तमिल कहानी लेखिका आर.चूड़ामणी
अनुवाद एस. भाग्यम शर्मा
उम्र तो पचास साल की हो गई। शरीर में पहले जैसे ताकत भी नही है। फिर क्या जरूरत है अब भी तकलीफ पाने की?, ‘‘खाना बनाने के लिए एक आदमी को रख लो अम्मा। और तुम आराम से रहो।’’ पुत्र ने अपनत्व से अपनी अम्मा से कहा। बहू भी बोली ‘‘इतने दिनों बच्चों के लिए आपने बहुत तकलीफ उठा ली वो कम है क्या अम्मा अब तो आराम से रहो।’’
ये बाते सुन चेल्लम को गर्व हुआ। यही नहीं उसे सभी लोग सब जगह उन्हे प्यार व सम्मान देते हैं। अम्मा को सम्मान देने के लिये सब बच्चों में होड भी लगती है। चेल्लम को जीवन में इससे बढकर और क्या चाहिए।
‘‘ठीक है। खाना बनाने के लिए अम्मा का भी बन्दोबस्त कर दो। औरत होगी तो घर में ही रहेगी व अपना कर्तव्य ठीक से निभायेगी।’’ ऐसा कह चेल्लम ने एक दिन अपने बेटे गोपाल को अनुमति दे दी। फिर इस तरह उनके घर भागीरथी का प्रवेश हुआ।
दुबली-पतली, सिकुडी-सिमटी काया, जगह-जगह पैबन्ध लगी नौ गज की साडी बलाउज पहने छोटा माथा पर सूना था ये थी भागीरथी। आँखे शान्त व हसँ मुख चेहरा बाल सफेद व काली खिचड़ी बालों वाली भागीरथी थी। चेल्लम को वह पसंद आ गई। भागीरथी या तो उनकी उम्र की होगी या कुछ कम होगी चेल्लम ने अनुमान लगाया। उन्होने सोचा कुछ साल और ये परिश्रम करने लायक है।
‘‘आपको वेतन कितना चाहिए?’’
‘‘आपकी इच्छा अनुसार दीजियेगा बस।’’
‘‘बार-बार घर जा रही हूं कह कर चल तो नही दोगी?’’
‘‘मैं तो यही पडी रहूंगी अम्मा। मैं अकेली हूं किसी को देखने जाने की मुझे जरूरत नहीं है।’’
‘‘खाना अच्छा बनाओगी?’’
‘‘चालीस तरह के खाना बना सकती हूं’’
चेल्लम घबराई। चालीस तरह के खाना बनाना तो मुझे भी नहीं आता। फिर दूसरी बात बोली ‘‘वो सब हमें पता नही। हमें स्वादिष्ट व रूचिकर भोजन चाहिये। अधिक मिर्च मसाले नहीं चाहिये। घर में बेटा-बहू बाल बच्चे सब हैं। अतः आने जाने वाले भी लोग रहेगें। पूर्ण उत्तरदायित्व के साथ सब काम करना होगा। बच्चें एक ही समय में अलग-अलग फरमाईश करेगें तो उसे भी पूरा करना पडेगा। उससे तुम्हे परेशान नहीं होना चाहिये।’’
‘‘ये क्या बडी बात है घर में ये सब बातें तो होगी ही। बच्चें बोलों तो मेरी जान है। और दस बच्चें भी आये तो मुझे कोई परेशानी नही होगी। आराम से बनाकर खिलाऊंगी।’’
बात करना शुरू करे तों चुप ही नहीं होगी लगता है। फिर भी बातों से हंस कर बोल इन लोगों को खुश कर दूं ऐसा दयनीय भाव भी उसमें था ताकि नौकरी मिल जाये।
‘‘अच्छा अन्दर आओ। सब समझाती हूं।’’ कह कर उठी चेल्लम। जिस दिन से काम पर आई भागीरथी, उन लोगों को लगा वह थोडी बावली है। पर सबके वह पसंद आ गई। घर के सब लोगों को उसकी बात करने के ढंग से हंसी आती थी सुबह पांच बजे से रात दस बजे तक लगातार काम करते हुए भी उसके पास पता नहीं कैसे समय व ऊर्जा की कमी नहीं थी।
‘‘मामी थोडा काफी दीजियेगा’’, कोई कहे तो बस काफी के साथ बाते भी शुरू।
‘‘काफी है ना? जरूरी दूंगी। काफी आपके लिये तो है। घर में तो दूध व शक्कर खूब है। आपको दे तो क्या कम हो जायेगा? अच्छा अभी लाती हूं। खून अच्छी तरह पीजियेगा। और चाहिये तो बिना संकोच के और मांगियेगा।’’
‘‘मामी आज रसम अच्छा बना है।’’ यदि किसी ने कह दिया तो उसे लगेगा कि मैंने क्यों कहा। इतनी बात सुननी पड़ती।
‘‘अच्छा है क्या ? अच्छा लगे और ले लो। मैं तो सात तरह का रसम और बनाना जानती हूं। संकोच से मत करना मैं और बना दूंगी। मुझे तो गुस्सा भी नहीं आता’’। खाना जल्दी खत्म होते ही इन बातों से बच कर भाग जाये सबको ऐसा लगेगा।
‘‘आपने खाना खा लिया मामी।’’
‘‘हाँ बिल्कुल खा लिया। यहां क्या कमी है मुझे आपकी कृपा से मुझे सब कुछ तो मिलता है। पहले जिस घर में काम करती थी पिछले साल उन्होने हटा दिया। बिना काम के एक साल पापी पेट के लिए परेशान रही। आपके घर आने के बाद भर पेट अच्छा खाना खा रही हूं।’’
बिना मुंह बन्द किए बोले जाती वह आखीर में हमें धन्यवाद देना कभी नहीं भूलती।
‘‘चलो जगन्नमाता ने मुझे इतना अच्छा रखा है मुझे खुशी हैं अपने दुख के लिये कभी दूसरों पर दोषारोपण नहीं करना चाहिये। जाने दो। आज का नाश्ता बनाना हैं बड़ा बनाने के लिए दाल भीगों दूँ। या कोई सूखा नाश्ता बनाकर डिब्बे में भर दूं। जो बनवाना हो निसंकोच कहियेगा।’’
बिना आलस के, बिना नाक, मुंह सिकोडे दौड़ दोड़ कर काम करते उसको देख चेल्लम आश्चर्य में पड जाती।
एक दिन भागीरथी उनके कमरे में आकर उस.....उ...... उस....... दीर्घ स्वास लेती हुई हाफती हुई। नीचे जमीन पर पैर पसार कर बैठ गई।
‘‘क्यों मामी, जाकर थोडा आराम से लेट जाईयेगा।’’ अपने रामायण की किताब को देखते हुए चेल्लम बोली। ‘‘रहने दीजियेगा आराम की मुझे क्या जरूरत है अम्मा? जब चाहों कर लूंगी। मुझे आपसे एक काम है। यहां आई जब से सोच रही हूं, पूछने में संकोच हो रहा है।’’
चेल्लम ने किताब को बन्द कर दिया। भागीरथी का दुबला-पतला शरीर अभी भी हाफ रहा था। आँखों की गहराई में बादल जैसे थकावट की छाया दीख रही थी।
‘‘क्या करना है’’?
‘‘दो कार्ड लिखकर देना।’’
‘‘कार्ड किसके लिए?’’
‘‘मेरे बेटों के लिये।’’
चेल्लम आश्चर्य से बोली ‘‘आपके बेटे है क्या 2’’
‘‘हैं दो बेटे।’’
‘‘ओ’’ चेल्लम को थोडी देर सांस भी नही आई। धीरे से ‘‘आपने तो कहा था मैं अकेली हूं। अतः मैने सोचा......’’ खींचने लगी।
भागीरथी के सूखे ओठों पर मुस्कराहट आई पहली बार उसके चेहरे पर एक गहराई व विरक्ति दोनों भाव चेल्लम को दिखाई दिया।
‘‘कोई साथ नहीं तो अकेले ही है ना अम्मा?’’
‘‘वे लोग कहा रहते हैं?’’
‘‘बडा मथुर में एकाउटेन्ट हैं पत्नी व तीन बच्चे भी हैं छोटा यही पास में वाकूर गांव में रहता है। खेती बाडी को संभालता है ठीक से रहता है उसके दो बच्चे है।’’
‘‘सुन-सुन कर चेल्लम का आश्चर्य बढता ही गया।
‘‘आठ महीने हो गए अम्मा, किसी ने भी एक कार्ड नहीं डाला। जिसने पैदा किया उसको फिकर होगी ऐसा वे नहीं सोचते। मेरा मन दुखी होता है। ये जान बुझ कर करने की बात तो नहीं है ना अम्मा? अलग रहो तो मन तडपता ही है।’’
चेल्लम कुछ नहीं बोली उसकी बात सुन उनके भीतर कुछ कुछ होने लगा।
‘‘दो कार्ड लिख कर दोगी क्या?’’
‘‘ठीक है क्या लिखना है बोलियेगा’’
भागीरथी ने आधी आँखे बन्द कर अपने अन्दर गहराई में उतर कर चिट्ठी के लिये समाचार बोलना शुरू किया।
‘‘चिरंजीव बाचा, को अम्मा का बहुत सा आर्शीवाद यहा मैं सुख से हूं। वहां तुम्हारी कुशलता व बहू की कुशलता, बच्ची जयंति तथा राघवन की कुशलता व चि. मुंभु की कुशलता का ............’’
‘‘सबकी कुशलता कह कर साथ लिख देती हूं ना?’’
‘‘नहीं जी अलग-अलग सबको पूछे तो ही सामने प्रत्यक्ष देख रहे जेसे लगेगा ना?’’
‘‘और बातों पर आए इसलिये बोली।’’
‘‘विषय क्या है इतना ही तो है। यहां नौकरी कर रही हूं ये बता दीजियेगा।’’
‘‘हां फिर-फिर’’
‘‘बस इतना ही। हाँ इस पत्र का तो जरूर जवाब देना कह कर अपना पता लिख दीजियेगा।’’
‘‘इस पत्र का तो मतलब’’
‘‘इससे पहले पांच पत्र किसी के द्वारा लिखवाया एक ने भी जवाब नहीं दिया।’’
‘‘अरे राम। ऐसा क्या’’,
‘‘हाँ पर जवाब कैसे देते’’ भागीरथी ने उन्हे सामान्य रूप से देखते हुए अपने मन में बिना कडवाहट के साधारण ढंग से बोली ‘‘उस समय मैं बिना काम के परेशान थी। और उन्हे दस रूपये भेजो कह कर पत्र लिखा था। इसलिये तो जवाब नहीं आया।’’
चेल्लम के हाथ से कार्ड फिसला। कितनी सयंमित ढंग से बात की इसने! ये क्या विवेक हैं? कडवाहट भरा कठोर सत्य को इतने शान्त भाव से ग्रहण करना संभव हैं? एक योगी में वह उनमें क्या फर्क हैं?’’
‘‘इसी लिये मैं कमा रही हूं लिखने को कहा। बिना डरे जवाब देगें ना। किसी तरह उनकी कुशलता के बारे में मुझे पता चले तो सही।’’
थोडी देर तो चेल्लम हिली नहीं। बाद में सम्भल कर नीचे गिरे कार्ड को उठा कर हाथ में लेकर कुर्सी पर पीठ का सहारा लिया।
‘‘आपको मैंने परेशान किया अम्मा। मुझे तमिल लिखना आता हैं परन्तु अब मुझे आँखों से ठीक से दीखता नही। ऐसा लगता है जैसे मच्छर उड रहे हैं। उम्र भी तो हो गई है ना। अगले माह मैं साठ साल की पूरी हो जाउॅंगी।’’
तुरन्त चेल्लम कुर्सी में सीधी बैठी। स्वयं कोई गलती कर दी हो ऐसा लगा। अपने पचास साल के उम्र में थकावट की वजह से काम करना बंद करके आराम करने के लिए बेटे-बेटी का सहाराहीन एक औरत से काम लेने की बात को सोच उनके मन को आघात लगा। ये औरत तो साठ साल की है और इतना काम करने के कारण हांफती रहती है। इसके बेटे दोनो सम्पन्न होने के बावजूद अपने पेट पालने के लिये उन्हें काम करने की आवश्यकता हैं चेल्लम एक बार उसको देखकर सिर नीचे कर लिया।
भागीरथी ने जैसे सोचा वैसे ही दोनो बेटों के पास से पत्र आया।
