एक छोटी सी इच्छा S Bhagyam Sharma द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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एक छोटी सी इच्छा

तमिल कहानी के लेखक कुमार (सीताराम) है 

अनुवाद एस. भाग्यम शर्मा

विघ्नेश, सिर के ऊपर भारी बस्ते को लटका कर बस से उतर कर घर की ओर दौड़ता है। ये उसके पंसद के कामों में से एक है। कुछ बच्चे बस्ते को कन्धे पर लटकाते है, कुछ हाथ मे पकड़ कर लाते है। पर सब बच्चे उसके पीछे ही रह जाते है। उन्हे देख विघ्नेश की खुशी कई गुणी बढ़ जाती है। ‘‘ऐसा दौड़ो मत कुत्ते पीछे पडेगे’’ उसकी बडी बहन पूर्वा चिल्लाती। पर जन चारों तरफ लोगों को खडे़ देख अपनी आवाज को धीमें कर दांत पीस कर वह भाई का पीछा करती।

बस जहां से रूकती है वहां से उनका घर कोई 200 कदम दूर होगा। पर विघ्नेश उसे कुछ सेकडों में ही पार कर लेता था। बूरी तरह सांस भरते हुए जब दादी पोते को देखती तो नाराज होकर कहती ‘‘क्यों इस तरह भागता है.......’’

अभी दादी नहीं है............ दादा जी की तबियत ठीक नहीं अतः उनके देखभाल करने गाँव चली गई। वे कब वापस आयेगी। या कभी नहीं आयेंगी उसे कुछ नहीं पता ............बारवीं पास कर हॉस्टल में रहकर पढ़ने के लिए पूर्वा भी बाहर चली गई। विघ्नेश अभी सिर्फ पाचंवी में आया हूँ सोच अपने आप दुखी होता है इतने दिनों बाद पैदा होकर मुझे क्यों परेशान कर रहा है, कहकर उसकी मम्मी भार्गवी भी अकसर अपना आपा खो देती।

आज भी विघ्नेश का बस्ता सिर पर ही टंगा हुआ था। पर वह धीरे-धीरे पैरों को घसीट कर चल रहा था। उसकी चाल में एक थकावट नजर आ रहीं थी। पहले जो बच्चे पीछे रह जाते थे वे सोचने लगे ‘इसे क्या हुआ’ और वे उसके पहले पहुच रहे थे। रास्ते में पड़े पत्थरों को पैरों से ठोकर मार कर विघ्नेश धीरे-धीरे घर पहुँचता तो ऐसा लगता की घण्टों हो गये।

मम्मी भार्गवी का ड्राइवर अब्दुल मम्मी को बैकं छोड़कर गेट खोल उसके लिए घर की चाबी के साथ बाहर खड़ा रहता। घर का काम करने वाली बाई धूप से बचने के लिए सिर ढ़ककर आती उसके लिये थाली रखकर, विघ्नेश खाना खाले तो उसके बर्तन को मांज ले इसके लिये इन्तजार करती।

हमेशा की तरह सामने वाले घर का कुता विघ्नेश के सामने पूछँ हिलाता हुआ आकर खड़ा हुआ। छोटा सा फूला-फूला घने वालों वाला, सफेद रंग के कुत्ते का पिल्ला पालने की उसकी इच्छा बहुत पुरानी है। ‘‘तुम्हे पाल नहीं पा रहे है। एक कुत्ते के पिल्ले की और जरूरत है क्या?’’ कहकर मम्मी उसकी इच्छा को इन्कार कर देती।

बचाकर रखा हुआ एक बिस्कुट को ड्राइवर देखे इस ढंग से विघ्नेश कुत्ते को फेंक कर डालता है। एक ही..............बाकी था। बाकी को तो उसने खा लिया। ऐसा अब्दुल को समझ जाना चाहिये.......... नहीं तो वह अम्मा को बता देगा। शिकायत करना चाहिये ये उसकी मंशा नहीं है, यह तो विघ्नेश को भी पता है। वह तो अपना कर्तव्य ही करता है।..... बस में आते समय बहुत देर लगती है अतः मम्मी बिस्कुट साथ देती है। ये बात समझ में आती है। बाहर देखते हुए, गप्प हांकते आते समय पहले कभी कभी खाना भूल जाता ............ पर अब तो हमेशा ही भूल जाता। क्यों ये बात है इसको विघ्नेश समझ नहीं पाया।

