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मैं जीत गई

मैं जीत गई

तमिल कहानी लेखिका भारती भास्कर

अनुवाद एस.भाग्यम शर्मा

‘‘अम्मा आपने हमारी परवरिश ठीक से नहीं की'' ये सुन सरोजनी का दिल धक से रह गया। जब बेटा मेरे गर्भ में था, तब मैंने रविन्द्रनाथ ठाकुर की कविताओं को पढ़ा तो मुझे इतना अच्छा लगा कि मैंने उनके पूरे साहित्य को पढ़ डाला। उनके प्रभाव के कारण ही मैंने मेरे बेटे का नाम भी रविन्द्रन रखा। उसके बाद जब बेटी हुई तो उसका नाम निवेदिता रखा व निवि बुलाने लगी। भारती जी की ज्ञान की गुरू भी निवेदिता बहन ही थी। उन्हीं की याद में मैंने ये नाम रखा। निवेदिता के जन्म के चार साल में ही मूर्ति व सरोजनी में मनमुटाव अधिक बढ़ गया जो तलाक में जाकर खत्म हुआ। दो बच्चों को लेकर घर से बाहर आ गई। नौकरी ढूंढी व पूरा जंग लड़कर आज इन बच्चों को कालेज में दाखिला दिलवा सकी हूं। अब जब सरोजनी यह सोच रही है कि मैं जंग जीत गई, उस समय उसके बेटे रविन्द्रन उस पर इल्जाम लगा रहा है कि आपने हमारी परवरिश ठीक से नहीं की। सरोजनी अपने को सहज करती हुई बोली ‘‘जो हुआ उसे जाने दो, तुममें कोई कमी नहीं है।''

‘‘जाओ मां, तुम बहुत बोरिंग हो। किस तरह मैंने बीस साल कठिन परिश्रम कर बेटे को बड़ा किया और वह लड़का ऐसा बोले तो ‘क्या है रे! मैं अच्छी मां नहीं हूं यह कह रहे हो?' ऐसा कह गुस्से में जोर का चांटा लगायेगी। चांटा नहीं भी लगाए तो कम से कम बड़बड़ायेगी जरूर। ‘मैंने तुम्हें बड़ा करने के लिए कितना कष्ट उठाया है।' फिर कितना अच्छा एक ड्रामा होता। अम्मा तुम कैसी हो! बादल भी फट जाये तो तुम लाठी गिरे जैसे इतना शान्त एक्सप्रेशन कैसे देती हो?'' रविन्द्रन बोला।

‘हो हो कर हंसते हुए उसे चिढ़ाते हुए ‘‘मेरे बेवकूफ बड़े भैया! इतने वर्षों के अनुभव के बाद भी अम्मा को नहीं समझने वाले बावले भैया! आज तेरा दिन अच्छा है जो तू बच गया। नहीं तो ‘सत्य बदलता है प्यार' जैसे.... गाना शुरू कर देती। बेटा तू बच गया।'' निवेदिता बोली।

बेटे व बेटी को मजाक करते देख सरोजनी को हंसी आ गई। ये कंबन रामायण का गाना उसका फेवरिट है। ‘सत्य जो है वह प्यार को बदलता है।' ‘कल से तुम राजा हो! कहने पर भी सही या फिर अगले ही क्षण तुम जंगल जाओ। ऐसा कहे तब भी सही, राम का चेहरा कमल के फूल जैेसे ही खिला रहता था। ये गाना सिर्फ उसका प्रिय ही नहीं, बल्कि उसके जीवन का उद्देश्य भी वही है। जीवन में कुछ भी हो जाये कभी दुःखी नहीं होना है। यही मैंने सीखा व मेरे जीवन का उद्देश्य भी यही है।

धोखा, अपमान, अकेलापन व डर इन सब के साथ, दो छोटे बच्चों के साथ इस समुद्र रूपी संसार मं जब भी सरोजनी तैरी तब, जब भी निराश या हताश हुई तब उठने में मदद कर इस गाने ने टानिक जैसे काम किया। सरोजनी ने बच्चों को भी यही सब सिखाया।

‘अरे! इसे ही तो कनंदासन ने ‘मुठ्‌ठीभर मिले तो मैं दुखी नहीं होउंगा, यदि वह समुद्र जितना मिले तो भी बेहोश नहीं होउंगा। दिल के अन्दर जो है वही संसार है कन्ना। इसे समझ जाओ तो दुःख सब दूर हो जायेगा (कृष्ण) कन्ना वे कहां हैं। जोर—जोर से गाकर चिल्लाकर बच्चों कूदते—फांदते रहते हैं। मेरा मजाक उड़ाते तो हैं, पर दोनों ही मुझ पर जान देते हैं। सरोजनी यही .......... सोचने लगती है।