‘‘भागीरथी अम्मा का मकान यही है क्या?’’ पूछा पोस्ट मेन। ‘‘हाँ मैं ही हूं।’’ भागकर आकर पत्रों को ले लिया। चेल्लम से पढवा कर सुन ली फिर बोली।
‘‘हरे राम! चलों अच्छी तरह से रह रहे है दोनों लोग। एक साल बाद अच्छी खबर आई तो। सभी उस जगन्नमाता की कृपा है।’’ चेल्लम को गुस्सा ही आया।
हर एक महीने अपने वेतन के रूपयों को उन्हीं को देकर रखने को कहती। मेरा क्या खर्चा है आपकी कृपा से दोनो समय पेट भर खाना खा लेती हूं। बाकी साधारण चिलर खर्चे के लिए एक दो रूपये बहुत है।’’
‘‘मैं आपके नाम से बैंक में जमा करवा देती हूं ब्याज तो मिलेगा।’’ गोपाल ने कह कर वैसा ही किया।
सब जगह उन दिनों फ्लू फैला था। पहले चेल्लम बीमा हुई। उसके बेटे ने प्यार व ममता से मां की सेवा की। उसे देख भागीरथी ह्रदय के अन्दर तक हिल गई। पर उसकी निगाहों में इष्र्या का भाव नहीं था। उसे फिकर व अपनत्व की भावना ही थी। उसने भी उनकी खूब सेवा की।
‘‘मामी आपको देखकर मुझे बहुत दया आती है’’ चेल्लम बोली।
‘क्यों’ यही वही नादान पूछेगी उन्होने सोचा परन्तु भागीरथी ने ऐसा नहीं पूछा समझदार जैसे मुस्करा कर बोली ‘‘आपने पुण्य किया है अम्मा। ऐसे ही हमेशा रहने दो।’’ उसने होशियारी की कमी नही थी।
चेल्लम के बाद भागीरथी को बुखार आया। धैर्य व सहन शीलता के साथ पडी रहने पर भी पूरे घर वालों ने उसकी देखभाल की। साथ में वहां एक शोक भी छाया रहा।
‘‘बहुत दया आ रही है रे गोपाल। तुम उनके दोनो बेटों को पत्र लिख दो। क्या करते है देखे तो।’’ चेल्लम बोली। गोपाल ने वैसे ही किया। मां व बेटे दोनो इंतजार करते रहे पर दस दिन बीतने पर भी किसी भी लडके के पास से जवाब नहीं आया।
‘‘कैसे बेटे है ये इनसे तो वह बांझ होती तो ठीक था’’ दुख के कारण चेल्लम बोले जा रही थी चेल्लम का मन बहुत दुखा। ये घरवालें नहीं हो तो तो उसकी गति क्या होती? तबीयत खराब हो प्यासे को पानी देने वाला भी कोई नहीं क्या करें?
भागीरथी ने इस तरह की कोई बात सेाची ऐसा नहीं लगा। जैसे ही बुखार उतरा अपना काम करने लगीं।
‘‘चार दिन और आराम करियेगा मामी’’। ‘‘और क्या आराम अच्छी भली चंगी तो हूं। आपकी कृपा से मुझे कोई शिकायत नहीं। काफी व खाना सब पेट भर कर मिलता हैं। यदि मैं झूठ बोलू तो मेरी आँखे चली जाये। रात को क्या खाना बनाये बोलियेगा। मामी तो बीमार हो गई थी। अतः कुछ नहीं चाहिये ऐसा मत सोचना। मुझे कोई तकलीफ नहीं।’’
‘‘जो चाहिये निसंकोच होकर बोलियेगा।’’ वहीं हमेशा जैसे नादानी की बातें। वह बेवकूफ की पहली नमूनी है या बहुत पक्की ज्ञानी हैं? इन दोनो में से एक जरूर है आखीर में इसे मैं बेवकूफ ही समझ सकी। क्योंकि अनुभव के बाद भी अपने बेवकूफ पन को बिना पहचाने एक गलती को बार-बार दोहराए तो वह माफ न करने लायक है, जिस पर गुस्सा आता है दया नहीं।
एक दिन घर ढूंढता हुआ शाम के समय एक आदमी को चेल्लम ने घर के बाहर खडे देखा तो उसके बारे में उसे अच्छी सोच ही नहीं आई।
‘‘तुम कौन हो किसे ढूढ रहे हो़’’
‘‘भागीरथी अम्मा यही रहती है ना’’
‘‘हाँ’’ चेललम ने संदेह पूर्वक उसे देखा। संदेह भरे नजर से देख पूछा
‘‘तुम उसके बेटे हो?’’