हमेशा उसकी कक्षा का साथी शिवम आते समय उसकी अम्मा द्वारा दिये गये बिस्कुट को बडे़ चाव के साथ लेता वह दो-तीन बिस्कुटों को एक साथ मुहँ में रख दाँत से कट-कट करता खाता तो विध्नेश को उसे मुस्करा कर देखना अच्छा लगता। मुझे खाने में इसके जैसा उत्साह क्यों नहीं है, ये बात विघ्नेश सोचता पर समझ नहीं पाता।

‘‘तुम्हारे दोस्त सब कितने चाव से खाते है ? तुम्हारी खाने की आदत ठीक नही है अतः तुम अभी तक दुबले-पतले हो।’’ मम्मी उसे ऐसा अकसर कहती रहती।

काम करने वाली बाई पानी का गिलास व थाली रखकर जम्हाई लेते हुए वहां से सरक गई। उसके खाना खाने के बाद उन बर्तनों को साफ करके जाने की उसकी आदत है। उसने अपने लंच बॉक्स को बिना भूले बस्ते में से निकालकर बाहर रख दिया।

यदि उसे बाई साफ करना भूल गई तो अम्मा की डांट का सामना विघ्नेश को ही करना पडेगा।

चपातियां बड़े सुन्दर ढंग से गरम रखने वालो डिब्बे में रखी हुई थी। साथ मे एक कटोरी दाल व एक कटोरी सब्जी भी उसके पास ही रखी हुई थी सलाद रखना भी अम्मा नहीं भूलती। अप्पा (पिता) को शुगर की बीमारी है इसको ध्यान में रख कर खाना हमेशा माँ ही बनाती है। खाना बनाने वाली बाईयां ज्यादा तेल डाल देंगी सोच कभी उनसे खाना नहीं बनवाती। चावल के मुकाबले में चपाती व दाल स्वास्थ्य के लिये अच्छा होता है। ऐसा अकसर कहते भी रहती......।

धीरे-धीरे चपाती को विघ्नेश चबाने की कोशिश करने लगा। गर्म भी नहीं है अतः अन्दर जाने में तकलीफ हो रही थी। पिछले साल जब दादी यहां थी तब अपने हाथों से दही चावल खिलाती वे कहती मुह खोल, ठींक तरह से खोल कह कर प्यार से सारा खाना खिला देती।

आजकल दादी की याद उसे ज्यादा ही आती है। टी.बी देखते हुए खाना खाता व दादी को ठीक से मुँह नही दिखा कर कैसे उन्हें परेशान करता था। ये सोच सोच कर अब बहुत दुखी होता है। जब दादी श्लोक आदि नहीं बोल रही होती, उस समय दादी का समय पास करने का तरीका टी वी ही होता था। बेचारी दादी टी.वी. को भी मेरी अम्मा मेरी पढ़ाई में हर्ज न हो सोच उसे भी हटा दिया। पर बेचारी दादी कुछ नहीं बोलती।

बाई झांक कर देखा, विध्नेश अभी भी खाना खा ही रहा था।

विघ्नेश बहुत दुखी हुआ। बाकी खाना छोड दूँ तो अम्मा को पसंद नहीं। वे हमेशा कहती है सुबह जल्दी उठकर तुम्हारे लिये बनाकर जाती हूँ । ये दो समय का भोजन ठीक से न मिलने के कारण कितने बच्चे परेशान होते है पता है तुम्हें? अम्मा आकर प्रत्यक्ष में बोल रहीं जैसे उसके शब्द, उसके कानों में गूंज रहें थे।

