अभी तक आपने पढ़ा दीपा अजय से कुछ छुपा रही थी, आख़िर क्या छुपा रही थी वह? माया ने अंततः क्या फ़ैसला लिया होगा। वह होटल के अंदर गई या नहीं, पढ़िए आगे -
उधर अजय के बार-बार पूछने पर भी दीपा ने अजय को कुछ भी नहीं बताया और चुपचाप केक काटने के लिए चाकू उठा कर कहने लगी, "चलो अजय मैं केक काट लेती हूं शायद कोई भी नहीं आएगा।"
अजय भी कुछ और ना पूछ सका, बे मन से दीपा ने केक काटा। दोनों ने एक दूसरे को केक खिलाया और खाना खाकर बाहर निकल गए। बाहर निकलते समय भी अजय ने दीपा से बोला, "दीपा कुछ भी परेशानी हो तो तुम बेझिझक मुझे बता सकती हो।"
लेकिन दीपा को चुप देखकर अजय ने कहा, "अच्छा चलता हूं," कहते हुए उसने कार बुक की और दीपा भी अपनी कार से घर चली गई।
अजय घर पहुँचे उससे पहले ही माया घर पहुँच चुकी थी।
अजय के आते ही माया ने पूछा, "कैसी थी पार्टी अजय, बहुत लोग आए थे क्या?"
"बहुत अच्छी थी, हां काफी लोग आए थे, माया मैं थक गया हूं चलो सोते हैं," कह कर अजय कमरे में चला गया।
फ्रेश होकर वह बिस्तर पर लेट गया, माया भी पास आकर लेट गयी। लेकिन दोनों के दिलों के अंदर कुछ चल रहा था। माया सोच रही थी सिर्फ़ अजय और दीपा दो ही लोग पार्टी में क्यों थे? क्या कर रहे थे? मैंने तो सिर्फ़ दोनों को ही आते हुए देखा था। अजय ने उससे झूठ क्यों बोला? अजय सोच रहा था दीपा मुझसे क्या छुपा रही थी, कुछ तो है लेकिन क्या? सोचते-सोचते दोनों कब सो गए पता ही नहीं चला। सुबह उठकर रोज़ की तरह दोनों अपने काम निपटा कर ऑफिस के लिए निकल गए। सुबह से माया, अजय से अच्छे से बात नहीं कर रही थी जिसे अजय महसूस कर रहा था।
रास्ते में अजय ने पूछा, "माया क्या हुआ यार क्यों नाराज़ हो ?"
माया ने गुस्से में जवाब दिया, "क्या तुम खुद नहीं जानते, मैं सब समझ रही हूं, क्या चल रहा है ऑफिस में और अब तो झूठ भी बोलने लगे हो।"
"क्या, क्या मतलब है तुम्हारा, क्या कहना चाहती हो माया, साफ-साफ कहो ?"
दोनों का झगड़ा चल ही रहा था कि वह ऑफिस पहुंच गए। अजय ने माया से कहा, "माया जो भी है रात को बात करते हैं तुम तब तक अपना दिमाग ठंडा कर लो।"
ऑफिस पहुंचकर अजय काम शुरु करे उससे पहले ही उसने दीपा से बात करना ज़रूरी समझा, लेकिन दीपा को ऑफिस में नहीं देखकर अजय ने उसे फोन लगाया, "दीपा कैसी हो ?"
"ठीक हूं अजय"
"अभी तक ऑफिस क्यों नहीं आईं ?"
"तबियत ठीक नहीं है अजय, शायद कल आ पाऊंगी।"
“ठीक है,” कह कर अजय ने फोन काट दिया।
दूसरे दिन ऑफिस पहुंचते ही दीपा को वहां देख कर अजय ने राहत की सांस ली और उससे कहा, "दीपा चलो कैंटीन चलते हैं, वहां चलकर चाय पीने के बाद ही काम शुरू करेंगे।"
कैंटीन जाने के बहाने वहां जाकर वह दीपा के दिल की बात जानना चाहता था।
"दीपा मैं जानता हूं, तुम ख़ुश नहीं हो, लेकिन क्यों मैं जानना चाहता हूं? इस तरह उदास रहने से काम पर भी असर होगा जो बिल्कुल ठीक नहीं होगा।"
"ठीक है अजय आज मैं तुम्हें सब बताती हूं। मेरे जन्मदिन पर जो नहीं आया वह मेरा बॉय फ्रेंड है। मैं बार-बार उसे ही फोन कर रही थी, मैं उसे तुमसे मिलवाना चाहती थी इसलिए उस पार्टी में सिर्फ़ हम तीन ही लोग रहने वाले थे लेकिन वह नहीं आया।"
"क्यों नहीं आया दीपा वह? उसके बाद तुम्हारी उससे बात हुई या नहीं ?"
"नहीं अजय अब वह मेरा फोन ही नहीं उठाता, उठाएगा भी कैसे उसने फोन बंद कर रखा है। मुझ से कटना चाह रहा है, शायद उसे अब इस रिश्ते को यहीं खत्म कर देना है।"
"दीपा तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि वह इस तरह से तुम्हें धोखा दे सकता है?"
"बहुत अच्छा इंसान समझ कर ही मैंने उससे प्यार किया था अजय, लेकिन अब लगता है शायद मैं ही गलत थी।"
"लेकिन दीपा बिना किसी शिकायत के बिना कुछ बोले वह ऐसा क्यों करेगा?"
"पता नहीं अजय शायद…"
"बोलो ना दीपा शायद बोल कर चुप क्यों हो गईं?"
"अजय हमारे बीच वह घनिष्ठता हो चुकी थी जो शायद विवाह से पूर्व नहीं होनी चाहिए थी। मुझे लगता है उसे जो चाहिए था वह मिल गया इसीलिए उसने मेरा साथ छोड़ दिया," इतना कहकर दीपा रोने लगी।
"अरे दीपा रोओ नहीं, एक काम करो आज तुम घर चली जाओ। मैं काम संभाल लूंगा, तुम घर जाकर आराम करो । इस बारे में हम सोचते हैं क्या करना है।"
"नहीं अजय मैं ठीक हूं", कह कर दीपा ने काम करना शुरू कर दिया।
शाम तक दोनों चुपचाप अपना अपना काम करते रहे। काम ख़त्म होते से दीपा और अजय नीचे उतरे, नीचे उतर कर दोनों बात करने लगे। माया कार में बैठी हुई अजय का इंतज़ार कर रही थी, तभी उसने दोनों को साथ खड़ा हुआ देखा।
वह दूर से देख रही थी, अजय ने दीपा के सर पर हाथ फिराया, उसका हाथ अपने हाथ में लेकर कुछ कह रहा था। वह क्या कह रहा था यह माया नहीं जानती थी लेकिन यह देखकर वह गुस्से में कार स्टार्ट करके चली गई। अजय ने माया को जाते हुए नहीं देखा।
माया ने यह निर्णय ले लिया था कि अब वह अजय के साथ नहीं रहेगी।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः