तमिल की मूल कहानी की लेखिका वासंती अनुवादक एस. भाग्यम शर्मा |
बहुत दूर आदमी लोग नाच रहे थे। गोलाई में खड़े होकर, कमर में बांधे हुए ढोलक को बजाते हुए नाच रहे थे। उनका ताल बिना गलती के वे लोग आगे-पीछे हो रहे थे। लाल रंग के अंग वस्त्र को उठाकर बड़े लावण्यता के साथ नाचते उनकी सुंदरता देख उसे बहुत अच्छा लगा। गहरे रंग में वे जो पसीने से चेहरा चमक रहा था। परंतु उनकी चेहरों पर खुशी नहीं थी। उसने सोचा खुशी के साथ नाचेंगे नहीं क्या? माधव भी वहां होगा। क्या वह हंसेगा? कोई भी चेहरा उसे निर्मल नहीं लगा। चेहरों के भाव इतनी दूरी पर से कैसे दिखेगा?
ऐसा ही खड़ा रहना पड़ेगा। इनका खड़ा होना भी, जो नाच रहे हैं उन्हीं दिखाई नहीं देना चाहिए। यहां जब नई नई आई तो उसे यह मजाक जैसे लगा। अब तो इसकी आदत पड़ गई। 'थोड़ा पास रहकर देखे ना?' अब ऐसे पूछने का भी मन नहीं करता। एक बार पूछने पर बहुत सी बातें उसे सुननी पड़ी। यहां पर रहने वाली दूसरी लड़कियों जैसे वह भी हो गई ऐसा कभी-कभी उसको लगता है। बेवकूफ जैसे, डरपोक और ना बोलने वाली हो गई है।
ढोलकी बज रही थी। गाना नहीं था। सिर्फ ढोलक की आवाज। पर उसमें ताल था। लय था। लोरी जैसे। उसका शरीर अपने आप ही ने लगा। उसके पैर मिट्टी में ताल देने लगे। धम! धम! धम! पहले दायां, बायां फिर दोनों फैलाकर।
"ये, पांचाली, शरीर क्यों उछाल रही है?"
बुआ राकअम्मा, जो हमेशा चिड़चिड़ाती रहती है बोली। 'नहीं तो? नाच रहे हैं। दिखाई नहीं दे रहा है?"
वहां पर भीड़ में झुंड बनाकर खड़ी लड़कियां पल्ले से मुंह को ढक कर हंसने लगी।
"कुछ भी होने दो। तुम ठीक से खडी रहो। तुमसे ना हो तो अंदर चली जाओ।"
जोरदार जवाब देने की इच्छा हुई। पास में खड़ी गीता दीदी ने मुझे कोहनी मारी। चुप रहो कहने जैसा। कुछ भी समझ में ना आने के रोष में उसके आंखों में आंसू छलक आए।
बहुत दूरी पर भी लोग नाच रहे थे। अब उसकी इच्छा और उत्साह खत्म हो गया। उसका उन लोगों से कोई संबंध नहीं है ऐसा लगा। अम्मा क्यों कहानियां बोलती थी उसमें भूत और देवता दोनों होते थे। भी मनुष्य नहीं होते थे। इस बात को समझती थी। पर यह लोग कौन है वह समझ न सकी । पता नहीं कौन।
वह थोड़ी देर खड़ी होकर किसी को पता नहीं चले फिर धीरे से वहां से निकल गई और अपने डेढ कमरे वाले मकान की तरफ चल दी। पेड़ों वाले जंगल था। इस पूरे को पैदल चलकर नापने की उसकी इच्छा उसकी कई बार हुई। परंतु इसके लिए मुझे बाफ बनना पड़ेगा या शरीर को छोड़कर आत्मा तभी यह काम हो सकता है। वह चिड़चिड़ा कर पैर में जो पत्थर टकराया उसे उठाकर फेंका। उसकी छाती पर से साड़ी खिसकी। कोई उसे देख रहा है उसे लगा। वह डरकर पल्ले को ठीक करके गर्दन ऊंची कर देखा। उनके गांव के चारों ओर जो सुरक्षा के लिए तार लगाए थे उनको पकड़ कर एक आदमी खड़ा था। बादल और अंधेरा होने की वजह से उसका चेहरा ठीक से नहीं दिखा।
"किस पर गुस्सा है तुम्हें?"
