पापा की अनकही S Bhagyam Sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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पापा की अनकही

इस तमिल कहानी की लेखिका वासंती है | अनुवादक एस. भाग्यम शर्मा |

लिफ्ट के अंदर कोई नहीं था। उसको इसके अंदर अकेले रहना पसंद है। किसी की निगाह में आए बिना अकेले रहना ऊपर पंखे का चलना उसके नीचे खड़े रहना उसको बहुत पसंद है। बाहर की गर्मी और चिपचिपाहट इसके नीचे गायब हो जाती है । सारे प्रपंच खत्म हो जाते हैं। थोड़ी देर के लिए अकेलापन उसे सब बातों से छुटकारे का एहसास दिलाता । यह सिर्फ कुछ क्षणों के लिए ही है इसी बात का उसे दुख है। वह लिफ्ट तेजी से नवीं मंजिल की तरफ दौड़ रही थी। उसे रोक देना चाहिए ऐसा उसके मन में एक हड़बड़ी सी महसूस हुई कि फिर से जीरो को दबाकर वापस चले। आए बिना ही रह जाती ! परंतु यह ना हो सका। उसकी अंतरात्मा उसे धक्का देकर जाने के लिए मजबूर कर रही थी | उसकी दबी हुई परेशानियों ने उसे भगाना शुरू कर दिया। उसके अंदर एक अजीब सा डर व्याप्त हुआ। मैं कितनी बेवकूफ हूं!

बेवकूफ... बेवकूफ......

आज एक इंपॉर्टेंट मीटिंग है- ठीक 4:00 बजे। हेमा और बालू दोनों के स्कूल से आने के ठीक उसी समय में। वह स्वयं बच्चे को लेने नहीं जा सकेगी उसके बदले बच्चों को बस से लाने के लिए अप्पा जाएंगे। सुमति इस तरह की व्यवस्था हो जाने के कारण काम में डूब गई। काम पर जाने वाली अम्मा से ज्यादा पिताजी से उसकी निकटता थी ऐसा क्यों है इसके बारे में उसे मालूम नहीं है और उसने कभी सोचा भी नहीं । अम्मा हमेशा एक जल्दी में रहती। ऑफिस रवाना होने तक घर का काम; फिर ऑफिस। घर पर आते ही रात का खाना बनाना। 9:00 बजे तक मां थक जाती। उसके पास बात करने तक का समय नहीं होता। अप्पा ही उसके अंतरंग साथी बने। उसके बच्चों को रोजाना शाम को पार्क में ले जाकर उनको कहानियां सुनाते। पंचतंत्र की कहानियों को कहते समय वे जिस तरह हाथ पैरों को हिलाते हुए नाटकीय ढ़ंग से जब बोलते तो उसे खूब हंसी आती। अब भी जब उसके बारे में सोचती है तो उसे हंसी आ जाती है। अप्पा बहुत बड़े नाटककार हैं उसे लगा। मेज पर बहुत सारे कप्स रखे थे उसके ऊपर ही अप्पा मेज पर बैठे थे।

उसने मुस्कुराते हुए उन्हें सरकाया।

नवीं मंजिल पर लिफ्ट धम करके रूकी दरवाजे का मुंह खुला। उसने संकोच से बाहर पैर रखा । प्लॉट नंबर 901 उसे दिखा। पलट जाऊं क्या ! उसे लगा। उसका दिल जोर-ज़ोर से धड़कने लगा। पलट जाएंगे क्या फिर सोचा। सुबह जो मोबाइल में नंबर आया उसे देखकर वह थोड़ी घबराई....'समय खराब किए बिना आओ नहीं तो दुख पाओगी'

पुरानी यादें उसे तूफान जैसे आकर दबाने लगीं। अपमान, क्रोध, दुख समझ में नहीं आया यह कौन सा वेग है। ये बेकार के मनोविकार । सामान्य जीवन के बीच अचानक भूत जैसे उठ गए और उसे हिला कर रखने वाली वे यादें। क्या इन्हें मिटाना संभव है ?

