि मानो उसका पति धीरे-धीरे उससे दूर होता जा रहा है। वह उसकी तरफ़ जितना हाथ बढ़ा रही है, उतना ही हाथ छूटता जा रहा है।

कुछ दिनों से शाम को अक्सर अजय का फ़ोन आ जाता, "माया, आज तुम सीधे घर चले जाना बहुत ज़्यादा काम है। मुझे आने में देर होगी, मैं टैक्सी करके आ जाऊँगा।"

यह सुनकर माया मन ही मन घुट कर रह जाती। अभी तक माया शांत थी लेकिन धीरे-धीरे उसका अजय से बात-बात पर झगड़ा करना शुरू हो गया। अजय यह बात सोच भी नहीं सकता था कि माया शक का शिकार हो चुकी है। वह माया के झगड़ा करने को उसके स्वभाव के अंदर होने वाले बदलाव का कारण ही समझता रहा। छुट्टी के दिन अजय का ऑफिस जाना और देर से वापस आना माया को बिल्कुल पसंद नहीं था। माया के बार-बार मना करने, यहाँ तक कि बार-बार झगड़ा करने के बावजूद भी अजय की दिनचर्या में कोई फ़र्क नहीं आया और इस तरह अजय माया की नाराज़ी को अनदेखा करता रहा। इस समय तो उसे धुन लगी थी अधिक से अधिक मेहनत करके कंपनी में आगे बढ़ कर और ऊँचा मुकाम हासिल करने की। अपनी इसी महत्त्वाकांक्षा की वज़ह से वह माया की तरफ़ अच्छे से ध्यान नहीं दे पा रहा था।

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः

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