एकदम से घबराई। डर और गुस्से से एक पत्थर को उठाकर उसने उसके ऊपर फेंका। वह जोर से हंसा और सरक गया। वह पेड़ों के बीच में पगडंडी पर दौड़ने लगी। उसकी छाती की धड़कन तेज हो गई। वह कौन है? पहचानी हुई आवाज सी लगी। उससे ज्यादा उसकी हंसी! उसके पूरे शरीर में गर्मी हो गई। तू? यहां पर भी बदमाशी? देवड़ा, देवड़ा अब मुझे इस तरफ नहीं आना चाहिए। उसके गांव में तो कोई सुरक्षा के लोहे की तार नहीं बने हुए थे। इस गांव की आगे भी कोई संसार है क्या ना मालूम ऐसे बेवकूफ लोगों को अपने चारों तरफ सुरक्षा के लिए कांटों के तार बांधकर अंदर ही कैद रहने की आदत वहां नहीं है। यहां जैसे 7 फीट ऊंची सुरक्षा के तार बांधे हुए हैं। ऐसे ही लोहे जैसे टाइट चोटी। शादी हो कर गले में फूलों के हार के साथ अंदर घुसते ही उसने उसे देखा। यह क्या है चारों तरफ घेराबंदी लोहे के सरियों से जैसे शेर और चीते को अंदर रखते हैं ऐसे पिंजड़े जैसे | वह पास में रहने वाली सीता दीदी से पूछा। 'वही है।' सीता दीदी बोली 'हम बाहर नहीं जा सकते, कोई अंदर नहीं आ सकता।,
'क्यों?'
'हमारे लोगों का यह बंधन है। बहुत समय से यह ऐसे ही रहते आए हैं।'
'आदमी लोग? वे नहीं जा सकते?'
"वे जाते हैं, उसके लिए भी बंदिश है।' धीमी आवाज में बोली....
"बाहर के कोई लोग यहां नहीं आएंगे?"
"नहीं, पुलिस भी नहीं।'
वह हंसी। 'इतनी शांति वाली जगह है क्या यह?"
"हमने जो बाड़ लगाई है उसके आगे कोई बात नहीं जानी चाहिए ऐसा कर रखा है। कुछ भी समस्या हो तो अपनी पंचायत ही उसका फैसला करेगी।"
यहां बहुत सारे पिंजड़े बने हुए थे। औरत को मासिक धर्म हो तो अलग पिंजड़े में। रसोई का एक अलग पिंजरा। एक तमाशा और इसमें आदमी अंदर नहीं आ सकता। कहीं रसोई में उनको कोई काम नहीं करा लें यह डर होगा। सिर्फ रात में ही आदमी का साथ। उसमें भी बिना लाइट के। जिससे शादी हुई है वही आया है क्या कई रातों तक पता भी नहीं चला। अरे देवड़ा....