उसने अपने आप को संभाला।

एक बार उसने दीर्घ श्वास लिया। कॉलिंग बेल को दबाया।

"ऑफिस पहुंच गई ? अप्पा के संदेश से उसे हंसी आ गई। उसके जीवन की सभी अवस्थाओं में पिताजी का ही आधिपत्य था। दो बच्चों के पिता बनने के बाद दूसरे से संबंध बनाने वाले वासू से उसने तलाक लिया तब मां से ज्यादा अपनत्व देने वाले वे ही थे । जिस समय जीवन में कुछ बदलाव आया और जीवन में एक दरार पड़ना शुरू हो गया उस बात को समझ कर वह  संज्ञाशून्य अवस्था में आ गई। वह जब अपने आप में मग्न थी वासू के दूसरे संबंध के बारे में पता चला तो विश्वास भी ना कर सकी। अचानक उसे पहाड़ के ऊंचे शिखर से धक्का दे दिया जैसे लगा। इस सदमे से वह बाहर नहीं निकल सकती ऐसा लगा। 'बात करके देखो सुमति ।' अम्मा के बोलने पर उसे बहुत गुस्सा आया।'

“इतनी बेशर्म तो मैं नहीं हूं अम्मा।""अब उसके साथ मैं कैसे रह सकती हूं ? मुझे कैसे अच्छा लगेगा । मेरी नौकरी है। मैं संभाल लूंगी।"

अम्मा ने तुरंत मुंह बंद कर लिया। परंतु अप्पा आश्वासन देने लगे।

"हम हैं ना फिकर मत करो !"

आप नहीं होते तो यह जीवन इस तरह सामान्य रूप से नहीं चलता। अप्पा के लिए एक स्माइली भेजी।

दरवाजा एकदम से खुला। रामामूर्ति हंसते हुए खड़े थे। उन्होंने जो परफ्यूम लगा रखा था उसकी खुशबू बाहर तक आ रही थी। वह बाहर ही खड़ी रही।

वे हंसते हुए बोले, "आओ, आओ, क्यों संकोच कर रही हो ? ओह इस घर में तुम पहले नहीं आई हो ? यहां आये एक साल हो गया। यह हमारा निजी फ्लेट है। आओ आओ।"

वह धीरे से चारों तरफ देखती हुई अंदर घुसी। "घर में कोई नहीं है। डरो मत। मिसेज काम पर गई है। शाम के 6:00 बज जाएंगे आने में। रिटायर होने के बाद अब किसी काम की जरूरत नहीं है इसलिए घर में ही रहता हूं। अब मेरे पास बहुत समय है।”

उसने अपना सिर झुका लिया। उन शब्दों के अन्दर का अर्थ उसे पता है। रिटायर होने के पहले पक्का कर दूंगा बोले थे ना ऐसा प्रश्न उसके अंदर उठा और गले में दब गया।

"हां मैं बताना भूल गया, मैंने मेरे फ्रेंड को तुम्हारे काम के बारे में बता दिया। जल्दी ही तुमको बुलाएंगे देखो।"

उसने एकदम से आंखें उठा कर देखा।

उसके पेट में एकदम से आग का गोला जैसे उठा। वे शब्दों को बढ़ा-चढ़ाकर बोलते हैं उसे पता है। परंतु वह शांति से बोली "अभी मुझे नौकरी नहीं चाहिए साहब।"

वे आश्चर्य से उसको देखने लगे। उनके चेहरे पर एक हल्की सी

निराशा दिखाई दी । "क्यों, दूसरा काम मिल गया क्या ?

तुम धैर्य रखो तो दूसरा काम मैं लेकर दे दूंगा मैंने कितनी बार तुम्हें कहा है ?"

फिर भी वह आराम से बोल रही थी भले ही उसके अंदर क्रोध उमड़ रहा था।

"दो साल में साहब कितनी बार आपने मुझे बुलाया था। अभी-अभी करके कितनी बार आपने मुझे विश्वास दिलाया था ?"

"मुझसे लड़ने आई हो क्या ?"

उसने जवाब नहीं दिया। झगड़ा करके क्या होने वाला है ऐसा सोच अचानक दुख से गला भर आया। जो जाना था सब चला गया।

"झगड़ा करने नहीं आई। आपने क्यों बुलाया है बोलिएगा ?"

करीब-करीब सभी फाइलों पर हस्ताक्षर करने के बाद सुमति ने घंटी बजाई। टाइपिस्ट संध्या ने झांककर देखा।

"कुछ पत्र लिखना है क्या मैडम ?"