‘‘अम्मा मैं सच कह रहा हूं। आपने हमारी परवरिश ठीक से नहीं की। उसमें एक कमी रह गई है।''

‘‘क्या है'' सरोजनी उसे देखती है।

‘‘आपने हमें बहुत सा पाठ साहित्य, आत्मज्ञान एवं नैतिकता का पढ़ाया। अतः कोई हमारा अपमान करे तो भी हमें तो भारती जी का गाना ‘आदमी को दुःख होने पर भी मनुष्य जो जीवन जीता है उसका कोई सानी नहीं हो सकता है?' इस गाने को गाने का ही मन करता है। पर जिसने हमारा अपमान किया उससे बदला लें उसे चीर डालें, उसके टुकड़े—टुकड़े करें उसका बदला लें ये भाव कभी नहीं आता। हम दोनों के पास एक विवेक है वह इस समय के लिये तो सही नहीं हो सकता ना?''

सरोजनी ने बेटे को स्नेह पूर्वक देखा व बोली ‘‘आ जा बेटा खाना खाते हुए बात करेंगे?'' उसे अपने पति मूर्ति याद आया।

मूर्ति को जिंदगी में सिर्फ एक ही बात की जरूरत थी। जीत, सक्सेस वही शक्ति देगा, दुनिया में किसी और चीज की जरूरत नहीं। जीत को पाने की उत्सुकता के सिवाय उसके पास दूसरी सोच ही नहीं थी। सरोजनी की नौकरी व उसके वेतन को सोच कर ही उससे शादी की होगी।

शादी के एक साल के भीतर ही उसने चार नौकरियां बदलीं फिर अपनी एक निजी कम्पनी खोल ली। उसमें सिर्फ दो वर्ष में रूपये छप्पर फाड़ कर बरसने लगे। उस कम्पनी का नाम ‘फाइनेन्शियल सर्विस' रखा। दो साल में लक्जरी कार भी ले लीं। जिस पर सरोजनी को आश्चर्य हुआ।

मूर्ति चाहते कि मैं हाई सोसायटी की पत्नी जैसे पूरे दिन ब्यूटी पार्लर में व्यतीत करूं। कई पार्टियों को होस्ट करने के लिए नौकरों को आदेश देती रहूं। फोन अटेण्ड करूं। आज टोकियो जा रहे हैं वैसे ही हांगकांग भी जायेंगे, रास्ते में सिंगापुर भी जायेंगे.... ऐसा सबके बताती रहूं यहीं उन्हें मुझसे अपेक्षा थी।

‘उसे क्या वह तो भाग्यशाली है।' ऐसा दूसरे लोग उसे देख ईर्ष्या करते। पर उस जिंदगी में पूर्णता का अभाव था। अतः सरोजनी तड़पने लगी। रूपये से मालामाल होते ही मूर्ति की जबान कार्यविधि व सोच सभी में उसका वहशीपन सरोजनी को डराने लगा।

शहर के जाने माने बढ़िया स्कूल में 2) साल के रविन्द्रन को भर्ती करवाया गया। छः मास के अन्दर स्कूल के प्रधान ने सरोजनी को बुलवाया व कहने लगी ‘‘आपका बेटा स्कूल में तमिल में ही बोलता है। जिसके कारण अैर बच्चे भी बिगड़ रहे हैं। ये स्कूल के लिए भी परेशानी का कारण है। इसे दूर करने का एक मात्र रास्ता है आप लोग घर में बच्चे से अंग्रेजी में ही बात करें।''

‘‘आप स्कूल अंग्रेजी सिखाने के लिए चला रही हैं या मातृ भाषा को भुलाने के लिये?'' सरोजनी गुस्से से बोली। स्कूल वालों ने एक पत्र मूर्ति को भेजा कि यदि मां—बाप हमारा साथ न दें तो अपने बेटे को दूसरे स्कूल में ले जायें।

‘‘हम अपने बेटे को शहर के सर्वोच्च स्कूल में न पढ़ा सके तो क्या फायदा?'' कह कर मूर्ति गुस्से में उबलने लगा तथा सरोजनी को डांट कर बोला ‘‘तुम जाकर स्कूल वालों से माफी मांगो।' आफिस पार्टी के नाम पर बैले—डान्स व तमाशा सरोजनी को बहुत बुरा लगता। मन की टूटन बढ़ते—बढ़ते बहुत बड़ी हो गई तो सरोजनी बच्चों को लेकर घर से बाहर आ गई।

दूसरा शहर व दूसरी नौकरी की। शेक्सपीयर, भारतीदास, ठाकुर कम्बन, विवेकानन्द, रमणन उनको ही अपना साथी बनाया था। आज ‘‘तुमने जरूरत से ज्यादा साहित्य में हमें डुबोया अतः हम ऐसे हो गये'' बेटा कह रहा है। यही सच है क्या?