दुबारा निगलने की कोशिश की बेचारा। अम्मा को समय ही नहीं होता, कि दूसरे बच्चों के माँ-बाप की तरह बस स्टाप तक ले जाकर मुझे बस में बैठायें। फिर रात में कपडों में ही वे आकर खड़ा होना पसंद भी नहीं करती। अम्मा तो बैंक में मैनेजर है। अप्पा यदि ऑफिस के काम से यदि कभी बाहर न भी गये हो तो वे देर से ही उठते है। उसके स्कूल जाने तक अप्पा को उठते उसने कभी देखा नहीं। रात को उसके सोने के पहले वे ऑफिस से आते भी उसने देखा नहीं। पूजा, खाना, बाई के साथ घर की सफाई ऐसे कई कामों को करने के लिये अम्मा को लट्टू के जैसे घूम-घूम कर करना पडता है।.......

सब अम्माओं के जैसे आप घर में ही क्यों नहीं रहती व इस तरह परेशान क्यों होती है? ऐसा पूछने की विघ्नेश सोचता जरूर है पर पूछने की उसकी हिम्मत नहीं पडती.......

तुम्हारा व तुम्हारी बहन का जीवन स्तर बहुत अच्छा है, तुम सुख-सम्पदा से युक्त हो ऐसा सोच कर ही वे दोनो इतना मेहनत करते है ऐसा दादी कहती थीं। पर इस बात को दीर्ध स्वास लेकर वे क्यों कहतीं है, बात विघ्नेश समझ नहीं पाता।

तुम्हारे घर में बड़ी गाडी, ड्राइवर सब है तुम्हारी अम्मा भी कर चलाती है ना ऐसा कक्षा में बच्चे विघ्नेश से पूछतें। परन्तु उनके माँ-बाप कभी भी उसके कक्षा अध्यापक से आकर नहीं मिले। पिछले साल जब वार्षिक उत्सव में उसे इनाम मिला तब भी उसके मम्मी पापा नहीं आए। इसका उसे बहुत दुख हुआ। अप्पा को तो ध्यान हीं नहीं रहता व अम्मा को छुटटी लेने का मन नहीं करता।

आखिर के चपाती को हाथों मे रोल करके काम वाली बाई को थाली लेने को बोला। वो भी तो सोचती होगी जल्दी से घर चली जांऊ।

किसी तरह खाने को समाप्त कर विघ्नेश बालकनी में आकर खडा हुआ। वर्षा की बूंदे आ रही थी। गली में शिवम व उसके दोस्त उसे हाथ हिला कर उसे साईकिल को रोड पर तेजी से दौडा रहे थे। हल्की-हल्की वर्षा की बूंदे आ रही थी। विघ्नेश का आश्चर्य हो रहा था कि वर्षा में ये लोग भींग रहे है। इनकी अम्मा इनको डाटती नहीं क्या?

शाम को ‘‘गली के कोने पर ठेले पर से पानी पूरी तेज मिर्च व खट्टी चटनी के साथ वो पानी पीये तो आँखों में आँसु तो आ जाते है। पर उसे पीने का आनन्द ही कैसा होता है पता है?’’ इस तरह शिवम जब वर्णन करता है तो विघ्नेश आँखे फाड-फाड कर उसे देखने लगता है। वो सोचता है ये बस क्यो गली के ठेले से खरीद कर खाते है। फिर भी बीमार नही होते? जैसे कि अम्मा कहती है।

ड्राइवर अब्दुल गाडी को निकाल रहा था। छः बज रहें होगे। सात बजे अम्मा घर लौटेगी। घर के काम करते हुए या दूध गरम करते हुए वे उसे पढ़ायेगी। विघ्नेश ने किताबों को फैला दिया।

बाहर की घण्टी दो बार बजी। ये अम्मा ही है इस बात की संकेत की घण्टी है बेचारी थकी हुई होगी। हाथ के बैग को खडे हुए ही सोफा पर डाला।

‘‘वर्षा में बाहर तो नहीं दौडा ?’’