"हां।'

उसके पहले फाइलों को निकालने के लिए रामबाबू के यहां, 'मीटिंग है 4:00 बजे। कॉन्फ्रेंस रूम में पानी की बोतल सबके लिए है क्या देखो" वह बोली।

'बच्चों को लाने के लिए आज नहीं गए ?'

'नहीं, दूसरा अरेंजमेंट कर दिया।' हंसते हुए बोली।

संध्या के इंतजार करने को महसूस करके जो लिखवाना था उन पत्रों को डिक्टेट करवाने लगी।

फिर से उसे पिताजी की याद आई। रामबाबू ने जो प्रश्न पूछा फिर से उसे खंगाल दिया जैसे लगा। अप्पा को बहुत परेशान करती हूं उसके मन को ऐसा लगा। पर अप्पा स्वस्थ ही थे। किसी बात से झुंझलाते नहीं थे । रिटायर होने के बाद सब कामों को खुशी से करते । विशेषकर बच्चों के बारे में उसे कभी फिक्र करने की जरूरत नहीं। उसका काम खत्म हो जाए तो वह लेकर आती है। नहीं तो उसके पिताजी तैयार रहते हैं । उसके ऑफिस से आने तक उन्हें संभाल लेते हैं । बच्चों को नाश्ता दूध देखकर होमवर्क करवाते उन्हें कहानियां सुनाते, उन्हें खेलने भेज देते.... सब कुछ नो प्रॉब्लम'।

'करने दो ऐसा अम्मा बोलती है घर में बेकार ही तो बैठे रहते हैं ?'

फिर भी बेचारे ऐसे बुदबुदाने में उसे एक समाधान मिलता है। उसके मन के अंदर अब तक जो स्नेह था वह और बढ़ जाता है।

उनके रहने से मुझे बहुत आराम है। लड़की 10 साल की है। लड़का 8 साल का। इन्हें, विशेषकर लड़की को कैसे बचा कर रखें उसे रोजाना अपने मन में दुख अधिक होता है। इसका कारण शहर में होने वाले हादसों का डर ही ज्यादा है। उन्हें बस स्टैंड से घर तक अकेले आने की अनुमति नहीं दे सकते। घर के अंदर किसी को रखना भी विपत्ति को बुलाना है। वह भी एक बढ़ती उम्र की लड़की के घर में रहते हुए।

वे जोर से हंसे। "तुम्हें देखने की इच्छा हुई। तुम्हारे काम के बारे में भी। पुरानी बातों को भूल गई ?"

"मैं भूली नहीं ? मुझे अब काम की जरूरत नहीं है। अभी मेरी शादी हो गई है। मेरे पति बिजनेस करते हैं। उनकी मैं मदद करती हूं।”

"ओ ?" राममूर्ति उसे घूरते हुए बोले। "अच्छा तभी तुमको मेरी याद नहीं आई। पहले बुलाते ही दौड़कर आ जाती थी भले ही कहीं पर भी बुलाओ !"

उसने सिर झुका लिया। उनके आफ्टर शेव लोशन की खुशबू उसके ऊपर आई। उसकी यादों से आंखों में आंसू आ जाएंगे लगा।

झुककर देखते समय अपने पैरों को भी जोर-जोर से हिला रहे थे दिखाई दिया..... जोर-जोर से घंटी बज रही है जैसे हिल रहे थे। पैर लंबे होकर उसे कांटे जैसे खींच लेंगे उसे डर लगा। आकृति लंबी होती जा रही थी। असुरों की तरह।

"अब नहीं आओगी ऐसा बोलने आई हो, ऐसा ही है ना ? इतने आराम से पुरानी बातों को भूल नहीं सकते डियर गर्ल!"

"भूलना है।" वह पक्का बोली। 'उस समय मैं दुनिया नहीं जानती थी। छोटे गांव से चेन्नई में आई थी। मेरी मां ने मुझे घर का काम करके पढ़ाया।' उसके अंदर हड़बड़ाहट हुई।

'गरीबी के बारे में आपको पता है साहब ? नौकरी के लिए एक लड़की तड़प रही है। अपनी मां को आराम करवाना है सोचती है। भाई को पढ़ाना है तड़पती है। चेन्नई आने पर सब कुछ हो जाएगा सोच कर यहां आती है'

वह बिना रुके मनन किए हुए शब्दों को एक के बाद एक बोलती जा रही थी उसको राममूर्ति आराम से पैरों को हिला-हिला कर सुन रहे थे।

'नौकरी ना मिलने से चारों तरफ हाथ पैर मारते हुए तड़पते समय एक गवर्नमेंट नौकरी में रहने वाले गौरवशाली आदमी मिलें और दोस्त जैसे बातें करें तो....