‘‘हाँ! दूसरा बेटा हूं। मेरा नाम गणेश है। घर को ढूंढते हुए पता नहीं कहां-कहां घूमा। अम्मा कैसी हैं’’
‘‘बहुत बीमार हो गई थी। तुम्हे तो पत्र मिला होगा।’’
‘‘हां मिला था अब तो ठीक हो गई होगी।’’
‘‘हाँ काम कर रही हैं।’’
‘‘मैं अम्मा से मिलना चाहता हूं।’’
‘‘अभी तो मिल नहीं सकते। अन्दर काम कर रही हैं क्या काम है बोलों’’।
‘‘नहीं अम्मा से ही काम है।’’
‘‘एक जगह कोई काम कर रहा है वहां कभी भी आकर मिलना है बोले तो संभव है।’’ सक्ति के साथ बोली। ‘‘ऐसी बात है तो कल आउंगा। कब मैं उनसे आराम से मिल सकता हूं बताईयेगा।
चेल्लम ने उसे घूर कर देखा व अन्दर गई। थोडी देर में आई भागीरथी के आँखों में व चेहरे पर एक चमक व खुशी दिखाई दी।
‘‘आजा बेटा, आ जा! तुम्हे देखे कितने दिन हो गए। कुशलता से हो? दुबला सा लग रहा रे। तबीयत खराब तो नहीं है ना? कब गांव से आये? तुम लोगों को देखने के लिए आँखे तरस गई। अच्छी तरह हो ना’’
हाथों की नसे फूली हुई दिखाई दे रहे कठोर हाथों से बेटे के चेहरे को व कंधे को सहलाने लगी भागीरथी की आँखों से आंसू छलक गये।
‘‘मुझे क्या है अम्मा ठीक हूं। ये अच्छा हुआ तुम्हे कम से कम काम मिल गया, बहुत खुशी की बात है’’। खिड़की मे से उन्हें देख रही चेल्लम गुस्से से उबलने लगी। नौकरी मिल गई तो खुशी है क्या? उसका मतलब एक ही अर्थ है।
उसका अनुमान गलत नहीं था। गणेश चार दिन तक अम्मा के पास आकर बाते करता रहा। उसके अगले दिन भागीरथी चेल्लम के सामने आकर खडी हुई।
‘‘क्या है मामी, क्या बात है’’ आखीर में बेटा आ गया, आपको देखने।’’
‘‘हाँ एक मदद के लिये आया है।’’
‘‘हाँ मैने सोचा। रूपयों की मदद के लिये?’’
‘‘हाँ उसे कुछ जमीन के काम के लिये जरूरत है।’’
‘‘क्यों आपको करोडपति समझा क्या या आपको दूध दुहने वाली गाय समझा।’’
‘‘दोनों नहीं, मुझे अम्मा समझ कर आया है।’’ मुस्कराकर आये जवाब को सुन चेल्लम आश्चर्य में पड गई। ‘‘बैंक में मेरा डेढ सौ रूपये के करीब जमा है ना अम्मा? जल्दी उसी उसको को दे दिजियेगा। मेरा लउका बोल रहा है। बेचारा बहुत तकलीफ में है। आपके बेटे से कह कर उस रूपयों को लेकर दोगें क्या’’।
ये क्या खत्म न होने वाला अज्ञान? ‘‘मामी मैं कह रही हूं आप नाराज मत हो। वो रूपये आपके लिये आपतकाल के लिये रहने दीजियेगा’’।
‘‘लडके के लिये जो काम न आये ऐसा पैसा किस काम का उसका ये आपतकाल है तो वह मेरा भी तो आपतकाल है।
‘‘इसके बदले वह आपके लिए क्या करेगा। आपको कोई तकलीफ हो तो आकर बचायेगा?’’।
‘‘नहीं करेगा’’।
‘‘बेटे आपके साथ कैसे व्यवहार करते है ये जानने के बाद भी आपकी ममता रूपी अज्ञान छूट?।
‘‘उसके लिए वे क्या करेगें?’’