जल्दी से मेरे लिए दामाद देखकर मेरी शादी इस गांव में तय करी तब मेरी माँ को यह सब बात पता नहीं होगी क्या? अम्मा के ही कारण वह बदमाशी हुई होगी ऐसा सोचना मुझे जल्द बाजी लगता है। अम्मा से यह बात मैं पूछ नहीं पाई। अम्मा से पूछने के लिए बहुत सारी बातें हैं। यहां जो रीति-रिवाज है उनके बारे में सचमुच अम्मां को ज्ञात नहीं था ? जानते हुए किया होगा क्या? कितने शत्रु है मेरे ? उसकी सबसे बड़ी शत्रु उसकी मां ही है इसमें कोई संदेह नहीं। आज इस अनिल के हंसी को सुनकर अम्मा की याद आई। आज अम्मा सामने खड़ी हो तो जिस प्रकार उस नॉवेल में उस आदमी ने मुर्गी के गर्दन को मरोड़ दिया वैसे ही मैं उसके गर्दन को मरोड़ दूं ऐसा गुस्सा आया।
कहानियां बोलने वाली अम्मा के पास सब के बारे में कहानियां थी।
रामायण की कहानियां। पांचाली की कहानी।
"किसने मां तुम्हें इतनी कहानियां बताई।"
"मेरे दादा ने बताई। गांव में लाइट के जलते ही कहानी कहना शुरु कर देते। कभी-कभी पूरी पूरी रात भी कहानी सुनाते। उसे सुनकर मैं बड़ी हुई हूं ।"
हर एक बार एक नई-नई कहानी सुनाती। पांचाली की कहानी अम्मां की पसंद की कहानी है। उसने जो कष्ट सहा है उसे और कोई सहन नहीं करना चाहिए ऐसे मां बोलती थी ।
"फिर मेरा नाम तुमने क्यों पांचाली रखा?"
"मैंने रखा क्या? मेरी सास ने रखा।"
वह नाम नहीं श्राप है।
तुम मुझे क्यों नहीं देखने आई? तुम्हें इन लोगों ने मना कर दिया क्या?
उसके पैरों में कुछ चिपक गया। उसने झुककर देखा। काला जामुन था। वह दबकर पैरों के नीचे आ गया और उसका जामुनी रंग उसके लग गया। उसने झुक कर देखा। उसने आज तक उस जामुन के पेड़ को नहीं देखा । जमीन पर यहां वहां घास के बीच में जामुन मोती जैसे चमक रहे थे । उसने जल्दी-जल्दी 4-5 उठाकर अपने साड़ी के पल्लू में रख लिए। 2 जमुनो को मुंह में डाल लिया। फिर से उसे अम्मा की याद आई। जामुन के पेड़ की भी कहानी थी। वह भी पंचाली की कहानी है।
'एक दिन पांचाली इस तरह पैदल जाते समय एक जामुन के पेड़ को देखती है। उस पर एक जामुन चमक रहा था। उसे खाने की इच्छा हुई। उसे तोड़ती है। उस समय कहीं से कृष्ण जी आ जाते हैं। अरे रे उसे तुमने तोड़ दिया अब तो विपत्ति आ गई क्योंकि एक ऋषि ने अपने लिए उस जामुन को रखा था। उसे तुमने तोड़ लिया इसके लिए वे तुम्हें ही नहीं तुम्हारे पति को भी श्राप देंगे। पांचाली को डर लगा। अब क्या करें। तुम्हारे मन में कोई रहस्य नहीं होना चाहिए। है तो तुम्हारे पतियों से बोल दो। फिर यह जामुन फिर से उस पर चिपक जाएगा। उसके पास सिर्फ एक ही रहस्य था। मैं अपने पतियों से कह देती हूँ। फिर जामुन ऊपर पेड़ पर चला जाता है।'
'छि:, तुम और तुम्हारी कहानी। जा अम्मा। विश्वास करने लायक है क्या?'
'उस जमाने में ऐसा हुआ था री।'
'हां तुमने कहा, तुमने देखा! अच्छा वह क्या रहस्य था?'
अम्मा हंसी। 'तुममे से किसी को मैं नहीं चाहती, उस कर्ण से ही मुझे प्रेम है!'
उसको भी हंसी आई। 'उसी ने तो कहा था कि मैं तुमसे शादी नहीं करूंगी क्योंकि तुम राजा के घर में पैदा नहीं हुए ऐसे कर्ण को कह दिया था ना?'
"हां, परंतु वही पूर्ण पुरुष है उसे बाद में लगा।'
'और सब लोग?'
'नपुंसक है'। हिजड़े हैं।"
'पांचों लोग?'