डरो मत मैं कुछ करता हूं ऐसा बोलता है तो वह लड़की क्या करेगी ? विश्वास करेगी ? नहीं करेगी ? राममूर्ति हंसे । "वह सब कहानी अब क्यों ? अभी कह रहा हूं, नौकरी दिलाऊंगा। थोड़ा टाइम लगेगा बस इतना ही।" वह पैरों को जोर-जोर से हिला रहा था। "कुछ भी फ्री में नहीं मिलेगा सब मालूम करके तो आई थी ?"

उसका पूरा शरीर गुस्से से कांप रहा था।

"निराशा का मतलब क्या है पता है साहब ? डिप्रेशन! कोई दूसरा रास्ता न होने पर समझौता करने की स्थिति कैसी होती है आप नहीं समझोगे। उस समय कुछ भी बड़ा नहीं था। भूख सबसे बड़ी चीज थी। अम्मा की तकलीफ बड़ी थी। भाई की पढ़ाई बड़ी थी।"

उसका सांस भरने लगा। कहीं रो ना दूं उसे डर लगने लगा।

अचानक उठे। "यह देखो बेकार बातें करके मूड खराब मत करो। चाय बना कर तैयार रखी है । पहले टिफन ल़ो और चाय पियो।"

यह आदमी ऐसे कैसे बात कर सकता है उसे आश्चर्य हुआ।

"मुझे कुछ नहीं चाहिए साहब मैं खाकर आ रही हूं।"

"तुम बिना खाए थोड़ी आओगी ? यह मेरा चाय पीने का समय है।"

वह बात करते हुए मेज से फ्लास्क में से दो कप में चाय निकाली।

‘बेकार नहीं बोलना चाहिए, शादी हो जाने के कारण क्या ?’

उसके कान में नहीं आया जैसे वह बोली "तुम नहीं आओगी तो फिर मैं दुखी हूं आपने फोन पर कहा । फेसबुक, टि्वटर जैसे कुछ बोला मेरे कुछ भी समझ में नहीं आया।"

दरवाजे को खटखटाते आती हुई संध्या अंदर आई। 'आपका दोपहर का भोजन आ गया है मैडम' कहती हुई एक टिफिन सेट को कमरे के एक कोने में पड़े मेज पर रख कर बाहर चली गई।

यह भी अप्पा का किया हुआ है सोचते ही अप्पा ने उसके पूरे जीवन को स्वीकार कर लिया जैसे लगा। अप्पा क्यों इतने अच्छे हैं ऐसा एक बच्चों जैसा प्रश्न उसके मन में उठा। अम्मा का ऐसा करना ज्यादा है ऐसा लगता है उसे कई बार संकोच भी होता है। अप्पा एक आश्चर्य ही हैं।

राजकीय कार्यालय से एक सम्मानित पद पर रहकर रिटायर हुए हैं.... बहुत हुआ काम करना सोचकर घर में बैठ गए। सरकारी मकान को खाली करके वह जहां रह रही थी उसके पास ही दूसरी गली में एक प्लॉट लेकर किराए पर आ गए। अम्मा को रिटायर होने में और पाँच साल है बाकी हैं। उनके घर में रहने से मां को बहुत सहायता मिलती है। अप्पा खाना भी बना लेते हैं। घर में सब्जी फल किराने का सामान सब कुछ वे आराम से लेकर आते हैं। दोपहर के खाने को माइक्रोवेव में गर्म करके खाते हैं। परंतु यह सब गुण तारीफ करने लायक हैं ऐसा मैंने नहीं सोचा लगता। सच में मैंने कभी कोई अभिप्राय जाहिर नहीं किया। वह अपनी मां को समझ न सकी।

"ओ, अभी तुम ठीक बात कर रही हो। हम दोनों के बीच में एक डील है। हर एक बुधवार के दिन आज आए जैसे आ जाओ। एक घंटा रहकर जाओ, पहले नहीं मिलते थे क्या ?"

एकदम से उठ गई। "सॉरी सर। यह मुझसे नहीं होगा। मैं एक शादीशुदा औरत हूं। मेरे पति बहुत अच्छे हैं। अब मुझे नौकरी भी नहीं चाहिए।"

राममूर्ति ने जल्दी से उसके कंधे को दबाकर हाथ खींच कर बैठा दिया ।

"अरे ! अरे ! तुम इतनी आसानी से बच नहीं सकती। तुम मेरे पास रही उस समय का मैंने वीडियो बनाकर रखा है। वह देखो छोटा सा पेनड्राइव है उसमें रखा हुआ है। तुम मना करोगी, कल ही फेसबुक और ट्विटर पर सब बाहर आ जाएगा।  मेरा चेहरा उसमें नहीं दिखेगा ।"

एकदम से वह चौकन्नी हो गई। एक पेनड्राइव मेज पर रखा था। उसे वह उठाने गई। उन्होंने कठोरता से उसके हाथ को खींच लिया। उसका शरीर गुस्से और डर से कांपने लगा।

"आप जो कर रहे हैं वह सही है क्या ? बहुत ही तकलीफ पाकर अब मैं अच्छी हालत में आई हूं । दया करके मुझे छोड़ दीजिए। प्लीज मेरे जीवन को बर्बाद मत करिए।"

"यह देखो। मूर्खतापूर्ण बात मत करो। हफ्ते में सिर्फ एक ही दिन बुला रहा हूं। चुपचाप आकर वापस जाओ। कोई समस्या नहीं होगी।

दो बजे उस दिन की मीटिंग रद्द करने की सूचना आई। आज अप्पा को बस स्टैंड जाने की जरूरत नहीं है बताना चाहिए ऐसा विचार आया। परंतु अभी उनका दोपहर के सोने का समय है। उनको एक मैसेज भेजा। 'मीटिंग रद्द होने के कारण बच्चों को मैं ही लेकर आऊंगी। आपको जाने की जरूरत नहीं'

वह कुछ देर चुपचाप बैठी रही। उस पेनड्राइव राक्षस की आकृति में बढ़ रहा था ऐसे उसे लगा। उसके दिल पर चोट लगी.... उसके सारे सपने टुकड़े-टुकड़े होकर बिखर गए।

"आ, आजा, समय को बेकार मत करो। यू आर ए गुड गर्ल आई नो।" कहकर राममूर्ति ने बुलाया।

उनके हाथ के इशारे ने बैडरूम दिखाया। "एसी चालू है तैयार रखा है।"

वह आराम से उठी बर्तनों को उठाकर रसोई के सिंक में ले जाकर रखा। "आप जाइए, मैं आती हूं।"

उस पेनड्राइव को लेकर राममूर्ति को टीवी में डालते हुए उसने देखा।

"आ... आ, कप धोने की जरूरत नहीं है।"

"आ रही हूं।"

कप को धो कर रखा है बिस्तर पर जाते समय वे बिल्कुल नंगे खड़े थे।

उसे देखकर हंसे। "आ, मुझे ठंड लग रही है। अरे तुमने भी सब कुछ उतार दिया, गुड!"

उसके चेहरे पर बिना कोई भाव लिए वो उनके पास गई। "आपको बहुत जल्दी है नहीं ?"

एसी की आवाज बारिश हो रही जैसे लगी।

उसे चिपकाने के लिए वे दोनों हाथों को खोल कर खड़े थे। उनके आंखों पर वेग दिखाई दे रहा था उसके लिए वह नया नहीं था। वह उसकी छाती पर सांड के टकराने जैसे जाकर हाथ में छुपा कर जो चाकू लाई थी उसे उसने भौंक दिया। वे यह क्या है चिल्लाना शुरू करते हैं आक्रोश में आकर बार-बार गर्दन में पेट में मुंह पर उसका हाथ जहां चला जोर से चाकू को घुसाती चली गई कई जगह गहरे से लगा। चाकू बहुत ही पैना था। उनकी हालत खराब होकर नीचे गिर गए। उनकी आवाज बंद हो गई। वह मर गए।

खून की नदियां बहने लगी। खुद उससे ऐसा हुआ उसे आश्चर्य हुआ। उस शरीर को देख न सकने के कारण उसे उसने चद्दर से ढक दिया। बाथरूम में जाकर चाकू को अच्छी तरह धोकर खुद अपने शरीर को अच्छी तरह धोकर पोंछकर अपने कपड़ों को पहनकर पेनड्राइव को और उनके मोबाइल को लेकर उसमें से अपने नंबर को मिटा दिया। उन्होंने जो उसे बुलाया था उस कॉल को भी मिटा दिया। उस मोबाइल को अच्छी तरह पोंछ कर बिस्तर में रख दिया।

घर के बाहर निकल कर दरवाजे को अच्छी तरह बंद किया। लिफ्ट के लिए खड़े रहते समय उसके मन में एक खालीपन आया। घर के आस-पास भी कोई नहीं था। ब्लॉक में सिक्योरिटी गार्ड किसी से बात कर रहा था उसकी ओर ध्यान नहीं दिया। आते समय कौन है उससे नहीं पूछा।

अप्पा ने उसके भेजे मैसेज को पढ़ा कि नहीं मालूम नहीं। तीन बजे वह उठ जाएंगे सोच उनके नंबर को मिलाया। बहुत देर तक घंटी बजती रही। उन्होंने नहीं उठाया। बाथरूम गए होंगे उसने सोच फिर आधे घंटे बाद कोशिश करी। पर घंटी जाती रही। उसे थोड़ी फिक्र हुई । क्या हुआ ? मोबाइल को रख के बाहर चले गए होंगे क्या ? कहीं बेहोश होकर तो नहीं गिर गए होंगे ? फ्लैट में रहने वाले आपस में किसी से भी संबंध नहीं किसी को कुछ पता नहीं। फ्लैट की जिंदगी में सबका अपना-अपना मतलब होता हैं भले ही एक दीवार बीच में हो। आज उसे बहुत बुरा लगा। इसके अलावा सब लोग नौकरी पर जाने वाले। 3:30 बजे कई बार फोन किया। कोई फायदा नहीं। अम्मा को फोन किया। 'उन्हें कुछ नहीं हुआ होगा। ग्यारह बजे मुझसे बात किया था। मोबाइल को चार्ज नहीं किया होगा। फिक्र मत करो।' अम्मा बोली।

मन में कुछ शांति आई। परंतु बच्चों को लेकर आने के लिए रवाना हुई। बस अड्डे पर अप्पा नहीं थे।

वह दोनों को घर में उतार कर नाश्ता और दूध देकर जल्दी-जल्दी उन्हें घर में रहने को बोलकर मैं आधे घंटे में आती हूं कहकर रवाना हुई।

अप्पा जिस बिल्डिंग में रहते हैं उस बिल्डिंग के ब्लॉक तक पहुंचते ही उसने सोचा गार्ड से अप्पा बाहर गए क्या पूछूं फिर जल्दी से लिफ्ट में चली गई। अंदर बटन को दबाया नौंवी मंजिल खाली पड़ा था वहां कोई नहीं था। वह 901 घर के बाहर जाकर अपने पास जो डुप्लीकेट चाबी थी उसे लगा कर दरवाजा खोला। सोने वाला कमरा बंद था। सो गए होंगे क्या ? अप्पा, अप्पा, कहकर दरवाजा खटखटाया। कोई आवाज नहीं आई। दरवाजे को खोला तो एसी चल रहा था ठंडी हवा चेहरे पर लगी। पलंग पर अप्पा नहीं थे। बाथरूम में गिर गए होंगे क्या ? उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा तब उसे नीचे देखा वे नीचे पड़े हुए थे, उनके प्राण पखेरू उड़ गए थे। चादर से ढके हुए थे। डर के मारे आंखें फटी रह गई उसने चादर को हटाया। उनका नंगा शरीर। सदमे के कारण उसे लगा मेरी सांसें ही बंद हो जाएगी। उसके गले में कुछ आकर फंस गया जैसे लगा । उनके पूरे शरीर में चाकू के घाव। खून नदी जैसे बहकर सूख गया था। हत्या। आक्रोष से किया हत्या। अपने को रोकने का प्रयत्न किया होगा। इतने घाव क्यों ? शरीर में कपड़े क्यों नहीं है ? दिनदहाड़े चोरी ? उसके लिए इतने क्रूर ढंग से मारना ?

उसकी बुद्धि स्तंभित रह गई।

अम्मा को सूचना देने के पहले उसकी आवाज कांपने लगी रोना फट पड़ा शब्द लड़खड़ा गए।

"मैं आती हूं।" अम्मा बोली। उसके पहले उसने सिक्योरिटी को फोन किया।

बात को बता कर वह सिक्योरिटी पर नाराज हुई कौन आया था पिताजी को देखने ? उन्हें पता नहीं चला। विजिटर के रजिस्टर को देख कर बताओ।

रजिस्टर में कुछ भी नहीं लिखा था। संदेह होने पर ही हम पूछते हैं मैडम। ऐसा कोई भी नहीं आया। कैसे आदमी हैं सोच कर उसे बहुत गुस्सा आया।बहुत से लोग और सोसाइटी के मैनेजर भाग कर आए।

पुलिस आई। बिल्डिंग में जो कैमरे लगे हुए थे वह भी काम नहीं कर रहे थे। क्या सोसाइटी चला रहे हो करके पुलिस वाले ने मैनेजर को डांटा।

अम्मा सपने में चल रही जैसे आकर खड़ी हुई। सुमति उससे चिपट कर हो-हो करके रोने लगी।

किस ने अम्मा, किस ने किया अम्मा कैसे ऐसे ?

कुछ चोरी हुई क्या देखो पुलिस वाले ने बोला। अम्मा और वह कांपते हुए उंगलियों से अलमारी को खोल कर, अप्पा के पर्स को ढूंढा। कुछ भी चोरी नहीं हुई। उनके मोबाइल को देखो। किसको आखिर फोन लगाया है पता चलेगा। "मैंने देख लिया, आखिरी फोन मेरी मां को ही किया है। कोई अनजान आदमी ही आया है।"

पुलिस ने पूछा-उनका कोई दुश्मन है क्या ?

उसने मां को देखा। अम्मा पल्ले से मुंह को ढंक कर बैठी थी।

नहीं है बोल रहे हैं या पता नहीं है ?

सुमति गुस्से से बीच में आई। 'हमारे पिताजी के बारे में किसी से भी पूछ लीजिएगा उनका कोई दुश्मन नहीं है। कुछ गलतफहमी हो गयी होगी आपको ही इसे ढूंढना है।'

कई कई आश्वासन देकर पुलिस चली गई। पूरे बिल्डिंग के लोग जमा हो गए। अड़ोस-पड़ोस के बिल्डिंग वाले भी झांक कर देख रहे थे। उसके ऑफिस वाले सभी लोग आकर तसल्ली दे रहे थे। कैमरे के सामने और माइक के सामने वह अपने आप को कंट्रोल न करने के कारण रो रही थी। घर में रहने वाले एक सीनियर सिटीजन की यह गति है तो कोई भी यहां सुरक्षित नहीं है वह बोली।

बार-बार उसने पुलिस को फोन किया कुछ भी नहीं पता चला। कोई पुरानेदुश्मन का ही काम है यह उन्होंने कहा। इसके पीछे कोई गैंग हो सकता है। रिटायरमेंट के पहले की कोई बात होगी हम इसे मालूम कर लेंगें। उनकी बातों से उसके मन में एक डर व्याप्त हो गया। उसे लगा वह कुछ नहीं जानती उनके बोलने से उसे ऐसा लगा।

अम्मा अब बात नहीं करती है। कुछ दिनों से ऑफिस भी नहीं जाती है। चुपचाप मौन रहकर खाना बनाती है फिर चुप रहती उससे लिपट कर उसने पूछा 'इतने अच्छे आदमी को ऐसे मरना चाहिए ?'

बहुत देर तक मौन रहने के बाद,"सुमति, पुलिस के पास दोबारा मत जाना।" धीरे से अम्मा बोली। "किसने किया था यह हमें नहीं मालूम हो तो ही अच्छा है।"

"क्या बोल रही हो मां तुम ? कितनी बर्बर हत्या है यह ?"

"मैं जो बोल रही हूं उसे सुनो। हमें जानने की जरूरत नहीं।" एक फैसले के साथ बोली।

"दोषी को छुटने दो ऐसा बोल रही हो क्या ?"

अम्मा ने जवाब नहीं दिया। चुपचाप सब्जी काटने लगी।

क्यों मां यह चाकू इतना पैना क्यों है?

"हां, तुम्हारे अप्पा इसे ढूंढ-ढूंढ कर लेकर आए थे इससे सब्जियों को काटने के लिए सहूलियत होगी इसलिए।"

अम्मा मुस्कुरा रही है जैसे लगा।

इस तमिल कहानी की लेखिका वासंती है | इसके अनुवादक एस. भाग्यम शर्मा |

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