‘‘नहीं घर के अन्दर ही था।’’

‘‘ठीक है ठहर। मुहँ धोकर आकर दूध देती हॅू।’’ बडा मौन पसर गया। दूध पी रहे विघ्नेश के सामने एक बडा लिफाफा भार्गवी ने रखा। व बोली ‘‘बीस लोगो के लिए निमंत्रण पत्र है। अपने दोस्तो के नामों को इसमें लिखलो’’ बिना कुछ समझे वह अम्मा को देखने लगा।

‘‘क्या देख रहे हो ? तुम्हारे जन्म दिन के लिए सिर्फ पाँच दिन ही बचे है। अभी से बुलाने पर ही उन्हें आने मे सुविधा होगी।’’

मुझे क्या हो गया। ये बात विघ्नेश के समझ में नहीं आया। उसके सब दोस्त तो अपने जन्म दिन कब आयेगा? उँगलियों पर गिनते रहते है। पर मुझे जन्म दिन की बात क्यों नहीं याद रहती?’’ इसका कारण उसे समझ नहीं आ रहा था।

‘‘होटेल मे एक बडा कमरा लेकर, गानों व खेलो, सब का इन्तजाम करने को कह दूंगी। तुम्हारे दोस्तो के साथ ड्राईवर को लेकर पांच. बजे चले जाना। सात बजे केक काटने के समय मैं आ जाऊँगी।’’

विघ्नेश को अम्मा से कुछ कहने की इच्छा थी पर शब्द बाहर नहीं आ पा रहें थे। वह अम्मा को घूरने लगा।

‘‘क्या देख रहा है ? ये ही हर एक का 150/- के हिसाब से 300 - रूपये हो जायेगे। कल यदि हो सके तो मै जल्दी आ जाऊँगी व तुम्हारे लिए ड्रेस लेने चलेगे।’’

विघ्नेश बिना पलक झपकायें टकटकी बाँधे अम्मा को देख रहा था। भार्गवी को तो हर बात में जल्दी होती है। बोली ‘‘ये देख! पिछले साल लेकर दिया रिमोट वाली कार से लेकर क्रिकेट के बल्ले तक को तूने ठीक से रखा नहीं। तुम्हे कम्प्यूटर चाहिये मुझे पता हे। टी.वी. के जैसे उसके सामने घण्टों बैठे रहोगे। और दो साल हो जाने दो देखेगे।’’

‘‘वो नहीं अम्मा’’ विघ्नेश धीरे-धीरे शब्दों को चबा-चबा कर बोला।

‘‘बक दें क्या चांहिए’’ वह संकोच से बोलना शुरू किया। ‘‘एक चाकलेट का डिब्बा’’ सिर्फ स्कूल कें दोस्तों को देने के लिये लेकर दी जियेगा। उस दिन आप छुट्टी लेकर मुझे स्कूल भेजने मेरे साथ बस स्टाप तक आना व लौटते समय भी मुझे लेने आना। यदि हो सके तो दोपहर का खाना खीर के साथ बना कर मुझे अपने हाथो से खिलाना अम्मां शाम को दादी जैसे बोलती थी वैसे मन्दिर साथ-साथ जाकर भगवान की पूजा अर्चना करायेँगे। आपका हाथ पकड़कर मुझे मन्दिर के प्रागण में परिक्रमा भी देनी है। इसके बाद रात में हो सके तो अप्पा के साथ बाहर खाना खायेगे, नहीं तो घर पर ही सब साथ बैठकर खायेगें ............. मुझे इसके अलावा जन्म दिन के लिये कुछ नहीं चाहिए।‘‘

अम्मा के चेहरे के बदलाव को देख विध्नेश को डर लगा तुरन्त बोला ‘‘छुटटी न ले सको तो कोई बात नहीं ..........।

पास में आकर भार्गवी ने उसे गले लगाया व उस यंत्र रूपी औरत के आँखो से आंसू बहने लगे।

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अनुवाद एस. भाग्यम शर्मा

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