रविन्द्रन, मूर्ति जैसे सफल आदमी नहीं बन सकता क्या? रवि व निवि कविताओं में ही रूचि लेकर जिंदगी आगे बढ़ पायेंगे क्या?

सरोजनी को मूर्ति से बिछुड़ते समय जो डर नहीं हुआ वह अब हो रहा था। ‘सत्य से ही प्यार पा सकोगे... गाना मन में गुनगुनाने लगी।

कॉलिंग बैल बजी। सरोजनी ने दरवाजा खोला। पड़ौस के पदमा की नौकरानी आई थी। वह बोली ‘‘मैं तीन दिन से लगातार आकर जा रही हूं। घर में ताला ही लगा है अम्मा। उन्हें कहीं बाहर जाना हो तो बोलकर नहीं जाना चाहिये क्या? मुझे रोज आना पड़ता है।''

सरोजनी बाहर आकर पड़ौस के घर को देखा तीन दिन का दूध के पैकेट व न्यूज पेपर बाहर पड़ा देख उसका दिल धक रह गया। ये क्या है फ्लैट की जिन्दगी! पड़ौस की घर वाली क्या करती है? कहां गई? कुछ भी नहीं पता!

पदमा भी अपने जैसे ही है ऐसा सोचकर वह राहत महसूस करती थी। पदमा का छोटी उम्र में ही पति का साथ छूट गया था। पर उसके कार्यालय में ही उसे नौकरी दे दी थी। उसके लड़के सुरेश व लड़की मधु दोनों ही बुद्धिमान थे। दोनों इंजिनियर थे।

इंजिनियरिंग कॉलेज में पढ़ते समय ही सुरेश ने अमेरिका जाकर पढ़ने का सोच लिया और उसे पूरा भी कर लिया। वहां नौकरी करते अपनी बहन को भी वहीं बुला लिया तथा अपने दोस्त से ही उसकी शादी पक्की कर पिछले महीने ही उसकी शादी भारत में हुई व वे सब अमेरिका चले गये।

पदमा दो महीने में ही रिटायर होने वाली थी। अतः उसने उसके बाद ही बच्चों के पास जाकर रहूंगी सोच रखा था। अब वह कहां चली गई होगी? कैसे पता लगायें? सरोजनी ने पदमा के आफिस फोन किया।

पदमा तीन दिन से वहां गई नहीं न ही कोई छुट्‌टी का प्रार्थना पत्र ही आया। सरोजनी तो बहुत घबरा गई। पदमा के दूर के रिश्तेदार को ढूंढ कर उन्हें बताया। पुलिस आई। ‘‘एक हफ्ते के अन्दर बैंक अधिकारी की हत्या'' कह कर गरमा गरम समाचार चारों ओर फैला।

अकेली रहने वाली लड़की को रूपयों के लिये हत्या कर रेल के पटरी पर फेंक दिया। रेल उसके ऊपर चढ़ी की नहीं ठहर कर देखकर जाने वाले चार नौजवान में से दो तो रविन्द्रन के साथ उसी की कक्षा में पढ़ने वाले छात्र थे। वे हमारे ही अपार्टमेन्ट में रहने वाले भी थे। मधु व सुरेश ‘‘हमारी अम्मा को देख लेना आण्टी'' मुझसे कह कर हंसते तुए प्लेन पर चढ़े थे।

इस दृश्य को देख कर सरोजनी की आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा। किसी ने कहा नशे के लिये उन्हें पैसों की जरूरत थी। लड़कियों से सहवास के लिये या पांच सितारा होटल में खाना खाने के लिये रूपयों की उन्हें जरूरत थी। जितनी मुंह उतनी बातें।

मुंह में चांदी के चम्मत के साथ पैदा होने वाले लड़के आराम से खाते—पीते, अय्‌याशी करते रहे। पिता ने बड़े परिश्रम व पैसा देकर कालेज में सीट लेकर दे दिया। अब नशा आवारागर्दी के लिये रूपयों की जरूरतों को पूरा करने के लिये अपनी ही बिल्डिंग में रहने वाली औरत को मार डालने वाली पीढ़ी के बारे में सोच सरोजनी का दिल दुःखने लगा। वह रो दी।