चेल्लम इसके बाद सहन न कर सकी व आवेश आया जैसे बोलने लगी’’ माँ बाप की आखीर दिनों सेवा करना बच्चों का कर्तव्य नहीं है क्या मामी? उनके लिए हम कितनी तकलीफ उठाते हैं? शरीर को कष्ट देकर भी उन्हे बडा करते हैं। खून का दूध बना कर उन्हे पिलाते है अपने जान से ज्यादा उन्हे समझ उनके अच्छे के लिए शरीर से और दिल से प्रयत्न करते है। माँ यदि ध्यान न रखे तो बच्चे की क्या हालत होगी? ऐसा हम उन्हें आँखों के तारे जेसे समझ उन्हें सम्भाल कर आदमी बनाते है। उनके लिये कितना परिश्रम करते है उनकी देखभाल में जीवनपूरा खत्म कर देते है।’’
‘‘हम ऐसे किए बिना रह सकते है क्या’’ शान्त स्वर बीच में गूंजा। चेल्लम ने बिफर कर देखा भागीरथी के मुख पर एक शान्त भाव के सिवाय कुछ भी नहीं था।
‘‘आप बताइये, हम बिना ऐसे किये रह सकते है क्या। अपने बच्चों के लिए अपने मन में जो ममता, प्रेम, स्नेह है उसके आगे माँ का स्वाभाविमान क्या बडी चीज है? हम जानबूझ कर प्रेम करना है इसलिए करते है क्या? प्रेम, ममता ढूढ कर देने वाली वस्तु है क्या! वह? ये स्वाभाविक रूप से अपने मन के अन्दर पैदा होने वाले वेग हैं उसमें अपनी करनी कुछ भी नहीं है। यह तो जीवन की प्रकृति प्राकृतिक क्रिया हैं अपने शरीर में महसूस होने वाला एक अहसास हैं। उसे हम न दें उनके लिए न करें ऐसा सोचे तो भी हो नहीं सकता।’’
इसे सुन चेल्लम की जीभ जम गई।
‘‘हम जब तक जिंदा है तब तक बच्चों को देते हैं उसमें हमें खुशी व संतोष मिलता है। अपनी खुशी व संतोष के लिये ही तो हम उन्हे देते हैं? उसके बारे में सोचना न सोचना इनका कर्तव्य है। बच्चे हमारे लिये क्या करेगें? क्या ऐसा सोच कर ही हमें उनसे प्रेम व स्नेह हैं? हमें उनको यह प्रेम व स्नेह दिये बिना और कोई रास्ता भी नहीं हैं’’। भागीरथी का स्वर भीग गया, --उससे बढकर कोई भाग्य भी नहीं।’’
अपने सामने एक मानवी बोल रही है ऐसा चेल्लम को नहीं लगा। ये कोई देववाणी जैसे लगा। ये कोई बावली है? गलत हिसाब लगा कर धोखा खाये वह बावला? अपना स्वार्थ देखे बिना काम करने वाले इस कर्म योगी जो प्रेम ही लक्ष्य बना लिया हो इस साधना का क्या नाम है?
‘‘क्यों मामी, हम माँ बच्चों की रक्षा करते हैं वे हमें तिरस्कार करें तो फिर हमारी रक्षा बुढापें में कौन करेगा?’’ धीरे से बोली। ‘‘हम सबको पैदा जिसने किया वह जगन्नमाता नहीं है क्या?’’ चेल्लम मुंह नहीं खोली।
एक सौ पचास रूपये लेकर गणेश चला गया। बिना आराम के हमेशा की तरह शान्ति से परिश्रम करने वाली भागीरथी को देख चेल्लम का जी भर आया।
शरीर में ताकत हो जब तक वह परिश्रम करेगी फिर वह काम करने में असमर्थ हो तब बेसहारा हो आँखों में रोशनी होते हुये भी ममता में अन्धी हुई सड़कों गलियों में फिरने के दिन आये तब ....................
वह जगन्नमाता बचायेगी?
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एस. भाग्यम शर्मा
बी-41, सेठी काॅलोनी, जयपुर-302004
मो. 9351646385