'और क्या ? मैंने तुम्हें कहानी बताइए, भूल गई क्या? सबसे बड़े ने उसे जुआ खेलकर बेच दिया। और उसके अन्य पति जब उसके कपड़े उतारे जा रहे थे तब सर झुका कर बैठे रहे चोट्टे कहीं के।'अम्मा के आवाज में गुस्सा था।
अम्मा के बोलते समय वह दृश्य सचमुच में हुआ जैसे आंखों के सामने दृश्य खड़ा हो जाता।
'उसने पांच जनों से शादी क्यों की?'
'वह बोलूं! उसकी मां का किया कराया खेल था।'
पांचाली को जो भी कष्ट हुआ उस सब का कारण उसकी मां ही थी अब ऐसा लगता है।
उसने पेड़ को सिर ऊपर करके देखा। घने पेड़ों की शाखाओं के बीच में सूर्य का प्रकाश आंखों को चुंधिया रही थी। वहां से उसकी मां झांक कर देख रही है उसे ऐसा लगा। 'तुम क्यों नहीं मुझे देखने आई ?' ऐसे जोर से चिल्लाओ उसे लगा। उसके अंदर एक दुख और दर्द का तूफान उठ रहा था । वह जमीन पर बैठकर अपने घुटनों में मुंह को फंसा कर बैठी तो उसे अंधेरे में तरह-तरह के चेहरे दिखाई दिए। भूत थे। उसको डराने वाले भूत। पांचाली इतनी तकलीफ में भी बहुत साहसी थी ऐसे अम्मा बोलती थी। कैसे? पांच पतियों से शादी कर उसमें कैसे इतना साहस आया? उसको तो घृणा होगी? गुस्सा नहीं आएगा? कहीं भाग जाना चाहिए उसे नहीं लगा? अरे नपुसंकों मैं कर्ण के पास जा रही हूं। ऐसा क्यों नहीं बोली? अम्मा के बोलने वाले झूठ में यह भी एक झूठ था । वह डरपोक और बेवकूफ! आखिर क्या हुआ ? अम्मा बोलती थी ना? ‘उसे जाने दो गधी, अपने से प्रेम नहीं था उसे सोच कर आखिर के समय में सब लोग उसे छोड़कर चले गए।’ स्वर्ग में या नर्क में वह एक कुत्ते के पीछे पीछे गई। कोई भी कहीं भी जाओ तो क्या? वह तो अकेली अनाथ जैसे पड़ी है। अम्मा पेड़ के पास बैठी हुई है ऐसा लगा। उसने आंखों को मल कर पौंछ कर शाखाओं से बोली। 'तुम नहीं आओगी मुझे पता है। मुझे देखने की तुम में हिम्मत नहीं है। जाओ तुम नरक में जाओगी....'
उसके रोते समय पूरा संसार स्तंभित होकर मौन हो गया ऐसे लगा। वह हडबड़ा कर उठी तो देखा घास के ऊपर ही सो गई पता चला...। ढोलक की आवाज बंद हो गई। नाच खत्म हो गया होगा। आदमियों के वापस आने के पहले घर पहुंचना होगा। वह उठकर खड़ी हो देखा तो साड़ी पर घास चिपक गई थी। उनको झटका कर उसने फिर से साड़ी के पल्ले को टाइट खोसा। आज बाजरे और रागी की खिचड़ी बनानी है कैसे होगा ? जल्दी-जल्दी चलने लगी।
दीया जले बहुत देर हो गई ऐसा उसे लगा। उसे बहुत तेज नींद आ रही थी। आखिर माधव आकर खाना खाने बैठा। 'आज क्यों इतनी देर हुई ?' उसने पूछा। वह जवाब दिए बिना ही मौन होकर खाना शुरू किया। उसने दोबारा नहीं पूछा। उसे बिस्तर में पड़े तो ठीक है ऐसा लगा। वह खाना खाकर हाथ धोकर गई तो वह पहले ही सोया पड़ा था | वह उसके साथ चिपक कर सोई। ठंड में उसके शरीर की गर्माहट उसे अच्छी लगी। बाहर लोहे के बाउंड्री को पकड़ कर एक आदमी खड़ा था कहे क्या उसने सोचा। हमारे यहां का आदमी है। वह सोया पड़ा है कल कह देंगे उसने ऐसा सोच आंखें बंद कर ली।
उसने धीरे से बोला।
'कल मैं दूसरे गांव जा रहा हूं।'
वह तत्काल उठ कर बैठ गई। आंखें फाड़ कर उसे देखने लगी।
"कब वापस आओगे?"