‘‘थोड़ी सी काफी तो पी लो अम्मा'' कहकर निवि ने कप को सरोजनी के हाथों में थमाया।

‘‘आपको किसी भी विषय पर इतना अपसेट होते हुए मैंने कभी नहीं देखा अम्मा! थोड़ी हिम्मत रखियेगा क्या करें?'' रवि ने अम्मा की पीठ को थपथपाया।

‘‘मुझसे सहन नहीं हो रहा है रवि! पदमा की ऐसी मौत क्यों हुई? मेरा मन प्रश्न करता है। पर जवाब नहीं मिल रहा है।''

‘‘मेरे मन में भी यही प्रश्न बार—बार उठ रहा है। मेरी ही उम्र का लड़का है। उसकी लिविंग कंडीशन मेरे जैसे ही है। फिर उसमें ऐसा दरिंदगी व वहशीपन कैसे आया? ये थोड़ा एक्सट्रीम केस तो है। उसे मैंने दूसरे लड़कों के साथ मोपेड पर जाने वाली लड़कियों को छेड़ते देखा। उन्हें भगाते हैं कई बार एक्सिडेन्ट भी हो जाता है। एक बार तो इससे सड़क पर गिर कर एक लड़की स्पाट पर ही मर गई। भगाने वाले तो भाग जाते हैं। दूसरे पकड़ में आ जाते हैं। ट्रक में भर कर राजनैतिक पार्टी वाले भीड़ इकट्‌ठी करते व तोड़फोड़ करते मन्दिर व मस्जिद गिराते..... ऐसे युवाओं में पीढ़ी दर पीढ़ी इतनी क्रूरता क्यों है? अम्मा मैंने बहुत सोचा! तो उसका जवाब कल ही मिला।''

‘‘क्या जवाब मला '' अम्मा व बेटी दोनों कौतूहल के साथ रवि को देखने लगी।

‘‘कल अखबार को पलट रहा था। जापान के सुरंग के रास्ते में एक दुर्घटना घटी उसमें कई लोग फंसे। उसमें शामिल एक युवा को पकड़ा। वह इंजिनियर था। उसकी बढ़िया नौकरी व उसकी अच्छी सेलेरी भी थी। पर वह कुछ गैर कानूनी गिरोह में शामिल होकर लोगों को मारे ऐसी उसे कौन सी परेशानी थी? जापान के लोगों ने इस समस्या पर चिंतन किया। शोध हुए। तब एक समाजशास्त्री ने कहा ‘‘अपने बच्चों को हम सिर्फ गणित व विज्ञान ही पहली कक्षा से पढ़ाते हैं। हमने उन्हें साहित्य में शेक्सपियर व अन्य कवियों को नहीं पढ़ाया। शेक्सपियर को जिसने समझा वह ये सब नहीं कर सकता। इसे पढ़ते ही मैं समझ गया अम्मा।'' आगे बोला ‘‘आज युवाओं में जो दीवानापन व वहशीपन है उसका कारण साहित्य व आत्मज्ञान को नहीं सीखने वाली ये पीढ़ी इसी कारण ऐसी है। कविता में रूचि लेने वाला एक ध्यान के द्वारा शान्ति को पाए एक आदमी ऐसा कभी नहीं करेगा। आज आपके जैसे कुछ ही अभिभावकों के सिवाय सभी लोग सोचते हैं लड़के को पैसे ही कमाने चाहिये। पर मन में व बाहर आवेश व क्रूरता न होकर शान्ति से रहना है ऐसा नहीं सोचते।'' ‘‘होल्ड ऑन! होल्ड ऑन, इस घर में एक ही सत्यवादी योद्धा को सहन नहीं कर पा रहे हैं और एक...?''

निवि बेहोश हो रही जैसे नाटक करने लगी व रवि उसे मारने दौडा और सरोजनी बहुत दिनों बाद दिल खोलकर हंसी।

‘‘सफलता जमा करने वाली सफलता नहीं है। मन में शान्ति के साथ जीवन जीने की दवाई को देकर मैंने अपने बच्चों की परवरिश की है मूर्ति! मैं जीत गई मूर्ति! जीत गई।' सरोजनी ऐसा मन में बोली। उसे ऐसा लगा जैसे उसके सिर पर मुकुट रख दिया हो। ठण्डा—ठण्डा मीठा—मीठा उसके पूरे शरीर के अन्दर फैल गया।

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