"मालूम नहीं। दो-तीन दिन लग सकता है।"
उसने अपने सिर पर स्वयं जोर-जोर से मारा।
"मुझे भी ले कर चलो। मैं यहां नहीं रह सकती।"
"दूसरा रास्ता नहीं है पांचाली। तुम नहीं आ सकती।"
डर में जम गई जैसे उसका शरीर एकदम से अकड़ गया।
"नहीं। मैं नहीं रह सकती। मैं जो तकलीफ पाती हूं तुम समझ नहीं सकते।"
उसने रोना शुरू कर दिया।
"यह देखो पांचाली यहां जैसे रीति-रिवाज है वैसे ही तुम्हें रहना पड़ेगा। तुम कोई अनोखी प्राणी नहीं हो। यह रोना-धोना नाटक नहीं चलेगा। पूरे गांव को इकट्ठा कर नाटक करना अच्छा नहीं है।"
"आप लोगों के रीति-रिवाज मुझे गंदा लगता है।"
उसके गाल पर उसने जोर से चाटा मारा। पांचों उंगलियां गाल पर आग लगी जैसे लगा। वह मुड़ कर लेट गया। "तुम्हें पता नहीं ?" कहकर उसे झकझोरूं उसे ऐसा लगा । थोड़ी देर रोकर वह भी लेट गई। उसके पीठ पर दो मुक्का मारूं ऐसा उसे गुस्सा आया। उसको देख उसे आश्चर्य हुआ। यह सब तुम्हें सही लगता है उससे पूछें उसे लगा। यदि गधे जैसे तू मुंह बंद कर पड़ा रहें तो तू नपुसंक है।
उसे कई बुरी बुरी बातें याद आने लगी। ये गांव छोड़कर चला जाए तो मैं कैसे संभालूंगी इसी सोच में पड़ गई.... दुख में सोते जागते, भयंकर सपने आए जो सच जैसे लगे। डरावने सपने थे। उसका मन सचमुच में बुरी तरह धड़कने लगा। ऊंचे-नीचे पथरीले कांटे वाले रास्तों में दौड़ते रही। दूर यह लोग नाच रहे थे। एक के पीछे एक। ताल बिल्कुल सही। ढोलक की आवाज में लय के साथ धम... धम... धम्म...
हाथ को पकड़ो... पैर दुख रहा है...
अब नहीं सह सकती... उनको सुनाई नहीं दिया। उस लोहे के बाड़े के पास खड़ा कर्ण हंस रहा था।
वह जगी तब माधव चला गया था। राबड़ी बनाने के लिए सूखी लकड़ियां लेकर आने के लिए गई तो उसके सामने एक ही प्रश्न दिमाग को खलबली मचाए हुए था। क्या करूंगी। लकड़ी के खपच्चियों को तोड़ते हुए चूल्हे में डालते हुए एक ही प्रश्न क्या करें? तेजी से लकड़ियों को तोड़ते समय उसे ऐसा लगा मन की तेजी हाथों में भी आ गई है। उसके जांघ में एक नुकीली फांस चुभ जाती है और खून आने लगता है। वह थोड़ी देर खून को बहते हुए देखने लगी। फिर और तेजी से फांस को चुभाया। जलन होने लगी। खून तेजी से आने लगा। खून और तेजी से आने लगा तो उसने दबाया ताकि और खून आए । उस खून को साड़ी के पीछे की तरफ ले जाकर पोंछा। खून का दाग साड़ी में पता लग रहा था क्योंकि साड़ी हल्के रंग की थी। बाकी लकड़ियों को उठाकर एक तरफ रसोई में रखकर, मासिक धर्म के समय औरतें जिस पिंजरे नुमा कमरे में रहती हैं उसकी तरफ जल्दी से चली गई।
उसके अंदर पहले से ही सीता दीदी बैठी हुई थी। उसे देख उसका मन हल्का हुआ और हल्के से मुस्कुराई। सीता उसे आश्चर्य से देखने लगी।
"क्यों री पांचाली, अभी ही तो तेरे नहाए 10-15 दिन हुए हैं, इतनी जल्दी?"
वह उदास होकर अंदर जाकर एक तरफ बैठी। 'हां पता नहीं क्यों इस बार जल्दी ही आ गया। पूरे शरीर में बड़ा दर्द हो रहा है।"
"चुपचाप सो जा।"
"सोना ही पड़ेगा।"
"यह ले चटाई में सो, जमीन ठंडा है।"
वह धन्यवाद देकर उस पर लेट गई।
"एक और खाना चाहिए कहकर मैं बोल कर आ रही हूं।" कह कर सीता दरवाजे को बंद कर गई।
उसे आश्वासन मिला ऐसा लगा। अचानक एक समस्या से निजात पाने जैसा लगा। कितनी बार ऐसा कर सकती है?
उसे थोड़ा आश्वासन मिला। अचानक आए संकट को उसने संभाल लिया ऐसा लगा। लेटते ही थकावट के कारण उसे नींद आ गई। जब वह जगी तो खाना वहां रखा हुआ था। सीता उसको ही देखते हुए बैठी थी।
वह संकोच के साथ उठ कर बैठी। "तुमने खाना खाया दीदी?"
"तुम्हारे साथ खाना खाऊंगी तुम हाथ धो कर आओ।"
वह दरवाजे के बाहर रखे हुए मटके में से पानी को निकाल कर मुंह और हाथ पैर धोकर आई।
इंतजार कर रहे जैसे सीता ने पूछा "क्या माधवन बाहर गया है?"
"हां दीदी आपको किसने कहा ?"
"यह सब बातें पता नहीं चलेगी क्या ? राकअम्मा बुआ ने बताया। इतनी जल्दी बैठ गई क्या उन्होंने पूछा। "पांचाली ने कोई जवाब नहीं दिया हाथ धोकर बर्तनों को साफ कर उल्टा करके रखकर आ दीवार से पीठ सटाकर पैरों को मोड़कर घुटनों के ऊपर हाथों को रख कर बैठी।
"माधवन कितने दिन के लिए गया है ?"
"दो-तीन दिन हो जाएगा बोला।"
"अगली बार जाएगा तो क्या करने वाली हो ?"
वह हड़बड़ा कर देखने लगी।
बिना जवाब दिए सिर को झुका कर घुटनों पर रख लिया।
क्या करूं ? क्या कर सकती हूं? अपने सिर को जोर-जोर से घुटने में मारने लगी यही हो सकता है। उसके आंखों से आंसू बहने लगा।
"सभी लोगों ने ऐसा करके देख लिया। परंतु इससे बच नहीं सकते पांचाली।"
उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। वह हांफने लगी।
"कैसे दीदी ? कैसे दीदी? क्या यह न्याय है?"
सीता ने कोई जवाब नहीं दिया। दीवार के भी कान होते हैं ऐसी सोच रही है ऐसा लगा।
शाम के समय अंधेरा होने के कारण पिशाच आने शुरू हुए। सीता दीदी कल सुबह शुद्ध हो जाएंगी उनका समय खत्म हो जाएगा। समझदार यहां पर सिर्फ एक वही है।
"तुम्हारी शादी हुए कितने साल हो गए हैं दीदी ?"
"चार साल।"
"अरे देवड़ा। तुम यही पली-बड़ी हो।" "इसीलिए विवेक से रहती हूं। अपना कुछ भी स्वयं का नहीं है मेरे समझ में आ गया।"
पांचाली जोर से सिर हिलाई। "मुझे यह सब पता नहीं था.... मेरा नाम ही सिर्फ पांचाली है...."
सीता धीरे से बोली "राकअम्मा यही बोलती है। हम लोग पांचाली के वंशज हैं। यह इस कुल का रीति-रिवाज है। इससे अलग कुछ करें तो श्राप लगेगा।"
वह कुछ बोलने के वाली थी, सीता ने उसके मुंह को दबा दिया। "अब तुम्हें इसके बारे में कुछ नहीं बोलना चाहिए। मुझे भी इसमें मत फंसाओ ।"
इस सुनसान जगह पर भूत निवास करते हैं उसे लगा। बाहर चल रहे आंधी से दरवाजा बजने लगा जैसे वह कोई समाचार देने आया हो। तुम्हारा कोई भी चीज स्वयं का नहीं है.... कोई भी अपना निजी चीज नहीं है....
सुबह उसने जब आंखें खोली सीता दीदी चली गई थी। दूसरे दिन और उससे दूसरे दिन भी दो लड़कियां आकर वहाँ बैठी। वे ना बोलने वाली लड़कियां थी। उन्हें बोलने की आदत ही नहीं थी ऐसा लग रहा था । इन्हें किसी तरह की बेचैनी नहीं होती है क्या ? यह यही पैदा हुए लोग हैं। सिर्फ वही अन्य जगह की है और अनाथ है।
तीन दिन बीत जाने के बाद नहा कर घर वापस आई तो उसे लगा आज रात माधवन आ जाएगा इसकी उसे तसल्ली हुई। सामने दिखी राकअम्मा बुआ उसे ऊपर से नीचे तक देख कर अपने सिर को हिलाई। "आज आ रहा है क्या माधवन !" कुछ चेतावनी दे रही जैसे उसे लगा। गोदी में बच्चे को उठाए हुए कुछ लड़कियां उसको ही फटी आंखों से देख रहीं थीं। इन सब लोगों को क्या हो गया? यह बुढ़िया बहुत तेज है उसने मन में सोचा।
शाम होनी शुरू हुई एक इंतजार के साथ उसने खाना बनाकर खत्म किया। खुशबू वाले साबुन से चेहरे को धोया। देर होते-होते उसे एक अजीब सा डर व्याप्त होने लगा। आज भी नहीं आएगा क्या? आएगा। राकअम्मा ने उसे भी तो बोला था? मधवन को उसकी नैलेक्स की चिकनी-चिकनी साड़ी बहुत पसंद है। उसने उसे पहना। भूख के लिए थोड़ा सा खाना खाया उसके बाद वह रोशनी बंद करके लेटी। वह जब आएगा तब आने दो ऐसा सोच वह सो गई। नींद में अम्मा आई। क्या कहानी बोलने आई हो? मुझे तुम्हारी कहानी नहीं चाहिए।
अम्मा जोर से हंसी। कहानी नहीं है वह सच है। वह सच है री?
आज तक सच है।
'यह अम्मा का किया हुआ खेल है ?'
'हां, तू पापी है, क्योंकि तुम पांचों आपस में बांट लेना मालूम होने पर ही कहा होगा ? पांचाली को 5 लोग और मेरे लिए 4 लोग। सिर्फ वही अंतर है। माधवन बाहर गांव जाए तो एक-एक दिन एक एक आदमी। छी: चली जाओ। ‘मैंने मालूम हो कर किया क्या ? मत कहना....’ यहां से चली जा....’
अंदर से भयंकर आवाज उठी। मार खाए जानवर जैसे आवाज गले से निकली।
कोई दरवाजे को जोर से खटखटा रहा था।
वह हड़बड़ा कर उठ बैठी। दरवाजे का खटखटाना बंद हुआ। मिट्टी के दीए से किसी के बैठे होने का आभास हुआ । वह डर गई। कौन है? धीरे-धीरे आंखों से साफ दिखाई दिया। माधवन बैठा हुआ था।
"कब आया ? क्यों ऐसा बैठा है? शांति से हंसते हुए बोली।
उसके चेहरे पर गुस्सा दिखाई दिया। गुस्से में था।
"मैं नहीं था तो यहाँ क्या हुआ ?"
"मुझे मासिक धर्म हो गया ?"
"मैं वहां चली गई। आज ही शुद्ध होकर नहा कर घर आई हूं।"
"सच बात है ये?"
"क्यों पूछ रहे हो?" वह सतर्कता के साथ बोली ।
"तुम्हारे बारे में लोग कुछ-कुछ कह रहे हैं।"
"क्या?"
"कुछ तो भी। यहां सब कुछ बिना छुपाए साफ सुथरा रहना जरूरी है।"
"बोले तो क्या?"
"तुम्हें झूठ नहीं बोलना चाहिए । बड़े लोग बोले हैं वैसे ही चलना चाहिए ।"
उसने कोई जवाब दिए बिना, चुपचाप उसे देखने की भी इच्छा नहीं हुई उसने सिर झुका लिया ।
"वह कौन था ?"
उसने हड़बड़ा कर देखा । "कौन?"
"बाउंड्री वाल के पास जो खड़ा था। तुम छाती को खोल कर खड़ी थी।"
उसके अंदर से एक ज्वालामुखी फूटा।
"अरे बाप रे ! ऐसा किसने बोला?"
"अरे चल गधी मुंह बंद रख। लकड़ी बीनने जाती है और जांघों को नंगी कर खड़ी रहती है। जामुन के पेड़ के नीचे पड़ी रहती है.... यह सब क्या वेश्यावृत्ति नाच है ?"
उसके पेट के अंदर से ज्वाला उठी और गले में आकर अटकी।
"कौन है रे वह ? बोल। कल पंचायत जमा होने वाली है। मेरा मान सम्मान चला जाएगा। तुझे मैं बचा नहीं सकता।"
अचानक उसे भयंकर हंसी आई। बताती हूं.... बताती हूं.... पांचाली के मन में जो रहस्य रखा था वह तुम्हें पता है? वैसे ही! वह आदमी भी वैसा ही था । उसे मैं लेकर आती हूं यहीं बैठ। उसका पूरा बदन जलने लगा। वह तेजी के साथ कमरे से बाहर निकल कर जिसमें आदमी अंदर ना जा सकने वाले रसोई में स्वयं को बंद कर लिया। वहां जमा किए हुए लकड़ी की खपच्चियां उसका इंतजार ही कर रही थी। माचिस की तीली जलते हैं उसमें आग लग गई।
आधी रात में जल्दी से जलते हुए उस झोपड़ी नुमा कमरे में माधवन और उसके दूसरे भाई बिना बोले खड़े हुए थे ।
उस वन क्षेत्र में आराम से चलने वाली आज वह पूरे कमरे में फैली पड़ी थी ।
सुबह होते ही ढोलक की आवाज सुनाई दी। वे लोग गोला बना कर खड़े नाच रहे थे। कमर में बांधे हुए ढोलक ताल से ताल मिलाते हुए नाच रहे थे। लाल रंग का अंग वस्त्र घुमा कर बड़े लावण्यता के साथ बांध रखा था जो नाचते समय जिसकी सुंदरता ने उसका मन मोह लिया था। पसीने से तरबतर चेहरा चमक रहे थे। अब वह अच्छी तरह से देख सकती है। अब उसमें कोई रुकावट नहीं।
तमिल की मूल कहानी की लेखिका वासंती अनुवादक एस. भाग्यम शर्मा |
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